मित्रों!
रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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"माँ के उर में ममता का व्याकरण समाया है"
मातृदिवस पर विशेष
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माँ ने वाणी को उच्चारण का ढंग बतलाया है,
माता ने मुझको धरती पर चलना सिखलाया है,
खुद गीले बिस्तर में सोई, मुझे सुलाया सूखे में,
माँ के उर में ममता का व्याकरण समाया है,
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इंतजार है इज़हार करने का
गुलाब हाथ में है
तसवीर ख़्वाब में है
वफ़ा करने का नशा है
बता तो सही
तू है तो कहाँ है
उलूक टाइम्स पर सुशील कुमार जोशी
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[ मेरी अम्मा स्व. श्रीमती सुशीला नरेन्द्र शर्मा
व मेरे पापा जी प्रसिद्ध गीतकार नरेंद्र शर्मा जी के
गृहस्थ जीवन के सँस्मरण ।]
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बेदाम मोहब्बत
तमाम कोशिशें उन्हें पाने की गोया नाकाम हुई
रातें कटती हैं करवटों में मेरी तो नींदें हराम हुई...
मेरी जुबानी पर Sudha Singh
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यादें:
जो रहती हैं ताउम्र ताज़ी।
जज़्बातों को तुम समेट लेना,
मैं रख लूँगा तुम्हारा मन।
कि बिखरने न पाये सबंधों की गठरी
और हाँ, बोझ भी न बनने पाये।
बना रहे जीवन में हल्कापन...
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वह अनजान औरत
पार्क में सन्नाटा भरता जा रहा था मैं अब अपनी समस्त शक्ति को श्रवणेन्द्रियों की ओर मोड़ कर उनकी बातचीत सुनने का प्रयत्न करने लगा। पार्क की लाइटें एक एक करके जलने लगी थीं। छोटे बच्चे धीरे धीरे जाने लगे पार्क में टहलने आने वाले बुजुर्ग भी अब बाहर की तरफ बढ़ने लगे कुछ युगल जोड़े अभी भी झाड़ियों के झुरमुट में थे लेकिन उनकी आवाज़ बमुश्किल
एक दूसरे तक पहुँचती होगी इसलिए उनसे कोई शोर नहीं होता...
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शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
सुन्दर रविवारीय चर्चा अंक। आभार आदरणीय 'उलूक' के सूत्र को भी स्थान देने के लिये।
जवाब देंहटाएंमातृृदिवस की आपको व सभी पाठकों को हार्दिक शुभकामनायेंं ! बहुत सुन्दर सूत्रों से सजा हुआ आज का चर्चामंच ! मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हृदय से बहुत-बहुत धन्यवाद एवं आभार शास्त्री जी ! सादर वन्दे !
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति. मेरे सूत्र को स्थान देने के लिए शुक्रिया आदरणीय.
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