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शुक्रवार, सितंबर 21, 2012

ईश्वर बिन अब कौन, यहाँ हालात सुधारे : चर्चा मंच-K-9




1

गणेश जी मुंगडा ओ मुंगडा से जन्नत की हूर तक

kanu.....  


  2

बिटिया

pradeep tiwari  


3 (अ)

"सीमा का रखवाला हूँ" बालकविता (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री मयंक')

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण) 


3 (आ)

"नारी से घर में बसन्त है" 

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')


नारी की महिमा अनन्त है
नारी से घर में बसन्त है।।


  4

अमृता प्रीतम के फिल्म निर्माता बेटे नवराज क्वात्रा की हत्या कर दी गई. घर से कई अभिनेत्रियों और मॉडलों के अश्लील वीडियो और फोटोग्राफ्स मिले.

DR. ANWER JAMAL 
 Blog News  


6

...जब गोधरा जल उठा था

रवीन्द्र प्रभात 


7

मिर्गीःप्रभाव और उपचार

Kumar Radharaman 


8

25 हज़ार रुपए से कम के कुछ अच्छे लैपटॉप्स

NARESH THAKUR 


9

निर्णायक की कुर्सी पूर्वाग्रहों से मुक्त कर सकेगी क्या ?

ZEAL 
 ZEAL


10

तरु को तनहा कर गये, झर-झर झरते पात - नवीन

Navin C. Chaturvedi 


11

अगीत साहित्य दर्पण,( क्रमश:) अध्याय प्रथम (समाप्त )... डा श्याम गुप्त ..



12

आश्रिता

expression 



  13

bharmour chaurasi temple,भरमौर , चौरासी मंदिर

Manu Tyagi  
yatra  

14

पूज्य पिता की पुण्यतिथि

noreply@blogger.com (पुरुषोत्तम पाण्डेय) 


15

कर्मनाशा से गुजरते हुए

sidheshwer 


16

गोरे लाले मस्त, रो रहे लाले काले-

भारत भारत खुला.

 खुला खुला भारत खुला, धुला धुला पथ पाय |
ईस्ट-वेस्ट इण्डिया में, सब का मन हरसाय |
सब का मन हरसाय, आय के चाय पिलाओ |
डबल-रोटियां खाय, हुकूमत के गुण गाओ |
बंद हमेशा बंद, कंद के पड़ते लाले |
गोरे लाले मस्त, रो रहे लाले काले ||


Untitled

कविता विकास  
काव्य वाटिका

मस्त मस्त है गजल यह ,  किसका कहें कमाल ।
 खुश्बू जो पाई जरा,  हुवे गुलाबी गाल  ।
हुवे गुलाबी गाल,  दिखे  प्यारे गोपाला ।

 काले  काले श्याम,  मुझे अपने में ढाला ।
बहुरुपिया चालाक,  शाम यह अस्तव्यस्त  है ।

वो तो  राधा संग,  दीखता  बड़ा  मस्त  है ।।


आज के व्यंजन

kush  
सोते कवि को दे जगा, गैस सिलिंडर आज ।
असम जला, बादल फटा, गरजा बरसा राज ।
गरजा बरसा राज, फैसला पर सरकारी ।
मार पेट पर लात, करे हम से गद्दारी ।
कवि "कुश" जाते जाग, पुत्र रविकर के प्यारे ।
ईश्वर बिन अब कौन,  यहाँ हालात सुधारे ।।


क्या ब्लॉग जगत के नारी वादियों की वाद प्रियता शून्य हो चली है?

  क्वचिदन्यतोSपि...
बढ़िया घटिया पर बहस, बढ़िया जाए हार |
घटिया पहने हार को, छाती रहा उभार |

छाती रहा उभार, दूर की लाया कौड़ी  |
करे सटीक प्रहार, दलीले भौड़ी भौड़ी |

तर्कशास्त्र की जीत, हारता मूर्ख गड़रिया |
बढ़िया बढ़िया किन्तु, तर्क से हारे बढ़िया ||


 सियानी गोठ

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) 

 रविकर गिरगिट एक से, दोनों बदलें रंग |
रहे गुलाबी खिला सा, हो सफ़ेद हो दंग |
हो सफ़ेद हो दंग, रचे रचना गड़बड़ सी |
झड़े हरेरी सकल, तनिक जो बहसा बहसी |
कभी क्रोध से लाल, कभी पीला हो डरकर |
बुरा है इसका हाल, घोर काला मन रविकर ||


लगा चून, परचून, मारता डंडी रविकर -

पासन्गे से परेशां, तौले भाजी पाव ।
इक छटाक लेता चुरा, फिर भी नहीं अघाव ।

फिर भी नहीं अघाव, मिलावट करती मण्डी  ।
लगा चून, परचून, मारता रविकर डंडी ।

 कर के भारत बंद, भगा परदेशी नंगे ।
लेते सारे पक्ष, हटा अब तो पासन्गे ।।


गधे का गाना (काव्य-कथा)

Kailash Sharma 
अपनी अच्छी आदत पर भी, समय जगह माहौल देखकर |
इस्तेमाल अकल का करके, अंकुश लगा दबाना बेहतर |
कथा गधे की यही सिखाये, यही कहे चालाक लोमड़ी-
जो भी ऐसा नहीं करेगा, गधा बनेगा गा-कर पिटकर ||

51 टिप्‍पणियां:

  1. आज की चर्चा मस्त है, रविकर जी!
    आपका बहुत-बहुत आभार!

    जवाब देंहटाएं
  2. गनीमत है यहाँ ब्लॉग विमर्श है ब्लॉग फतवा किसी ने ज़ारी नहीं किया है भगवान् वह दिन न दिखाए .

    "रंडी -रांड "गाली गलौंच की भाषा में प्रयुक्त होते हमने अपने बचपन में देखा है बृज -मंडल के बुलंदशहर में .

    किसी को बेवा या विधवा कहना ,किसी को फला की बेवा कहना अब संविधानेतर भाषा क्या अपभाषा में ही गिना जाना चाहिए .

    रांड का विलोम होता है रंडुवा (रंडुवा )न कि रंडवा जैसा रचना जी ने इस्तेमाल किया है ."स्यापा" अपने आप में यथेष्ट होता है उसमें अतिरिक्त विशेषण लगाना शब्द अपव्यय ही कहलायेगा .

    रंडापा और स्यापा शब्द का बहुबिध कैसा भी गठजोड़ थेगलिया(थे -गडी - नुमा ,पैबंद नुमा ) सरकारों सा अशोभन प्रयोग है .

    जो आग खायेगा वह अंगारे हगेगा .शब्द बूमरांग करतें हैं .

    शब्द सम्हारे बोलिए ,शब्द के हाथ न पाँव ,

    एक शब्द औषध करे ,एक शब्द करे घाव .

    क्या ब्लॉग जगत के नारी वादियों की वाद प्रियता शून्य हो चली है?
    क्वचिदन्यतोSपि...
    बढ़िया घटिया पर बहस, बढ़िया जाए हार |
    घटिया पहने हार को, छाती रहा उभार |

    छाती रहा उभार, दूर की लाया कौड़ी |
    करे सटीक प्रहार, दलीले भौड़ी भौड़ी |

    तर्कशास्त्र की जीत, हारता मूर्ख गड़रिया |
    बढ़िया बढ़िया किन्तु, तर्क से हारे बढ़िया ||

    जवाब देंहटाएं
  3. अगर मित्र की सही राय को
    ज़िद के कारण नहीं मानता.
    कष्ट उठाना पडता उसको
    आखिर में पछताना पडता.

    मित्र वही जो सही सीख दे,


    गधे का गाना (काव्य-कथा)
    Kailash Sharma
    बच्चों का कोना

    जवाब देंहटाएं
  4. भाई साहब /बहना जी .अपने तो गिरगिट भूखे के भूखे रह्में हैं ,कोयला ,चारा ,गैस सब हजम कर जावें हैं .बढ़िया चित्रण और व्याख्या जन कवि की रचना की आपने की है .शुक्रिया .

    सियानी गोठ
    अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com)
    श्रीमती सपना निगम (हिंदी )

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुंदर चर्चा मंच
    बेहतरीन लिंक्स
    बेहतरीन टिप्पणियाँ
    रविकर की !

    जवाब देंहटाएं
  6. ऍफ़ डी आई है

    जो छाई है ,ऍफ़ डी आई है ,



    बडकी बेटी, बिन ब्याही है ,


    भरोसा टूटा है सरकार का ,स्थाई है ,

    कल भी आज भी ,सिर्फ मंहगाई है ,



    अब शर्म नहीं ,कोयलाई है ,

    लाज कैसी ये कमाई है .



    तोता भाई -वीरू भाई

    भारत भारत खुला.
    Cartoon, Hindi Cartoon, Indian Cartoon, Cartoon on Indian Politcs: BAMULAHIJA

    जवाब देंहटाएं
  7. 1
    गणेश जी मुंगडा ओ मुंगडा से जन्नत की हूर तक
    kanu.....
    parwaz परवाज़.....

    बहुत सटीक लेख !

    अब कहाँ रहा कोई त्यौहार
    बस बची हुई है जीत हार
    गणेश जी क्या बेचते हैं
    जब आदमी खुद एक
    अब हो गया है बाजार !

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. गणेष जी अब अंग्रेज़ी में भी प्रार्थनाएं सुनते हैं....

      हटाएं
  8. 2
    बिटिया
    pradeep tiwari
    *साहित्य प्रेमी संघ*

    बहुत सुंदर

    बिटिया बेटों से
    ज्यादा संवेदनशील
    होती हैं !

    जवाब देंहटाएं
  9. 3 (अ)
    "सीमा का रखवाला हूँ" बालकविता (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री मयंक')
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण)
    उच्चारण -

    बहुत सुंदर !

    जवाब देंहटाएं
  10. पिता एक अमूर्त स्वार्थ हीन छाते का नाम है .पिता का जाना बिना बरसाती के रह जाना है .पिता जी कहते थे -कम खाना और गम खाना .परदेश में रहते हो किसी से झगड़ा न करना कोई दो बात कह दे सुन लेना .सुन ने वाला छोटा नहीं हो जाता है .
    विद्या बांटने से बढती है .हेल्थ इज वेल्थ .आज भी ये सारी सीख याद हैं .पिता एक भाव है जो हमसे संयुक्त रहता है ,हम में बना रहता है .
    पुन्य स्मरण .आभार इस नेक पोस्ट के लिए .नेक पिता के नाम .उस नेक पिता के नाम वीरुभाई के ,कैंटन के शतश :प्रnaam .

    पूज्य पिता की पुण्यतिथि
    noreply@blogger.com (पुरुषोत्तम पाण्डेय)
    जाले

    जवाब देंहटाएं
  11. अरविन्द मिश्रा जी!
    कटाक्ष करना छोड़िए, अच्छे मन से टिप्पणी दीजिए!

    जवाब देंहटाएं
  12. प्यार घडी का भी बहुत है ,सच्चा झूंठा मत सोचा कर ,
    मर जाएगा मत सोचा कर ,तनहा तनहा मत सोचा कर .
    हर कोई ढूंढता है एक मुठ्ठी आसमां ,हर कोई चाहता है एक मुठ्ठी आसमा ,उस लतिका ने क्या बिगाड़ दिया ?क्या वह अमर वेळ थी ?जो आश्रय को ही नष्ट कर देती है .

    आश्रिता
    expression
    my dreams 'n' expressions.....याने मेरे दिल से सीधा कनेक्शन.....

    जवाब देंहटाएं
  13. नारी की महिमा अनंत है ,
    पंचों की भी वही पञ्च है .
    कोख की साख

    कोख और कोख में फर्क है .आज विज्ञान उस मुकाम पे चला आया है जहां एक ही कोख से माँ और बेटी पैदा हो सकतें हैं .अभी स्वीडन में एक माँ ने अपनी उस बेटी को अपनी कोख (चिकित्सा शब्दावली में ,विज्ञान की भाषा में गर्भाशय ,बच्चेदानी )डोनेट कर दी जो कुछ साल पहले बच्चेदानी के कैंसर की वजह से अपनी बच्चेदानी निकलवा चुकी थी .ठीक होने का और कोई रास्ता बचा ही नहीं था .सफलता पूर्वक बेटी में माँ की कोख का प्रत्यारोप लग चुका है .अंत :पात्र निषेचन (इन वीट्रो फ़र्तिलाइज़ेशन )के ज़रिये उसका एम्ब्रियो (भ्रूण की आरम्भिक अवस्था )प्रशीतित करके रखा जा चुका है साल एक के बाद इसे प्राप्त करता युवती के ही गर्भाशय में रोप दिया जाएगा .फिर इसी गर्भाशय से एक बेटी और पैदा हो सकती है .दाता महिला इन नवजात कन्या की नानी कहलायेगी लेकिन माँ बेटी एक ही गर्भाशय की उपज कहलाएंगी .तो ज़नाब ऐसी है गर्भाशय की महिमा .इस खबर से अभिभूत हो हमारे नाम चीन ब्लोगर भाई रविकर फैजाबादी (लिंक लिखाड़ी )ने अपने उदगार यूं व्यक्त किये हैं -


    रविकर फैजाबादीSeptember 20, 2012 9:20 AM
    कहते हम हरदम रहे, महिमा-मातु अनूप ।

    पावन नारी का यही, सबसे पावन रूप ।

    सबसे पावन रूप, सदा मानव आभारी ।

    जय जय जय विज्ञान, दूर कर दी बीमारी ।

    गर्भाशय प्रतिरोप, देख ममता रस बहते ।

    माँ बनकर हो पूर्ण, जन्म नारी का कहते ।।

    सोचता हूँ और फिर गंभीर हो जाता हूँ हमारे उस देश में जहां कर्ण ने अपने कवच कुंडल तक दान कर दिए थे ,ऋषि दाधीच (दधिची )ने अपनी अस्थियाँ दान कर दिन थीं -
    अब लगता है -

    अरे दधिची झूंठा होगा ,
    जिसने कर दी दान अस्थियाँ ,
    जब से तुमने अस्त्र सम्भाला ,
    मरने वाला संभल गया है .

    अपना हाथी दांत का सपना ,
    लेकर अपने पास ही बैठो ,
    दलदल में जो फंसा हुआ था ,
    अब वो हाथी निकल चुका है .

    दफन हो रहीं हैं मेरे भारत में ,
    कोख में ही बेटियाँ .

    मूक हो ,निर्मूक हो राष्ट्र सारा देखता है .

    "नारी से घर में बसन्त है"
    (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आदरणीय वीरेंद्र कुमार शर्मा जी आपकी ये सार गर्भित टिप्पणी पढ़ मन गद गद हो गया

      हटाएं
  14. जल प्लावन से डरके रहना ,मुझसे थोड़ा हटके रहना
    मुझसे ही हिमनद सब निकरे ,
    मैं भारत की शान हूँ .
    आलय हिम का महान हूँ .

    बढ़िया प्रस्तुति .तदानुभूति कराती देश प्रेम की .

    जवाब देंहटाएं
  15. 3 (अ)
    "सीमा का रखवाला हूँ" बालकविता (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री मयंक')

    जल प्लावन से डरके रहना ,मुझसे थोड़ा हटके रहना
    मुझसे ही हिमनद सब निकरे ,
    मैं भारत की शान हूँ .
    आलय हिम का महान हूँ .

    बढ़िया प्रस्तुति .तदानुभूति कराती देश प्रेम की .

    जवाब देंहटाएं
  16. लिंक लिक्खाड़ पर..........

    पिसकर पाती रंग ज्यों ,लाल मेंहदी रंग
    गिरगिट सा बदलो नहीं,रंग समय के संग
    रंग समय के संग , बनो मत अवसरवादी
    लाज राखिये श्वेत - रंग की होती खादी
    श्याम रंग में डूब,माथ पर चंदन घिसकर
    सीख ! मेंहदी लाल -रंग पाती है पिसकर ||

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बहुत सुन्दर प्रतिक्रिया
      आदरणीय अरुण जी बहुत खूब है

      हटाएं
  17. 3 (आ)
    "नारी से घर में बसन्त है"
    (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

    वाह !

    सत्य है नारी से
    घर में बसन्त है
    पुरुष भी होता है
    घर में कहीं कहीं
    जी हा वो तो बस
    होता एक संत है !

    जवाब देंहटाएं

  18. बित्ते भर की बात है, लेकिन बड़ी महान।
    मानव के संवाद ही, मानव की पहिचान।।
    बहुत बढ़िया दोहावली लाये हो ,पर बहुत देर से आये हो .

    10
    तरु को तनहा कर गये, झर-झर झरते पात - नवीन
    Navin C. Chaturvedi
    ठाले बैठे

    जवाब देंहटाएं
  19. सजल दृगों से कह रहा, विकल हृदय का ताप।
    मैं जल-जल कर त्रस्त हूँ, बरस रहे हैं आप।।
    कितने शहरी हो गए लोगों के ज़ज्बात ,
    सबके मुंह पे सिटकनी क्या करते संवाद .बढ़िया प्रस्तुति है भाई साहब. बहुत दिन बाद आये हो ,पर माल बढ़िया लाये हो .

    जवाब देंहटाएं
  20. बढिया लिंक्स ,धन्यवाद मेरी यात्रा शामिल करने को

    जवाब देंहटाएं
  21. निर्णायक की कुर्सी पूर्वाग्रहों से मुक्त कर सकेगी क्या ?......पर

    सुंदर रचना मूर्ति-सम,मानों तो भगवान
    पूर्वाग्रह मन में रहा , तो लगती पाषाण
    तो लगती पाषाण , हृदय निष्पक्ष राखिये
    मन को दे आनंद , प्रेम से सदा बाँचिये
    सत-साहित है ज्ञान,भाव का एक समुंदर
    मानों तो भगवान ,मूर्ति-सम रचना सुंदर ||

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. वाह क्या बात कही है....सुन्दर...

      हटाएं
    2. आदरणीय अरुण भाई क्या बात कही है
      आदरणीय मैंने भी पढ़ा ..

      निर्णायक की कुर्सी पूर्वाग्रहों से मुक्त कर सकेगी क्या ?......पर
      इतने सुन्दर ढंग से आपने समूर्ण विषय को बहुत ही छोटे कुंडली के माध्यम से सब कुछ कह दिया यही तो सच्चे कवि की पहचान है
      हार्दिक आभार

      हटाएं
  22. आदरणीय नवीन सी. चतुर्वेदी को सादर.....

    बरस बीतते बरसते,जल जल बनता भाप |
    चक्र यही चलता हुआ , मन देखे चुपचाप ||

    झरना झरता नैन से, मस्ती हो या पीर |
    आँसू से शायद लिखी , नैनों की तकदीर ||

    तनहा तरु है शाख से,झरते जाते पात |
    सभी परिंदे उड़ गये, टूटे रिश्ते-नात ||

    बिना गर्जना घन घिरे,बिना चमक थी गाज |
    बेमौसम बरखा हुई , बस मैं जानूँ राज ||

    हर्षित करता आज भी,वह बचपन का साथ |
    कभी कभी लगता मुझे,बुला रही शिवनाथ ||
    [शिवनाथ = दुर्ग शहर की नदी]

    अंतर्मन को छू गई, बित्ते भर की बात |
    प्रेरित जग को कर रहे,नमन नमन हे भ्रात ||

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. वाह वाह
      ऐसी चर्चा तो स्वर्ग में होती होगी
      क्या बात है अरुण जी
      सरस्वती का मान है सरस्वती जुबान है

      हटाएं
  23. मस्ती भरी चर्चा रविकर सर, बहुत-२ बधाई और आभार इतने सुन्दर-२ लिंक्स को पढने का सौभाग्य प्राप्त हुआ

    जवाब देंहटाएं
  24. रविकर जी...विलम्ब के लिए क्षमा....
    सुन्दर चर्चा...
    मेरी रचना को शामिल करने का शुक्रिया...
    सादर
    अनु

    जवाब देंहटाएं
  25. सियानी गोठ
    रंग बदलता, शीश हिलाता, सीधा-सादा प्राणी।
    गिरगिट से सब प्यार करों, ये ऋषियों सा ज्ञानी है।।

    जवाब देंहटाएं
  26. गधे का गाना पर ............

    भारी पड़ती है सदा , बेमौसम की तान
    सच्चा-साथी दे अगर,राय उचित तो मान
    राय उचित तो मान ,गधे ने ककड़ी खाई
    अड़ा रहा जिद्द पर , हो गई खूब पिटाई
    चतुर लोमड़ी जान , रही थी दुनियादारी
    बेमौसम की तान , सदा पड़ती है भारी ||

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बहुत बढ़िया प्रतिक्रिया साथ साथ चर्चा भी हो गई

      हटाएं
  27. परवाज
    गणेश जी मुंगडा ओ मुंगडा से जन्नत की हूर तक
    बिलकुल सही फरमाया
    राष्ट्रिय पर्व हो या हडताली पंडाल
    माहोल को अनुरूप बनाने के लिए अनुशासित देश भक्ति गीत बजाये जातें है ऐसे में गणेश उत्सव में धार्मिक गीत क्यों नहीं बजाये जा सकते
    फूहड़ गीत बजा कर हम क्या सन्देश देना चाह रहे है ?
    ईश्वर इन धूम धड़ाका वालों को सदबुद्धि दे

    जवाब देंहटाएं
  28. आदरणीय प्रदीप तिवारी जी की बिटिया बहुत अच्छी लगी
    बिटिया के विषय में जो कुछ भी लिखा गया है वह सौ आने सही है

    जवाब देंहटाएं
  29. आदरणीय रूपचन्द्र शास्त्री जी के बाल गीत ने मन मोह लिया
    भावी पीढ़ी में राष्ट्रीयता का पाठ पद्धति यह रचना लाजवाब है
    नारी से घर बसंत है.... भी बहुत बढ़िया है

    जवाब देंहटाएं
  30. आकाश मिश्र जी की गोधरा पर रची रचना अत्यंत मार्मिक एवं ह्रदय स्पर्शी है

    जवाब देंहटाएं
  31. कुमार राधा रमण जी द्वारा प्रस्तृत मिर्गी के बारे में जानकारी
    बहुत ज्ञान वर्धक एवं लाभकारी है

    जवाब देंहटाएं
  32. नरेश ठाकुर जी का धन्यवाद आपने सस्ते सुन्दर टिकाऊ लेपटॉप के बारे में अच्छी जानकारी प्रदान की

    जवाब देंहटाएं
  33. ठाले बैठे
    तरु को तनहा ...बहुत उम्दा रचना है

    बित्ते भर की बात है, लेकिन बड़ी महान।
    मानव के संवाद ही, मानव की पहिचान।।
    बहुत खूब है

    जवाब देंहटाएं
  34. आश्रिता में प्रस्तुत रचना भी कबीले तारीफ कई

    जवाब देंहटाएं
  35. सुन्दर चर्चा के लिया आदरणीय रविकर जी को हार्दिक बधाई

    जवाब देंहटाएं
  36. चर्चा बहुत सुंदर है, नए लिंक के साथ और मेरी रचना को इसमें स्थान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद !

    जवाब देंहटाएं

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