मित्रों! शनिवार के लिए कुछ लिंक आपके अवलोकनार्थ प्रस्तुत कर रहा हूँ! |
बक बक संख्या तीन सौ*ये भी क्या बात है उसको देख कर ही खौरा तू जाता है सोचता भी नहीं क्यों जमाने के साथ नहीं चल पाता है अब इसमें उसकी क्या गलती है अगर वो रोज तेरे को दिख जाता है जिसे तू जरा सा भी नहीं देखना चाहता है तुझे पता है उसे देख लेना दिन में एक बार मुसीबत कम कर जाता है भागने की कोशिश जिस दिन भी की है तूने कभी वो रात को तेरे सपने में ही चला आता है…उल्लूक टाईम्स |
जहाँ न होब्लोगर साथियों मेरी कविता "जहाँ न हो " की दो पंक्तियाँ मैंने २००२ में सपने में सुना था जो तब से मेरा पीछा कर रही थी इससे पीछा छुड़ाने के लिए मैंने आज उसे पूर्णता प्रदान करने की कोशिश की है .. पता नहीं मैं कहाँ तक कामयाब हो सकी हूँ अपने विचारों के द्वारा जरुर अवगत कराएँगे ..धन्यवाद .... डोलिया में बिठाये के कहार ले चल किसी विधि मुझको उस पार ... जहाँ न हो किसी के खोने का अंदेशा जहाँ न हो कोई दुःख-दर्द और हताशा जहाँ न हो कोई उलझन और निराशा जहाँ न हो कोई भूखा और प्यासा जहाँ न हो कोई लाचार..बेचारा जहाँ न हो कोई तेरा और मेरा जहाँ न हो कोई अपना और पराया जहाँ न हो कोई मोह और माया जहाँ न हो... |
"सावधान रहें"स्वास्थ्यवर्धक के नाम पर लूट…! इससे सम्बन्धित कुछ और लिंक- बाबा रामदेव या गोरखधंधास्वास्थ्यवर्धक आटा50 रुपये किलो बेचना कितना उचित है ? |
मुक़द्दर को न अब कोसा करेंगे.....*मुक़द्दर को न अब कोसा करेंगे* *न छुप-छुपके'किरण'रोया करेंगे * *फ़कत इक काम ये अच्छा करेंगे जुनूने-इश्क से तौबा करेंगे *खता हमसे हुयी आखिर ये कैसे *अकेले बैठकर सोचा करेंगे… |
अदरक खूबसूरती को भी बढाता हैखूबसूरती को बढाता है अदरक शरद ऋतु की भीनी भीनी ठंड के मौसम में मित्रों, सुबह – सुबह अदरक की चाय मिल जाए तो पूरा दिन ताजगी भरा हो जाता है। चाय के साथ – साथ भोजन को जायकेदार बनाने वाले अदरक की दिलचस्प बात ये है कि वो खूबसूरती को भी बढाता है। |
सीख रहा हूँ-चलो उधर अब चल दो । रस्ता जरा बदल दो ।। दुनिया के मसलों का हिन्दुस्तानी हल दो ।। होली होने को हो ली रंग तो फिर भी मल दो । दिखला दी बत्तीसी दाढ़ तो अक्कल दो ।।नीम-निम्बौरी | एक दरिया ख्वाब में आकर यूँ कहने लगाकभीजलते चराग के लौ को बना कर अपना साथी, हमने दास्तान सुना दी गम -ए- ज़िन्दगी की | कभी हवा के झोंके संग "रजनी" उड़ा दिए, जितने भी मिले दस्तूर दुनिया केचलन से..चांदनी रात |
आज का सूरज |
"डिश"के लक्षण मिलने पर आप कहाँ जाइएगा मेडिकल हेल्प के लिए ?ज़ाहिर है सबसे पहले आप अपने पारिवारिक डॉ .या फिजिशियन /काया चिकित्सक के पास ही जाइएगा .आरम्भिक मूल्यांकन और अपने अनुभव के आधार पर वह आपको रेफर कर सकतें हैं :* * * *(१)Rheumatologist:संधिवात या गठिया रोगों का माहिर * * * *(2)Physiatrist :भौतिक चिकित्सा का माहिर ,फिजियो * * * *(3)Orthopedic surgeon:विकलांग चिकित्सा ,अस्थियों या मांसपेशियों की क्षति /चोट और सम्बन्धी रोगों की चिकित्सा .* * * *(4)Neurologist: स्नायु रोग -विशेषज्ञ,स्नायु /तंत्रिका विज्ञानी को दिखाने के लिए… |
शहीदे आजम रहा पुकार("शहीदे आजम"* सरदार भगत सिंह के जन्म दिवस पर श्रद्धांजलि स्वरूप पेश है एक रचना ) जागो देश के वीर वासियों, सुनो रहा कोई ललकार; जागो माँ भारत के सपूतों, शहीदे आजम रहा पुकार | सुप्त पड़े क्यों उठो, बढ़ो, चलो लिए जलती मशाल; कहाँ खो गई जोश, उमंगें, कहाँ गया लहू का उबाल ? फिर दिखलाओ वही जुनून, आज वक़्त की है दरकार; जागो माँ भारत के सपूतों, शहीदे आजम रहा पुकार | पराधीनता नहीं पसंद थी, आज़ादी को जान दी हमने; भारत माँ के लिए लड़े हम, आन, बान और शान दी हमने | आज देश फिर घिरा कष्ट में, भरो दम, कर दो हुंकार; जागो माँ भारत के सपूतों, शहीदे आजम रहा पुकार… |
राधा को ही क्यों चलना पड़ता है, हर युग में अंगारों में !*राष्ट्र-संपदा की लूट-खसौट, * *बंदर बांट लुंठक-बटमारों में,**नग्न घूमता वतनपरस्त, *डाकू-लुटेरे बड़ी-बड़ी कारों में….. | चतुर्थ खण्ड – स्वामी विवेकानन्द कन्याकुमारी स्थित श्रीपाद शिला परपोस्ट को पूरा पढ़ने के लिए इस लिंक पर जाएं -चतुर्थ खण्ड – स्वामी विवेकानन्द कन्याकुमारी स्थित श्रीपाद शिला पर |
गणपति गणराजाग्यारह दिन “गणपति” “गणराजा” आकर मोरी कुटिया विराजा. सुबह – साँझ नित आरती पूजा “गणपति” सम कोई देव न दूजा… |
क्या हैं जोखिम तत्व "डिश" केएवं रोग में पैदा जटिलताएंभले माहिरों को यह खबर न हो कि किन वजहों से होता है यह खतरनाक रोग -डिश यानी डिफ्यूज इडियोपैथइक स्केलीटल हाइपरओस्तोसिस लेकिन इतना इल्म हो चला है कौन सी वह बातें हैं जो इस रोग की चपेट में आने के मौके बढा देतीं हैं .* * * *(१)कुछ दवा दारु भी हैं कुसूरवार * * * *विटामिन ए सरीखी कुछ दवाएं यथा रेटिनोइड्स (isotretinoin,/Accutane,others ).बेशक यह अभी स्पस्ट नहीं है कि क्या विटामिन ए की बड़ी खुराकें भी कुसूरवार ठहराई जा सकतीं हैं ?* |
ख्वाब तुम पलो पलोतन्हा कदम उठते नहीं साथ तुम चलो चलो नींद आ रही मुझे ख्वाब तुम पलो पलो आशिक मेरा हसीन है चाँद तुम जलो जलो वो इस कदर करीब है बर्फ़ तुम गलो गलो देखते हैं सब हमें प्रेम तुम छलो छलो जुदा कभी न होंगे हम वक्त तुम टलो टलो दूरियां सिमट गयीं हसरतों फूलो फलो.. |
नरपिशाच हैं ये दोनोंराजेश और बेबी नामक दो नरपिशाचों ने आपस में विवाह कर लिया… | विचलनचारों और घना अन्धकार मन होता विचलित फँस कर इस माया जाल में विचार आते भिन्न भिन्न… | 5 mb का सॉफ्टवेर, ये विंडो XP ,VISTA और 7 को सपोर्ट करता है | |
रेणु’ से ‘दलित’ तक-पं. दानेश्वर शर्माएक था ‘रेणु’ और दूसरा था ‘दलित’ | दोनों का सम्बंध जमीन से था | रेणु का जन्म बिहार के पूर्णिया जिले के औराही हिम्गना गाँव में हुआ | दलित का जन्म छत्तीसगढ़ के अर्जुंदा टिकरी गाँव में हुआ | दोनों ग्रामीण परिवेश में पले-बढ़े… | बरसात के बाद शिशिर के आगमन से पहलेबरसात के बाद जब मौसम करवट लेता है शिशिर के आगमन से पहले और बरसात के बाद की अवस्था मौसम की अंगडाई का दर्शन ही तो होती है शिशिर के स्वागत के लिए हरा कालीन बिछ जाता है वैसे ही जब मोहब्बत की बरसात.. |
वो मासूम चेहरेइक अजीब सा इदराक लिए आँखों में - वो तकता है मेरी शख्सियत, आईना कोई आदमक़द कर जाए मजरूह अन्दर तक, उसकी मासूम नज़र में हैं न जाने कैसी कशिश, अपने आप उठ जाते हैं दुआओं के लिए बंधे हाथ, कोई अमीक़ फ़लसफ़ा नहीं यहाँ पर, उन नमनाक आँखों में अक्सर दिखाई देती है ज़िन्दगी अपनी… |
“काँटो का दिवाना- प्रतीक हुआ मस्ताना”तेरे दिवाने हम कहाँ थे, तेरी खामोशी ने बना दिया, हमने तेरी कोमल कलियो से, एक नया बाग सजा दिया। चाहत की हद भी ना देखी, गैरो ने काँटो के प्यार मे, दुनिया ने जिसे इतना कोसा, तूने उसे साथ बिठा दिया। तेरे दिवाने हम कहाँ थे, तेरी खामोशी ने बना दिया। लाखों ठोकर खाने पर भी, उसको मंजिल कहाँ मिली, अपनी खामोशी से उसने, तुझको आबाद करा दिया। तेरा अस्तित्व काँटो से है, तूने इसे बखूबी जाना गुलाब, लेकिन मुश्किलो मे इंसानो ने, तुझपर भी इंजाम लगा दिया… |
अन्त में… |
*मित्रों!*** *आज पेश कर रहा हूँ *** *अपनी शायरी के शुरूआती दिनों की *** *एक बहुत पुरानी ग़ज़ल!***"प्रीत पोशाक नयी लायी है"*हमने सूरत ही ऐसी पायी है।****उनको ऐसी अदा ही भाई है।।*** *दिल किसी काम में नही लगता**, * *याद जब से तुम्हारी आयी है।** * *घाव रिसने लगें हैं सीने के**, * *पीर चेहरे पे उभर आयी है।.. |
अदरक की महिमा जान कर उसके उपयोग में वृद्धि करने का मन बनाया है |बढ़िया चर्चा मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार |
जवाब देंहटाएंआशा
अदृश्य व्यंजना और द्रश्य शब्द चित्र लिए आई है यह रचना .सच मुच कुछ लोग शब्द पीड़ित होतें हैं .शब्द की ताकत से निरंतर पिट्तें हैं पर बाज़ नहीं आते .
जवाब देंहटाएंबक बक संख्या तीन सौ
उल्लूक टाईम्स
अदृश्य व्यंजना और दृश्य शब्द चित्र लिए आई है यह रचना .सच मुच कुछ लोग शब्द पीड़ित होतें हैं .शब्द की ताकत से निरंतर पिट्तें हैं पर बाज़ नहीं आते .
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंचाहे कितनी बचा नजर मुझसे,
इश्क की गन्ध छुप न पायी है।
बढ़िया अश आर है क्या मतला क्या मक्ता .
दास्तानें इश्क का अब क्या कहिये ,
ये आग बहुत हरजाई है .
किसी के बुझाए कब बूझ पाई है .
"प्रीत पोशाक नयी लायी है"
*हमने सूरत ही ऐसी पायी है।***
*उनको ऐसी अदा ही भाई है।।***
*दिल किसी काम में नही लगता**,
* *याद जब से तुम्हारी आयी है।**
* *घाव रिसने लगें हैं सीने के**,
* *पीर चेहरे पे उभर आयी है।..
जवाब देंहटाएंचाहे कितनी बचा नजर मुझसे,
इश्क की गन्ध छुप न पायी है।
बढ़िया अश आर है क्या मतला क्या मक्ता .
दास्तानें इश्क का अब क्या कहिये ,
ये आग बहुत हरजाई है .
किसी के बुझाए कब बुझ पाई है .
अल्लाह दुहाई है दुहाई है .
@ जहाँ न हो.............
जवाब देंहटाएंमिली ख्वाब में पंक्तियाँ,दिया उसे आकार |
ईश्वर से विनती करूँ , सपना हो साकार ||
@ बकबक
जवाब देंहटाएंरोचक
बहुत खूबसूरत चर्चा
जवाब देंहटाएंऊल्लूक का आभार !
मैं आप अपने प्रवचन में अक्सर कहते हैं कि आपने घोर गीपबी(गरीबी ) का जीवन जिया है।
जवाब देंहटाएंये ब्रांड का ज़माना है बाबा राम देव एक ब्रांड हैं .खुद में एक फिनोमिना हैं इतने कम समय में इस आदमी ने भारत को ग्लोबीय नक़्शे पे उतार दिया .
आप इनका आंवला सत ख़रीदे ९० रूपये का एक लिटर अब दूसरे डाबर आदि के दामों से तुलना कीजिए .खर्चा पैकेजिंग का भी होता है फिर इतने लोगों को उद्योग मिला हुआ है इस एंटरप्राइज़ में .बाबा रामदेव पब्लिक के आदमी में हैं .
जादू वही है जो सिर चढ़के बोलता है आज पार्क में ८० साला बूढी भी नाखूनों को परस्पर घिस्से मार रही होती है .पार्कों में लोग योग आसन करतें हैं .
आयुर्वेद को एक भूमंडलीय नक़्शे पे ये आदमी ले आया .
इड देश में अब एक "ब्रीफ" भी हजार दो दो हज़ार से शुरु होकर पांच पांच दस दस हजार का मिलता है ब्रांडडीड.आप एक किलो आटे को लेके रो रहें हैं .
सारा चक्कर ब्रांड का है .
अब कितने घरों में हिन्दुस्तान के गेंहू खरीद के पहले धोया सुखाया जाता है फिर पिसवाया जाता है ?
१७ रूपये किलो वाले आटे में सुर्सिरी भी सत्तर हजार होतीं हैं .पेकिंग का कोई भरोसा नहीं कौन से युग की निकले .
निशाना ही बनाना है तो अंकल चिप्स को बनाइए .कुरकुरे को बनाइए .
"सावधान रहें"
जवाब देंहटाएंकिस किस से रहेंगे सावधान
इस देश में कौन नहीं है लुटेरा
मुझे मौका मिला नहीं है अब तक
वरना मैं भी नहीं छोड़ने वाला
मिलता है जैसे ही कोई
मौका एक सुनहरा !
जहाँ न हो
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना:
जहा ना हो का टेंडर
बडी़ मुश्किल है
कोई नहीं है डालता
जहाँ ये सब हो
उसके लिये तो
हर कोई अपना
पर्स सहर्ष ही
है निकालता !
बडा इमामबाडा और भूल भुलैया, लखनऊ
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चित्रमय प्रस्तुति नीरज !
बाकी लिंक्स
पढ़ने के लिये
शाम को आते हैं !
पन्द्रह ग्राम अदरक का रोजाना सेवन गठिया रोग में भी लाभदायक सिद्ध हुआ है अध्ययनों से यह बात पुष्ट हुई है .
जवाब देंहटाएंअदरक खूबसूरती को भी बढाता है
खूबसूरती को बढाता है अदरक शरद ऋतु की भीनी भीनी ठंड के मौसम में मित्रों, सुबह – सुबह अदरक की चाय मिल जाए तो पूरा दिन ताजगी भरा हो जाता है। चाय के साथ – साथ भोजन को जायकेदार बनाने वाले अदरक की दिलचस्प बात ये है कि वो खूबसूरती को भी बढाता है।
@ बड़ा इमामबाड़ा
जवाब देंहटाएंहमने भी देखा इसे, धीरेंद्र भदौरिया संग
बडा खूब बाड़ा लगा, भूल - भुलैया तंग
भूल- भुलैया तंग , दीवारें बनी तिलस्मी
दूर तलत आवाज , सुनाई देती धीमी
लखनऊ के इतिहास-पृष्ठ की स्वर्णिम रेखा
धीरेंद्र भदौरिया संग, इसे हमने भी देखा ||
मेरी रचना शामिल करने के लिये बहुत-बहुत धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंआभार
प्रतीक संचेती
सपनों का मोहक संसार अपूर्णता में पूर्णता भरता है अभाव की पूर्ती करता है सपने न आयें तो आदमी पागल हो जाए .जो वैसे हासिल नहीं है सपने में मिल जाता है .बढ़िया खाब है जागी आँखों का भी सोई सोई अंखियों का भी .बधाई .
जवाब देंहटाएंडोली में बिठाईके कहार ,
लाये मुझे सजना के द्वार .
ख्वाब तुम पलो पलो
जवाब देंहटाएंexpression
my dreams 'n' expressions.....याने मेरे दिल से सीधा कनेक्शन.....
बढ़ता नन्हा कदम है, मातु-पिता जब संग ।
लेकिन तन्हा कदम पर, तुम बिन लगती जंग ।
तुम बिन लगती जंग, तंग करती है दूरी ।
जीतूँ जीवन-जंग, उपस्थिति बड़ी जरुरी ।
थामे कृष्णा हाथ, प्यार का ज्वर चढ़ जाए ।
छलिये चलिए साथ, कभी आ बिना बुलाये ।।
‘रेणु’ से ‘दलित’ तक
जवाब देंहटाएंअरुण कुमार निगम (हिंदी कवितायेँ)
सियानी गोठ
जनकवि स्व.कोदूराम “दलित”
अरुण निगम के पिताजी, श्रेष्ठ दलित कविराज |
उनकी कविता कुंडली, पढता रहा समाज |
पढता रहा समाज, आज भी हैं प्रासंगिक |
देशभक्ति के मन्त्र, गाँव पर लिख सर्वाधिक ||
छत्तिसगढ़ का प्रांत, आज छू रहा ऊंचाई |
जय जय जय कवि दलित, बड़ी आभार बधाई ||
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
हटाएंकलम विरासत में मिली , हुई जिंदगी धन्य
हटाएंऔर भला क्या चाहिये , तन मन है चैतन्य
तन मन है चैतन्य , करूँ नित साहित सेवा
भाव श्वाँस बन जाय,मिले नित शब्द-कलेवा
रहे आखरी साँस तलक , लिखने की आदत
गर्व स्वयं पर करूँ ,मिली है कलम विरासत ||
लिंक्स !
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंसब कुछ गूगलमय
sidheshwer
कर्मनाशा
काव्यमयी प्रस्तावना, मन गलगल गुगलाय ।
शब्दों का यह तारतम्य, रहा गजब है ढाय ।
रहा गजब है ढाय, बोलते हैप्पी बड्डे ।
घर घर बनते जाँय, अति मनोरंजक अड्डे ।
मानव जीता जगत, किन्तु गूगल से हारा ।
गूगल जयजयकार, तुम्ही इक मात्र सहारा ।
जवाब देंहटाएंसाधना शब्दों की ... !!!
सदा
SADA
गुरुजन के आशीष से, जानो शब्द रहस्य |
शब्द अनंत असीम हैं, क्रमश: मिलें अवश्य |
क्रमश: मिलें अवश्य, किन्तु आलस्य नहीं कर |
कर इनका सम्मान, भरो झोली पा अवसर |
फिर करना कल्याण, लोक हित सर्व समर्पन |
रे साधक ले साध, दिखाएँ रस्ता गुरुजन ||
बहुत सुन्दर छायांकन .बेहद सुन्दर वृत्तांत .कहतें हैं फटोग्रेफी चार चाँद लगा देती है
जवाब देंहटाएंमैं इससे सहमत नहीं हूं। इसमें लिखा है कि गन्दगी फैलाना जानवरों का काम है, जबकि जानवरों को तो यह भी नहीं पता होता कि गन्दगी होती क्या है। गन्दगी इंसानों का ही कॉन्सेप्ट है, इंसानों द्वारा ही फैलाई जाती है।
मैं भी आपसे सहमत हूँ . पशु पक्षी तो सफाई कर्मी हैं हमारे पर्यावरण के ये न हों तो हम सब कुछ को सड़ा दें .
बडा इमामबाडा और भूल भुलैया, लखनऊ
दद्दा शास्त्री जी !चर्चा मंच नै ऊंचाइयां छू रहा है .सेतुओं का स्तर बेहतरीन रहा है .एक से बढ़के एक और आप हमें भी पचायें हैं डिश रोग को जगह देकर .आभार आपका .
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंबच्चे बूढ़े और यंगस्टर्स, हर इक है बलिहारी।
जिसको देखो वो ही गाए , गूगल विरद तुम्हारी ॥
बिन गूगल सब सून भैया ,बिन गूगल सब सून
दिल्ली देहरादून भैया ,कहीं न मिले सुकून
बिन गूगल सब सून भैया ,बिन गूगल सब सून .
बहुत बढ़िया प्रस्तुति है खड़ी बोली का बढिया प्रयोग किया है आंचलिक अंदाज़ में .
सब कुछ गूगलमय
@ सबकुछ गूगलमय..........
जवाब देंहटाएंसाजन गूगल एक से,नींद उड़ायें रात
खाना पीना छुट गया,भूले करना बात
भूले करना बात,नेट पर ही चैटियाते
बिजली होती गोल,विरह के नगमें गाते
लागी नाही छूटे ,दुनियाँ समझे पागल
नींद उड़ायें रात,एक से साजन गूगल ||
वफा की राह में सोचा नहीं था ,
जवाब देंहटाएंहमारे पाँव भी धोखा करेंगे .
ज़माना दे जिसकी मिसालें ,
कलम में वह हुनर पैदा करेंगे .
हुनर तो वह है और खूब है ,इनायत ये हुनर की बनी रहे आप पे .बढ़िया प्रस्तुति के लिए बधाई .आभार .
"About me " में आपने दृश्यावली शब्द का प्रयोग किया है कुछ यूं "द्र्श्यावली " ये बात किरण से मेल नहीं खाती .आपकी रफ़्तार यूं ही बनी रहे प्रकाशीय वेग लिए रहें आप .खूबसूरत व्यक्तित्व और कृतित्व आपने चर्चा मंच को भी दिया शुक्रिया .जुग जुग जियो .
dhanyavad nd aabhar ....bahut acche links hain ...
जवाब देंहटाएंडॉ राजेन्द्र तेला "निरंतर" जी -
जवाब देंहटाएंयूँ ही मिल गया कोई
चलते चलते
दिल में चिराग लिए
देखा जो अन्धेरा उसने
दिल में मेरे
चिराग मुझे थमा दिया
हो गया मैं भी रोशन
उसके इस कारनामे से
खुश हो कर
जब पूछा मैंने उससे
तुम्हारे दिल का क्या होगा
बड़ी शिद्दत से वो
कहने लगे
जिसको चिराग
समझा तुमने
वो चिराग नहीं
मोहब्बत है मेरी
जब तक जलती रहेगी
शमा मोहब्बत की दिल में
तुम्हारे
यूँ ही रोशन करती
रहेगी
ज़िन्दगी तुम्हारी-रचना अच्छी लाये हो लेकिन घर के घर में ही रहते हो ,घर से बाहर भी निकला कीजिए .एक शैर आपकी खिदमत में -
कुछ लोग इस तरह जिंदगानी के सफर में हैं ,
दिन रात चल रहें हैं ,मगर घर के घर में हैं .इतना बढ़िया लिख रहें हैं लेकिन एक एक दो दो टिपण्णी लिए बैठें हैं आप जैसे कई लोग और .जानतें हैं क्यों .आप घर से बाहर नहीं निकलते .किसी और के ब्लॉग पे भी दस्तक दीजिए .ये अपना ही दुनिया है अपने ही लोग हैं .
ब्लॉग जगत में शब्द कृपणता ठीक नहीं .
खुले मन से होता है यहाँ सबका स्वागत ,
ये अपनों की दुनिया है ,ब्लोगिंग की दुनिया .
यहाँ कोई अपना है ,न कोई पराया ,
ये सपनों की दुनिया है ,परिंदों की दुनिया .
निगम जी संगीत में भी लोक संगीत पहले आया है शास्त्र बद्ध बाद में हुआ है .संत कवि सारे जन कवि ही तो थे लोक के जन जन के कवि थे .फनेश्वर नाथ रेणु लिखे "मैला अंचल "और रहे सजे धजे .
जवाब देंहटाएंदलित जी की रचनाएं आपके ब्लॉग पे जब तक पढ़ें को मिल जातीं हैं .बढ़िया पोस्ट लगाईं है लोक साहित्य की छींट लिए.
रेणु’ से ‘दलित’ तक
-पं. दानेश्वर शर्माएक था ‘रेणु’ और दूसरा था ‘दलित’ | दोनों का सम्बंध जमीन से था | रेणु का जन्म बिहार के पूर्णिया जिले के औराही हिम्गना गाँव में हुआ | दलित का जन्म छत्तीसगढ़ के अर्जुंदा टिकरी गाँव में हुआ | दोनों ग्रामीण परिवेश में पले-बढ़े…
इस चर्चा के लिए आभार शास्त्री जी !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चर्चा के साथ सुंदर लिंक्स उपलब्ध कराये गए |
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार |
-प्रदीप कुमार साहनी
बेहतरीन सूत्र बेहतरीन चर्चा खूब सज रहा है चर्चामंच बधाई आपको
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया सर। उम्मीद है आज रात तक आपके सुझाए सभी लिंक्स देख - पढ़ लूँगा। आपके और आपकी टीम के प्रति आभार, मेरी पोस्ट को यहाँ हिन्दी ब्लॉगिंग की बनती हुई दुनिया में सबके साथ साझा करने के लिए।
जवाब देंहटाएंउपयोगी लिंक्स .
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट प्रस्तुति.
आभार .
अच्छे लिंक्स
जवाब देंहटाएंसुंदर चर्चा
सुंदर चर्चा.........
जवाब देंहटाएंअच्छे लिंक्स उत्कृष्ट प्रस्तुति ...आभार
जवाब देंहटाएंमैं सबसे प्रेम करता हूँ मुझे स्नेह भाता है
जवाब देंहटाएंनहीं कोई मेरा दुश्मन सभी से अच्छा नाता है
सही हों पग सही हो पथ सही गन्तव्य सही जो जग
मैं इतना सोच सकता हूँ मुझे जीवन सुहाता है
बहुत बढ़िया बहुत सशक्त सम्प्रेषण लिए है यह रचना .
सब कुछ गूगलमय
जवाब देंहटाएंप्रोफ़ेसरी अपनी जगै है और कविता अपनी जगै। कविता तो भई वई है जिसमे लय होय, तुक होय और देखने - पढ़ने में एक अच्छी - सी लुक होय।
हिन्दी विभाग है तो ठीक है।
बाकी के प्रोफेसर कविता कैसे लिख रहे हैं?
आर टी आई लगानी पडे़गी अब तो !
जवाब देंहटाएंइक अजीब सा इदराक लिए आँखों में -
वो तकता है मेरी शख्सियत,
आईना कोई आदमक़द
कर जाए मजरूह
अन्दर तक,
उसकी
मासूम नज़र में हैं न जाने कैसी कशिश,
अपने आप उठ जाते हैं दुआओं के
लिए बंधे हाथ, कोई अमीक़
फ़लसफ़ा नहीं यहाँ पर,
उन नमनाक
आँखों में
अक्सर दिखाई देती है ज़िन्दगी अपनी,
चाह कर भी उसे नजरअंदाज़
करना है मुश्किल, वो
अहसास जो
मुझे
ले जाती है बहोत(बहुत ) दूर, ईंट पत्थरों से बने...........बहुत
,,इबादतगाह हैं जहाँ, महज रस्म
अदायगी, मेरी मंज़िल में
बसते हैं सिर्फ़ वो
लोग, जिन्हें
मुहोब्बत ..........मोहब्बत
के सिवा कुछ भी मालूम नहीं, वो मासूम
चेहरे जो इंसानियत के अलावा कुछ
नहीं जानते - -
बढ़िया काव्यात्मक प्रस्तुति अभिनव शिल्प लिए ........
उत्पीडित नित हो रही,
जवाब देंहटाएंशिष्टता और शालीनता सड़कों पर,
नीलाम हो गए सदाचार,समादर,
भडुआ,गद्र्दार बाजारों में !........गद्दार /ग़दर -दार ?
विश्व-बंधुत्व की लत लगी ऐसी,
सत्ता के इन रसूकदारों को,
सबल बना रहे स्विट्जरलैंड को,
स्वदेश खडा लाचारों में !
परचेत साहब बहुत मौजू रचना ,देश की अनदेखी परदेस के साथ वफादारी करने वालों पर कटाक्ष खुलकर अभिव्यक्त हुआ है रचना में .
* चेहरा बदलना चाहिये *
जवाब देंहटाएंकातिलों से डर कर न घर में छुपना चाहिये
बहुत सुंदर !
सीख रहा हूँ-
जवाब देंहटाएंदुनिया के मसलों का
हिन्दुस्तानी हल दो ।।
फेल हो जाना है मतलब !
आज का सूरज
जवाब देंहटाएंअब कैसे खुल गये रास्ते कहने के
सुबह से बंद क्यों चल रहे थे?
गूगल गुगली कर रहा होगा
बहुत खूबसूरत चर्चा
जवाब देंहटाएंमाधव भाई खुद से साक्षात्कार बढ़िया है .वर्तनी की अशुद्धियों को सुधारें .जहां बिंदी ज़रूरी हो लगाएं .
जवाब देंहटाएंअगस्त की बीमारी से माधव अब उबर चुके है(हैं )....."हैं " स्वास्थ्य दिन पर दिन ठीक हो रहा है , वजन भी बढ़ रहा है. कुल मिला जुलाकर सुखद सन्देश है . एक दिन माधव के स्कुल(स्कूल )...."स्कूल " गया था . इनकी दोनों मैडम अनुराधा मैडम और लीलू मैडम से मिला . माधव पर चर्चा की . सब ठीक ठाक है.
कल मैंने माधव का इंटरव्यू किया , उसके कुछ अंश पेश है(हैं ).....हैं
१. सवाल - आपका नाम -
माधव- माधव राय
२. सवाल -आप कहा (कहाँ )रहते है (हैं ) ........कहाँ ......हैं
माधव - दिल्ली
३. सवाल - स्कुल का नाम
माधव - मोंट फोर्ट सीनियर सेकेंदरी(सैकेंडरी ) स्कुल , अशोक विहार दिल्ली
४. सवाल - आप अपनी फैमिली के बारे के कुछ बताए(बताएं ).....बताएं
माधव - मेरी फैमिली मे(में ) मम्मी है(हैं ).......में .......हैं ,पापा है(हैं ).....हैं .बाकी मेरे दो भाई है राघव
भैया और अनुष . दो दीदी है(हैं ) - वर्षा दीदी और ऋतू दीदी .बाकी
लोग भी है जैसे बाबा , माई, बुआ , नाना ,नानी , मामा
५. सवाल - आपको मम्मी पापा के अलावा और किन लोगों से ज्यादा
लगाव है.
माधव - सभी से है पर खास लगाव है मामा से, अनुष से ,ऋतू दीदी से
६. सवाल - आपको खाने मे क्या पसंद है
माधव- चावल दाल,मैगी
७.सवाल -आपका पसंदीदा फल
माधव- केला
८. सवाल - पसंदीदा मिठाई
माधव- लड्डू
९. सवाल - पसंदीदा रेस्तरां
माधव - मैकडोनाल्ड
१०. सवाल - आपका पसदीदा घूमने की जगह
माधव - दिल्ली मे (में )....में ....- इंडिया गेट , रेल म्यूजियम
दिल्ली से बाहर -डलहौजी , जिम कार्बेट
११.सवाल - आपके कुछ शौक भी है(हैं ).... ?
माधव - जी हाँ , मुझे स्विम्मिंग बहुत पसंद है .
१२.सवाल - आपको मम्मी ज्यादा प्यार करती है(हैं ) या पापा ?
माधव- दोनों
१३. सवाल - पसंदीदा टी वी प्रोग्राम
माधव - छोटा भीम
१४. सवाल - पसंदीदा खिलौना
माधव - कोई भी ऑटोमोबाइल (जैसे कार जीप , बाइक)
१५. सवाल - फेवरेट फिल्म
माधव - कार (CARS)
कृपया स्पैम बोक्स देखें !कमसे कम बारह टिपण्णी और मिलेंगी .
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लिंक दिए गये
जवाब देंहटाएंसभी रचनाएँ एक से बढ़ कर एक है
बाबाजी के बारे में जो भी मिला सही लगा
आदरणीय कोदूराम दलित जी के बारे में संकलन प्रस्तुत करने हेतु आभार
बहुत बढ़िया लगी
आदरणीय रविकर जी एवं अरुण जी की कुंडलियाँ
चर्चा को अलंकृत कर दिया आदरणीय वीरेंद्र शर्मा जी तथा आदरणीय सुशील जी
की चर्चा रोचक लगी
हार्दिक बधाई
बहुत ही सुन्दर चर्चा, सुन्दर सूत्रों से सजी।
जवाब देंहटाएं