दोस्तों! चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ का नमस्कार! सोमवारीय चर्चामंच पर पेशे-ख़िदमत है आज की चर्चा का-
लिंक 1-
उमड़े मेघा (हाइकू) -दिलबाग विर्क
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लिंक 2-
किसी देश की युवा पीढ़ी उस देश की रीढ़ होती है -प्रेम सरोवर
सद्गुरु सदाफल देव -राजीव कुलश्रेष्ठ
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लिंक 4-
पाप नहीं कटता -देवेन्द्र पाण्डेय
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लिंक 5-
हाय री कैसी मौत है उसकी -दिव्या श्रीवास्तव ZEAL
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लिंक 6-
गलतियाँ गर करें, भूल जाया करो -अरुण कुमार निगम
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लिंक 7-
ख़ुशबू या महक नाम कोई भी हो आती केवल सुगंध ही है -पल्लवी सक्सेना
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लिंक 8-
भारतीय काव्यशास्त्र–124 -आचार्य परशुराम राय
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लिंक 9-
क्या हमें भूल गए तुम -निरंन्तर
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लिंक 10-
मैं कैसे ग़ज़ल कहूँ -इस्मत ज़ैदी
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लिंक 11-
उल्लओं की पंचायतें लगीं थी -डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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लिंक 12-
केयर ऑफ स्वात घाटी -मनीषा कुलश्रेष्ठ, प्रस्तोता डॉ. अनवर जमाल
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लिंक 13-
तीन क्षणिकाएं -राजेश कुमारी
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लिंक 14-
ज़िन्दगी, ज़िन्दगी की दवा -उदयवीर सिंह
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लिंक 15-
स्टिकर -सुशील
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लिंक 16-
गांधी जी की पहली जेल यात्रा : गांधी और गांधीवाद-131 -मनोज कुमार
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लिंक 17-
स्वास्थ्य सबके लिए : आह से आहा तक! -कुमार राधारमण
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लिंक 18-
सादा जीवन ऊँचा लक्ष्य -वीरू भाई
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लिंक 19-
खूंटी पर विचारधारा -रतन सिंह शेखावत
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आज के लिए इतना ही, फिर मिलने तक नमस्कार!
एक से बढ़के एक हाइकु लायें हैं आप -रूपक भी अभिनव हुई बारिश
जवाब देंहटाएंखिल उठी प्रकृति
जैसे नवोढा |
(-फिर गिरी बरसात ,
उधर बादल से ,
इधर नैनों से !----वीरुभाई )
ram ram bhai
सोमवार, 3 सितम्बर 2012
Protecting Your Vision from Diabetes Damage मधुमेह पुरानी पड़ जाने पर बीनाई को बचाए रखिये
Protecting Your Vision from Diabetes Damage
मधुमेह पुरानी पड़ जाने पर बीनाई को बचाए रखिये
?आखिर क्या ख़तरा हो सकता है मधुमेह से बीनाई को
* एक स्वस्थ व्यक्ति में अग्नाशय ग्रंथि (Pancreas) इतना इंसुलिन स्राव कर देती है जो खून में तैरती फ़ालतू शक्कर को रक्त प्रवाह से निकाल बाहर कर देती है और शरीर से भी बाहर चली जाती है यह फ़ालतू शक्कर (एक्स्ट्रा ब्लड सुगर ).
मधुमेह की अवस्था में अग्नाशय अपना काम ठीक से नहीं निभा पाता है लिहाजा फ़ालतू ,ज़रुरत से कहीं ज्यादा शक्कर खून में प्रवाहित होती रहती है .फलतया सामान्य खून के बरक्स खून गाढा हो जाता है .
अब जैसे -जैसे यह गाढा खून छोटी महीनतर रक्त वाहिकाओं तक पहुंचता है ,उन्हें क्षतिग्रस्त करता आगे बढ़ता है .नतीज़न इनसे रिसाव शुरु हो जाता है .
धरे रह जाते हैं ,दुनियां के मुक़द्दस पयाम
जवाब देंहटाएंख़ाली रह जाते हैं हाथ ,जब ख़फ़ा होती है -
ज़िन्दगी एक नशा होती है ,
चढ़ा रहे तो ठीक ,उतरते ही खफा होती है .
ज़िन्दगी के कई रंगों का रूओपक और अभिव्यंजना आपकी इस खूब -सूरत गजल में है .
सोमवार, 3 सितम्बर 2012
Protecting Your Vision from Diabetes Damage मधुमेह पुरानी पड़ जाने पर बीनाई को बचाए रखिये
Protecting Your Vision from Diabetes Damage
मधुमेह पुरानी पड़ जाने पर बीनाई को बचाए रखिये
?आखिर क्या ख़तरा हो सकता है मधुमेह से बीनाई को
* एक स्वस्थ व्यक्ति में अग्नाशय ग्रंथि (Pancreas) इतना इंसुलिन स्राव कर देती है जो खून में तैरती फ़ालतू शक्कर को रक्त प्रवाह से निकाल बाहर कर देती है और शरीर से भी बाहर चली जाती है यह फ़ालतू शक्कर (एक्स्ट्रा ब्लड सुगर ).
मधुमेह की अवस्था में अग्नाशय अपना काम ठीक से नहीं निभा पाता है लिहाजा फ़ालतू ,ज़रुरत से कहीं ज्यादा शक्कर खून में प्रवाहित होती रहती है .फलतया सामान्य खून के बरक्स खून गाढा हो जाता है .
अब जैसे -जैसे यह गाढा खून छोटी महीनतर रक्त वाहिकाओं तक पहुंचता है ,उन्हें क्षतिग्रस्त करता आगे बढ़ता है .नतीज़न इनसे रिसाव शुरु हो जाता है .
जवाब देंहटाएंसंग के शहर में , काँच का आशियाँ
है मेरा मशवरा , मत बनाया करो |
गलतियाँ देखना तो बुरी बात है
उँगलियाँ यूँ न सब पर उठाया करो |अब इससे आगे सीधी और साफ़ गजल क्या हो ?व्यंजना का सारल्य देखते ही बनता है .
गलतियाँ गर करें, भूल जाया करो -अरुण कुमार निगम
जवाब देंहटाएंसंग के शहर में , काँच का आशियाँ
है मेरा मशवरा , मत बनाया करो |
गलतियाँ देखना तो बुरी बात है
उँगलियाँ यूँ न सब पर उठाया करो |अब इससे आगे सीधी और साफ़ गजल क्या हो ?व्यंजना का सारल्य देखते ही बनता है .
गलतियाँ गर करें, भूल जाया करो -अरुण कुमार निगम/दबाके टिपण्णी आजकल सपिम में जा रहीं हैं .निकाल के इनको उबार लेना .
बहुत बढ़िया चर्चा की है आपने ग़ाफिल जी।
जवाब देंहटाएंसभी उत्कृष्ट लिंकों का चयन किया है।
जवाब देंहटाएंसमय अनमोल है इसका मूल्य निर्धारण नही(नहीं ) किया जा सकता। समय जो बीत गया सो बीत गया। लाखो(लाखों ) करोड़ो(करोड़ों ) रूपये खर्च करने पर भी बीता हुआ समय वापस नही आता।
सभी ब्लोगिया नाक वाले हैं लेकिन अनुनासिक और अनुस्वार का स्तेमाल बहुत कम लोग कर रहें हैं चन्द्र बिंदु न सही बिंदी लगाने में क्या कंजूसी भाई साहब ?
आज के समय मे(में) शत्रु और मित्र पकड़ में नही आते।
भारत बहुरंगी संस्कृतियों के इंद्रधनुषी सौदर्य(सौंदर्य ) से संपूर्ण विविधता में एकता को प्रतिष्ठित करने वाला देश है।
इस धरती में वह एक समय था जहां त्याग और बलिदान के एक नही(नहीं ) अनेक दृष्टांत ........
कारों के नए मॉडल, ये सारी चीजें भी हमें कोई ताकत नही(नहीं ) दे पाती। विकास के पथ पर दौड़ती नई पीढ़ी ताकत से अधिक पाने की लालच में जिंदगी की खुशी नही(नहीं ) समेट पा रही है। सब कुछ रहते हुए भी वे दुखी रहते हैं, कृत्रिम हसी(हंसी ) हसते(हँसते ) हैं एवं उधार की जिंदगी जीते हैं।
आज की शिक्षा ने नई पीढ़ी को संस्कार और समय किसी की समझ नही(नहीं ) दी है।
हो सकता है मेरा यह कथन किसी को अच्छा न लगे लेकिन इस सत्य से हम विमुख तो नही(नहीं ) हो सकते कि आज भी कुछ सामाजिक वर्जनाएं हमारे समक्ष प्राचीर बनकर खड़ी हैं।
भारतीय चेतन(चेतना ) में मनुष्य अपने समय से संवाद करता हुआ आने वाले समय को बेहतर बनाने की चेष्टा करता है। वह पीढ़ियों का चिंतन करता है। आने वाले समय को बेहतर बनाने के लिए सचेतन प्रयास करता है। हमें नई पीढ़ी को एक नई दिशा और दशा देनी होगी।
अच्छा विचार मंथन लेकिन तोहमत सारी नै पीढ़ी पर क्यों ?क्या समय को रोके रखा जा सकता है .काल का प्रवाह आगे की दिशा में है .मोह भंग हो चुका है इस (24x7) चौकन्नी पीढ़ी का .कौन से आदर्श हैं उसके सामने मुंबई "आदर्श " के सिवाय .
लिंक 2-
किसी देश की युवा पीढ़ी उस देश की रीढ़ होती है -प्रेम सरोवर
जवाब देंहटाएंगजल में व्यंजना का सारल्य देखते ही बनता है -
संग के शहर में , काँच का आशियाँ
है मेरा मशवरा , मत बनाया करो |
गलतियाँ देखना तो बुरी बात है
उँगलियाँ यूँ न सब पर उठाया करो |अब इससे सीधा साफ़ रूप विधान पैरहन क्या होगा गजल का ?_______________
लिंक 6-
गलतियाँ गर करें, भूल जाया करो -अरुण कुमार निगम
बढ़िया चर्चा
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर चर्चा । शानदार प्रस्तुतिकरण ।
जवाब देंहटाएंआभार गाफ़िल जी
शिक्षा पद्धति तो पहले भी ऐसी ही थी पर अब ग्रहण करने वालों की ,संस्कार विहीन लोगों की दूकान लगा गयी है |वे नातो गुरु की महिमा जानते हैं ना ही बड़े छोटे का लिहाज |
जवाब देंहटाएंअच्छी चर्चा |
आशा
चर्चा मंच में मेरी पोस्ट को शामिल करने के लिए धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंलिंक 21-
जवाब देंहटाएंग़ाफ़िल की अमानत
बहुत सुंदर !
वैसे भी
जमाने के नखरे
जो उठा ले जाता है
जमाना बस उसी को तो
अपने सर पर बैठाता है !
लिंक 20-
जवाब देंहटाएं“लखनऊ सम्मान समारोह के कुछ अनछुए पहलू” (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
आसमान को अगर बाँध कर
बहुत छोटा कर दिया जाये
तारे देखते रहें सिकुड़ते हुऎ
आसमान को और चुप हो जायें
चाँद के ये बात अगर समझ
में ही नहीं आये
कौन किससे पूछने फिर जाये
आसमान भी अगर सो जाये !
लिंक 19-
जवाब देंहटाएंखूंटी पर विचारधारा -रतन सिंह शेखावत
बहुत सुंदर लेख !
एक बात मेरी समझ में भी बहुत कम आती है
बाजार शहर स्कूल आफिस और घर हो चाहे
ज्यादातर जनता काँग्रेसी संस्कृ्ति अपनाती है
किसी भी संघठन से रखती हो कोई वास्ता
अपने स्वार्थ पूरे करती है किसी भी तरह
ये बात तो समझ में आ ही जाती है
पर गाली बस काँग्रेस ही क्यों खाती है !
लिंक 18-
जवाब देंहटाएंसादा जीवन ऊँचा लक्ष्य -वीरू भाई
बहुत सुंदर !
पड़ने में तो मजा आता है
पर खाते समय भूला जाता है !
लिंक 17-
जवाब देंहटाएंस्वास्थ्य सबके लिए : आह से आहा तक! -कुमार राधारमण
बहुत उपयोगी जानकारी
इससे पहले कमर का
कमरा एक हो जाये
कैसे संभलेगा फिर
थोड़ा सा ध्यान दिया जाये !
लिंक 16-
जवाब देंहटाएंगांधी जी की पहली जेल यात्रा : गांधी और गांधीवाद-131 -मनोज कुमार
बहुत सुंदर !
फोटो भी लाजवाब !
लिंक 14-
जवाब देंहटाएंज़िन्दगी, ज़िन्दगी की दवा -उदयवीर सिंह
बहुत सुंदर पहली बात
दूसरी बात मजा आ गया
देख कर के
कोई मेरी टिप्पणी उदय जी
के ब्लाग में घुसा ही गया
बहुत दिनों से नहीं जा रही थी
मेरी मेल में लौट आ रही थी !
लिंक 13-
जवाब देंहटाएंतीन क्षणिकाएं -राजेश कुमारी
बेहतरीन एक से बढ़कर एक !
बहुत सुन्दर चर्चा सजाई है चन्द्र भूषण गाफिल जी मेरी रचना को शामिल करने के लिए हार्दिक आभार
जवाब देंहटाएंNice.
जवाब देंहटाएंनख्ले जां को ख़ूं पिलाया उम्र भर
शाख़े हस्ती आज भी जाने क्यूं ज़र्द है
हिंदी ब्लॉगिंग की मुख्यधारा को संवारने के लिए बहुत सुन्दर चर्चा सजाई है.
शुक्रिया।
जवाब देंहटाएंलिंक 15-
स्टिकर -सुशील पर देवेन्द्र जी की टिप्पणी :
देवेन्द्र पाण्डेय
Monday, September 03, 2012 9:33:00 AM
बहुत अच्छी लगी कविता सर जी।
आप इतनी जल्दी-जल्दी लगभग रोज ही एक पोस्ट डालते हैं यह भी कमाल है। लेकिन यह कविता औरों से श्रेष्ठ है। मुझे लगता है कि आप यदि थोड़ा ठहर कर कविता खुद संपादित करके डालें, थोड़ा संक्षिप्त करें तो गज़ब की कविताएँ आ सकती हैं आपके ब्लॉग से। गलत लगे तो भी अन्यथा न लें मन में जो बात आई सो लिख दी।
अरे वाह ! दिल से आभार ! एक बहुत अच्छी सलाह आपने दी है! मैं बस ऎसे ही लिख देता हूँ ! कहीं कुछ चुभा नहीं कि कह देता हूँ ! आप पहले हैं जिसने इतनी अपनत्व भरी सलाह दी है ! आभारी हूँ ! पता नहीं हो पायेगा या नहीं फिर भी कोशिश कर के देखता हूँ ! यहाँ यही तो कमी है सब वाह वाह कर देते हैं कोई राय मशवरा देता ही नहीं है और हाँ कहीं हमें भी लगता है कुछ ऎसा हम भी नहीं कह पाते हैं !
हटाएंचंद्र भूषण ग़ाफ़िल जी इतने सारे लिंक्स और इतनी अच्छी प्रस्तुति के लिये बधाई
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को शामिल करने के लिये बहुत बहुत शुक्रिया
लिंक 12-
जवाब देंहटाएंकेयर ऑफ स्वात घाटी -मनीषा कुलश्रेष्ठ, प्रस्तोता डॉ. अनवर जमाल
शानदार !
इससे अच्छा और हो तो बताइये
मुझे यही सूझ रहा है !
लिंक 11-
जवाब देंहटाएंउल्लओं की पंचायतें लगीं थी -डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
लाजवाब !
वैसे पंचायत मैने नहीं बुलवाई थी
मेरे अखबार में खबर भी नहीं आई थी !
लिंक 1-
जवाब देंहटाएंउमड़े मेघा (हाइकू) -दिलबाग विर्क
बहुत सुंदर !
जवाब देंहटाएंलिंक 4-
पाप नहीं कटता -देवेन्द्र पाण्डेय
अंजाने में हो गया होता है जो
हल्का होता है धुल जाता है !
लिंक 5-
जवाब देंहटाएंहाय री कैसी मौत है उसकी -दिव्या श्रीवास्तव ZEAL
शादी होने के बाद भी कुछ
ऎसा ही हो जाता है
अच्छा भला आदमी होता है
संत बन जाता है !
लिंक 6-
जवाब देंहटाएंगलतियाँ गर करें, भूल जाया करो -अरुण कुमार निगम
अपनी गलतियां वैसे भी हम भूल जाते हैं
बस उसकी गलतियाँ ही तो याद दिलाते हैं !
बहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति ..
जवाब देंहटाएंआभार
बेहतरीन चर्चा ,मिश्र जी ,जरुरत है आप जैसे निष्ठावान साहित्यकारों की .चर्चा मंच के लिए .....बधाईयाँ जी ...
जवाब देंहटाएंआभार...............
जवाब देंहटाएं"उमड़े मेघा"- हाइकू,पढ़ नाचा मन मोर
जवाब देंहटाएंमौसम बरखा का बड़ा,सचमुच है चितचोर
सचमुच है चितचोर,विर्क जी कुशल चितेरे
पाँच सात फिर पाँच, वर्ण की छटा बिखेरे
भाव बदरिया हृदय-गगन में उमड़े घुमड़े
पढ़ नाचा मन मोर,हाइकू -"मेघा उमड़े" ||
उल्लओं की पंचायतें लगीं थी----------
जवाब देंहटाएंआँधी-सी इक चली थी,यूँ धूल उड़ रही थी
थी किरकिरी मिठाई, जो प्रेम में पगी थी |
चाहत-वफा के पत्ते , शाखों से झर रहे थे
रिश्तों की गर्म जोशी,हिमखण्ड-सी गली थी |
जवाब देंहटाएंमैं कैसे ग़ज़ल कहूँ -इस्मत ज़ैदी
लखनऊ में आपको रूबरू सुनने का सु अवसर मिला,इस मार्मिक गीत को पढ़ कर 27 अगस्त की यादें ताजा हो गईं.
ये उजड़ने- बसने का सिलसिला
रुका कब ये वक़्त का काफिला
कहीं दिल जला,कहीं गुल खिला
हर रूह को है हिला गया
जवाब देंहटाएंगाफिल की अमानत--------------
कभी ख़ुद की जानिब भी आया करो!
आईना देखकर मुस्कुराया करो!!
आईना तोड़ देने से क्या फायदा
कभी सच का जहर पी भी जाया करो !!
मज़े ख़ूब होते हैं नखरों में ग़ाफ़िल!
जमाने के नखरे उठाया करो!!
न खरे आप हैं, न खरे हम सनम
यूँ न नखरे हमें अब दिखाया करो !!!
खूबसूरत गज़ल के लिए दिली दाद कबूल करें.....
Good work.
जवाब देंहटाएंWill check these links now.
अद्भुत चर्चा मंच शाश्त्री जी आभार |
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