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सोमवार, सितंबर 24, 2012

सोमवारीय चर्चामंच-1012

दोस्तों! चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ का नमस्कार! सोमवारीय चर्चामंच पर पेशे-ख़िदमत है आज की चर्चा का-
 लिंक 1- 
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लिंक 2-
कोरे पन्नों पर -उदयवीर सिंह
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लिंक 3-
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लिंक 4-
मेरा फोटो
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लिंक 5-
आजमाकर देखिए तो सही -कुमार राधारमण
निरामिष
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लिंक 6-
ठंडे गधे -देवेन्द्र पाण्डेय
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लिंक 7-
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लिंक 8-
अनाम के नाम -पुरुषोत्तम पाण्डेय
मेरा फोटो
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लिंक 9-
मेरा फोटो
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लिंक 10-
खुजलीवाल का सत्ता सुन्दरी को पत्र -कमल कुमार सिंह ‘नादर’
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लिंक 11-
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लिंक 12-
मुक्तक -निवेदिता श्रीवास्तव
मेरा फोटो
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लिंक 13-
दोहे -अरुण कुमार निगम
My Photo
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लिंक 14-
पैसा पेड़ नहीं उगता -श्यामल सुमन
My Photo
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लिंक 15-
परितप्ता मैं -अमृता तन्मय
My Photo
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लिंक 16-
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लिंक 17-
वैदिक साहित्य और क़ुर'आन में प्रलय और स्वर्ग नरक की समानता -डॉ. मकसूद आलम सिद्दीकी, प्रस्तोता- डॉ. अनवर जमाल
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लिंक 18-
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लिंक 19-
ये बात कुछ हजम नहीं हुई -राजीव कुलश्रेष्ठ
मेरा फोटो
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लिंक 20-
हिंदी गीत/नवगीत के निराला : कवि माहेश्वर तिवारी

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लिंक 21-
तेरी परछाईं भी -डॉ. निशा महाराणा

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लिंक 22-
माली अब गद्दार हो गये -डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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लिंक 23-
हिंदी पर चार छंद -नवीन मणि त्रिपाठी
मेरा फोटो
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लिंक 24-
घरेलू गैस के छ: सिलेंडर : एक अजीबोगरीब फैसला -साधना वैद्य
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और अन्त में
लिंक 25-
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आज के लिए इतना ही, फिर मिलने तक नमस्कार!

53 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरीन प्रस्तुति । सार्थक पठनीय लिंक ।
    आभार गाफ़िल जी ।

    जवाब देंहटाएं
  2. सभी लिंक्स बहुत ही अच्छे |आदरणीय मिश्र जी आपने सुनहरी कलम की हमारी पोस्ट को यहाँ शामिल किया आपका बहुत -बहुत आभार |

    जवाब देंहटाएं
  3. अच्छी च्य्चा और कई लिंक्स के लिए साधुवाद |
    आशा |

    जवाब देंहटाएं
  4. कई लिंक्स से सजा आज का चर्चा मंच |बहुआयामीं चर्चा |
    आशा

    जवाब देंहटाएं
  5. ज्ञान वर्धक ,रोचक स्तरीय वृत्तांत यात्रा का .यात्रा वृत्तांत होता ही ब्योरा लिए है वर्रण प्रधान .बढिया प्रस्तुति .

    लिंक 1-
    यात्रा-वृत्तान्त विधा को केन्द्र में रखकर प्रसिद्ध कवि, सम्पादक, समीक्षक और यात्रा-वृत्तान्त लेखक डॉ. विश्वनाथ प्रसाद तिवारी से लिया गया एक साक्षात्कार --शालिनी पाण्डेय

    जवाब देंहटाएं
  6. तकनीकी की सूक्ष्म से सूक्ष्म विधा जन मानस तक पहुचावत हिंदी ||
    पृथ्वी अग्नि ब्रह्मोश के शब्द से दुश्मन को दहलावत हिंदी |
    अर्जुन टंक(टैंक ) पिनाका परम से ये देश की लाज बचावत हिंदी ||.........टैंक

    देश के जंग की अंग बनी बलिदानी को मन्त्र बतावत हिंदी |
    वीर शहीदों के फाँसी के तख़्त से भारत माँ को बुलावत हिंदी ||
    जब देश के मान पे आंच पड़ी तब क्रांति बिगुल को बजावत हिंदी |
    सोये हुए हर बूद(बूँद ) लहू को वो अमृत धार पिलावत हिंदी ||...........बूँद


    राष्ट्र की भाषा उपाधि मिली नहीं शर्म का बोध करावत हिंदी |
    राज की भाषा की नाव नहीं यह राष्ट्र की पोत चलावत हिंदी ||
    कुछ शर्म हया तो करो सबही करुणा कइके (करिके ) गोहरावत हिंदी |..............करिके
    .....भारत माँ की दुलारी लली केहि कारण मान ना पावत हिंदी ||

    भाव और अर्थ में अव्वल हैं चारों छंद .प्रबल राष्ट्र भावना से संसिक्त रचना .बधाई .

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  7. "माली अब गद्दार हो गये" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

    रिश्ते-नाते, आपसदारी, कलयुग में व्यापार हो गये।
    पगड़ी पर जो दाग लगाते, बे-गैरत सरदार हो गये।।

    बहुत युगीन व्यंग्य केंद्र के काम काज पे .जीते रहो शास्त्री जी .आबाद रहो .असरदार(अ -सरदार ) रहो .

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  8. सार्थक बोध परक भावाभि -व्यक्ति .

    लिंक 21-
    तेरी परछाईं भी -डॉ. निशा महाराणा

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  9. उजड़ चुकीं
    संगीत सभाएँ
    ठहरे हैं संवाद
    लोग बाग
    मिलते आपस में
    कई दिनों के
    बाद

    नवगीत के इतने सशक्त हस्ताक्षर से मिलवाया .आभार .

    इतने शहरी हो गए लोगों के(काशी ) ज़ज्बात ,

    सबके मुंह पे सिटकनी क्या करते संवाद .

    जवाब देंहटाएं
  10. संवेदनाओं का संकुचन देख रहे हैं
    आदान-प्रदान सब गौण हुए
    अब ऐसा चलन देख रहे हैं |
    स्वार्थ के बढ़ते दाएरे, (दायरे )........दायरे
    जन- जन को छलते देख रहे हैं
    हिंद का वैभव स्विस बेंकों में
    हक को जलते देख रहे हैं |

    आम आदमी को पल पल मरते देख रहें हैं ....बढ़िया प्रस्तुति संवेदनाओं से भीगी हुई .

    जवाब देंहटाएं
  11. धन्यवाद ग़ाफ़िल जी!
    पढ़ने के लिए बहुत अच्छे लिंकों का समावेश किया है आज की चर्चा में!

    जवाब देंहटाएं
  12. सभी सेतु सशक्त अभिव्यक्ति लिए खड़े मिले .आभार .

    एक बंदरिया उछल रही है .......... ब्लॉग4वार्ता .............ललित शर्मा
    ब्लॉ.ललित शर्मा, शनिवार, 22 सितम्बर 2012

    लिंक 16-
    एक बंदरिया उछल रही है -ललित शर्मा

    जवाब देंहटाएं
  13. तुमसे जो है
    मेरा स्वाभिमान
    उसकी तो
    हरसंभव लाज बचाओ...
    आखिर
    तेरी ही परितप्ता मैं
    मुझे विचुम्बित करके
    गहरी वापिका में भी
    हाथ को थामकर
    वार पार तो कराओ .

    स्वाभिमान समर्पण और अधिकार की त्रिवेणी अकेली नहीं हैं विरहणी.बढ़िया भाव व्यंजना .

    लिंक 15-
    परितप्ता मैं -अमृता तन्मय

    जवाब देंहटाएं
  14. पैसा, पेड़ नहीं उगता

    बहुत सुना बचपन से भाई, पैसा, पेड़ नहीं उगता
    देश-प्रमुख ने अब समझाई, पैसा, पेड़ नहीं उगता

    अर्थशास्त्र के पण्डित होकर बोझ बढ़ाते लोगों का
    अपने खाते रोज मलाई, पैसा, पेड़ नहीं उगता

    बोल रहे थे देश-प्रमुख ही या कोई रोबोट वहाँ
    लादे लोगों पर मँहगाई, पैसा, पेड़ नहीं उगता

    राजनीति में रहकर भी जो धवल वस्त्र के स्वामी थे
    खुद ही छींट लिया रोशनाई, पैसा, पेड़ नहीं उगता

    मन मोहित ना किया किसी का आजतलक जो भारत में
    बना आज है वही कसाई, पैसा, पेड़ नहीं उगता

    उनके भी आगे पीछे कुछ जिनको रीढ़ नहीं यारो
    बातें उनकी ही दुहराई, पैसा, पेड़ नहीं उगता

    ऐसा बोले देश-प्रमुख जब सुमन चमन का क्या सोचे
    मजबूरी की राम दुहाई, पैसा, पेड़ नहीं उगता
    Posted by श्यामल सुमन at 4:21 AM
    Labels: ग़ज़ल

    सच कहते रोबोट गुसाईं ,पैसा पेड़ नहीं उगता ,

    जवाब देंहटाएं

  15. अलंकार रस छंद के , बिना कहाँ रस-धार
    बिन प्रवाह कविता कहाँ गीत बिना गुंजार |

    गेयता और प्रवाह और रसधार ,अर्थ बोध से लबरेज़ सार्थक दोहे कम और नपे तुले शब्दों में सब कह गए .पूरा भाव अभिव्यक्त हुआ

    ब्लॉग जगत के केशव दास हैं निगम साहब अरुण .

    सूर सूर तुलसी शशि ,उड़ीगन केशवदास ,

    अद्य कवि खद्योत सम जंह तंह करत प्रकाश ..

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. यह आपका प्यार बोल रहा है आदरणीय.वरना तिनके की कीमत ही क्या है......आभार

      हटाएं
  16. ज़वाब नहीं मुक्तकों का .एक से बढ़के एक .अर्थ और व्यंजना दोनों से संसिक्त .

    जवाब देंहटाएं
  17. आलिंगन आबध्द(आबद्ध ) युगुल(युगल ) तब
    प्रणय पाश में है बँध जाता,

    बढ़िया प्रस्तुति ,समय ठहर उस क्षण है जाता

    लिंक 11-
    समय ठहर उस क्षण है जाता -धीरेन्द्र

    जवाब देंहटाएं
  18. बड़े भाई ठेठ अभिधा में उतर आये ,कुछ तो लक्षणा और व्यंजना के लिए भी छोड़ा होता .काणे को काणा कहना कलात्मकता नहीं है उसे कमसे कम समदर्शी या डिप्टीकमिश्नर तो बोलो भाई जो पूरी कमिश्नरी को एक नजर से देखता है .नारद तो ठीक कर लो यार नादर ही लिख छोड़ा है .व्यंग्य चलाओ बेटा लेकिन थोड़ी सी वर्तनी भी सुधार लो इटली जी की तरह कब तक हिंदी में पैदल रहोगे बेटा .नाक दी है भगवान् ने तो उसका प्रयोग करो अनुस्वार /अनुनासिक को पहचानो जान मेरी .

    ये ब्लॉग जगत को हो क्या गया है नाक का इस्तेमाल ही करना छोड़ता जा रहा है कमोबेश जिसे देखो बिंदी और चन्द्र बिंदु लगाने से परहेज़ रखता है जैसे हकीम तुर्कमान ने कहा हो बेटा नाक का इस्तेमाल भूल के न करियो .

    लिंक 10-
    खुजलीवाल का सत्ता सुन्दरी को पत्र -कमल कुमार सिंह ‘नादर’

    जवाब देंहटाएं
  19. बहुत ही सत्य कथा सा सामाजिक प्रसंग .आज ये बहुत आम हो रहा है .महत्वकांक्षा सेहत से कीमत वसूल रही है .जीवन की धारा आकस्मिक तौर पे बदलने लगी है आये दिन इसके साथ मेरे साथ तेरे साथ .इसलिए मेरे भाई चल आराम से चल .थोड़ा कहा ज्यादा चल .बहुत बढ़िया प्रस्तुति पाठक को सोख लेती है पूरी तरह .
    अनाम के नाम
    _______________
    लिंक 8-
    अनाम के नाम -पुरुषोत्तम पाण्डेय

    जवाब देंहटाएं

  20. कुत्ता दिवस!
    noreply@blogger.com (Arvind Mishra)
    क्वचिदन्यतोSपि...
    नई नई है पोस्टिंग, नई नई पहचान ।
    आश्विन का है मास ये, बढे ख़ास मेहमान ।
    बढे ख़ास मेहमान , बड़े मारक हो जाते ।
    अंग भंग नुक्सान, आजकल कम गुर्राते ।
    बैसवार की बात, दिवस क्या मास मनाएं ।
    दिखे गजब बारात, दर्जनों दूल्हे आये ।।

    जवाब देंहटाएं

  21. पैसा पेड़ नहीं उगता -श्यामल सुमन
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    पैसा पा'के पेड़ पर, रुपया कोल खदान ।
    किन्तु उधारीकरण से, चुकता करे लगान ।
    चुकता करे लगान, विदेशी खाद उर्वरक ।
    जब मजदूर किसान, करेगा मेहनत भरसक ।
    पर मण्डी मुहताज, उन्हीं की रहे हमेशा ।
    लागत नहीं वसूल, वसूलें वो तो पैसा ।।

    जवाब देंहटाएं
  22. भारतीय राजनीति का सूत्रधार है यह शब्द .अब तो लोग इस शब्द का इस्तेमाल गाली के स्थान पर करने लगें हैं -मेरा बाप तेरे बाप की तरह सेकुलर नहीं है .बहुत गन्दी गाली होती है सेकुलर भले किसी को आम गली दे लेना लेकिन सेकुलर भूल के भी न कहना .खा गया यह एक शब्द हिन्दुस्तान को .इसे ज़मीन पे लिखके जितने जूते मार सकते हो मारो .इस एक शब्द ने गोल मोल बात करना सिखा दिया है -एक वर्ग के लोग नाराज़ हो जायेंगे ,एक वर्ग की भावना भड़क जायेंगी ....

    एक वोटर का पत्र : सेकुलर नेता जी के नाम
    9/23/2012 08:17:00 AM RATAN SINGH SHEKHAWAT 1 COMMENT
    प्रिय सेकुलर नेता जी

    जवाब देंहटाएं

  23. लिंक 13-
    दोहे -अरुण कुमार निगम
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    सभी दोहे उत्कृष्ट -

    पहले दोहे को आज के सन्दर्भ में यूँ संशोधित करना चाहूँगा ।



    माल मान-सम्मान पद, "कलमकार" की चाह ।

    देते "कल-मक्कार" को, सुन प्रशस्ति नरनाह ।1।



    आभार ।।

    जवाब देंहटाएं
  24. भाई साहब एक किताब "गधा पचीसी" भी लिखी गई और "ग'र्दभ पुराण"/बा -तर्ज़ लालू पुराण /लालू चालीसा भी .बैशाख नंदन अब कहावतों तक सीमित नहीं हैं ,विस्तारित हैं इनकी सेवाएं. .
    दुलत्ती झाड़ना कोई इनसे सीखे .कोई बे- सुरा/बे -ताला हो गाता हो, . और उसे गाने के लिए कहो तो कहता है -एक शर्त है पूरा गाना गाऊँगा .जो भी गधे(मेरे जात बिरादर,मेरी आवाज़ सुनके आयेंगे ,उन्हें भगाने नहीं दूंगा ),गधा कहीं का गधे का बच्चा किसी को कहना इस जीव का सरासर अपमान है .एक बार इसे बोझे से लाद कर रवाना कर दो ,बारहा आयेगा ,बिना प्रोटेस्ट ,जब तक काम पूरा नहीं होगा इसे दो -बारा समझाना नहीं पड़ता . कर्मठ ऐसे जीव को शतश :नमन .जै बैशाख नंदन .

    लोक मानस में इसी लिए गधा रचा बसा है -कहा जाता है बेवकूफों के कोई सींग नहीं होते .ऐसी हरकतें करेगा बेटा तो ऐसे जाएगा जैसे गधे के सिर से सींग .

    मतलब के लिए भाई साहब गधे को भी बाप बनाना पड़ता है .""मम्मी जी "(इसे सोनिया जीपढ़ें ) तो इससे बहुत आगे निकल गईं हैं .



    निर्मूक प्राणि है गधा .
    होली पर महा -मूर्ख सम्मलेन आयोजित किया जाता है -महा -मूर्ख को गधे पे बिठाकर उसकी सवारी निकाली जाती है .यह गधे का सरासर अपमान है .

    एक बेमतलब का चुटकुला चलाया हुआ है ,ड्राइवर को सिखाया जाता है भैंस एक बार सड़क क्रोस करना शुरु कर दे ,पूरा करती है ,बच्चा डर के दौड़ लगाता है दूसरी पार जाने को ,गाय और स्त्री खड़ी रहती है सड़क क्रोस ही नहीं करती है बे -मौक़ा ,रुक जाती है. लेकिन कोई गधा बीच सड़क पे खड़ा हो ,तो गाडी रोक के उससे पूछ लो -भाई साहब किधर जाना है .

    ये सब बे -सिर पैर की बातें हैं इस दौर में होर्स पावर की जगह अब शक्ति के मापक के रूप में गर्दभ -ऊर्जा /गर्दभ -शक्ति को पावर मापने का पैमाना बनाना चाहिए .निजी सेक्टर में १० -१२ घंटा लगातार काम करने वाले को क्या आप गधा कहने की अभी भी हिमाकत करेंगे ?

    काल सेंटर वालो को कम्पू कूली कहेंगे ?

    _______________
    लिंक 6-
    ठंडे गधे -देवेन्द्र पाण्डेय

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  25. बचपन से बचपन दूर न हो ,
    यौवन ,अनंग से मुक्त न हो ,
    आश, प्रतीक्षा निष्फल न हो,
    नव्या का भव्य श्रृंगार लिखें-

    ओज के सकारात्मक सोच की तमाम रचनाएं हैं आपकी अकसर पढ़ीं हैं .आभार और आपकी लेखनी को प्रणाम .

    जवाब देंहटाएं
  26. बेहतरीन पोस्ट साझा की है आपने .शुक्रिया .

    लिंक 4-
    ऑडिशन के लिए मिली थी सिर्फ़ एक लाइन-टीकू तलसानिया -माधवी शर्मा गुलेरी

    जवाब देंहटाएं

  27. 1. शीतल जल में डालकर सौंफ गलाओ आप
    मिश्री के संग पान कर,मिटे दाह-संताप

    2. फटे बिमाई या मुंह फटे,त्वचा खुरदुरी होय
    नींबू मिश्रित आंवला,सेवन से सुख होय

    3. सौंफ इलायची गर्मी में,लौंग सर्दी में खाय
    त्रिफला सदाबहार है,रोग सदैव हर जाय

    4. वात-पित्त जब-जब बढ़ै,पहुंचावै अति कष्ट
    सौंठ,आवला,दाख संग खावे पीड़ा नष्ट

    5. नींबू के छिलके सुखा,बना लीजिए राख
    मिटै वमन मधु संग ले,बढ़ै वैद्य की साख

    6. लौंग इलायची चाबिये,रोज़ाना दस-पांच
    हटै श्लेष्मा कण्ठ का,रहो स्वस्थ है सांच

    7. स्याह नौन हरड़े मिला,इसे खाइये रोज़
    कब्ज़ गैस क्षण में मिटै,सीधी-सी है खोज

    8. पत्ते नागरबेल के,हरे चबाये कोय
    कण्ठ साफ-सुथरा रहे,रोग भला क्यों होय

    9. खांसी जब-जब भी करे,तुमको अति बेचैन
    सिंकी हींग अरु लौंग से मिले सहज ही चैन

    10. छल-प्रपंच से दूर हो,जन-मंगल की चाह
    आत्मनिरोगी जन वही,गहे सत्य की राह
    (श्री धीरजकुमार जी खरया के ये दोहे कल्याण के आरोग्य अंक से साभार हैं)
    प्रस्तुतकर्ता Kumar Radharaman पर रविवार, सितम्बर 23, 2012
    लेबल: फल-सब्जी और वनस्पति के औषधीय गुण

    बहुत बढ़िया संग्रह काबिल सारे नुसखे दोहे के .

    _______________
    लिंक 5-
    आजमाकर देखिए तो सही -कुमार राधारमण

    जवाब देंहटाएं
  28. शुक्रिया चर्चाकार ,
    MONDAY, SEPTEMBER 24, 2012

    सोमवारीय चर्चामंच-1012
    इ -तने बढ़िया ज्ञान वर्धक सेतु लाये सभी के सभी हमें पढवाए .

    जवाब देंहटाएं
  29. बिना कोई कट्टम कुट्टी के -रश्मि प्रभा
    बेहतरीन !

    यहाँ भी है
    हमारे पास
    हम सब
    भी खेलते हैं
    अपने चौसर
    अपनी गोटियों
    के साथ !

    जवाब देंहटाएं
  30. माली अब गद्दार हो गये -डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    वाह ! बहुत सुंदर !

    माली अब गद्दार हो गये
    माली नहीं रोपते अब पौंधे
    काट पीट पर लगे हुऎ हैं
    माली अब तलवार हो गये !

    जवाब देंहटाएं

  31. संवेदनाओं का संकुचन देख रहे हैं -राजेश कुमारी

    बहुत सुंदर !
    उल्लू भी नहीं बैठते
    अब तो शाखों पर यहाँ
    बन्दर को अदरख खाते
    हम भी देख रहे हैं !

    जवाब देंहटाएं

  32. एक बंदरिया उछल रही है -ललित शर्मा

    बेहतरीन सूत्र !
    पर बहुत सुंदर लग रही है बंदरिया उछलते हुऎ !

    जवाब देंहटाएं

  33. समय ठहर उस क्षण है जाता -धीरेन्द्र

    विक्रम जी की सशक्त लेखनी से परिचय कराने पर आभार !

    बहुत सुंदर रचना !

    जवाब देंहटाएं

  34. राम राम भाई! ब्लॉग जगत में शब्द कृपणता ठीक नहीं मेरे भैया -वीरू भाई

    वाह जी वाह
    मजा आ गया !

    वीरू भाई ने जब से
    अपनी फोटो लगाई है
    लेखनी ने कुछ कुछ
    पलटी भी खाई है
    जरा सा हटके मिर्ची
    भी कहीं कहीं लगाई है !!

    जवाब देंहटाएं

  35. अनाम के नाम -पुरुषोत्तम पाण्डेय

    सच है
    एक तरफ
    मैं अकेली
    दूसरी और
    बहुत सी डोर
    इतने खिंचाव में
    भी अव्यवस्थित
    नहीं होना
    सपने छोड़
    देना यूँ ही
    आसपास अपने
    तितलियों की
    तरह उड़ने
    के लिये
    सब के बस
    में तो नहीं !

    जवाब देंहटाएं

  36. ठंडे गधे -देवेन्द्र पाण्डेय
    पाण्डेय जी भी पता नहीं
    कहाँ कहाँ गधे ढूँढ रहे हैं
    अरे हम से आ कर
    तो मिलिये कभी जनाब !

    जवाब देंहटाएं
  37. बहुत-बहुत धन्यवाद गाफिल जी मेरे आलेख को चर्चामंच में स्थान देने के लिये ! सभी सूत्र पठनीय हैं !

    जवाब देंहटाएं
  38. संकलित लिंक्स प्रभावी और पठनीय है . आपका हार्दिक आभार..

    जवाब देंहटाएं
  39. साफ़ शफ्फाफ़ नदी जैसी ताज़गी और रवानी लिए लिंक्स के लिए आभार !

    जवाब देंहटाएं
  40. बहुत रोचक चर्चा बेहतरीन सूत्र में मेरी रचना को भी शामिल करने के लिए हार्दिक आभार गाफिल जी अभी अभी बाहर से आई हूँ इसलिए पढने में लेट हो गई

    जवाब देंहटाएं
  41. उगता सूरज,माणिक झरता,
    तन्मय चेतन , प्रखर भाव ,
    हंसती ,धरती के काव्य कुंज
    स्नेह ,स्निग्ध ,आभार लिखें

    *********************
    ओज संचारित हुआ है,
    घोष उच्चारित हुआ है,
    प्रखर भावों से निखर कर
    शब्द संस्कारित हुआ है.

    जवाब देंहटाएं
  42. उपयोगी दोहे मिले , करने को उपचार
    जनहित खातिर समर्पित,राधारमण कुमार ||

    जवाब देंहटाएं

  43. कभी सोचा है
    घर के कोने में अधफटा कागज़ी चौसर
    हर आहट पर चौंकता है
    हमारी बाट जोहता है
    इस विश्वास के साथ
    कि सांझ होते हम सब घर लौटेंगे

    मन को छू गया ...........मर्म

    नैन बिछाए, बाँहें पसारे
    बचपन वाले नाम पुकारे
    आ अब लौट चलें सुनने को
    तरसे चौसर,साँझ सकारे....

    तोड़ गये बचपन की यारी
    सब बिछड़े हैं,बारी बारी
    अब तो खेल यही है जारी
    हर एक रिश्ता रूठ गया रे........

    सुंदर सपना बीत गया है
    क्रूर जमाना जीत गया है
    जीवन का संगीत गया है
    दिल का खिलौना टूट गया रे.........

    जवाब देंहटाएं
  44. पानी, मेहंदी,कटु सत्य और नभ ,क्षणिकाओं में बहुत खूब अभिव्यक्त हुए हैं

    जवाब देंहटाएं
  45. सुन्दर लिंकों के बीच मेरे पोस्ट को स्थान देने के लिये आभार,,,,,

    जवाब देंहटाएं

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