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शनिवार, सितंबर 22, 2012

“ऐसा भारत सजाइए” (चर्चा मंच-1010)

मित्रों!
देखते ही देखते शनिवार आ गया और हम भी आ गये आपके लिए चर्चामंच का नया अंक लेकर!
देखिए मेरी पसंद के कुछ लिंक!
"धरती को खुशहाल बनाओ"

फसल उगाना जिम्मेदारी।
करो खेत की पहरेदारी।।
पौध लगाओ, अन्न उगाओ।
धरती को खुशहाल बनाओ।।
झीलें है कि गाती- मुस्कुराती स्त्रियाँ .....

सिक्के के दो पहलूओं की ही तरह  एक ही झील एक साथ अनगिनत विचार स्फुरित करती है . कभी स्वयं परेशान हैरान त्रासदी तो कभी झिलमिलाती खुशनुमा आईने सी , जैसे दृष्टि वैसे सृष्टि- सी ...  जिस दृष्टि ने निहारा झील को या कभी ठहरी तो कभी लहरदार झील की आकृतियों के बीच  अपने प्रतिबिम्ब को, अपनी स्वयं की दृष्टि-सा ही दृश्यमान हो उठता है दृश्य….
गीत मेरे ........
"दश पुत्र समां कन्या, यस्या शीलवती: सुता "
 ज़ख्म…जो फूलों ने दिये
"दश पुत्र समां कन्या, यस्या शीलवती: सुता "  कितना हास्यास्पद लगता है ना  आज के परिप्रेक्ष्य में ये कथन  दोषी ठहराते हो धर्मग्रंथों को अर्थ के अनर्थ तुम करते हो  नारी को अभिशापित कहते हो दीन हीन बतलाते हो मगर कभी झांकना ग्रंथों की गहराइयों में समझना उनके अर्थों को तो समझ आ जायेगा नारी का हर युग में किया गया सम्मान ये तो कुछ जड़वादी सो ...

एक भैंस की तस्वीर ने ब्लोगर बना दिया
HINDI KAVITAYEN ,AAPKE VICHAAR
मेरी बुक ह्रदय के उद्दगार के विमोचन के समय मुझसे किसी ने सवाल किया था कि.. वास्तविकता कुछ और है बहुत रोचक घटना है मेरी ब्लोगिंग के पीछे बहुत दिनों से आप सब से शेयर करना चाहती थी सो आज आज सोचा कुछ अलग लिखूं

ऐसा भारत सजाइए
*कवित्त* छंद (वार्णिक छंद)-वर्ण क्रम ८+८+८+७=३१ऐसा भारत सजाइए *** इस देश के निवासी,बनों अ-विनाशी यहाँ, भारती की आन और,शान को बढ़ाइये|
 जय गणेश देवा

तराने सुहाने
गणेशोत्सव के उपलक्ष्य में आज सुनिये यह मधुर गणपति वन्दना
भारत' बंद या 'दिमाग' बंद ?
.*'भा*रत बंद' अब एक मजाक से ज्यादा कुछ नहीं रहा.जो भी संगठन या पार्टी, जब भी चाहे भारत बंद की घोषणा कर देती है,जबकि इसका परिणाम शून्य...
शंख-नाद(एक ओज गुणीय काव्य)-(र)-चलो बचाएं देश को !! (रूपक-गीत) (२) समाधान (!! आओ बचा लें देश को !!)
कविता के भंवर में...! - आज सुबह जब हम बालकनी के कोने में कुर्सी पर बैठे हुए सोच में निमग्न थे, तभी देखा कुछ शब्द कतारबद्ध चले जा रहे थे उनमें से कुछ के कान उमेंठ कर उठाया लय में ...
बड़ा नाम
एक समय की बात है एक वन में हाथियों का एक झुंड रहता था। उस झुंड का सरदार चतुर्दंत नामक एक विशाल, पराक्रमी, गंभीर व समझदार हाथी था।सब उसी की छत्र-छाया में…
बबन पाण्डेय की गंभीर कविताएं
विपक्ष  ये कौन है जो हर बात पर हल्ला करता है हर बात पर चीखता-चिल्लाता है
सरकार के हर फैसले पर क्या चुप रहना उसकी नियति में नहीं ?
क्या पाकिस्तान में हिंदुओं का कोई मां बाप नहीं....  हरियाणा में पाकिस्तान से आये कुछ परिवारों के लोगों को गृह मंत्रालय भारतीय नागरिकता देने के लिए विचार कर रहा है.....
फालोअर्स और ब्लोगिंग
मेरी पिछली पोस्ट  'हनुमान लीला भाग-५'  में  प्रेम सरोवर जी और डॉ. टी एस दराल जी  ने मुझे  विषयान्तर  और विषय में विविधता लाने की सलाह दी है. मुझे लेखन का अधिक अभ्यास नही है.अभी तक जो विषय मुझे दिल से  प्रिय है, उसी पर मैंने अपनी सोच आप सभी सुधि जनों के समक्ष रक्खी और आप सुधि जनों ने  उसका स्वागत  ही नही किया बल्कि सुन्दर टिप्पणियों से  मेरा भरपूर उत्साहवर्धन भी किया है . 'हनुमान लीला' की अगली कड़ी आपके समक्ष प्रस्तुत करने से पहले,मेरा विचार है कि इस बार  कुछ विषयान्तर कर लिया जाये .
भैया-बहना बांधते, मोहन रक्षा-सूत्र-
दीदी-दादा तानते, कुर्सी वो मजबूत ।
भैया-बहना बांधते, मोहन रक्षा-सूत्र ।
भगवान् राम की सहोदरा (बहन) : भगवती शांता परम-16
शांता बिटिया वेद में, रही पूर्णत: दक्ष |
शिल्प-कला में भी निपुण, मंत्री के समकक्ष ||

उपवन में बैठी करें, राजा संग विचार |
अंगदेश को किस तरह, पूजे यह संसार ||

'आकाश ..'
प्रियंकाभिलाषी..
... "विषम परिस्थिति क्या गिरायेगी मनोबल मेरा.. रख दूँ कदम हौसला-भर, वो ही आकाश मेरा..!!"

मन कहता सब कुछ छोड़ चलें
Kashish - My Poetry
मन कहता सब कुछ छोड़ चलें, अनजान डगर पर जा निकलें…

उन बेवफाओं के किए क्या दिल लगाना छोड़ दे ?
parwaz परवाज़
जो छोड़कर जाते हैं अपने इश्क को मझधार में……

ये सब वक्‍त की बाते है.....
गिला किससे करूँ ,फरियाद भी कोई सुनता नही
हूँ वक्त का, मुरझाया फूल ,जिसे कोई चुनता नही |
--अकेला 

ये  वक्‍त भी क्या-क्या रंग दिखाता है
सपने दिखला मन को बहलाता है
क्यों ये आज गीत पुराना
बार-बार मेरे लबो पर आता है..
हम कौन है ?
 सिरफिरा-आजाद पंछी
हम कौन है ? वैसे तो हम मात्र एक जीव के कुछ भी नहीं है. लेकिन इस मृत्युलोक (दुनियाँ) में हर एक मनुष्य की उसके नाम और काम से एक पहचान रखी गई है. हम भी एक तुच्छ से जीव मात्र है. लेकिन फिर भी हमारी एक पहचान है. जिसके बारे में मेरे कुछ दोस्त अक्सर मेरी प्रोफाइल की इन्फो देखें बिना ऐसी बातें पूछते रहते हैं. जो मैंने पहले से फेसबुक/ ऑरकुट/ गूगल पर ...
आवश्यकता है एक " पोस्टर ब्वाय " की !
Source: आधा सच...
देश के हालात और देश में चलने वाली हर गतिविधियों पर मैने हमेशा ही अपनी बेबाक राय रखी है। कभी इस बात की चिंता नहीं की कि कोई मुझे क्या बता रहा है। हालांकि मैं देख रहा हूं कि लोग मुझे जाने बगैर ही मेरी तस्वीर बनाने लगे। इसमें किसी ने मुझे दिग्गी के खानदान का बताया,   किसी ने संघी कहा, तो कुछ ने वामपंथी का ठप्पा लगा दिया। हां बिल्कुल ठीक समझ रहे हैं ..
 पढ़ना था मुझे
ई. प्रदीप कुमार साहनी | Source: मेरी कविता
पढ़ना था मुझे पर पढ़ न पाई…


यदि आप हिंदी ब्लॉग लिखने के लिए विंडोज लाइव राइटर का प्रयोग करते हैं, तब तो यह आपके लिए ही है. यदि आप लाइव राइटर का प्रयोग नहीं करते हैं तो इसे एक बार आजमा कर जरूर देखें. कमल ने इस औजार के बारे में एक शानदार आलेख लिखा है - विंडोज लाइव राइटर चिट्ठाकारों के लिए वरदान - इसे जरूर पढ़ें...
माँ एक अहसास !

माँ एक भाव एक अहसास है, वह अपने अंश से आत्मा से जुड़ी उसकी हर सांस से जुड़ी जैसे गर्भ में रखते समय उसके हर करवट और हर धड़कन को सुनकर कितना उत्साहित होती है। फिर जिसे जन्म देती है , तो सीने से लगा कर उसकी गर्माहट से अपने गर्भकाल की और प्रसव पीड़ा को भूल…
अनोखी शब्दावली

शब्दों का अकूत भंडार न जाने कहाँ तिरोहित हो गया नन्हें से अक्षत के शब्दों पर मेरा मन तो मोहित हो गया । बस को केवल " ब " बोलता साथ बोलता कूल कहना चाहता है जैसे बस से जाएगा स्कूल । मार्केट जाने को गर कह दो पाकेट - पाकेट कह शोर मचाता झट दौड़ कर कमरे से फिर अपनी सैंडिल ले आता . घोड़ा को वो घोआ कहता भालू को कहता है भाऊ भिण्डी को कहता है बिन्दी आलू को वो आऊ…
जन्‍म से ही जुड़ी होती आकांक्षाएं ...
कोई कैसे जिन्‍दगी को अहसासों से मुक्‍त और बंधनों से आजाद कर स्‍वच्‍छंद विचरण करने के लिए छोड़ सकता है भूमंडल पर जन्‍म से ही जुड़ी होती आकांक्षाएं अनगिनत संवेदनाओं से लिपटा भावनाओं में पला मां के आंचल से निकलकर पिता के स्‍नेह से पल्‍लवित हो विचारों की पाठशाला में अध्‍ययन कर शिक्षा रूपी ओज से संस्‍कारों का पोषण करते हुए क्रमश: एक लक्ष्‍य देता है जीवन को ...
अन्त में एक दुखद समाचार..

कविता कोश के योगदानकर्ता श्री चंद्रमौलेश्वर प्रसाद का देहांत

कविता कोश के महत्त्वपूर्ण योगदानकर्ता और हिन्दी के विकास हेतु सदा प्रयत्नशील रहने वाले श्री चंद्रमौलेश्वर प्रसाद का 12 सितम्बर 2012 को देहांत हो गया। कविता कोश की ओर से अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि। 
चर्चा मंच परिवार की ओर से भी भावभीनी श्रद्धांजलि!

56 टिप्‍पणियां:

  1. कविता कोश के योगदानकर्ता श्री चंद्रमौलेश्वर प्रसाद का देहान्त

    श्रद्धांजलि !

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. कविता कोश के योगदानकर्ता श्री चंद्रमौलेश्वर प्रसाद का देहान्त की खबर से हम सब हतप्रभ है उनके योगदान कभी भुलाये नहीं जा सकते.... विनम्र श्रद्धांजलि

      हटाएं
  2. जन्‍म से ही जुड़ी होती आकांक्षाएं ...

    अपनी 'मैं' ही में अब मैं समाया
    कब आदमी से बकरी अपने को बनाया
    मैं मैं करता रहकर ये नहीं मैं जान पाया !

    जवाब देंहटाएं
  3. अनोखी शब्दावली

    बोत ही बलिया तविता बनाई
    छोते छोते बच्चों ने ताली बजायी
    छाली की छाली छमझ में आयी!

    जवाब देंहटाएं
  4. माँ एक अहसास !

    जिम्मेदार सभी हैं
    समाज से शुरु होकर
    हम तक अगर माने तो
    संवेदनाऎं भी बनाने लगी
    हैं अब तो बाजार एक
    बहुत है समझाने को !

    जवाब देंहटाएं
  5. दिनेश की दिल्लगी, दिल की सगी

    रविकर का अंदाज
    हमेशा गजब ढाता है
    कुछ भी लिख
    ले जाइये
    चार चाँद आकर
    वो लगाता है
    जब प्यार से वो
    उस पर टिपियाता है !

    जवाब देंहटाएं
  6. टुकड़े
    आस अभी भी... प्यास अभी भी...
    ज़िन्दगी को टटोल कर देखा

    टुकडे़ फेंके नहीं जाते हैं
    जमा कर लिये जाते हैं
    समझदार लोगों के
    द्वारा बेच भी दिये जाते हैं
    बहुत से लोग तो
    टुकदो़ का अचार बनाने
    में भी माहिर पाये जाते हैं !

    अन्यथा ना लें
    अपने अपने टुकडे़
    अपनी अपनी सोच !!

    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति !!


    जवाब देंहटाएं
  7. राम कथा का नहीं है अंत ; वेदों की महिमा अनंत
    डॉ. चन्द्रकुमार जैन

    ज्ञानवर्धक !

    जवाब देंहटाएं
  8. पढ़ना था मुझे
    ई. प्रदीप कुमार साहनी | Source: मेरी कविता
    पढ़ना था मुझे पर पढ़ न पाई…

    सुंदर रचना !

    जवाब देंहटाएं
  9. मन कहता सब कुछ छोड़ चलें
    Kashish - My Poetry

    बहुत सुंदर !
    पर मुट्ठी ही तो जेब में चली जाती है
    खाली हवा लेकर फिर बाहर आ जाती है !

    जवाब देंहटाएं
  10. ये सब वक्‍त की बाते है.....

    बहुत सुंदर !
    अकेला होना या फिर होना किसी के साथ
    क्या ये नहीं है सिर्फ एक सोचने की बात?

    जवाब देंहटाएं
  11. भारत को बंद मत कीजिए खोलिए ,विस्तारित कीजिए .रेल की पटरियों को उखाड़ने का मतलब क्या बंद होता है .भैंस को पटरियों पर जुगाली करवाना बंद होता है .पेड़ काटके रास्ता रोकना बंद होता है .बसों को आग लगाना बंद होता है .अराष्ट्रीय काम हैं ये सब .खुला खेल फरुख्खाबादी .दिहाड़ी दार का फाका बंद होता है ?

    बसों को बिजली घरों को आग लगाना क्या बंद होता है ?

    सत्याग्रह के नए अर्थ समझा रहे हो ,
    देश का माल सारा खुद ख़ा रहे हो ,
    बंद जीवियों ,
    मत भरमाओ -भारत को .

    भारत' बंद या 'दिमाग' बंद ?
    .*'भा*रत बंद' अब एक मजाक से ज्यादा कुछ नहीं रहा.जो भी संगठन या पार्टी, जब भी चाहे भारत बंद की घोषणा कर देती है,जबकि इसका परिणाम शून्य...

    जवाब देंहटाएं
  12. भावभीनी श्रद्धांजलि!


    कविता कोश के महत्त्वपूर्ण योगदानकर्ता और हिन्दी के विकास हेतु सदा प्रयत्नशील रहने वाले श्री चंद्रमौलेश्वर प्रसाद का 12 सितम्बर 2012 को देहांत हो गया। कविता कोश की ओर से अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि।
    चर्चा मंच परिवार की ओर से भी भावभीनी श्रद्धांजलि!

    जवाब देंहटाएं
  13. सदा की तरह सरस सुन्दर सार्थक सूत्रों से सुसज्जित सुव्यवस्थित 'चर्चा मंच' शास्त्री जी !
    'तराने सुहाने' से गणपति वन्दना के मधुर स्वर आपने सभी संगीत प्रेमियों तक पहुँचाये ! आभारी हूँ !

    जवाब देंहटाएं

  14. छुक - छुक को वो तुक- तुक कहता
    बॉल को कहता है बो
    शब्दों के पहले अक्षर से ही
    बस काम चला लेता है वो ।


    भूल गयी हूँ कविता लिखना
    बस उसकी भाषा सुनती हूँ
    एक अक्षर की शब्दावली को
    बाल भाषा के अपने कूट संकेत होतें हैं .एकाक्षरी होती है यह भाषा .डिजिटल से आगे ,मीलों ये भागे .बहुत सुन्दर बाल चित्त कि अनुकृति उतारी है इस रचना में एक शब्द चित्र गढ़ा है अन -गढ़ .बधाई !पूरे परिवार को .
    मन ही मन मैं गुनती हूँ ।

    जवाब देंहटाएं
  15. महत्वपूर्ण सूत्रों से सजी सार्थक चर्चा | मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार शास्त्री जी | धन्यवाद |

    जवाब देंहटाएं
  16. व्यवस्थित और रचनाओं के विभिन्न आयाम समेटे इस चर्ह्चा में स्वयं को देखना सुखद है !
    आभार !

    जवाब देंहटाएं
  17. फसलों के कुछ बैरी टिड्डे।
    हरियाली में छिपकर बैठे।।

    देख रहे थे टुकर-टुकरकर।
    पौधे खाते कुतर-कुतरकर।।
    बहुत सजीव चित्र खेती और खलिहान का ,प्रकृति के विधान का ...खा तू मुझको ,तुझको भी खायेगा कोयला (कौवा )....बढ़िया प्रस्तुति ...

    जवाब देंहटाएं
  18. उत्तर देगा अल्ट्रा साउंड या देगा कोई लम्पट ,

    हुए कमीने कई यहाँ पर अन्दर बाहर सीना ताने .,

    घूम रहे कितने मस्ताने .

    खुले हुए सबके दस्ताने ,

    पहन बघनखे खून सने ये ,घूम रहें हैं ,
    कुछ सुस्ताने .

    माँ एक अहसास !


    माँ एक भाव एक अहसास है, वह अपने अंश से आत्मा से जुड़ी उसकी हर सांस से जुड़ी जैसे गर्भ में रखते समय उसके हर करवट और हर धड़कन को सुनकर कितना उत्साहित होती है। फिर जिसे जन्म देती है , तो सीने से लगा कर उसकी गर्माहट से अपने गर्भकाल की और प्रसव पीड़ा को भूल…

    जवाब देंहटाएं
  19. सुन्दर और सार्थक चर्चा.
    चर्चा मंच पर मेरे ब्लॉग 'मनसा वाचा कर्मणा'
    की पोस्ट 'फालोअर्स और ब्लोगिंग' को शामिल
    करने के लिए आपका हार्दिक आभार.

    जवाब देंहटाएं
  20. यह हमारे दौर की एक बड़ी विडम्बना है कि अब बंद करवाने वालों और उसमें शिरकत करके रेल की पटरी उखाड़ने ,पटरियों पर भैंस से जुगाली करवाने वालों ,बसों और इतर देश की पहले ही उन चीज़ों को जिनकी इस देश में कमी है आग के हवाले करने वालों को अराष्ट्रीय कहने में तकलीफ नहीं होती है .ये सरासर हुडदंगी है .विरोध नहीं है हिंसात्मक विरोध है .सत्या ग्रह का यह मतलब तो नहीं था .विरोध प्रतीकात्मक होता है .एक दिन का उपवास करो देश का अन्न बचाओ .बिजली बचाओ

    ram ram bhai
    शनिवार, 22 सितम्बर 2012
    क्या फालिज के दौरे (पक्षाघात या स्ट्रोक ,ब्रेन अटेक ) की दवाएं स्टेन्ट से बेहतर विकल्प हैं

    कायर ना कमजोर, मगर आदत के मारे -
    दिनेश की दिल्लगी, दिल की सगी

    जवाब देंहटाएं
  21. वक्त के टुकड़े कब ठहरे हैं ,आंधी से आतें हैं तूफां से जातें हैं ,घबराना क्या इन टुकड़ों से ,जब आया तू इस काया में ,फिर खोना क्या और पाना क्या ,खोकर भी तो कुछ पातें हैं ,कब अपनों के रह पातें हैं .टुकड़े किसके मन भाते हैं .


    ram ram bhai
    शनिवार, 22 सितम्बर 2012
    क्या फालिज के दौरे (पक्षाघात या स्ट्रोक ,ब्रेन अटेक ) की दवाएं स्टेन्ट से बेहतर विकल्प हैं

    टुकड़े
    आस अभी भी... प्यास अभी भी...
    ज़िन्दगी को टटोल कर देखा


    जवाब देंहटाएं

  22. बाल श्रम की सजीव तस्वीर है ये रचना यहाँ लडकियाँ पैदा होने से पहले "बाई "और लडके मुंडू बन जाते हैं .सरकार साक्षरता के आंकड़े हिलाती है लहराती है .

    पढ़ना था मुझे
    ई. प्रदीप कुमार साहनी | Source: मेरी कविता
    पढ़ना था मुझे पर पढ़ न पाई…

    ram ram bhai
    शनिवार, 22 सितम्बर 2012
    क्या फालिज के दौरे (पक्षाघात या स्ट्रोक ,ब्रेन अटेक ) की दवाएं स्टेन्ट से बेहतर विकल्प हैं

    जवाब देंहटाएं
  23. विभिन्न सूत्रों से परिश्रम से सजाई गई उत्कृष्ट चर्चा में मेरी रचना को भी शामिल करने पर हार्दिक आभार बेहतरीन चर्चा के लिए बहुत बहुत बधाई

    जवाब देंहटाएं
  24. ज्ञानवर्द्धक और सुन्दर साहित्य को एक स्थान पर प्रतिदिन एकत्रित कर के हिंदी साहित्य प्रेमियों तक पहुँचाने का सफल प्रयास; बधाई चर्चा मंच को , बधाई चर्चा मंचन करने वालों को , बधाई उन सभी को जो किसी न किसी रूप में चर्चा मंच से जुड़े रहे हैं और अपना योगदान देते आये हैं ।

    मेरे कविता-जीवन का एक टुकड़ा आप लोगों से जुड़ कर निस्संदेह ख़ुशी और आशा का प्रतीक बन गया है ! सादर आभार !

    जवाब देंहटाएं

  25. चंद्रमौलेश्वर जी का साहित्य में बहुत बड़ा योगदान है ! इन्होने बुढापे पर अनेक विषद रचनायें प्रस्तुत की हैं ! मेरे ब्लॉग की प्रत्येक पोस्ट पर आपकी विद्वतापूर्ण टिप्पणियों से सदैव मार्गदर्शन हुआ है ! अपने एक शुभचिन्तक को खोने का बहुत दुःख है ! विनम्र श्रद्धांजलि !

    जवाब देंहटाएं
  26. बस अभी मंच पर आया तो आद. चंद्रमौलेश्वर जी के निधन की खबर मिली। मुझे लगता है कि ना सिर्फ हिंदी जगत के लिए बल्कि ब्लाग परिवार के लिए अपूर्णीय क्षति है। सच में मन दुखी है..


    जवाब देंहटाएं
  27. उपरोक्त चर्चा मंच पर मेरी पोस्ट शामिल करने योग्य मानने के लिए आपका धन्यवाद सहित आभार.

    जवाब देंहटाएं
  28. चर्चा में बहुत सुंदर है, नए लिंक के साथ और मेरी रचना को इसमें स्थान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद !

    जवाब देंहटाएं
  29. सुन्दर लिंक्स से सजी रोचक चर्चा...आभार

    जवाब देंहटाएं
  30. फालोअर्स और ब्लोगिंग

    एक क्लिक पर
    फोलौवर बन
    जाता है कोई
    उसके बाद फौलो
    नहीं भी कर
    पाता है कोई
    चित्रों में ब्लाग
    पर नजर फिर भी
    आता है कोई
    ब्लाग परिवार का
    सदस्य बन
    जाता है कोई
    अपने ब्लाग पर
    नहीं भी दिखे
    कई दिन तक कोई
    इधर उधर आते जाते
    कहीं तो फिर भी
    टकरा जाता है कोई !

    जवाब देंहटाएं
  31. बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति।

    जवाब देंहटाएं
  32. अच्छे सुन्दर, प्रसादजी को विनम्र श्रद्धांजलि..

    जवाब देंहटाएं
  33. चंद्रमौलेश्वर प्रसाद जी का जाना वाकई दुखदायी है

    जवाब देंहटाएं
  34. चंद्रमौलेश्वर प्रसाद जी को सादर नमन ||

    भारत' बंद या 'दिमाग' बंद ?

    मरते मरते मर मिटे, अनशन अन्ना भक्त ।
    जूं रेंगे न कान पर, सत्ता बेहद शख्त ।

    सत्ता बेहद शख्त, बंद से क्या होना है ।
    पब्लिक कई करोड़, चादरों में सोना है ।

    पर दैनिक मजदूर, बताओ क्या हैं करते ?
    रोगी जो गंभीर, कहो जीते या मरते ।।

    जवाब देंहटाएं
  35. आवश्यकता है एक " पोस्टर ब्वाय " की !
    Source: आधा सच...

    आधा प्लस आधा हुआ, पूरा पूरा सत्य |
    ठगे हुवे हम हैं खड़े, देखें काले कृत्य |
    देखें काले कृत्य , छंद गंदे हो जाते |
    कुक्कुरमुत्ते उगे, मगर क्या बहला पाते ?
    जगना हुआ हराम, भला था सोये रहते |
    देखा मुंह में राम, छुरी को कैंची कहते ||

    जवाब देंहटाएं
  36. बहुत बढ़िया लिंक्स
    सार्थक चर्चा प्रस्तुति
    आभार

    जवाब देंहटाएं
  37. श्री चंद्रमौलेश्वर प्रसाद के देहांत होने की सूचना दुखद है .. ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें

    जवाब देंहटाएं
  38. सार्थक चर्चा |बढ़िया लिंक्स..

    जवाब देंहटाएं
  39. श्री चंद्रमौलेश्वर प्रसाद जी को भावभीनी श्रद्धांजलि......

    जवाब देंहटाएं
  40. जन्‍म से ही जुड़ी होती आकांक्षाएं ...
    पर

    सबने ही मैं मैं कहा, पूछा "मैं" है कौन
    मैं का उत्तर ढूँढते , सबके सब हैं मौन ||

    जवाब देंहटाएं
  41. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  42. आदरणीय शास्त्री जी दिल दुखी हुआ ये सुनकर लेकिन एक न एक दिन इस सच का सामना तो करना ही है ...
    बहुत सुन्दर लिंक्स और मेहनत भरा कार्य आप का ...सराहनीय है
    भ्रमर ५

    जवाब देंहटाएं
  43. ऐसा भारत सजाइये....कवित्त पर.....

    हिंदी-भाषा मास पर , उत्तम हिंदी छंद
    मन पढ़कर सुख पा रहा,खूब मिला आनन्द
    खूब मिला आनंद , आपने ज्ञान बढ़ाया
    कैसा होय विधान , सरलता से समझाया
    अन्य छंद का ज्ञान , दीजिये है अभिलाषा
    देव - नागरी अमर ,अमर हो हिंदी भाषा ||

    जवाब देंहटाएं
  44. उन बेवफाओं के किए क्या दिल लगाना छोड़ दे ? ...पर..

    आयेंगे ना लौट कर , जाने वाले लोग
    हँसकर जी लें आज को,यही सुखद संयोग
    यही सुखद संयोग,आस है सिर्फ जलाती
    दिया रोशनी कर , तभी जब जलती बाती
    झरे फूल इक बार ,कभी ना खिल पायेंगे
    जाने वाले लोग , लौट कर ना आयेंगे ||

    जवाब देंहटाएं
  45. श्री चंद्रमौलेश्वर प्रसाद जी को हम सब की तरफ से भावभीनी श्रद्धांजलि....
    आज के इस चर्चामंच में मेरी रचना ...ऐसा भारत सजाइए को सूत्रधार बनाते हुवे
    शिर्षकीय सम्मान दिया उसके लिए आदरणीय गुरू जी का सादर आभार

    जवाब देंहटाएं
  46. धारती को खुशहाल बनाओ बल गीत बहुत बढ़िया है प्राकृतिक सौंदर्य क रसपान करती,आज की पीढ़ी प्राकृत का आनंद भूल गया है| रचना मनभावन भी है साथसाथ ज्ञान वर्धक भी है

    गुरूजी ने रंग दिया,प्रकृति में वो रंग
    बाप बेटा पढ़ सकैय,साथ साथ मिल संग
    रचना ऐसी चाहिये,पढ़ हो ज्ञान सुजान
    कविता सीधी सी लगे,सीधा सा दे ज्ञान
    आदरणीय रूपचंद शास्त्री जी सादर बधाई

    जवाब देंहटाएं
  47. विपक्ष बबन पांडे जी ने जैसा शीर्षक विपक्ष कहा
    उनके पूरी रचना विपक्ष पूर्ण थी
    विपक्ष शब्द ही नकारात्मक का बोध कराता है
    रचना नकारात्मक पहलु पर थी
    बहरहाल हार्दिक बधाई

    जवाब देंहटाएं
  48. विंडोज लाईव
    हिंदी प्रेमियों के लिए सुखद जानकारी
    धन्यवाद

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"चर्चामंच - हिंदी चिट्ठों का सूत्रधार" पर

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