मित्रों! शनिवार आ गया और मैं भी आ गया अपनी पसंद के कुछ लिंकों की चर्चा लेकर! माँ मोहन के पास, बॉस श्रीकांत हमारे
सचिन सांसद आ गए, खेलें क्रिकेट खेल |
टेस्ट मैच में हुए जो, तीन मर्तवा फेल |
तीन मर्तवा फेल, रिटायर क्यूँ हो जाए |
फेल हुवे नौ साल, पहल मोहन से आए |
माँ मोहन के पास, बॉस श्रीकांत हमारे |
है संसद का साथ, भले गर्दिश में तारे || |
अंडरएचीवर... रोबोट... भ्रष्टों का सरदार प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह लगातार मुसीबत में नजर आ रहे हैं। एक तरफ संसद में लगातार उनके इस्तीफे की मांग को लेकर कामकाज ठप किया जा रहा है तो दूसरी ओर उनको मीडिया में कोसने का सिलसिला जारी है |
शिक्षा का व्यापार नाई की दुकान पर बिक रहा था सामान माध्यम था रेडियो एक निजी प्रबन्ध संस्थान के लुभावने व भ्रामक विज्ञापन द्वारा बहुराष्ट्रीय कंपनियों में छह अंकीय आय का उदाहरण.. | भीतर की बाढ़ अभी तक किताबों में पढ़ा था फ़िल्मों में देखा था और ज़ुबानी सुना था ... |
मन का रिश्ता घर से बाहर निकलते ही एक लावारिस कुत्ता मेरे पास आया पूछ हिलाकर अभिवादन करने लगा मैंने भी उसे स्नेह से पुचकार लिया तीन वर्ष तक यही क्रम निरंतर चलता रहा.. | एक पत्र आरक्षण पीड़ित सामान्य वर्ग के नाम *प्रिय सामान्य वर्ग,* जबसे सत्ताधारी दल व कुछ अन्य दल जो आरक्षण रूपी हथियार का इस्तेमाल कर दलित वोट बैंक रूपी बैसाखियों के सहारे.. | आँच, आलोचना और मेरी अज्ञानता एक धर्मगुरू किसी निर्जन टापू पर फंस गया. वहाँ से निकलने का कोई रास्ता न पाकर वह वहीं भटकता हुआ लौटने की जुगत लगाने लगा, जैसे आग जलाकर धुआँ उत्पन्... |
नियमित हो यह "आंच", हमें भी चढ़ा दीजिये- उल्लू पिटता जा रहा, बड़ी घनेरी धूप | खर्राटों से जगे जब, बीबी बदले रूप | |
क्या अपपठन (डिसलेक्सिया )और आत्मविमोह (ऑटिज्म )का भी इलाज़ है काइरोप्रेक्टिक में ? *शब्दों के उच्चारण करने में या वर्तनी स्पष्ट करने में होने वाली कठिनाई डिसलेक्सिया कहलाती है ."तारे ज़मीं के "का… |
गर्भ का आशय कभी मंदिर-मस्जिद कभी आरक्षण पर चोंच लड़ाते रहिए वे चैन से करते रहेंगे गोलमाल छेड़छाड़, बलात्कार, भ्रूण हत्या के बाद ताजा समाचार यह कि वे लूट लेते हैं गर्भाशय भी… | उल्लू बदल गया *ऊल्लूक का निठल्ला चिंतन कभी आपको यहाँ अब अगर दिख जायेगा मत घबराइयेगा रात को भी देखता हो आँख जो थोड़ा बहुत दिन में दिख भी गया उड़ता हुआ कहीं कुछ नहीं कर पायेगा.. | गूगल ने वाईस नेविगेशन सेवा को भारत में शुरू कर दिया हालाँकि पहले भी गूगल मेप के नाम से गूगल का नेविगेशन सेवा भारत में उपलब्ध था लेकिन उसमे अब एक नया फिचर जोड़ दिया गया है… |
सदबुद्धि दो भगवान एक बुद्धिजीवी का खोल बहुत दिन तक नहीं चल पाता है जब अचानक वो एक अप्रत्याशित भीड़ को अपने सामने पाता है बोलता बोलता वो ये भी भूल जाता है कि दिशा निर्देशन करने का दायित्व उसे जो उसकी क्षमता से ... |
समन्दर किनारे से ... | कठिन है बिटिया की माँ होना.... एक पतंग के मानिंद है आशाएं मेरी लाडली की... कोमल और चंचल ... |
लोकतंत्र क्या यही हमारा लोकतंत्र ? क्या यही हमारी सत्ता है ? वे सोच रहे, क्या-क्या खाएं, हमको न जूठा पत्ता है ।।1।। हैं चोर-लुटेरे महलों में, हमको न टूटी छानी है। देखो-देखो दुनिया वालों, भारत की अजब कहानी है… | जिसने मुझे बिगाड़ा किशोर चौधरी किसी ज़माने में जोधपुर में एक अखबार से पत्रकारिता की हुरुआत करने वाले किशोर,आकाशवाणी जैसे नामचीन विभाग में उदघोषक हैं.पहले सूरतगढ़ स्टेशन के बाद अब फिलहाल बाड़मेर केंद्र पर पदस्त हैं… | शाम ढलते - -सांझ के धुंधलके में देखा है, अक्सर उस चेहरे से उभरती हुई ज़िन्दगी, सूरज डूबने का मंज़र हो चाहे कितना ही ख़ूबसूरत, लेकिन उसके आते ही खिल जाती हैं हर तरफ शब ए गुल की उदास क्यारियां |
उलझन यादों के धूमिल पलछिन को वादों के गिनगिन उन दिन को
प्यार भरे उन अफ्सानो को
मैं भूलूँ या न भूलूँ...
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दूजा धन लागे भला,खरच किया बिन मोह-दोहा ग़ज़ल माता-पिता वृद्ध हुए, पुत्र समंदर-पार बना आज दस्तूर यही, छिन जाता आधार| बरगद की छाया बने, छौने पर दिन-रात कुलाँचे भर भाग चला, भूला ममता-प्यार… | जलते चराग सारे बुझा आयी है शायद जो शब् होकर के खफा आयी है शायद लो, अब खामोश तहरीर हो गयी है वो हाँ, ख़त मेरे सब जला आयी है शायद के अब रात-रात भर यादों में जागते हैं काम कुछ तो मेरी दुआ आयी है शायद ... |
चढ़ता उतरता प्यार वो मिली चढ़ती सीढियों पर मिल ही गयी पहले थोड़ी नाखून भर फिर पूरी की पूरी.. ओंठ भर और फिर प्यार की सीढियों पर चढ़ते चले गए.... | टेढ़े मेढ़े रास्ते और मंजिल अभी दूर -- एक नए सफ़र पर . हमने टिपियाया -- लगता है आप और हम -- हम उम्र हैं . अब मिश्र जी कुछ समझे या नहीं , नहीं जानते लेकिन तात्पर्य... | रिजवान कम ,कसाब ज्यादा हैं जिंदगी में जबाब कम ,सवाल ज्यादा हैं, दर्द देना अब बड़ी शख्शियत की निशानी है …. |
ज्वालामुखी (एक गरम जोश काव्य)
मेरे भारत देश,स्वर्ग से सुन्दर और सु रूप हो तुम...
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ब्लोगिंग के विविध आयाम ,
जवाब देंहटाएंShukriya.
शुभप्रभात !
जवाब देंहटाएंउत्तम प्रस्तुति ....!!
धन्यवाद !!
प्रचलित नाम तो अब इनका मौन सिंह उर्फ़ पूडल है .आप इनको कुछ कहो शर्म अब इस रिमोटिया सरकार को नहीं आती .हम भ्रष्टों के भ्रष्ट हमारे .
जवाब देंहटाएंशुक्रवार, 7 सितम्बर 2012
शब्दार्थ ,व्याप्ति और विस्तार :काइरोप्रेक्टिक
यू पी ए के इस दूसरे दौर में सचमुच अर्थ की व्यवस्था हो रही है सरकारी कुनबों के लिए .
जवाब देंहटाएंअंडरएचीवर... रोबोट... भ्रष्टों का सरदार
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह लगातार मुसीबत में नजर आ रहे हैं। एक तरफ संसद में लगातार उनके इस्तीफे की मांग को लेकर कामकाज ठप किया जा रहा है तो दूसरी ओर उनको मीडिया में कोसने का सिलसिला जारी है
शुक्रवार, 7 सितम्बर 2012
शब्दार्थ ,व्याप्ति और विस्तार :काइरोप्रेक्टिक
मुक्तसर(मुख़्तसर ) न हुयी गर्दिशें तमाम ,फिर भी ,
जवाब देंहटाएंहौसलों ने हासिल किया मुकाम,
मौजें बहा ले गयीं मकान,तूफान ज्यादा है - वतन में अब ईमान कम बे -ईमान ज्यादा हैं ....क्या बात है भाई साहब सलामत रहो देश में अब रिजवान कम कसाब ज्यादा हैं .
शुक्रवार, 7 सितम्बर 2012
शब्दार्थ ,व्याप्ति और विस्तार :काइरोप्रेक्टिक
जवाब देंहटाएंशान्त चित्त तुम, अवढर(औगढ़ ) दानी-आगत के सत्कारक हो !
हृदय विशाल गगन सा व्यापक,चिर गंभीर विचारक हो !!
‘धर्म-भेद’ से रहित ‘स्व्च्छ्मन(स्वच्छमन )’,’मानवता’ का रूप हो तुम !!
तुम सा कौन जगत में होगा,तुलना-हीन अनूप हो तुम !!१!!बेशक काव्यात्मक सौन्दर्य से भरपूर है रचना लेकिन यह तस्वीर प्राचीन भारत की है इंडिया की भी लिखो ........
शुक्रवार, 7 सितम्बर 2012
शब्दार्थ ,व्याप्ति और विस्तार :काइरोप्रेक्टिक
शुक्रवार, 7 सितम्बर 2012
शब्दार्थ ,व्याप्ति और विस्तार :काइरोप्रेक्टिक
खैराती से निकल पञ्च तारा में जा रहे हो ,खूब नाम कमा रहे हो
जवाब देंहटाएंऔर तो और सिर्फ कवि कहला रहे हो .....बढ़िया डॉ .कविराल(कवि +डॉ .दाराल )
शुक्रवार, 7 सितम्बर 2012
शब्दार्थ ,व्याप्ति और विस्तार :काइरोप्रेक्टिक
जवाब देंहटाएंये इंस्टेंट लव है भाई ,बुखार चढ़ भी गया ,उतर भी गया ...
चढ़ता उतरता प्यार
वो मिली चढ़ती सीढियों पर मिल ही गयी पहले थोड़ी नाखून भर फिर पूरी की पूरी.. ओंठ भर और फिर प्यार की सीढियों पर चढ़ते चले गए....
नै प्रयोग भूमि खंगाली है ,दोहा गजल रुदाली है .
जवाब देंहटाएंशुक्रवार, 7 सितम्बर 2012
शब्दार्थ ,व्याप्ति और विस्तार :काइरोप्रेक्टिक
महक उठें हैं खुश्बू से हज़ार आलम ,
जवाब देंहटाएंउसके गेसू छूके हवा आई है शायद |ज़वाब नहीं कनपुरिया साहब का .रोशन दानों से हवा आई है ,जाने किसकी कज़ा आई है .
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शुक्रवार, 7 सितम्बर 2012
शब्दार्थ ,व्याप्ति और विस्तार :काइरोप्रेक्टिक
बढ़िया लिनक्स .... चैतन्य को शामिल करने का आभार
जवाब देंहटाएंये बौद्धिक भकुवे(बधुआ )खुद को कोंग्रेसी चाणक्य मान बैठें हैं .इन दुर्मुखों को लगता है कोंग्रेस का भविष्य इनकी जेब में हैं लेकिन इन दुर्मुखों की जेब फटी हुई है .बढ़िया रचना है .वोट की खातिर एक बटवारा और करना चाहतें हैं वोटिस्तान में .
जवाब देंहटाएंसदबुद्धि दो भगवान
एक बुद्धिजीवी का खोल बहुत दिन तक नहीं चल पाता है जब अचानक वो एक अप्रत्याशित भीड़ को अपने सामने पाता है बोलता बोलता वो ये भी भूल जाता है कि दिशा निर्देशन करने का दायित्व उसे जो उसकी क्षमता से ...
शुक्रवार, 7 सितम्बर 2012
शब्दार्थ ,व्याप्ति और विस्तार :काइरोप्रेक्टिक
जानिए खटीमा को"संक्षिप्त रोचक सुन्दर जानकारी खटीमा .भारत में आज भी कितने खटीमा हैं जहां काला जार से लोग मर जातें हैं .मच्छर तक नहीं मार सकती ये रिमोटिया सरकार सुना है छत्तीसगढ़ के निजी अस्पताल अब हैदराबाद की एक संस्था चलायेगी .देश चलाने का भी ठेका क्यं नहीं दे देते ये लोग रिमोटियों से तो पिंड छूटेगा .
जवाब देंहटाएंशुक्रवार, 7 सितम्बर 2012
शब्दार्थ ,व्याप्ति और विस्तार :काइरोप्रेक्टिक
कार्टून :- ले और कर ले पी.एच.डी.
जवाब देंहटाएंवाह !!
पीएच0 डी0 का अर्थ सही में
पागल होकर दौड़ बताया जाता है
जितना समय और मेहनत लगती है
उतने में आदमी डाक्टर नहीं बन पाता है
खुद मरीज एक हो जाता है
ऎसे मैं कोई कुत्ता लेकर कैसे
उसके पास चला जाता है ?
ज्वालामुखी
जवाब देंहटाएं(एक गरम जोश काव्य)
बहुत सुंदर !!
जरूरी है गरम जोश कविता
उन सब को सुनाना
जो बेच रहे हैं देश को
खा रहे हैं कोयले का खाना !
रिजवान कम ,कसाब ज्यादा हैं
जवाब देंहटाएंबहुत सही है
आवाम का कम , उनका दर्द ज्यादा है -
देश को शतरंज बनाने में आमादा है
आदमी अब आदमी कहां बस प्यादा है !
चढ़ता उतरता प्यार
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत !
बिल्कुल जिंदगी
की तरह किया
उसने व्यव्हार
बच्चे की तरह
खिलकिलाते चढं
गयी ऊपर
बूढी़ हो कर
उतर आई !
जलते चराग सारे बुझा आयी है शायद
जवाब देंहटाएंबहुत खूब !
बहुत कुछ कर के भी आ गई
कोई बात नहीं होता है ऎसा भी
अच्छा लगा सुनकर
आखिरकार वो आ गई
दूजा धन लागे भला,खरच किया बिन मोह-दोहा ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर !
बिन अहं के साथ चलना
कितना मुश्किल हो जाता है
चारों और अहं का झंडा
जब लहराता है
खुदद का सोया अहं ऎसे
में उठ के जाग जाता है !
साक्षरता का अपना ही एक उद्देश्य है !!!
जवाब देंहटाएंबहुत बढि़या !
जरूरत है बेटी को साक्षर बनाने की
साथ में अच्छा होगा बहुत ही
कोशिश की जाय कुछ कुछ
माँ बाप को भी पढा़ने की !
उलझन
जवाब देंहटाएंखूबसूरत रचना !
शेष बिजली रानी के वापस लौट के आने पर
जवाब देंहटाएंसुबह सुबह बस इतना ही बाकी संध्या आने पर
चर्चा मंच का आभार
और आभार रविकर का
नियमित हो यह "आंच", हमें भी चढ़ा दीजिये-
बहुत बहुत आभार
बार बार
फिर ले आये आप
उल्लू का अखबार !
चर्चा के लिये बढ़िया लिंक्स,,,,,आभार
जवाब देंहटाएंसदा की तरह चर्चा मंच पर आना अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंअच्छी चर्चा
जवाब देंहटाएंबढिया चर्चा
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सजा है चर्चा मंच
जवाब देंहटाएंकलमदान को स्थान देने के लिए धन्यवाद ..
रहो सदा यूँ साजते, गुरुवर चर्चा मंच |
जवाब देंहटाएंस्वास्थ्य बना उत्तम रहे, विनवत पाठक पञ्च |
विनवत पाठक पञ्च, कष्ट न रंचमात्र हो |
सृजनशीलता ख़ास, प्रभावी गीत पात्र हो |
बढे सदा सम्मान, सफलता की सीढ़ी पर |
कृपादृष्टि हो सदा, आज की इस पीढ़ी पर ||
बढ़िया चर्चामंच...मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार !!
जवाब देंहटाएंहिन्दुस्तान को और आगे टूटने से बचाने के लिए भी अब एक जुटता ज़रूरी .बढ़िया पोस्ट .हिन्दुस्तान को वोटिस्तान बनने दो प्यारे ,हो जायेंगे वारे के न्यारे ,हो जा तू भी वोटबैंक ,छोड़ ज़हानत को ,निकल घर से बूथ तक पहुँच ,अब और कुछ मत सोच .
जवाब देंहटाएंram ram bhai
रविवार, 9 सितम्बर 2012
रैड वाइन कर सकती है ब्लड प्रेशर कम न हो इसमें एल्कोहल ज़रा भी तब .
रोचकता से परिपूर्ण चर्चा।
जवाब देंहटाएं