मित्रों! अनन्त चतुर्दशी का हार्दिक शुभकामनाएँ! सितम्बर का अन्तिम रविवार है। आपके लिए कुछ लिंक पेश कर रहा हूँ! तराने सुहाने गणपति बप्पा मोरिया, अगले बरस तू जल्दी आ!
गअनन्त चतुर्दशी की सभी पाठकों. श्रोताओं को हार्दिक शुभकामनायें ! आज गणपति की विदाई का दिन है ! अगले वर्ष वे जल्दी आयें और वे परम विघ्नहर्ता सभी के दुःख दूर करें इसी मंगलकामना के साथ आज इस पर्व का समापन करती हूँ ! शुभकामनायें !
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शौकएक दिन तुमने बातों बातों में बताया था कि तुम्हे .. बचपन से शौक था तुम्हारा खुद के बनाये मिटटी के खिलौनों से खेलना और फिर उनको खेल के तोड़ देना आज भी तुम्हारा वही खेल जारी है बस खेलने और खिलौनों के वजूद बदल गए हैं |....... |
आपको सीखना होगा मनमोहन जी पैसे पेड़ पर नहीं उगते...एक तरफ देश को आर्थिक संकट से उबारने के लिए जनता पर बोझ पर बोझ डाला जा रहा है और दूसरी तरफ जनता की गाढ़ी कमाई (टैक्स) से नेता ऐश कर रहे हैं। घोटाले पर घोटाले कर रहे हैं। नेताओं के अविश्वसनीय आंकड़ों वाले घोटाले लगातार सामने आ रहे हैं और जनता पर डीजल के दामों में बढ़ोत्तरी कर बोझ डाला जा रहा है। रसोई गैस सिलेंडरों की संख्या सीमित कर घर का बजट बिगाडऩे का काम किया जा रहा है और सरकारी पैसे से नेता विदेशों में घूम-घूमकर करोड़ों रूपए बरबाद कर रहे हैं। किसी भी विदेश यात्राओं से यदि कुछ बेहतर निकलकर आता तो फिर भी इन खर्चों को कुछ हद तक जायज ठहराया जा सकता था लेकिन हो कुछ नहीं रहा है… |
अलग फितरत से खुद को कर नहीं पातेपरिंदों के घरौंदों को , उजाड़ा था तुम्हीं ने कल , मगर अब कह रहे हो , डाल पर पक्षी नहीं गाते। तुम्हीं थे जिसने वर्षों तक , न दी जुम्बिश भी पैरों को , शिकायत किसलिए , गर दो कदम अब चल नहीं पाते ? वो पोखर , झील , नदियाँ , ताल सारे पाटकर तुमने , बगीचे , पेड़ - पौधे , बाग़ सारे काटकर तुमने , खड़ी अट्टालिकाएं कीं , बनाए महल - चौमहले , मगर अब कह रहे , बाज़ार में भी फल नहीं आते। ये कुदरत की , जो बेजा दिख रही तसवीर है सारी , तुम्हारी ही खुराफातों की , ये तासीर है सारी… भुवन मोहिनी हिंदी
हिंदी की त्रिगुण त्रिवेणी की पावन धारा
बहती सदा रहे साहित्य सृजन में .
इसके पावन जल से सिंचित
हो सकल विश्व का जनमानस ,
अज्ञान तिमिर को परे हटाये
हिंदी भाषा की जगमग आभा .
जोड़े जन-गण के मानस को ...
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छोड़ा है मुझको तन्हा --- बेकार बनाके, - छोड़ा है मुझको तन्हा --- बेकार बनाके, मेरे ही गम का मुझको - औज़ार बनाके, तड़पाया उसने मुझको, हर रोज़ सजा दी, यादों को भर है डाला… | यादें तेरी गोदी में जब झुलाती हैं - नदियाँ कितनी -- आँखें मेरी बहाती हैं, यादें तेरी गोदी में - - - जब झुलाती हैं, थोड़ी-थोड़ी अब भी - उम्मीद है बाकी, आजा तुझको साँसे - - मेरी बुलाती हैं… |
पाता जीवन श्रेष्ठ, लगा सुत पाठ-पढ़ानेपौधा रोपा परम-प्रेम का, पल-पल पौ पसरे पाताली | पौ बारह काया की होती, लगी झूमने डाली डाली | जब पादप की बढ़ी उंचाई, पर्वत ईर्ष्या से कुढ़ जाता - टांग अड़ाने लगा रोज ही, काली जिभ्या बकती गाली | |
उत्तर प्रदेश सरकार राजनीति छोड़जमीनी हकीकत से जुड़े.सरकारें बदलती हैं पर राज्य प्रशासन चलने के तरीके नहीं बदलते .मायावती सरकार ने राज्य का धन वोट बटोरने को जिले बनाने में खर्च कर दिया पहले पूर्ण विकसित बडौत की जगह अविकसित बागपत बनाया और अब जाते जाते कानून व्यवस्था में अविकसित शामली को जिले का दर्जा दे वहां के खेतों के लिए मुसीबत खड़ी कर गयी मुसीबत इसलिए क्योंकि प्रशासन अब किरण में समस्त न्यायालयों की सुविधा होने के बावजूद जिला न्यायालय मुख्यालय पर होने के बहाने की पूर्ति के लिए खेतो की जमीन की ओर देख रहा है .दूसरी ओर अखिलेश यादव हैं जिनकी सरकार कभी बेरोजगारी भत्ता तो कभी… |
इंसानी दिमाग स्त्री और पुरुषों को अलग-अलग तरीके से देखता हैइंसानी दिमाग स्त्री और पुरुषों को अलग-अलग तरीके से देखता है. स्त्रियों का दिमाग भी यह भेदभाव करता है. *नज़र का फर्क * यह शिकायत महिलाओं, बल्कि संवेदनशील पुरुषों की भी रही है कि समाज में स्त्री को एक वस्तु की तरह देखा जाता है, इंसान की तरह नहीं। मनोरंजन के साधन और व्यावसायिक हित महिलाओं को वस्तु की तरह पेश किए जाने को बढ़ावा दे रहे हैं। स्त्री-पुरुष बराबरी हासिल करने के लिए जरूरी है कि स्त्रियों को सिर्फ एक वस्तु नहीं, एक इंसान की तरह सम्मान देना जरूरी है। लेकिन इसके लिए यह जानना जरूरी है कि इस दुराग्रह या पक्षपात की जड़ें कितनी गहरी हैं।… |
"डिश " के रोग निदान की युक्तियाँ (पांचवीं एवं छटी किस्त संयुक्त )ज़ाहिर है काया चिकित्सक (भौतिक चिकित्सक )यहाँ भी शुरुआत फिजिकल एग्जामिनेशन से ही करता है .चिकित्सक आपकी रीढ़ के थोरासिक (वक्षीय ),स्पाइनल (ग्रीवा सम्बन्धी भाग ),और लम्बर स्पाइन (निचली कमर से सम्बद्ध रीढ़ का हिस्सा )को हलके हाथ से दबा के देखेगा ,यहाँ वहां जोड़ों को भी अस्थि पंजर के कि कहीं कोई एब्नोर्मलइति तो नहीं है ,गडबड तो नहीं है .असामान्य बात तो नहीं है .ठीक ठाक है आपकी रीढ़ या नहीं .* * * *दबाने पर यदि आप कराहतें हैं तो यह उसके लिए एक संकेत हो सकता है डिश का (Diffuse idiopathic skeletal hyperscolosis... |
ज़लजला(एक भीषण परिवर्तन) ((क)वन्दना (४) राष्ट्र-वन्दना ! मेरे भारत देश ! (ब) - ! मेरे भारत देश ! मेरे भारत देश,’पिता’ का,तुमने सब को ‘प्यार’ दिया है | ‘माता’ बनकर,’ममता’ बाँटी,कितना मधुर दुलार दिया है || | यादें तेरी गोदी में जब झुलाती हैं नदियाँ कितनी -- आँखें मेरी बहाती हैं, यादें तेरी गोदी में - - - जब झुलाती हैं, थोड़ी-थोड़ी अब भी - उम्मीद है बाकी, आजा तुझको साँसे - - मेरी बुलाती हैं, खाकर ‘अन्न’,’दूध सा जल’पा... |
"आशिक"वो अब हर बात में पैमाना ढूंढते हैंमंदिर भी जाते हैं तो मयखाना ढूंढते हैं । मुहल्ले के लोगों को अब नहीं होती हैरानी जब शाम होते ही सड़क पर आशियाना ढूंढते हैं । उलूकटाइम्स | एकांत-रुदन... ज़िन्दगी में दोस्तों का होना कितना ज़रूरी हो जाता है कभी-कभी... कोई फोर्मलिटी वाले दोस्त नहीं, दोस्त ऐसे जिन्हें दोस्ती की बातें पता हो... मोनाली की भाषा ... खामोश दिल की सुगबुगाहट... |
Mushayera पर
*तेरे ग़म को जाँ की तलाश थी, तेरे जाँ-निसार चले गये
| त्रिपाठी बाबू जी रेखा कई दिनों से महसूस कर रही थी कि विपिन के साथ सब कुछ ठीक नहीं था।.. Arvind Jangid |
hindigen प्रेम एक अहसास ! प्रेम दिखाना नहीं पड़ता हमने तो खोले अपने हृदय के द्वार बैरी का भूल कर बैर , बढे आगे गले लगाने को पर ये क्या ?.. | स्वप्न का स्वर्ग गरम गरम ख्याल - वक्त बेवक्त ताज़ा गरम गरम.. जो ख्याल आते जाते हैं.! महसूस करके देखो साथी.. वही आपका वजूद बनाते हैं! .. | काव्य का संसार याद रखे दुनिया ,तुम एसा कुछ कर जाओ - याद रखे दुनिया ,तुम एसा कुछ कर जाओ तुम्हारा चेहरा ,मोहरा और ये आकर्षण… |
श्याम स्मृति..The world of my thoughts...डा श्याम गुप्त का चिट्ठा.. अगीत साहित्य दर्पण (क्रमश:) अध्याय तीन-वर्तमान परिदृश्य एवं भविष्य की संभावना.......डा श्याम गुप्त... - *....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ.. | ठाले बैठे कुछ फुटकर दोहे बाबा फ़रीद:- कागा सब तन खाइयो, चुन-चुन खइयो मास दो नैना मत खाइयो, पिया मिलन की आस केशवदास:- केशव केसन असि करी जस अरि हु न कराय चन्द्र वदन मृग लोचनी बाबा कहि-कहि जाय... | "कुछ कहना है" कथा-सारांश : भगवती शांता परम-19 सर्ग-4 भाग -7 कौला का वियोग अंग-अवध छूटे सभी, सृंगी के संग सैर | शांता साध्वी सी बनी, चाहे सबकी खैर || कौला मुश्किल से सहे, हुई शांता गैर … |
नीम-निम्बौरी भूले सही उसूल, गलत अनुसरण कराते- झूठ-सांच की आग में, झुलसे अंतर रोज | किन्तु हकीकत न सके, नादाँ अब तक खोज | नादाँ अब तक खोज, बड़े वादे दावे थे | | चौखट उस थाली में क्या था....? - *कीमती लोग कीमती भोग*** एक थाली पर कितना खर्चा है..आजकल इसकी बड़ी चर्चा है। पता नहीं क्यों ताकते हैं लोग दूसरे की थाली में....क्या क्या भरा थाली में... | मनोरमा यह मुर्दों की बस्ती है - व्यर्थ यहाँ क्यों बिगुल बजाते, यह मुर्दों की बस्ती है कौवे आते, राग सुनाते. यह मुर्दों की बस्ती है यूँ भी शेर बचे हैं कितने, बचे हुए बीमार अभी राजा गीदड़ दे... |
भावो की उड़ाननहीं जानता इन शब्दो का कारण, मेरे मन मे ऐसे भाव उठ रहे है, खूब चाहा आज दबाना इन्हे, लेकिन यह कहाँ रुक रहे हैं। कहीं चेहरो की रंजिश ने दाबिश दी है, कहीं औरो के ख्याल दिख रहे हैं, लोगो की सुनी तो दिवाना ना बना, आज दिलो से जंजाल बिक रहे हैं। तेरे चेहरे को देख कर खुदा भी ना माना, कुदरत जो अदभुद यह आकार लिख रहे हैं, बारिशो की रंजिश मै भीगना चाहता हुँ आज, लेकिन ‘प्रतीक’ दिल मे कई कलाकार टिक रहे हैं। मेरे मन से कई पार दिख रहे हैं, आवारा भावो के सत्कार दिख रहे है……………मुझे मेरे कई कलाकार दिख रहे हैं……………….! धन्यवाद प्रतीक संचेती |
अब ऑनलाइन फ्री कोर्सेज करना हुआ आसान आज मै आपको एक ऐसे ब्लॉग पर लेकर चलता हूँ जो हाल ही में शुरू हुआ है.ये ब्लॉग ऑनलाइन एज्युकेशन के शौक़ीन विजिटर्स के लिए एक इनाम है.इस ब्लॉग की लेंग्वेज रोम... |
याद आई है.... - चांद ने अपनी चांदनी बिखराई है मुझको फिर आपकी याद आई है । इंतजार का यही सिला मिला मुझे कि वक्त ने फिर दुश्मनी निभाई है।। |
बच्चों की खिलती मुस्कान भाग्य ने अपने सारे दाँव कॉन्क्रीट के जंगलों में लगा दिये हैं, बड़े नगरों में ही समृद्धि की नयी परिभाषायें गढ़ने में लगी हैं सभ्यतायें।… न दैन्यं न पलायनम् |
बेचैन आत्मा मैसेज - मैसेज का क्या है, कभी भी आ सकता है! कल रात जब मैं बेडरूम में सोने से पहले मूड बना रहा था तभी मैसेज आ गया। अनमने भाव से पढ़ा तो चौंक .. | उन्नयन (UNNAYANA) क्या थे वादे ..... **क्या थे वादे .....* * **क्या थे वादे , क्या निभाया * *क्या निभाना शेष है * *स्मृतियों का लोप होना , उदय वीर सिंह | जाले चलो अपने गाँव चलें - मन अब भर चुका है डीजल और पेट्रोल के धुएं से खारा लगता है क्लोरीनी पानी ताजा पियेंगे अपने कुँए से चलो अपने गाँव चलें… |
धोनी : क्रिकेट का कलंक ...मैदान में पानी ना मंगवाया तो धोनी नहीं इतना सख्त शब्द मैं यूं ही इस्तेमाल नहीं कर रहा हूं, इसकी ठोस वजह है।…. | ये खेल निराला है*टांग खिंच कर अपनों की, * *जहाँ ख़ुशी मानते हैं लोग,* *दे कर धोखा अपने को ही * *करते चतुराई का उपोयोग !* * **खरीद पोख्त का मायावी,* *बड रहा अब ये कारोबार,* *गाँव गरीवों से नोट चुराकर,* *करते खुल कर यहाँ व्यापार !* * **देश धर्म से ऊपर उठ कर,* *खुद को कहते पालनहार,* *वोट मांगने दर पर पहुंचे,.. |
"पुकारती है भारती"
जो राम का चरित लिखें,
वो राम के अनन्य हैं,
जो जानकी को शरण दें,
वो वाल्मीकि धन्य हैं,
ये वन्दनीय हैं सदा, उतारो इनकी आरती।
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अन्त में देखिए ये दो कार्टून! |
येदियुरप्पा भी 'माता' के द्वारे? |
चाचा, मामा, फूफा, जीजा, साला सब खुश!! Cartoon by Kirtish Bhatt (www.bamulahija.com) |