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सोमवार, मई 21, 2018

"गीदड़ और विडाल" (चर्चा अंक-2977)

सुधि पाठकों!
सोमवार की चर्चा में 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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इंतजार  

(राधा तिवारी " राधेगोपाल") 

दिल के फासलों को दूर करना ही पड़ेगा l 
कुछ हमें कुछ तुम्हें चलना ही पड़ेगा 

 काम कोई भी मुश्किल नहीं इस जहान में 
कोशिशें करके संभलना ही पड़ेगा ... 
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एक हंस और हंसिनी 

ये कहानी आपको झकझोर देगी 2 मिनट में,एक अच्छी सीख अवश्य पढ़ें...*. एक बार एक हंस और हंसिनी हरिद्वार के सुरम्य वातावरण से भटकते हुए, उजड़े वीरान और रेगिस्तान के इलाके में आ गये! हंसिनी ने हंस को कहा कि ये किस उजड़े इलाके में आ गये हैं ?? यहाँ न तो जल है, न जंगल और न ही ठंडी हवाएं हैं यहाँ तो हमारा जीना मुश्किल हो जायेगा ! भटकते भटकते शाम हो गयी तो हंस ने हंसिनी से कहा कि किसी तरह आज की रात बीता लो, सुबह हम लोग हरिद्वार लौट चलेंगे ! रात हुई तो जिस पेड़ के नीचे हंस और हंसिनी रुके थे, उस पर एक उल्लू बैठा था। वह जोर से चिल्लाने लगा... 

जब तलक व्यभिचार को 

समाचार बनाने का कौशल... 

'कर -नाटक ' होता रहेगा 

जब तलक व्यभिचार को समाचार बनाने का कौशल ....... करती रहेगी 'कर -नाटक ' होता रहेगा। जब तलक एमएलएज को रेबड़ की तरह हाँक कर होटल में बंद किया जाता रहेगा 'कर -नाटक 'होता रहेगा। कांग्रेस मुक्त भारत का मतलब -नारी को ,एमएलएज को अपहरण से बचाने का संकल्प है। इस अपहरण नाटक की शुरुआत विषकन्या कांग्रेस ने ही की थी। जब तलक ये विषकन्या जीवित है भारत मरता रहेगा। लोकतंत्र वोटतंत्र बना रहेगा। पाकिस्तान की बांछे खिलती रहेंगी। यूं अपनी बुद्धि से न कोई कहीं पैदा हो सकता है न मर सकता है। परन्तु किसी अबुद्ध कुमार (अबुध कुमार मूर्खमणि )का राजपरिवार में पैदा होना कितना घातक हो सकता है इसे बतलाने समझाने दोहराने की ज़रुरत नहीं है। कांग्रेस एक विघटनकारी बल है जब तलक ये बल है भारत मरता रहेगा। पाकिस्तान में देश को तोड़ने की पटकथा कंकड़ मणि भयंकर एवं ऐसे ही अन्यों को भेज लिखवाती रहेगी । पहले इनके पुरखे गोरों के ,फिरंगियों के मुखबिर थे जिनके पक्ष में गवाही देकर शहीद भगत सिंह को फांसी लगवाई गई थी। कर्नाटक में नाटक करके येदियुरप्पा के इस्तीफे पर जो विषकन्या कांग्रेस जश्न मना रही है उसे शर्म आनी चाहिए। अपने ही विधायकों को नज़रबंद करके उसने ये मुकाम हासिल किया है जहां वह आज पाक के इशारे पर तमाम संविधानिक संस्थाओं को बराबर निशाने पे लिए हुए है।संविधानिक प्रमुखों के लिए केजरवालीय सम्बोधनों का इस्तेमाल करती करवाती रहेगी...

Virendra Kumar Sharma  
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क्षणिका चयन-01 :  

मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद 

उमेश महादोषी  
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यादों का कोई सिलेबस नहीं होता 

सच है यादें जीवन के अध्ययन के लिए ज़रूरी हैं पर इनका कोई पाठ्यक्रम तय नहीं होता । जब भी आतीं हैं कुछ न कुछ सिखा जनतीं हैं । कोई तयशुदा पाठ्यक्रम कहाँ है इनका । परीक्षाएं अवश्य ही होतीं हैं । पेपर भी हल करता हूँ । पास भी होता हूँ फेल भी । चलीं आतीं हैं पिछले दरवाज़ों से और कभी स्तब्ध करतीं हैं तो कभी हतप्रभ कब तक ज़ेहन में रुकतीं हैं किसी को मालूम नहीं होता... 
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आदत बुरी है ...  

डॉ. इन्दिरा गुप्ता 

उनकी नजरों मैं हमने देखा  
बला की चाहत छुपी हुई है  
छलक के आँसू निकल के बोला  
यही तो आदत बड़ी बुरी है... 
yashoda Agrawal - 
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स्वार्थ 

purushottam kumar sinha  
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मैं अकिंचन..... 

udaya veer singh  
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एक पलायन ऐसा भी 

चाहती हूँ देखना तुम्हे तुम्हारी सम्पूर्णता में 
बस एक कदम की ही तो ये नामालूम सी दूरी 
है बनाई सुनो तुम जानते हो न 
निगाहों की भी उम्र होती है ... 
झरोख़ा पर निवेदिता श्रीवास्तव 
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5 टिप्‍पणियां:

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