आज की चर्चा में आपका स्वागत है
असीम त्रिवेदी का समर्थन हर और से हो रहा है , सबकी अपनी अपनी राय हो सकती है लेकिन यहाँ तक मेरा निजी विचार है राष्ट्रिय प्रतीकों से छेड़छाड नहीं होनी चाहिए । भ्रष्ट देश के नेता हो सकते हैं लेकिन देश के प्रतीकों का उनमें क्या दोष ? अगर हम देश के प्रतीकों को इस रूप में प्रस्तुत करेंगे तो देश के दुश्मनों को देश को अपमानित करने कैसे रोकेंगे ? ये मेरे विचार हैं, हो सकता है आप मेरी बजाए ये भारत है मेरे दोस्त ब्लॉग से भी सहमत हों, लेकिन मैं चाहता हूँ अन्धानुकरण करने का बजाए हमें विचार अवश्य होना चाहिए ।
मैंने माँ तुम्हें पुकारा
कटारमल सूर्य मन्दिर
लोकतंत्र
अनकहे शब्द
भरोसे के एहसासात
आह !
असीम त्रिवेदी का समर्थन हर और से हो रहा है , सबकी अपनी अपनी राय हो सकती है लेकिन यहाँ तक मेरा निजी विचार है राष्ट्रिय प्रतीकों से छेड़छाड नहीं होनी चाहिए । भ्रष्ट देश के नेता हो सकते हैं लेकिन देश के प्रतीकों का उनमें क्या दोष ? अगर हम देश के प्रतीकों को इस रूप में प्रस्तुत करेंगे तो देश के दुश्मनों को देश को अपमानित करने कैसे रोकेंगे ? ये मेरे विचार हैं, हो सकता है आप मेरी बजाए ये भारत है मेरे दोस्त ब्लॉग से भी सहमत हों, लेकिन मैं चाहता हूँ अन्धानुकरण करने का बजाए हमें विचार अवश्य होना चाहिए ।
मैंने माँ तुम्हें पुकारा
कटारमल सूर्य मन्दिर
लोकतंत्र
अनकहे शब्द
भरोसे के एहसासात
आह !
तू बोलना छोड़ दे
चुप्प-------------------
बने नहीं न्यूज
उम्र कम, मगर मरते नहीं कुछ रिश्ते
कोयला !!!!!!!!!!!!!!!
हर मुमताज को ताज मिलता रहे
चित्रकला
चित्रकार और कवि
एक ग़ज़ल तेरे नाम
डार्क सर्कल से छुटकारा
चाय का दूसरा कप
और ये है शायद पहला कप
कस्तूरी का सफर
डायरी के पन्ने
***
आज के लिए बस इतना ही
धन्यवाद
दिलबाग विर्क
************************
दिलबाग विर्क जी!
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच के 1001वें अंक की शुभकामनाएँ!
सभी लिंक बहुत बढ़िया हैं आज की चर्चा में!
आभार!
भारत है मेरे दोस्त
जवाब देंहटाएंहाँ !यह भारत है जहां मज़े से लोग वीरसावरकर को भगोड़ा और अंग्रेजों का माफ़ीखोर पिठ्ठू बताते हैं और आखिर तक इंदिराजी के पाद सूंघते रहें हैं.यही असीमजी को कटहरे में ले गएँ हैं जिन्होंने १९६२ के भारत चीन युद्ध को भारत की सीमा का अतिक्रमण करने वाला हमलावर घोषित करने से इनकार कर दिया था .आज़ादी के वक्त भारत का तिरंगा स्वीकार करने से मना कर दिया था इन रक्त रंगी वक्र मुखी ,दुर्मुखों ने .
राजनीति के ये बहरूपिये ये बौद्धिक भकुवे कल तक जिस सोवियत संघ का पिठ्ठू बने लाल सलाम ठोकते रहे अब तो वह साम्राज्य भी खंडित है .लेकिन वही बात हैं न बान हारे की बान न जाए ,कुत्ता मूते टांग उठाय .
असीम त्रिवेदी और यदि उनकी भारत धर्मी विचारधारा के लोग देशद्रोही हैं तो उस सूची में मेरा भी नामांकन होना चाहिए .
वीरुभाई ,४३,३०९ ,सिल्वरवुड ड्राइव ,कैंटन ,मिशिगन ,४८,१८८ ,यू एस ए .
राष्ट्रीय प्रतीकों से छेड़छाड क्या उचित है ? ( चर्चा - 1001 )
आज की चर्चा में आपका स्वागत है
असीम त्रिवेदी का समर्थन हर और से हो रहा है , सबकी अपनी अपनी राय हो सकती है लेकिन यहाँ तक मेरा निजी विचार है राष्ट्रिय प्रतीकों से छेड़छाड नहीं होनी चाहिए । भ्रष्ट देश के नेता हो सकते हैं लेकिन देश के प्रतीकों का उनमें क्या दोष ? अगर हम देश के प्रतीकों को इस रूप में प्रस्तुत करेंगे तो देश के दुश्मनों को देश को अपमानित करने कैसे रोकेंगे ? ये मेरे विचार हैं, हो सकता है आप मेरी बजाए ये भारत है मेरे दोस्त ब्लॉग से भी सहमत हों, लेकिन मैं चाहता हूँ अन्धानुकरण करने का बजाए हमें विचार अवश्य होना चाहिए ।
अपने मौन सिंह की बात तो नहीं कर रहे आप .वह बे चारा तो बोलना चाहता भी है पर आवाज़ ही नहीं निकलती .क्या क्या तो नाम रख दिए लोगों ने बे -चारे के "काग -भगोड़ा (स्केयर बार /क्रो बार ),सोनियावी /सोनी का पूडल /गूगल का डूडल .
जवाब देंहटाएंअपने मौन सिंह की बात तो नहीं कर रहे आप .वह बे चारा तो बोलना चाहता भी है पर आवाज़ ही नहीं निकलती .क्या क्या तो नाम रख दिए लोगों ने बे -चारे के "काग -भगोड़ा (स्केयर बार /क्रो बार ),सोनियावी /सोनी का पूडल /गूगल का डूडल .
Wednesday, September 12, 2012
हूँ मैं चुप तू भी बोलना छोड़ दे
नम नैनो में गम, घोलना छोड़ दे,
हूँ मैं चुप तू भी, बोलना छोड़ दे,
दोस्त बहुत फूंकी हुई गजलें कह रहे हो -एक शैर आपके नाम -
कहता है फूंक फूंक ,गजलें ,शायर दुनिया का जला हुआ ,
उसके जैसा चेहरा देखा एक पीला तोता हरा हुआ ,
आंसू सूखा कहकहा हुआ ,
पानी सूखा तो हवा हुआ .
ram ram bhai
बृहस्पतिवार, 13 सितम्बर 2012
हाँ !यह भारत है
ram ram bhai
बृहस्पतिवार, 13 सितम्बर 2012
हाँ !यह भारत है
हम दोनों एक दुसरे(दूसरे ) को पत्र लिखकर बातें करते हैं. रवि बहुत प्यारी प्यारी भाषा में मुझे पत्र लिखता है-
जवाब देंहटाएंदूसरे
मेरे पिता ने मेरी शादी मे(में ) यथासंभव स्त्रीधन
में
. गृहस्थी की गाड़ी सामान्य निम्न मध्यवर्ग की तरह खींचती(खिंचती) जा रही है. मैं अकेले में बैठ कर अपने दुस्साहस और भविष्य पर चिन्तन करती रहती हूँ कि ‘प्यार’ के जूनून (जुनून,जुनूँ) में मैंने बहुत कुछ खोया है, विशेषकर माता-पिता का आशिर्वादपूर्ण (आशीर्वाद )पूर्ण हाथ और भाई-बहन का अप्रतिम प्यार, जिसके लिए मैं तरसती हूँ और तड़पती भी हूँ.
ज़माने में किसी को मुकम्मिल जहां नहीं मिलता ,किसी को ज़मीं तो किसी को आसमां नहीं मिलता .
नै ज़मीं की तलाश है पुरानी परम्पराओं ,रिवाजों को ....नै कसक है यह सहजीवन का मेला है "लिविंग टुगेदर" खेला है,सब किस्मत का रेला है ....चयन का यहाँ झमेला है .
आप ब्लॉग पे तशरीफ़ लाइए मान बढ़ाया अपनी टिपण्णी से शुक्रिया ज़नाब का .शब्बा खैर (वहां रात ही होगी बजे होंगे रात के पौने दस ,यहाँ केंटन (मिशिगन )में दिन के सवा बारह बजें हैं .
डायरी के पन्ने
ram ram bhai
बृहस्पतिवार, 13 सितम्बर 2012
हाँ !यह भारत है
हमने तो पहले ही इनका नाम रख दिया था काग भगोड़ा पहले इन्हें कोई अन्न भी कहे तो "अन्ना " सुनाई देता था ,ये भाग खड़े होते थे ,अब इन्हें "कोला "(कोला पेय )भी कोयला सुनाई देता है .क्या कहने हैं लेकिन आपकी चिंता भी है कोई आपका असीम त्रिवेदी न बना दे .
जवाब देंहटाएंकोयला !!!!!!!!!!!!!!!
ram ram bhai
बृहस्पतिवार, 13 सितम्बर 2012
हाँ !यह भारत है
डार्क सर्किल पर विस्तृत जानकारी उपलब्ध करवाई है दोस्त ,बचावी चिकित्सा भी .
जवाब देंहटाएंram ram bhai
बृहस्पतिवार, 13 सितम्बर 2012
हाँ !यह भारत है
प्रीत का दीपक है वो, मै दीप का अभिमान हूँ ,...बहुत कोमल भावों की रागात्मक रचना बीन वो मेरी है मैं बीन की झंकार हूँ .,राग मैं तेरा हूँ और गायन - हार भी .
जवाब देंहटाएंप्रीत का दीपक है वो, मै दीप का अभिमान हूँ ,...बहुत कोमल भावों की रागात्मक रचना बीन वो मेरी है मैं बीन की झंकार हूँ .,राग मैं तेरा हूँ और गायन - हार भी .
एक ग़ज़ल तेरे नाम
ram ram bhai
बृहस्पतिवार, 13 सितम्बर 2012
हाँ !यह भारत है
Thanks for liking ...
हटाएंचित्रकार का चित्र / कवि की कविता
जवाब देंहटाएंऔर चित्रकार का
एक चित्र कभी कभी
यूँ बिना बात के
पहेली बन जाता है ! -और एबस्ट्रेक्ट पोइट्री और एबस्ट्रेक्ट आर्ट कहाता है .
चित्रकार और कवि
ram ram bhai
बृहस्पतिवार, 13 सितम्बर 2012
हाँ !यह भारत है
चंदा गँवाए नहीं हैं स्विस बैंक में रखाए हैं ,क्यों न हो साख /विश्वास
जवाब देंहटाएं.
लोकतंत्र
ram ram bhai
बृहस्पतिवार, 13 सितम्बर 2012
हाँ !यह भारत है
बहुत ही सधे सूत्र..
जवाब देंहटाएंबढ़िया सैर कराई ,भौगोलिक अवस्थिति समझाई कटारमल सौर्य मंदिर की .शुक्रिया .
जवाब देंहटाएंram ram bhai
बृहस्पतिवार, 13 सितम्बर 2012
हाँ !यह भारत है
बहुत बढ़िया चित्रांकित प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसार्थक चर्चा प्रस्तुति हेतु आभार
खूबसूरत चर्चामच सजा है आज
जवाब देंहटाएंधन्यवाद जी धन्यवाद !!
ये भारत है मेरे दोस्त पर :
अपना करें देश अपमानित
फिर भी होते हैं सम्मानित
चिन्ह दौड़ता है बस छपकर
घोटालों पर घोटालें भर भर
लिखने पर पाबंदी कर कर
मनमानी करते सारे मिलकर!
मैंने माँ तुम्हें पुकारा
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना !
पर जो दिख रहा है
माँ किस को पुकारे?
कटारमल सूर्य मन्दिर:
जवाब देंहटाएंअब गाडी़ सड़क भी पहुँचने ही वाली है तीन किलोमीटर नहीं चलना पडे़गा!
लोकतंत्र
जवाब देंहटाएंलेन देन पर भरोसा बना रहे !
अनकहे शब्द
जवाब देंहटाएंसुंदर !!
शब्द कुछ फिर भी रह ही गए .......
अनकहे अनसुने ..
अनगढ़े अनपढ़े से ....
राष्ट्रीय प्रतीकों से छेड़छाड क्या उचित है ? --- बिलकुल उचित नहीं ..
जवाब देंहटाएंएक दम सत्य तथ्य है कि हम लोग बड़ी तेजी से बिना सम्यक सोच-विचारे अपनी जाति -वर्ग ( पत्रकार , ब्लोगर , लेखक तथा तथाकथित प्रगतिशील विचारक आदि एक ही जाति के हैं और यह नवीन जाति-व्यवस्था का विकृत रूप बढता ही जा रहा है ) का पक्ष लेने लगते हैं |
---- सचमुच ही देश-राष्ट्र व नेता-मंत्री में अंतर होता है ...देश समष्टि है,शाश्वत है....नेता आदि व्यक्ति, वे बदलते रहते हैं, वे भ्रष्ट हो सकते हैं देश नहीं ..अतः राष्ट्रीय प्रतीकों से छेड़-छाड स्पष्टतया अपराध है चाहे वह देश-द्रोह की श्रेणी में न आता हो.. यदि किसी ने भी ऐसा कार्टून बनाया है तो निश्चय ही वे अपराध की सज़ा के हकदार हैं ....साहित्य व कला का भी अपना एक स्वयं का शिष्टाचार होता है....
चित्रण माँ से रेप का, जाए रविकर झेंप |
हटाएंजंग लंग गौरांग तक, गजनी दुश्मन खेंप |
गजनी दुश्मन खेंप, बाल न बांका होवे |
देख दुर्दशा किन्तु, वही भारत माँ रोवे |
अगर गुलामी काल, मानते लाज लुटी है |
नाजायज औलाद, वही तो आज जुटी है ||
खेल आस्था से करे, हमको नही क़ुबूल |
नादानियां असीम हैं, शैतानी मकबूल |
शैतानी मकबूल, खींच नंगी तस्वीरें |
झोंक आँख में धूल, करे लम्बी तकरीरें |
माँ का पावन रूप, करे कूँची से मैला |
सत्ता तो मक्कार, चीर के कर दे चैला ||
(1)
हटाएंसीमा से बाहर गए, कार्टूनिस्ट असीम |
झंडा संसद सिंह बने, बेमतलब में थीम |
बेमतलब में थीम, यहाँ आजम की डाइन |
कितनी लगे निरीह, नहीं अच्छे ये साइन |
अभिव्यक्ति की धार, भोथरी हो ना जाये |
खींचो लक्ष्मण रेख, स्वयं अनुशासन लाये ||
(2)
बड़ा वाकया मार्मिक, संवेदना असीम |
व्यंग विधा इक आग है, चढ़ा करेला नीम |
चढ़ा करेला नीम, बहुत अफसोसनाक है |
अगला कैसा चित्र, करो क्या देश ख़ाक है ?
सुधरे न हालात, हाथ में फिर क्या लोगे ?
गैंगरेप के बाद, चितेरे चढ़ बैठोगे ??
आदरणीय रविकर जी
हटाएंआपके द्वारा उद्धृत कुंडली के माध्यम से आपने घंटों लंबी तकरीर की बातें चंद लाईनों के माध्यम में बयाँ कर दी, आपने जो भी कहा मै आपसे पूर्ण रूप से सहमत हूँ हमारे धार्मिक
देवी देवता के चित्रों के साथ खिलवाड़ यदि मेरा अपना भी करे तो मै बर्दास्त नहीं करूँगा
जहाँ राष्ट्रिय प्रतिक की बात आती है तो यह भी मेरे मानसिक द्वन्द पर निर्भर है की मै
कहाँ तक उन्हें राष्ट्रीयता के अंतर्गत स्वीकार करता हूँ आज तिरंगा हमारे राष्ट्रिय ध्वज का प्रतिक है परन्तु कोई राजनैतिक दल तिरंगे में कोई और निशान साध उसे अपनी पार्टी कि पहचान बना ले इसकी स्वीकृति नहीं दी जानी चाहिए थी
स्वतन्त्रता की परिभाषा क्या है इस विषय पर बाल के खाल ......निकाले जा सकते है
मै ..या कोई और जो भी विचार करेगा वह अपने मन ह्रदय से उठती स्वयं की राय प्रस्तुत करेगा उसमें समानता का कथन बेमानी होगा आदरणीय रविकर जी ने बहुत ही उन्नत ढंग से
जवाब दिया है मै उनका आभार व्यक्त करता हूँ
भरोसे के एहसासात
जवाब देंहटाएंखूबसूरत !
कुछ पौंधे
प्यार के
उग जाते हैं
बिना खाद
हवा पानी के
विश्वास की
धरती पर !
आह !!:
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना :
वो भागती है
अपने आप से भी
किसी को खबर
भी नहीं होती
भाग जाती है जब
बस एक खबर
हो जाती है !!
सूत्रों का सुंदर संकलन,,,
जवाब देंहटाएंआदरणीय दिलबाग जी बेहद सुन्दर चर्चा सजाई है आपने, मेरी रचना को स्थान दिया आपको तहे दिल से शुक्रिया.
जवाब देंहटाएंभ्रष्ट तंत्र में जहाँ भ्रष्ट नेता अपने कृत्यों से राष्ट्र भक्त जनमानस इतना अधिक कुंठित कर रहे है कि उनपर कटाक्ष करने के लिए कार्टून बनाते समय आप खोने की स्थिति नहीं आणि चाहिए ..क्योंकि ऐसे भ्रष्ट लोगों और ब्यवस्था से बहुत ऊपर हैं हमारे राष्ट्रीय चिन्ह एवं प्रतीक इनसे से छेड छाड़ अनुचित है ......चाहे अमर जवान ज्योति का मसला जहां लात मार कर जवान ज्योति स्तंभ को गिराया हो या अशोक चिन्ह का जहाँ सत्यमेव जयते के भावों को परिवर्तित कर प्रदर्शित किया गया .....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर चर्चा सजाई है आपने दिलबाग जी..
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा मंच सजाया है।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन लिंक्स ... लिए बढिया चर्चा ...आभार
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सूत्र अच्छी चर्चा दिलबाग जी बधाई
जवाब देंहटाएंतू बोलना छोड़ दे
जवाब देंहटाएंवाह भाई क्या नल लेके आये हैं !!
अश्कों का नल हो जिसके पास
उसे क्या कमी है
भेजो तुरंत रेगिस्तान में
जहाँ चाहिये होती कुछ नमी है !!!
डायरी के पन्ने
जवाब देंहटाएंबहुत खूब !
अब हिट ऎंड ट्रायल में यही होता है
इधर होता है पूरा या उधर होता है !
उम्र कम, मगर मरते नहीं कुछ रिश्ते
जवाब देंहटाएंबहुत खूब !
कुछ रिश्ते बस
मनमोहन हो जाते है
कितना भी छेड़ लो
जबान नहीं चलाते हैं !
दिलबाग विर्क
जवाब देंहटाएंबहुत ही खूबसूरत !!
आज के इस चर्चा मंच के लिए दिलबाग विर्क जी को हार्दिक बधाई
जवाब देंहटाएंविशेष रूप से आदरणीय वीरेंद्र कुमार शर्मा जी का आभार जिन्होंने अपनी बात को
बड़ी बेबाकी से कहा उनकी समस्त टिप्पणी तारीफ के काबिल है
सुशील जी का अवलोकन भी जानदार है
हार्दिक बधाई एवं आभार