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रविवार, सितंबर 23, 2012

“लेखन के लिए बस जूनून चाहिए” (चर्चा मंच-1011)

मित्रों!
रविवार के लिए चर्चा मंच पर कुछ लिंकों को देखिए और अपने मन की संयत और शालीन टिप्पणियाँ दीजिए!
बड़ा अजीब पीएम है देश का

प्रधानमंत्री सच कह रहे हैं, किंतु तरीका ठीक नहीं। वे बिल्कुल भी एक जिम्मेदार व्यक्ति की तरह नहीं बोले। न ही एक देश के जिम्मेदार प्रधानमंत्री की तरह ही बोले। वे एक प्रशासक और गैर जनता से कंसर्न ब्यूरोक्रैट की तरह बोले। पैसे पेड़ पर नहीं लगते?
एक ज़बरदस्त विलाप प्रसंग पर ब्लॉगर्स के नज़रिए
शाब्दिक और अलंकारिक अर्थों में फर्क होता है .कई बार उद्धरण सीधे शाब्दिक या अभिधामूलक न होकर लक्षणा या व्यंजना का भाव लिए रहते हैं. शाब्दिक अर्थ में तो पति के दिवंगत होने के बाद नारी का क्रंदन ही विधवा विलाप होता है .मगर अपने लाक्षणिक और व्यंजनात्मक अर्थों में यह एकदम अलग भाव संप्रेषित करता है -वहां कोई जरुरी नहीं है कि नारी का ही विधवा विलाप हो -कोई पुरुष ,कोई राजनीतिक पार्टी भी किसी मुद्दे को लेकर ध्यानाकर्षण के मकसद से विधवा विलाप कर सकती है . यहाँ विधवा विलाप का मतलब ध्यानाकर्षण के लिए अत्यधिक और बहुधा निरर्थक प्रयास से है -जैसे लोग घडियाली आंसू बहाते हैं -उसी तरह विधवा विलाप भी...
''मेरी कविता 1992''
जब मन बहुत दुखी होता है ,मन में अनेक प्रकार के बवंडर उठते हैं,और जिसे किसी के समक्ष व्यक्त नहीं कर सकते,तब मन की उथल-पुथल ,निर्वेद,संवेग सरिता बन कर कविता के रूप में प्रवाहित होती है और पन्नों पर अंकित होती है…
* आखिरी
ख्वाहिश *

बहाना नीद का कर यूँ ही सो गया हूँ कब्रिस्तान में फुर्शत हो गर,फातिहा पढने मेंरे दर पर चली आना गुफ्तगू खुद से करता रहूँगा कब्र में सोते हुए भी गर हो सके,थमती साँसों की सदा सुनने चली आना, बेशक बन शमा यूँ ही जलता रहूँगा ..
''परिवेश ''
जब संवेदनशील मन की बाड़ी में वियोग और आह की अनुभूति हुयी होगी तब हर्ष और विषाद की मसि से एकाकीपन में व्यथा लिखी गयी होगी सौन्दर्य और विकृति की सीमा पर जब-जब कोई प्रतिक्रिया हुई होगी तब-तब कवि की कलम से अकथ मौन कविता प्रस्फुटित हुई होगी…
चोट पानी जब करता है तो पत्थर टूट जाते हैं

हौसला जज्ब में रखिये तो सब डर टूट जाते हैं,
चोट पानी जब करता है, तो पत्थर टूट जाते हैं…
तेरा नाम करेगी रौशन-हाइगा में
(डॉटर्स डे विशेष)
उनकी खुशी के लिए
मुझे चाहने वाले चाहते हैं उनकी खुशी के लिए अपना वजूद ही खो दूं मैं सोचता हूँ क्यों ना खुद को ही नेस्तनाबूद कर दूं मेरी मौत का इलज़ाम खुद पर ही लगा दूं उन्हें तकलीफों से बरी कर दूं
लखनऊ से प्रकाशित सभी ब्लॉगों में तकनीक दृष्टा पहले स्थान पर
आज मैं आपसे एक अच्छी खबर साझा कर रहा हूँ। लेकिन उससे पहले सभी आप सभी पाठकगणों को हार्दिक धन्यवाद देता हूँ क्योंकि आप सभी के..
हम है मीर
*हम है मीर (हाइकु -संग्रह)* मधु चुतर्वेदी मूल्य- रु ९९ प्रकाशक- हिंद युग्म, 1, जिया सराय, हौज़ खास, नई दिल्ली-110016 (मोबाइल: 9873734046) फ्लिप्कार्ट पर खरीदने का लिंक इनफीबीम पर खरीदने का लिंक *सत्रह वर्ण भरते हाइकु में अर्थ का स्वर्ण *
बर्फी

माधव
पिछले दिनों हमने बर्फी फिल्म देखी . माधव भी साथ गया था , पहली बार उनका भी टिकट लगा . बर्फी दार्जिलिंग की कहानी थी .
विरोध करो, मज़ाक नहीं
विनय न मानत जलधि जड़, गए तीन दिन बीत , बोले राम सकोप तब, भय बिनु होए ना प्रीत अपनी बात पूरी इमानदारी से रखनी चाहिए , शब्दों का चुनाव सही होना चाहिए और उसमें पर्याप्त मात्रा में तीव्रता भी होनी चाहिए ताकि ठस दिमाग वालों के दिमाग की परतें भेद सकें और उन्हें समझ भी आये !
पैसा पा'के पेड़ पर, रुपया कोल खदान-

पैसा पा'के पेड़ पर, रुपया कोल खदान । किन्तु उधारीकरण से, चुकता करे लगान । चुकता करे लगान, विदेशी खाद उर्वरक । जब मजदूर किसान, करेगा मेहनत भरसक । पर मण्डी मुहताज, उन्हीं की रहे हमेशा । लागत नहीं वसूल, वसूलें वो तो पैसा ।।
खिलौना सोच
कुछ लोग बडे़ तो हो जाते हैं पर खिलौनों से खेलने के अपने बचपन के दिन नहीं भूल पाते हैं खिलौनों में चाभी भर कर भालू को नचाना बार्बी डौल में बैटरी डाल कर बटन दबाना आँखे मटकाती गुडि़या देख कर खुश हो जाना उनकी सोच से निकल ही नहीं पाता है सामने किसी के आते ही उनको अपना बचपन याद आ जाता है खिलौना प्रेम पुन : एक बार और जाग्रत हो जाता है खिलौनों की तरह करता रहे कोई उनके आगे या पीछे कहीं भी कभी भी तब तक वो दिखाते हैं ऎसा जैसे उनको कुछ मजा नहीं आता है जरा सा खिलौनापन को छोड़ कर कोई अगर कुछ अलग करना चाहता है तुरंत उनको समझ में आ जाता है अब उनका खिलौना उनके हाथ से निकल...
लेखन के लिए बस जूनून चाहिए ....
बहुतों के मुंह से सुना की ब्लॉगिंग का मज़ा तो बस टिप्पणियों से है , इससे लेखक का उत्साह बना रहता है ! बिलकुल गलत है ये धारणा ! अरे जनाब एक से एक टिप्पणियां आती हैं जो खून पी जाती हैं ! अतः ये कहना की टिप्पणियां उत्साह बढाती हैं एकदम गलत बात है ! कुछ लोगों की फितरत ही होती है की काट खाते हैं टिप्पणियों में ! अपनी तो एक ही आदत है , बिंदास लिखो , जिसको काटेगा वो अगले स्टेशन जाएगा ! लेकिन भईया विवादों के चक्रव्यूह में पडना अपने बस का नहीं है , बहुत होमवर्क करनी पड़ती है ! सच्चा लेखक वही है जिसके अन्दर जूनून है, जज्बा है ...और जिसके पास कोई उद्देश्य है…
लड़ी...बूंदो की ...

लड़ी...बूंदो की ... झड़ी ..सावन की ... घड़ी ....बिरहा की ... बात ..मनभावन की ... रात ...सुधि आवन की ..... सौगात ......... नीर बहावन की .....
*~इम्तिहान आया...पेट में फुदकती तितलियाँ लाया

*प्यारी तितलियों, रंग बिरंगी तितलियों....
नदी सागर से मिले है
उम्मीद की दरिया में कवँल कैसे खिले है , लम्हों की खता की सज़ा , सदियों को मिले है। मज़बूर बशर की कोई सुनता नहीं सदा , वह बेगुनाह होके भी , होठों को सिले है…
रुबाइयाँ
इक फ़ासले के साथ मिला करते थे, शिकवा न कोई और न गिला करते थे, क़ुरबत की शिद्दतों ने डाली है दराड़ , दो रंग में दो फूल खिला करते थे. * खामोश हुए, मौत के ग़म मैंने पिए, अब तुम भी…
तृतीय खण्‍ड – विवेकानन्‍द राजस्‍थान में
स्‍वामीविवेकानन्‍द के लिए राजपुताने का महत्‍व सर्वाधिक रहा है। राजपुताना ही ऐसा प्रदेश था जहाँ उन्‍होंने व्‍यापक स्‍तर पर बौद्धिक चर्चाएं प्रारम्‍भ की। सभी वर्गों और सभी सम्‍प्रदायों को..
फ़ुरसत में ... तीन टिक्कट महा विकट

…इसका सामान्य अर्थ यह है कि अगर तीन लोग इकट्ठा हुए तो मुसीबत आनी ही आनी है….
क्या फालिज के दौरे (पक्षाघात या स्ट्रोक ,ब्रेन अटेक ) की दवाएं स्टेन्ट से बेहतर विकल्प हैं
अधुनातन शोध बतलातें हैं पक्षाघात से बचाव के लिए स्ट्रोक- ड्रग्स भी उतना ही कारगर रहतीं हैं जितना कि केरोटिड आर्टरी सर्जरी के ज़रिये स्टेन्ट डालना…
रास्ते बदल गये : कमलेश चौहान ( गौरी)
कमलेश चौहान (गौरी) माना कि ये उस मालिक का दस्तूर है कुछ पल सब कुछ है कुछ पल देखो तो कुछ भी नहीं कल जो दिल के करीब था, आज भी है..
कलाई घडी
कलाई पर बंधा है समय मारता है पीठ पर चाबुक और दौड़ पड़ता हूँ मैं घोड़े की तरह आगे और आगे अंतहीन घडी मुस्कुराती है कलाई पर बंधी बंधी मुझे हाँफते देख…
1989 की कवितायें - धुएँ के खिलाफ
एक कवि को कोई हक़ नहीं कि वह भविष्यवाणी करे , लेकिन कवि पर तो क्रांति का भूत सवार है , वह दुर्दम्य आशावादी है , उसे लगता है कि स्थितियाँ लगातार बिगड़ती जायेंगी और फिर एक न एक दिन सब ठीक हो जायेगा । देखिये इस कवि ने भी 23 साल पहले ऐसा ही कुछ सोचा था…
दास्ताँने - दिल (ये दुनिया है दिलवालों की )
कीमत चाहत की
- कीमत चाहत की अदा कर भूल गई, वो खुद से मुझको जुदा कर भूल गई, नम नैना मेरे, ---- उम्र भर संग रहे, जुल्मी मुझको, गुदगुदा कर भूल गई, मुझमे कायम, यूँ दर्द-गम..
स्वामी अब तो आ जाओ
कहाँ गए जी तुम बिन बोले , हम तुम्हरे बिन आधे हैं ,
दो पल में ही तोड़ दिए ; जो जनम-जनम के वादे हैं ,
बीत गए दस साल हैं तुमका ; स्वामी अब तो आ जाओ ,
ऐसा कौना काम है तुमका ; हमहूँ का बतला जाओ ,
तुम्हरी इक-टुक राह निहारें ; हम पग में ही हैं बैठीं ,
अँखियाँ हमरी रो-रोकर अपना परताप हैं खो बैठीं ,
हम कहतीं हैं स्वामी हमरे सहर गए हैं ; आवत हैं ,
सब हमका पगली बोलत हैं ; पीटत और बिरावत हैं ,
सब बोलत हैं पगली तुमका छोड़ गवा तुम्हरा स्वामी ,
राह अकारण तकती हो ; करती असुअन की नीलामी ,
झुठला दो इन सबका स्वामी , झलक एक दिखला जाओ ,
बीत गए दस साल हैं तुमका ; स्वामी अब तो आ जाओ…
" जीवन की आपाधापी "
प्यार में अंधे होकर , इज्जत न लुटवायें
मैं आपको अपने शहर की एक ताजा घटना से अवगत करना चाहता हूँ , अभी दो दिन पहले की बात है , किसी महिला ने जिस बच्चे को अपनी कोख में नौ महीने तक पाला….
अंकल सैम के ये प्रतिनिधि देश बेच देंगे !!!

*मित्रों, देश कौन चला रहा है, जरा ध्‍यान से सोचिएगा, क्‍या कहा प्रधानमंत्री !!! थोड़ा और सोचिए, ओहो चेयरपरसन महोदया !!! नहीं, नहीं, और सोचिए न, नहीं समझ आ रहा, चलिए कोई बात नहीं, मैं मदद करता हूं…
गैर के बहकावे में न आयें
(ये काम हमारा है)

थर्ड डीग्री से तो गूंगा भी बोलता है…
समय सरगम : कृष्णा सोबती
*कृष्णा सोबती जी का उपन्यास **जिंदगीनामा**, **डार से बिछुड़ी** एवं **मित्रों मरजानी** पढ़ने के बाद एक बार इनका उपन्यास **समय सरगम** पढ़ने का अवसर मिला था…
'कावड़'- आस्था व जनविश्वास का सुमेरू
‘कावड’ देखने में एक दरवाजा, एक डिब्बा लगता है। पर है चलता फिरता मन्दिर-आस्था का स्तूप। चित्तौड़गढ़ के बस्सी गांव के जांगीड़-खैरादी और कावड़िया भाटों के मध्य ‘समझौते’ का नाम है-
बाप रे 25000 हजार करोड़
अगर आपको इतना मुनाफा एक ही साल मे हो तो भला क्या आप कभी कहेंगे की आपको घाटा हो रहा है ?.......नहीं ना ? मगर हमारी कॉंग्रेस सरकार कहेती है की घाटा हो रहा है दर असल काँग्रेस सरकार अपने घोटाले के मुद्दे से लोगो का ध्यान हटाने के लिए ही इस्तेमाल कर रही है…

"थोड़ा-थोड़ा पतंग उड़ाओ"

 मित्रों! मेरी बात मान लो, 
अपने मन में आज ठान लो। 
पुस्तक लेकर ज्ञान बढ़ाओ। 
थोड़ा-थोड़ा पतंग उड़ाओ।।
राजनीति का धंधा - जागो ग्राहक जागो !

इंडिया टुडे की वेब साईट पर एक खबर पढ़ रहा था कि ६००० वीसा जोकि MEA ने ब्रिटेन स्थित भारतीय दूतावास को कोरियर से भेजे थे, वे गायब हो गए ! सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि कोई भी हमारी देश विरोधी ताक़त, खासकर आतंकवादी इनका उपयोग किस हद तक इस देश के खिलाफ कर सकते है! मगर अपना देश है कि मस्त है, जोड़-तोड़ के गणित में, सिर्फ वर्तमान में जी रहा है :) ! एक अपनी गोटी फिट करने में मस्त है, तो दूसरा यह सोचने में लगा है कि इसे कहाँ फिट करूँ और तीसरा यही देखने में लगा है कि ये महानुभाव कैसे इस गोटी को फिट करता है ! वाह रे मेरे देश, मेरा भारत महान ! बड़े अफ़सोस के साथ लिख रहा हूँ कि आज हमारे ...
कार्टून :- राजनीति‍ में, बदलाव का मतलब

कार्टून :- देखो, मैं कहां से कहां पहुँच गया ...

काजल कुमार के कार्टून
आज के लिए केवल इतना ही...!

44 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरीन लिंक्स की
    बेहतरीन प्रस्तुति .

    जवाब देंहटाएं
  2. rपरम सखा जी !बना तल्खी खाए दो टूक कह गए प्रधान मंत्री की रिमोटिया रोबो अवस्था के बारे में .एक कीर्तिमान बना .मौन सिंह बोले .

    थर्ड डीग्री से तो गूंगा भी बोलता है…

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. वीरेंद्र जी। यह बात एकदम सही जान पड़ती है कि प्रधानमंत्री का पद राष्ट्रपति की तरह तो है नहीं, जो कलाम या अंसारी के हवाले कर दें। यह विशुद्ध राजनैतिक और जिम्मेदार जवाबदेह पद है। प्रेसिडेंट की तरह सम्मान पाने के लिए नहीं। तब यहां पर गैर राजनैतिक व्यक्ति का बैठना ही गलत है। कमेंट के लिए बहुत शुक्रिया।

      हटाएं
  3. riday, September 21, 2012
    कार्टून :- देखो, मैं कहां से कहां पहुँच गया ...

    हमारे पास फ्रिज है कूलर है टी वी है ,

    तुम्हारे पास क्या है ,?

    हमारे पास- सिर्फ बीवी है ,

    बीवी तो हमारे पास भी है ,एक नहीं कई कई हैं ,

    यदि आप अपनी से परेशान है ,तो उसे भी इधर दे दीजिए ,

    बदले में एक सब्सिडी सिलिंडर ले लीजिए .

    काजल जी बधाई !उत्कृष्ट चित्र व्यंग्य प्रस्तुत किया है आपने .

    जवाब देंहटाएं
  4. वाह मेरे तो दो दो कार्टून सम्‍मि‍लि‍त हैं आज. आभार.

    जवाब देंहटाएं
  5. बढ़िया रचना है :कलाई पर
    बंधा है
    समय
    मारता है
    पीठ पर चाबुक
    और दौड़ पड़ता हूँ मैं
    घोड़े की तरह
    आगे
    और आगे
    अंतहीन
    घडी मुस्कुराती है
    कलाई पर बंधी बंधी
    मुझे हाँफते देख

    समय सवारी करता मेरी ,मैं हूँ एक मुसाफिर यारों ,समय चक्र से बंधा हुआ हूँ .
    ram ram bhai
    शनिवार, 22 सितम्बर 2012
    असम्भाव्य ही है स्टे -टीन्स(Statins) से खून के थक्कों को मुल्तवी रख पाना

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  6. हाँ कवि तो युग दृष्टा होता है ,समबुद्धि से भविष्य की घटनाओं को भांप लेता है .वह भविष्य कथन नहीं कहता ,कल्पना करता है जो यथार्थ सिद्ध हो जाती है .आज के cyborgs और कोयला खाने वाले उसने कल ही देख लिए थे .

    1989 की कवितायें - धुएँ के खिलाफ

    एक कवि को कोई हक़ नहीं कि वह भविष्यवाणी करे , लेकिन कवि पर तो क्रांति का भूत सवार है , वह दुर्दम्य आशावादी है , उसे लगता है कि स्थितियाँ लगातार बिगड़ती जायेंगी और फिर एक न एक दिन सब ठीक हो जायेगा । देखिये इस कवि ने भी 23 साल पहले ऐसा ही कुछ सोचा था…

    जवाब देंहटाएं
  7. तीन तिगाड़ा काम बिगाड़ा तीन को लेकर कितने ही किस्से हैं पहेलियाँ हैं :हम माँ बेटी ,तुम माँ बेटी ,चले बाग़ को जाएं ,तीन नीम्बू तोड़ के एक एक कैसे खाएं (माँ -बेटी -नानी हैं ,खालो एक एक )पर यहाँ तो निकली कर्मठ चींटी जो अपने भार से भी जायदा सामग्री ढ़ोती लिए चलती साथ एक ग्लोबल पोजिशनिंग स्तेलाईट सिस्टम जी पी एस छोडती चलती फैरोमोंस संग -नियों लिए .

    अर्थी लेके चलने के लिए चार आदमी चाहिए ,तीन कैसे ले जायेंगे .चार जने जब लेके चाले .....काया कैसे रोई तज़ दिए प्राण

    चींटी हमें सिखाती ,मिलजुल के काम करना

    आड़े दिनों से डरना ,कुछ तो बचाके रखना .

    बेहद बेहतरीन रचना है .आभार ,बधाई .चौथा साल ओर भी रचनात्मक रहे .

    साथ जो गर छोड़ जाए हिम्मत से काम करना .

    फ़ुरसत में ... तीन टिक्कट महा विकट


    …इसका सामान्य अर्थ यह है कि अगर तीन लोग इकट्ठा हुए तो मुसीबत आनी ही आनी है…

    जवाब देंहटाएं
  8. पार्टियां न हुईं गैस सब्सिडी का सिलिंडर हो गए .बेहतरीन व्यंग्य विनोद .हमारे दौर की यही तो विडंबना है .

    पैसा पा'के पेड़ पर, रुपया कोल खदान-


    पैसा पा'के पेड़ पर, रुपया कोल खदान । किन्तु उधारीकरण से, चुकता करे लगान । चुकता करे लगान, विदेशी खाद उर्वरक । जब मजदूर किसान, करेगा मेहनत भरसक । पर मण्डी मुहताज, उन्हीं की रहे हमेशा । लागत नहीं वसूल, वसूलें वो तो पैसा ।।

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  9. सुप्रभात गुरु जी |
    बढ़िया चर्चा ||

    फ़ुरसत में ... तीन टिक्कट महा विकट
    मनोज कुमार
    मनोज

    तीन साल पूरा हुआ, शुभकामना मनोज ।
    ओजस्वी ये ब्लॉग सब, पाठक पढ़ते रोज ।
    पाठक पढ़ते रोज, तीन तेरह क्यूँ भाई ।
    तीन-पाँच नहिं आँच, नई फुर्सत महकाई ।
    वर्ष पूरते तीन, चौथ का चाँद भाद्रपद ।
    झूठ मूठ की बात, दुखी कर देता बेहद ।

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  10. गैर के बहकावे में न आयें (ये काम हमारा है)
    कमल कुमार सिंह (नारद )
    नारद


    झूठ बोलने से भला, मारो-मन मुँह-मौन ।
    चले विदेशी बहू की, कर बेटे का गौन ।
    कर बेटे का गौन, कौन रोकेगा साला ।
    ससुर निठल्ला बैठ, निकाले अगर दिवाला ।
    आये वह ससुराल, दुकाने ढेर खोलने ।
    भैया वन टू आल, लगे हैं झूठ बोलने ।।

    जवाब देंहटाएं
  11. बड़ा अजीब पीएम है देश का

    और अगर पैसे पेड़ पर लग रहे होते तो ये ही लोग उस पर बैठ कर तोड़ रहे होते । उस समय पी एम साहब का जवाब होता । अब पेड़ पर पैसे लग रहे हैं तो क्या पेड़ जनता को दे दें ?

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सुशील जी। सही कहा आपने। कांग्रेस जब भी एक पंचक से ज्यादा राज करती है, तो यह अपना एरोगेंस दिखाने लगती है। ऐसा ही हुआ था मध्यप्रदेश में भी 10 साल के राज में दिगविजय थे सीएम जब। यह एक राष्ट्रीय पार्टी के रूप में ठीक नहीं, तो वहीं भाजपा का कमजोर होने और भी ज्यादा देश के लिए नुकसानदेह है। कमेंट की लिए बहुत शुक्रिया।

      हटाएं
  12. इस बार चर्चा की मंच से अपनी रंग विखेर रही है।
    खुद को यहां पाकर सम्मानित महसूस कर रहा हूं।

    जवाब देंहटाएं
  13. चोट पानी जब करता है तो पत्थर टूट जाते हैं
    वाकई टूट जाते है !

    जवाब देंहटाएं
  14. तेरा नाम करेगी रौशन-हाइगा में
    (डॉटर्स डे विशेष)
    बहुत ही अच्छी हाईगा !

    जवाब देंहटाएं
  15. फ़ुरसत में ... तीन टिक्कट महा विकट

    बहुत देर लगी समझने में पर आखिरकार आ गया ! तीन वर्ष तीन त्रिकट महा विकट !!
    बधाई!!

    जवाब देंहटाएं
  16. लेखन के लिए बस जूनून चाहिए ....
    जी जी बिल्कुल !

    कुछ लेखन
    दिल से होता होगा
    ये हम मानते हैं
    कुछ लेखन चिढ़ से
    भी होता है
    क्या आप भी
    जानते हैं ?

    जवाब देंहटाएं
  17. क्या फालिज के दौरे (पक्षाघात या स्ट्रोक ,ब्रेन अटेक ) की दवाएं स्टेन्ट से बेहतर विकल्प हैं

    वीरू भाई कुछ स्पेशियल ही लेकर आते हैं ! उम्दा !

    जवाब देंहटाएं
  18. पैसा पा'के पेड़ पर, रुपया कोल खदान-

    बर्फी के ऊपर
    चाँदी का वर्क
    दिख जाता है
    रविकर जब कुछ
    टिपिया जाता है !

    जवाब देंहटाएं
  19. उत्कृष्ट सुन्दर चर्चा.

    आभार.

    जवाब देंहटाएं
  20. बेहतरीन लिंक्स की
    बेहतरीन प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  21. *~इम्तिहान आया...पेट में फुदकती तितलियाँ लाया

    सच में !
    कभी हमारी भी
    उड़ा करती थी
    तितलियाँ
    परीक्षा जब
    सर होती थी
    अब बच्चों की
    तितलियां
    जब उड़ती हैं
    उड़ ही जाती हैं
    माँ बाप की भी
    साथ में
    उड़ जाती हैं
    देखते देखते !

    जवाब देंहटाएं
  22. आभार शास्त्रीजी , इस शानदार चर्चा हेतु ! बस यही कहूंगा कि इस लोकतंत्र का इससे बड़ा दुर्भाग्य और क्या हो सकता है कि जनता जिसे संसद भेजती है कि वो उनकी समस्याओं को सुने और उसका निवारण करे , वही जब अपनी ही समस्याए गिनाने लग जाये तो ..............!

    जवाब देंहटाएं
  23. उत्कृष्ट लिंक चयन शास्त्री जी ..!!ह्रदय से आभार अपने मेरी रचना चयन की ...!!

    जवाब देंहटाएं
  24. रंगारंग चर्चा मंच बेहद सुन्दर लिंक्स, मेरी रचना को स्थान दिया तहे दिल से शुक्रिया सर

    जवाब देंहटाएं
  25. बहुत बेहतरीन चर्चा बधाई आपको अभी सब सूत्र पर जाने की कोशिश करुँगी

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. राजेश जी। कांग्रेस के खिलाफ माहौल पूरे देश में दो चार दशकों बाद ऐसा बना है। मगर मुझे अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि लोगों के पास दूसरा कोई विकल्प नहीं है? धन्यवाद सहमत होने और सहमती भरा कमेंट देने के लिए।

      हटाएं
  26. बेहतरीन और बेमिसाल लिंक्‍स के मध्‍य अपनी प्रस्‍तुति को पा अनुगृहीत हुआ,

    सादर

    मनोज कुमार श्रीवास्‍तव

    जवाब देंहटाएं
  27. रोचक चर्चा अच्छी लीको से सजा ये चर्चा मंच
    मेरी पोस्ट को शामिल करने के लिए तहे दिल से धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  28. शीरीं जबानी ज़रा शहद जबां पर रखिये..,
    शारि फ़लक के शह जां कौसे-क़जा पर रखिये.....

    Shirin Jabaani Jaraa Shahad Jabaan Par Rakhiye..,
    Shaari Falak Ke Shah Jaan Kaause Kajaan Pe Rakhiye.....

    जवाब देंहटाएं
  29. दास्ताँने - दिल (ये दुनिया है दिलवालों की )
    कीमत चाहत की
    वाह !
    अरे जो इतना
    भुल्लकड़ है
    अच्छा हुआ
    जो सब कुछ
    भूल गयी !

    जवाब देंहटाएं
  30. सभी लिंक्स बहुत बढ़िया हैं शास्त्री सर !:)
    मेरी रचना को स्थान देने का आभार !
    सादर !

    जवाब देंहटाएं
  31. इस चर्चामंच पर आना मेरा पहली बार हुआ। बहुत ही रुचिकर और खासकर लगा। अक्सर यहां आऊंगा। श्री रूपचंद शाी मयंक (उच्चारण) जी की ओर से ज्ञात हुआ इसपर मेरा ब्लॉग बड़ा अजीब पीएम है देश का पर यहां चर्चा हुई। सभी कमेंट करने वाले लेखकों और विचारकों को धन्यवाद। और श्री मयंक जी का खासकर जिन्होंने मुझे इस मंच के बारे में बताया।- वरुण के सखाजी, ९००९९८६१७९
    Personal blog- sakhajee.blogspot.in

    जवाब देंहटाएं

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