मित्रों! अनन्त चतुर्दशी का हार्दिक शुभकामनाएँ! सितम्बर का अन्तिम रविवार है। आपके लिए कुछ लिंक पेश कर रहा हूँ! तराने सुहाने गणपति बप्पा मोरिया, अगले बरस तू जल्दी आ!
गअनन्त चतुर्दशी की सभी पाठकों. श्रोताओं को हार्दिक शुभकामनायें ! आज गणपति की विदाई का दिन है ! अगले वर्ष वे जल्दी आयें और वे परम विघ्नहर्ता सभी के दुःख दूर करें इसी मंगलकामना के साथ आज इस पर्व का समापन करती हूँ ! शुभकामनायें !
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शौकएक दिन तुमने बातों बातों में बताया था कि तुम्हे .. बचपन से शौक था तुम्हारा खुद के बनाये मिटटी के खिलौनों से खेलना और फिर उनको खेल के तोड़ देना आज भी तुम्हारा वही खेल जारी है बस खेलने और खिलौनों के वजूद बदल गए हैं |....... |
आपको सीखना होगा मनमोहन जी पैसे पेड़ पर नहीं उगते...एक तरफ देश को आर्थिक संकट से उबारने के लिए जनता पर बोझ पर बोझ डाला जा रहा है और दूसरी तरफ जनता की गाढ़ी कमाई (टैक्स) से नेता ऐश कर रहे हैं। घोटाले पर घोटाले कर रहे हैं। नेताओं के अविश्वसनीय आंकड़ों वाले घोटाले लगातार सामने आ रहे हैं और जनता पर डीजल के दामों में बढ़ोत्तरी कर बोझ डाला जा रहा है। रसोई गैस सिलेंडरों की संख्या सीमित कर घर का बजट बिगाडऩे का काम किया जा रहा है और सरकारी पैसे से नेता विदेशों में घूम-घूमकर करोड़ों रूपए बरबाद कर रहे हैं। किसी भी विदेश यात्राओं से यदि कुछ बेहतर निकलकर आता तो फिर भी इन खर्चों को कुछ हद तक जायज ठहराया जा सकता था लेकिन हो कुछ नहीं रहा है… |
अलग फितरत से खुद को कर नहीं पातेपरिंदों के घरौंदों को , उजाड़ा था तुम्हीं ने कल , मगर अब कह रहे हो , डाल पर पक्षी नहीं गाते। तुम्हीं थे जिसने वर्षों तक , न दी जुम्बिश भी पैरों को , शिकायत किसलिए , गर दो कदम अब चल नहीं पाते ? वो पोखर , झील , नदियाँ , ताल सारे पाटकर तुमने , बगीचे , पेड़ - पौधे , बाग़ सारे काटकर तुमने , खड़ी अट्टालिकाएं कीं , बनाए महल - चौमहले , मगर अब कह रहे , बाज़ार में भी फल नहीं आते। ये कुदरत की , जो बेजा दिख रही तसवीर है सारी , तुम्हारी ही खुराफातों की , ये तासीर है सारी… भुवन मोहिनी हिंदी
हिंदी की त्रिगुण त्रिवेणी की पावन धारा
बहती सदा रहे साहित्य सृजन में .
इसके पावन जल से सिंचित
हो सकल विश्व का जनमानस ,
अज्ञान तिमिर को परे हटाये
हिंदी भाषा की जगमग आभा .
जोड़े जन-गण के मानस को ...
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छोड़ा है मुझको तन्हा --- बेकार बनाके, - छोड़ा है मुझको तन्हा --- बेकार बनाके, मेरे ही गम का मुझको - औज़ार बनाके, तड़पाया उसने मुझको, हर रोज़ सजा दी, यादों को भर है डाला… | यादें तेरी गोदी में जब झुलाती हैं - नदियाँ कितनी -- आँखें मेरी बहाती हैं, यादें तेरी गोदी में - - - जब झुलाती हैं, थोड़ी-थोड़ी अब भी - उम्मीद है बाकी, आजा तुझको साँसे - - मेरी बुलाती हैं… |
पाता जीवन श्रेष्ठ, लगा सुत पाठ-पढ़ानेपौधा रोपा परम-प्रेम का, पल-पल पौ पसरे पाताली | पौ बारह काया की होती, लगी झूमने डाली डाली | जब पादप की बढ़ी उंचाई, पर्वत ईर्ष्या से कुढ़ जाता - टांग अड़ाने लगा रोज ही, काली जिभ्या बकती गाली | |
उत्तर प्रदेश सरकार राजनीति छोड़जमीनी हकीकत से जुड़े.सरकारें बदलती हैं पर राज्य प्रशासन चलने के तरीके नहीं बदलते .मायावती सरकार ने राज्य का धन वोट बटोरने को जिले बनाने में खर्च कर दिया पहले पूर्ण विकसित बडौत की जगह अविकसित बागपत बनाया और अब जाते जाते कानून व्यवस्था में अविकसित शामली को जिले का दर्जा दे वहां के खेतों के लिए मुसीबत खड़ी कर गयी मुसीबत इसलिए क्योंकि प्रशासन अब किरण में समस्त न्यायालयों की सुविधा होने के बावजूद जिला न्यायालय मुख्यालय पर होने के बहाने की पूर्ति के लिए खेतो की जमीन की ओर देख रहा है .दूसरी ओर अखिलेश यादव हैं जिनकी सरकार कभी बेरोजगारी भत्ता तो कभी… |
इंसानी दिमाग स्त्री और पुरुषों को अलग-अलग तरीके से देखता हैइंसानी दिमाग स्त्री और पुरुषों को अलग-अलग तरीके से देखता है. स्त्रियों का दिमाग भी यह भेदभाव करता है. *नज़र का फर्क * यह शिकायत महिलाओं, बल्कि संवेदनशील पुरुषों की भी रही है कि समाज में स्त्री को एक वस्तु की तरह देखा जाता है, इंसान की तरह नहीं। मनोरंजन के साधन और व्यावसायिक हित महिलाओं को वस्तु की तरह पेश किए जाने को बढ़ावा दे रहे हैं। स्त्री-पुरुष बराबरी हासिल करने के लिए जरूरी है कि स्त्रियों को सिर्फ एक वस्तु नहीं, एक इंसान की तरह सम्मान देना जरूरी है। लेकिन इसके लिए यह जानना जरूरी है कि इस दुराग्रह या पक्षपात की जड़ें कितनी गहरी हैं।… |
"डिश " के रोग निदान की युक्तियाँ (पांचवीं एवं छटी किस्त संयुक्त )ज़ाहिर है काया चिकित्सक (भौतिक चिकित्सक )यहाँ भी शुरुआत फिजिकल एग्जामिनेशन से ही करता है .चिकित्सक आपकी रीढ़ के थोरासिक (वक्षीय ),स्पाइनल (ग्रीवा सम्बन्धी भाग ),और लम्बर स्पाइन (निचली कमर से सम्बद्ध रीढ़ का हिस्सा )को हलके हाथ से दबा के देखेगा ,यहाँ वहां जोड़ों को भी अस्थि पंजर के कि कहीं कोई एब्नोर्मलइति तो नहीं है ,गडबड तो नहीं है .असामान्य बात तो नहीं है .ठीक ठाक है आपकी रीढ़ या नहीं .* * * *दबाने पर यदि आप कराहतें हैं तो यह उसके लिए एक संकेत हो सकता है डिश का (Diffuse idiopathic skeletal hyperscolosis... |
ज़लजला(एक भीषण परिवर्तन) ((क)वन्दना (४) राष्ट्र-वन्दना ! मेरे भारत देश ! (ब) - ! मेरे भारत देश ! मेरे भारत देश,’पिता’ का,तुमने सब को ‘प्यार’ दिया है | ‘माता’ बनकर,’ममता’ बाँटी,कितना मधुर दुलार दिया है || | यादें तेरी गोदी में जब झुलाती हैं नदियाँ कितनी -- आँखें मेरी बहाती हैं, यादें तेरी गोदी में - - - जब झुलाती हैं, थोड़ी-थोड़ी अब भी - उम्मीद है बाकी, आजा तुझको साँसे - - मेरी बुलाती हैं, खाकर ‘अन्न’,’दूध सा जल’पा... |
"आशिक"वो अब हर बात में पैमाना ढूंढते हैंमंदिर भी जाते हैं तो मयखाना ढूंढते हैं । मुहल्ले के लोगों को अब नहीं होती हैरानी जब शाम होते ही सड़क पर आशियाना ढूंढते हैं । उलूकटाइम्स | एकांत-रुदन... ज़िन्दगी में दोस्तों का होना कितना ज़रूरी हो जाता है कभी-कभी... कोई फोर्मलिटी वाले दोस्त नहीं, दोस्त ऐसे जिन्हें दोस्ती की बातें पता हो... मोनाली की भाषा ... खामोश दिल की सुगबुगाहट... |
Mushayera पर
*तेरे ग़म को जाँ की तलाश थी, तेरे जाँ-निसार चले गये
| त्रिपाठी बाबू जी रेखा कई दिनों से महसूस कर रही थी कि विपिन के साथ सब कुछ ठीक नहीं था।.. Arvind Jangid |
hindigen प्रेम एक अहसास ! प्रेम दिखाना नहीं पड़ता हमने तो खोले अपने हृदय के द्वार बैरी का भूल कर बैर , बढे आगे गले लगाने को पर ये क्या ?.. | स्वप्न का स्वर्ग गरम गरम ख्याल - वक्त बेवक्त ताज़ा गरम गरम.. जो ख्याल आते जाते हैं.! महसूस करके देखो साथी.. वही आपका वजूद बनाते हैं! .. | काव्य का संसार याद रखे दुनिया ,तुम एसा कुछ कर जाओ - याद रखे दुनिया ,तुम एसा कुछ कर जाओ तुम्हारा चेहरा ,मोहरा और ये आकर्षण… |
श्याम स्मृति..The world of my thoughts...डा श्याम गुप्त का चिट्ठा.. अगीत साहित्य दर्पण (क्रमश:) अध्याय तीन-वर्तमान परिदृश्य एवं भविष्य की संभावना.......डा श्याम गुप्त... - *....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ.. | ठाले बैठे कुछ फुटकर दोहे बाबा फ़रीद:- कागा सब तन खाइयो, चुन-चुन खइयो मास दो नैना मत खाइयो, पिया मिलन की आस केशवदास:- केशव केसन असि करी जस अरि हु न कराय चन्द्र वदन मृग लोचनी बाबा कहि-कहि जाय... | "कुछ कहना है" कथा-सारांश : भगवती शांता परम-19 सर्ग-4 भाग -7 कौला का वियोग अंग-अवध छूटे सभी, सृंगी के संग सैर | शांता साध्वी सी बनी, चाहे सबकी खैर || कौला मुश्किल से सहे, हुई शांता गैर … |
नीम-निम्बौरी भूले सही उसूल, गलत अनुसरण कराते- झूठ-सांच की आग में, झुलसे अंतर रोज | किन्तु हकीकत न सके, नादाँ अब तक खोज | नादाँ अब तक खोज, बड़े वादे दावे थे | | चौखट उस थाली में क्या था....? - *कीमती लोग कीमती भोग*** एक थाली पर कितना खर्चा है..आजकल इसकी बड़ी चर्चा है। पता नहीं क्यों ताकते हैं लोग दूसरे की थाली में....क्या क्या भरा थाली में... | मनोरमा यह मुर्दों की बस्ती है - व्यर्थ यहाँ क्यों बिगुल बजाते, यह मुर्दों की बस्ती है कौवे आते, राग सुनाते. यह मुर्दों की बस्ती है यूँ भी शेर बचे हैं कितने, बचे हुए बीमार अभी राजा गीदड़ दे... |
भावो की उड़ाननहीं जानता इन शब्दो का कारण, मेरे मन मे ऐसे भाव उठ रहे है, खूब चाहा आज दबाना इन्हे, लेकिन यह कहाँ रुक रहे हैं। कहीं चेहरो की रंजिश ने दाबिश दी है, कहीं औरो के ख्याल दिख रहे हैं, लोगो की सुनी तो दिवाना ना बना, आज दिलो से जंजाल बिक रहे हैं। तेरे चेहरे को देख कर खुदा भी ना माना, कुदरत जो अदभुद यह आकार लिख रहे हैं, बारिशो की रंजिश मै भीगना चाहता हुँ आज, लेकिन ‘प्रतीक’ दिल मे कई कलाकार टिक रहे हैं। मेरे मन से कई पार दिख रहे हैं, आवारा भावो के सत्कार दिख रहे है……………मुझे मेरे कई कलाकार दिख रहे हैं……………….! धन्यवाद प्रतीक संचेती |
अब ऑनलाइन फ्री कोर्सेज करना हुआ आसान आज मै आपको एक ऐसे ब्लॉग पर लेकर चलता हूँ जो हाल ही में शुरू हुआ है.ये ब्लॉग ऑनलाइन एज्युकेशन के शौक़ीन विजिटर्स के लिए एक इनाम है.इस ब्लॉग की लेंग्वेज रोम... |
याद आई है.... - चांद ने अपनी चांदनी बिखराई है मुझको फिर आपकी याद आई है । इंतजार का यही सिला मिला मुझे कि वक्त ने फिर दुश्मनी निभाई है।। |
बच्चों की खिलती मुस्कान भाग्य ने अपने सारे दाँव कॉन्क्रीट के जंगलों में लगा दिये हैं, बड़े नगरों में ही समृद्धि की नयी परिभाषायें गढ़ने में लगी हैं सभ्यतायें।… न दैन्यं न पलायनम् |
बेचैन आत्मा मैसेज - मैसेज का क्या है, कभी भी आ सकता है! कल रात जब मैं बेडरूम में सोने से पहले मूड बना रहा था तभी मैसेज आ गया। अनमने भाव से पढ़ा तो चौंक .. | उन्नयन (UNNAYANA) क्या थे वादे ..... **क्या थे वादे .....* * **क्या थे वादे , क्या निभाया * *क्या निभाना शेष है * *स्मृतियों का लोप होना , उदय वीर सिंह | जाले चलो अपने गाँव चलें - मन अब भर चुका है डीजल और पेट्रोल के धुएं से खारा लगता है क्लोरीनी पानी ताजा पियेंगे अपने कुँए से चलो अपने गाँव चलें… |
धोनी : क्रिकेट का कलंक ...मैदान में पानी ना मंगवाया तो धोनी नहीं इतना सख्त शब्द मैं यूं ही इस्तेमाल नहीं कर रहा हूं, इसकी ठोस वजह है।…. | ये खेल निराला है*टांग खिंच कर अपनों की, * *जहाँ ख़ुशी मानते हैं लोग,* *दे कर धोखा अपने को ही * *करते चतुराई का उपोयोग !* * **खरीद पोख्त का मायावी,* *बड रहा अब ये कारोबार,* *गाँव गरीवों से नोट चुराकर,* *करते खुल कर यहाँ व्यापार !* * **देश धर्म से ऊपर उठ कर,* *खुद को कहते पालनहार,* *वोट मांगने दर पर पहुंचे,.. |
"पुकारती है भारती"
जो राम का चरित लिखें,
वो राम के अनन्य हैं,
जो जानकी को शरण दें,
वो वाल्मीकि धन्य हैं,
ये वन्दनीय हैं सदा, उतारो इनकी आरती।
-0-0-0-
अन्त में देखिए ये दो कार्टून! |
येदियुरप्पा भी 'माता' के द्वारे? |
चाचा, मामा, फूफा, जीजा, साला सब खुश!! Cartoon by Kirtish Bhatt (www.bamulahija.com) |
जवाब देंहटाएंशौक
एक दिन
तुमने बातों बातों
में बताया था कि
तुम्हे ..
बचपन से शौक था
तुम्हारा
खुद के बनाये
मिटटी(मिट्टी) के....मिट्टी
खिलौनों से खेलना
और फिर उनको
खेल के तोड़ देना
आज भी तुम्हारा
वही खेल जारी है
बस खेलने
और खिलौनों के
वजूद बदल गए हैं |........
बहुत सूक्ष्म व्यंजना है इस रचना में .बधाई .
ये चर्चा मंच का स्पैम बोक्स बे -तहाशा टिप्पणी लील रहा है कोयले की तरह .चेक करो भैया .
जवाब देंहटाएंकल का चर्चा मंच मेरी एक दर्जन से ज्यादा टिपण्णी गोल किए हुए है ऐसे में टिपण्णी करने की प्रासंगिकता क्या रह जायेगी ?
देखिये जैसे ही आपने डाँठा चर्चा मंच को उसको भी गुस्सा आ गया आपकी एक टिप्पणी को सात बार छाप दिया इसने !
हटाएं६५ साल का हासिल बतला दो क्या रहा है इन विदेश यात्राओं का .पाकिस्तान और चीन के हमले,अमरीका के सांतवें बेड़े की धमकी ?अलबता विश्व बैंक की दलाली ज़रूर बढ़ी है .पीज़ा और पास्ता का चलन बढा है . नफासत तो बिलकुल भी नहीं सीखी इन लोगों ने इन दौरों से आज भी संसदीय कूप में कूदते हैं .और तो और संसद को ही नहीं चलने देते .क्या प्रासंगिकता है इन दौरों की .वह भी केटिल क्लास से चलने में इनकी नाक कटी है ये ईस्ट इंडिया कम्पनी के नव अवतार चार्टर्ड प्लेन से चलते हैं .भारत की शान अगर किसी ने बढ़ाई और उसे आलमी स्तर पर मान्यता दिलवाई है तो वह विदेश में बसे आ -प्रवासियों ने अपने उद्यम से दिलवाई है .
जवाब देंहटाएं६५ साल का हासिल बतला दो क्या रहा है इन विदेश यात्राओं का .पाकिस्तान और चीन के हमले,अमरीका के सांतवें बेड़े की धमकी ?अलबता विश्व बैंक की दलाली ज़रूर बढ़ी है .पीज़ा और पास्ता का चलन बढा है . नफासत तो बिलकुल भी नहीं सीखी इन लोगों ने इन दौरों से आज भी संसदीय कूप में कूदते हैं .और तो और संसद को ही नहीं चलने देते .क्या प्रासंगिकता है इन दौरों की .वह भी केटिल क्लास से चलने में इनकी नाक कटी है ये ईस्ट इंडिया कम्पनी के नव अवतार चार्टर्ड प्लेन से चलते हैं .भारत की शान अगर किसी ने बढ़ाई और उसे आलमी स्तर पर मान्यता दिलवाई है तो वह विदेश में बसे आ -प्रवासियों ने अपने उद्यम से दिलवाई है .
जवाब देंहटाएं६५ साल का हासिल बतला दो क्या रहा है इन विदेश यात्राओं का .पाकिस्तान और चीन के हमले,अमरीका के सांतवें बेड़े की धमकी ?अलबता विश्व बैंक की दलाली ज़रूर बढ़ी है .पीज़ा और पास्ता का चलन बढा है . नफासत तो बिलकुल भी नहीं सीखी इन लोगों ने इन दौरों से आज भी संसदीय कूप में कूदते हैं .और तो और संसद को ही नहीं चलने देते .क्या प्रासंगिकता है इन दौरों की .वह भी केटिल क्लास से चलने में इनकी नाक कटी है ये ईस्ट इंडिया कम्पनी के नव अवतार चार्टर्ड प्लेन से चलते हैं .भारत की शान अगर किसी ने बढ़ाई और उसे आलमी स्तर पर मान्यता दिलवाई है तो वह विदेश में बसे आ -प्रवासियों ने अपने उद्यम से दिलवाई है .
जवाब देंहटाएं६५ साल का हासिल बतला दो क्या रहा है इन विदेश यात्राओं का .पाकिस्तान और चीन के हमले,अमरीका के सांतवें बेड़े की धमकी ?अलबता विश्व बैंक की दलाली ज़रूर बढ़ी है .पीज़ा और पास्ता का चलन बढा है . नफासत तो बिलकुल भी नहीं सीखी इन लोगों ने इन दौरों से आज भी संसदीय कूप में कूदते हैं .और तो और संसद को ही नहीं चलने देते .क्या प्रासंगिकता है इन दौरों की .वह भी केटिल क्लास से चलने में इनकी नाक कटी है ये ईस्ट इंडिया कम्पनी के नव अवतार चार्टर्ड प्लेन से चलते हैं .भारत की शान अगर किसी ने बढ़ाई और उसे आलमी स्तर पर मान्यता दिलवाई है तो वह विदेश में बसे आ -प्रवासियों ने अपने उद्यम से दिलवाई है .
जवाब देंहटाएं६५ साल का हासिल बतला दो क्या रहा है इन विदेश यात्राओं का .पाकिस्तान और चीन के हमले,अमरीका के सांतवें बेड़े की धमकी ?अलबता विश्व बैंक की दलाली ज़रूर बढ़ी है .पीज़ा और पास्ता का चलन बढा है . नफासत तो बिलकुल भी नहीं सीखी इन लोगों ने इन दौरों से आज भी संसदीय कूप में कूदते हैं .और तो और संसद को ही नहीं चलने देते .क्या प्रासंगिकता है इन दौरों की .वह भी केटिल क्लास से चलने में इनकी नाक कटी है ये ईस्ट इंडिया कम्पनी के नव अवतार चार्टर्ड प्लेन से चलते हैं .भारत की शान अगर किसी ने बढ़ाई और उसे आलमी स्तर पर माआपको सीखना होगा मनमोहन जी पैसे पेड़ पर नहीं उगते...
जवाब देंहटाएं६५ साल का हासिल बतला दो क्या रहा है इन विदेश यात्राओं का .पाकिस्तान और चीन के हमले,अमरीका के सांतवें बेड़े की धमकी ?अलबता विश्व बैंक की दलाली ज़रूर बढ़ी है .पीज़ा और पास्ता का चलन बढा है . नफासत तो बिलकुल भी नहीं सीखी इन लोगों ने इन दौरों से आज भी संसदीय कूप में कूदते हैं .और तो और संसद को ही नहीं चलने देते .क्या प्रासंगिकता है इन दौरों की .वह भी केटिल क्लास से चलने में इनकी नाक कटी है ये ईस्ट इंडिया कम्पनी के नव अवतार चार्टर्ड प्लेन से चलते हैं .भारत की शान अगर किसी ने बढ़ाई और उसे आलमी स्तर पर मान्यता दिलवाई है तो वह विदेश में बसे आ
जवाब देंहटाएं-प्रवासियों ने अपने उद्यम से दिलवाई है .
आपको सीखना होगा मनमोहन जी पैसे पेड़ पर नहीं उगते...
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जवाब देंहटाएंVirendra Kumar SharmaSeptember 30, 2012 6:35 AM
६५ साल का हासिल बतला दो क्या रहा है इन विदेश यात्राओं का .पाकिस्तान और चीन के हमले,अमरीका के सांतवें बेड़े की धमकी ?अलबता विश्व बैंक की दलाली ज़रूर बढ़ी है .पीज़ा और पास्ता का चलन बढा है . नफासत तो बिलकुल भी नहीं सीखी इन लोगों ने इन दौरों से आज भी संसदीय कूप में कूदते हैं .और तो और संसद को ही नहीं चलने देते .क्या प्रासंगिकता है इन दौरों की .वह भी केटिल क्लास से चलने में इनकी नाक कटी है ये ईस्ट इंडिया कम्पनी के नव अवतार चार्टर्ड प्लेन से चलते हैं .भारत की शान अगर किसी ने बढ़ाई और उसे आलमी स्तर पर मान्यता दिलवाई है तो वह विदेश में बसे आ
-प्रवासियों ने अपने उद्यम से दिलवाई है .
आपको सीखना होगा मनमोहन जी पैसे पेड़ पर नहीं उगते...
"पुकारती है भारती"
जवाब देंहटाएंएक खूबसूरत रचना !
ये खेल है निराला
जवाब देंहटाएंएक बहुत अच्छी प्रस्तुति !
जाले
जवाब देंहटाएंचलो अपने गाँव चलें -
सुंदर रचना:
गाँव तो बस
सपने में आता है
वैसे गाँव कोई नहीं
जाना चाहता है
गाँव दूर से बहुत
सुंदर नजर आता है
जिम्मेदारियाँ भी
जुडी़ होती हैं
कुछ लेकिन
याद आते ही
वो सब
गाँव खट्टे अंगूर
हो जाता है !!
जवाब देंहटाएंआपको सीखना होगा मनमोहन जी पैसे पेड़ पर नहीं उगते...
शीश घुटाले प्यार से, टोपी दे पहनाय |
गुलछर्रे के वास्ते, लेते टूर बनाय |
लेते टूर बनाय, काण्ड कांडा से करते |
चूना रहे लगाय, नहीं ईश्वर से डरते |
सात हजारी थाल, करोड़ों यात्रा भत्ता |
मौज करें अलमस्त, बाप की प्यारी सत्ता ||
जवाब देंहटाएंक्या थे वादे .....
udaya veer singh
उन्नयन (UNNAYANA)
स्वाभिमान अभिमान अब, दया दृष्टि में खोट |
अपने ही पहुंचा रहे, भारत माँ को चोट ||
जवाब देंहटाएंमैसेज
जिसकी कालर व्हाइट व्हाइट, चीं चीं चीं चीं कालर ट्यून ।
जिसको संदेसा देता हो, उगता सूरज, डूबा मून ।
कदम कदम जो चले संभल कर, नेचर से है नेचर प्रेमी
भेज रहे क्यूँ एस एम् एस हो, गुड नाइट को करते रयून ।।
उन्नयन (UNNAYANA)
जवाब देंहटाएंक्या थे वादे .....
बहुत सुंदर रचना !
जवाब देंहटाएंयह मुर्दों की बस्ती है
श्यामल सुमन
मनोरमा
मुद्दों ने ऐसा भटकाया, हुआ शहर वीरान ।
मुर्दे कब्ज़ा करें घरों पर, भरे घड़े श्मशान ।
एक व्यवस्था चले सही से, लाशों पर है टैक्स -
अपना बोरिया बिस्तर लेकर, भाग गए भगवान् ।।
बेचैन आत्मा
जवाब देंहटाएंमैसेज
सबसे अच्छा है
खुद ही मूर्ख बन जाओ
हमारी तरह मोबाईल
खरीदने का प्लान
2050 में बनाओ !:)))
अच्छी प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंआभार!!
बच्चों की खिलती मुस्कान
जवाब देंहटाएंखुद को छोड़ कर
आज वो उस तक
पहुँच अगर रहा है
पहुँचता नहीं भी है
सिर्फ सोच भर
भी अगर रहा है
वाकई कुछ हट कर
अजब गजब क्या
नहीं कर रहा है ?
याद आई है....
जवाब देंहटाएंइधर की आँख में आँसू ले आना
उधर के दिल में दर्द उठवाना
बेतार के तारों का एक ये भी
तो है सुंदर सा अफसाना !!
अब ऑनलाइन फ्री कोर्सेज करना हुआ आसान
जवाब देंहटाएंसुंदर
http://online-elearn.blogspot.in/
बहुत ही प्रभावी चर्चा..
जवाब देंहटाएंभावो की उड़ान
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना !
आपका बहुत-बहुत धन्यवाद सुशील जी।
हटाएंप्रतीक संचेती
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंमनोरमा
जवाब देंहटाएंयह मुर्दों की बस्ती है
बहुत सुंदर !!
बस्ती में होते है
तो ये सब मुर्दे
हो जाते हैं
अकेले अकेले
में सब मुर्दे
अपनी अपनी
कबरों में
सोना तो छिपाते हैं !!
बहुत बढ़िया उम्दा चर्चा प्रस्तुति!आभार!
जवाब देंहटाएंअनन्त चतुर्दशी की हार्दिक शुभकामनाएँ!
चौखट
जवाब देंहटाएंउस थाली में क्या था....?
वाह !
अपनी थाली जब छलक रही हो
दूसरे की देखने कौन जाता है
थाली में से क्या गिर रहा है
पहले तो उसे बचाने का
कुछ जुगाड़ लगाता है
दूसरा देखता है उसकी ओर
अगर टेड़ी आँख से भी कभी
उसको थाली बजाने का
आदेश सरकार से भिजवाता है !!
नीम-निम्बौरी
जवाब देंहटाएंभूले सही उसूल, गलत अनुसरण कराते-
बहुत खूब !
"कुछ कहना है"
जवाब देंहटाएंकथा-सारांश : भगवती शांता परम-19
बहुत सुंदर अलग ही अंदाज है वाह !
ठाले बैठे
जवाब देंहटाएंकुछ फुटकर दोहे
सुंदर प्रस्तुति!
श्याम स्मृति..The world of my thoughts...डा श्याम गुप्त का चिट्ठा..
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति !
काव्य का संसार
जवाब देंहटाएंयाद रखे दुनिया ,तुम एसा कुछ कर जाओ
उम्दा !!
Thaks for the link my post in charcha manch.aabhar.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन चर्चा मेरी रचना को स्थान दिया बहुत-२ शुक्रिया शास्त्री सर
जवाब देंहटाएंस्वप्न का स्वर्ग
जवाब देंहटाएंगरम गरम ख्याल -
बहुत सुंदर रचना !!
यादें तेरी गोदी में जब झुलाती हैं
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर !!
यादों के झूले पडे़ हैं
तुम चले आओ
इसको झूलना है
झुलाओ और झुलाओ !
बहुत ही सुनार चर्चा | सारे अच्छे लिंक्स | लगभग सारे लिंक्स में जाने के बाद अंत में यहा टिप्पणी कर रहा हूँ |
जवाब देंहटाएंआभार |
बढिया चर्चा,
जवाब देंहटाएंबहुत सारे लिंक्स को संजोया गया है।
सभी एक से बढकर एक
बहुत बढिया चर्चा।
जवाब देंहटाएंमेरे भावो की उड़ान को स्थान देने के लिये धन्यवाद।
प्रतीक संचेती
बहुत सुन्दर चर्चामंच सजाया है शास्त्री जी ! मेरे ब्लॉग से प्रस्तुति के चयन के लिये आपकी आभारी हूँ ! बहुत बहुत धन्यवाद आपका !
जवाब देंहटाएंचर्चामंच बहुत खूबसूरती से प्रस्तुत किया गया मेरे ब्लॉग से रचना की प्रस्तुति के लिए आभारी हूँ
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद |
सभी पठनीय सूत्र बढ़िया चर्चा के लिए बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर चर्चा
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंविविधता लिए है आज का चर्चामंच...मेरी कविता शामिल करने के लिए धन्यवाद..
जवाब देंहटाएं--- धन्यवाद शास्त्रीजी ...अगीत में रूचि हेतु...यह एक नवीन कविता-विधा है ..जिसका सांगोपांग वर्णन मैंने इस पुस्तक में किया है ...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया चर्चा .
जवाब देंहटाएं