सुधि पाठकों!
बुधवार की चर्चा में
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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मजदूर दिवस
आज मजदूर दिवस है हम न खुद मजदूर हैं और न सीधे इन मजदूरों के संपर्क में हैं। एक काम वाली बाई ही मजदूरों के नाम पर संपर्क में रहती है। अभी कुछ दिन पहले छोटे से काम के लिए एक मजदूर लेकर आये थे पूरे दिन की दिहाड़ी तीन सौ रुपए देकर। उसका काम करने का टालू तरीका देख समझ आ गया कि इसे काम बता कर अंदर नहीं जाया जा सकता। खैर उसे बताया क्या करना है कैसे करना है लेकिन उसकी सुस्त रफ्तार देख कोफ्त होने लगी। फिर मैंने उससे कहा अच्छा तुम तो हमेशा ये काम करते हो तुम बताओ कैसे करें?...
कासे कहूँ? पर
kavita verma
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धीरे-धीरे हो जाएगी आदत ज़ख़्म खाने की
मैं अदना-सा इंसां,
सामने ताक़त ज़माने की
फिर भी ख़्वाहिश है
फिर भी ख़्वाहिश है
, आसमां का चाँद पाने की।
कभी हमें भी नज़र उठाकर देखो तुम
बड़ी तमन्ना है
बड़ी तमन्ना है
आपसे नज़र मिलाने की ।
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नकारात्मकता फैला कर
सकारात्मकता बेचने वालों के लिये
सजदे में सर झुका जा रहा था
सुशील कुमार जोशी at
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क्षणिकाएँ
(1) झूठ .......
दिल का थोड़ा थोड़ा टूटना
मन का थोड़ा थोड़ा गिरना
जिस्म को थोड़ा थोड़ा मारता है
लोग झूठ बोलते हैं
वो अचानक चला गया। .
देवेन्द्र पाण्डेय at
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जिन्दगी - A easiest thing
डॉ. अपर्णा त्रिपाठी at
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एक गीत -
फूलों की आँखों में जल है
जयकृष्ण राय तुषार at
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बेहतरीन लिंक्स एवं प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएंसार्थक चर्चा।
जवाब देंहटाएंआपका आभार राधा बहन जी।
शुभ प्रभात सखी
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
सुप्रभात |मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद राधा जी |
जवाब देंहटाएंसुन्दर बुधवारीय चर्चा। आभार राधा जी 'उलूक'के सूत्र को भी चर्चा में जगह देने के लिये।
जवाब देंहटाएंउम्दा संकलन
जवाब देंहटाएंपठनीय सामग्री से सुसज्जित आज का चर्चामंच ! मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हृदय से बहुत-बहुत धन्यवाद एवं आभार राधा जी !
जवाब देंहटाएंआभार आपका मुझे पुनः स्थान देने के लिए।
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