मित्रों!
शुक्रवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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भीड़ का रहनुमा
वह रहता है
हरदम युवाओं के कंधे पर सवार
रचता है मन्त्र उन्माद का
और फूँक देता है
क्षुब्ध नौजवानों के कानों में...
Himkar Shyam
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मोहब्बत का सफ़र
आज तुम आये मेरे पास
और कहा कि जो तुमने लिखा है न
"तुझे मेरी आरज़ू तो है पर मोहब्बत नहीं "
ऐसा नहीं है मैंने कभी
मोहब्बत के बारे में सोचा ही नहीं...
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चले आए हो
( राधा तिवारी " राधेगोपाल ")
चले आए हो
चले आए हो तो बता कर तो आते।
कभी हम सताते कभी तुम सताते।।
दिलों की यह दूरी तो कम हो गई है ।
जमाने से हम प्यार को है छुपाते...
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झूठ बेचते सितारे !
देखने वाला तंग हो जाता है, हर पांच मिनट के बाद "बेल्ले" हीरो को झेल, जो दिन भर कुत्ते-बिल्ली की तस्वीर खींचता बैठा है और उसे बिना कैमरे के पता ही नहीं चलता कि उसका कुत्ता बिन नहाए है। एक और महाशय ने पूरे देश की जुबान को रंगने का ठेका ले सबके दिमाग की ऐसी की तैसी कर धर दी है ! हमारे सिरमौर नायक ठंडे पेय के गुण-गान में इतने मग्न हो जाते हैं कि उन्हें पता ही नहीं चलता कि हाथ में पकड़ी हुई बोतल के बावजूद उनकी जैकेट कैसे उतर जाती है ! एक तो गजबे ही है जो अपनी पहचान अपने काम या नाम से नहीं बल्कि शरीर पर थोपे जाने वाले डेडोरेंट से करवाता है ! वही हाल RO वाले पानी के फ़िल्टर का है जिसके बारे में बार-बार कहा जाता है कि वैसे फ़िल्टर की जरुरत सब जगह नहीं होती पर वह महोदया बिना झिझक उसे सर्वश्रेष्ठ बताती चली आ रही हैं ! इनसे तो वोडाफोन की वे "चिट्टियाँ" गुड़ियाँ लाख दर्जे बेहतर हैं जो संदेश के साथ-साथ हर बार चेहरे पर मुस्कान ला देती हैं......
कुछ अलग सा पर गगन शर्मा,
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डाॅक्टर बनने की राह
आसान बनाने हेतु
एक सार्वजनिक अपील
माउंटेन मैन के नाम से विख्यात दशरथ मांझी को आज दुनिया भर के लोग जानते हैं। वे बिहार जिले के गहलौर गांव के एक गरीब मजदूर थे, जिन्होंने अकेले अपनी दृ़ढ़ इच्छा शक्ति के बूते अत्री व वजीरगंज की 55 किलोमीटर की लम्बी दूरी को 22 वर्ष के कठोर परिश्रम के बाद गहलौर पहाड़ काटकर 15 किलोमीटर की दूरी में बदलकर ही दम लिया। ऐसा उन्होंने इसलिए किया क्योंकि जब वे गहलौर पहाड़ के दूसरे छोर पर लकड़ी काट रहे थे तब उनकी पत्नी उनके लिए खाना ले जा रही थी और उसी दौरान वह पहाड़ के दर्रे में गिर गई, जिससे चिकित्सा के अभाव में उसकी मृत्यु हो गई, क्योंकि वहां से बाजार की दूरी बहुत थी। उनके मन में यह बात घर कर गई कि यदि समय पर उनकी पत्नी का उपचार हो गया होता तो वह जिन्दा होती। इसलिए उन्होंने उसी समय ठान लिया कि वे अकेले दम पर पहाड़ के बीचों-बीच से रास्ता निकालकर ही दम लेगें, जो उन्होंने तमाम तरह की कठिनाईयों के बावजूद कर दिखाया। यहां एक बात साफ है कि यदि गांव में चिकित्सा सुविधा उपलब्ध होती तो शायद उनकी पत्नी की जान बच गई होती...
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----- ॥ दोहा-पद॥ -----
खोल के पुरट-पट घन स्याम रंग दिखराए रे,
हाय हरियारा सावन झुम के नियराए रे..,
रूप हरे धूप भरे इंद्रधनुष कहुँ चंग दै,
गरज-गरज घोर घनी काली घटा छाए रे..,
हाय हरियारा सावन झुम के नियराए रे..,
रूप हरे धूप भरे इंद्रधनुष कहुँ चंग दै,
गरज-गरज घोर घनी काली घटा छाए रे..,
NEET-NEET पर
Neetu Singhal
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फ़ेसबुक ट्विटर पर
ब्लॉक-ब्लॉक खेलने वालों,
जरा संभल कर...
क्योंकर हो गई है जिंदगी ब्लॉक
हर कोई कर रहा दूजे को ब्लॉक
वक्त हाथ से हाथ मिलाने का है
मेरा दोस्त इधर कर रहा ब्लॉक...
Ravishankar Shrivastava
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पीर प्रसव की...
पीर प्रसव की
यूं ही तो नहीं होती है
इसमें भी तो इक चाहत जन्म लेती है
और जन्म किसी का भी हो
पीर बिना ना हो सकता ..
एक प्रयास पर vandana gupta
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चलूँ कि बहुत अँधेरा है
हाथ को हाथ दिखाई नहीं देता
रूह जाने किस द्वारका में
प्रवेश कर गयी है कि
अजनबियत तारी है खुद पर ही...
vandana gupta
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शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
आपके आशीष का अति आभार आदरणीय।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति में मेरी पोस्ट शामिल करने हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा
जवाब देंहटाएंसुंदर चर्चा, पठनीय लिंक्स
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