मित्रों।
रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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ख्वाहिशें
कभी कभी मेरे मन में यूँ ख्याल आता है OLX कर दूँ अपनी सब ख्वाहिशें जो जुड़ी थीं सिर्फ तुम से साथ ही OLX हो जाएँगी सब उम्मीदें जो जुड़ी थीं सिर्फ तुम से बदल कर...
गुज़ारिश
कभी कभी मेरे मन में यूँ ख्याल आता है OLX कर दूँ अपनी सब ख्वाहिशें जो जुड़ी थीं सिर्फ तुम से साथ ही OLX हो जाएँगी सब उम्मीदें जो जुड़ी थीं सिर्फ तुम से बदल कर...
गुज़ारिश
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!! दूध का दूध पानी का पानी !!
देख मलाई-रबड़ी जब मुंह में आये पानी,
कैसे करे कोई,दूध का दूध पानी का पानी!
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.....'दूध का दूध पानी का पानी' मुहावरा केवल विपक्ष के लिए बना है.जिसके पक्ष में कुर्सी आई,उसके लिए इस मुहावरे का कोई अर्थ नहीं.बल्कि तब तो ये मुहावरा पक्ष के लिए 'अनर्थ' बन जाता है.इस लिए पक्ष वाले इस मुहावरे से कन्नी काटते हैं और विपक्ष वाले इस मुहावरे को पानी पी पी कर दिन में सौ बार दोहराते है...
अशोक पुनमिया का ब्लॉग
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पास-पास ही रहूँगी....
न सींचो
शब्द-जल से
कि एक दिन
पल्लवित-पुष्पित हो
घना तरूवर बनूंगी...
रूप-अरूप
न सींचो
शब्द-जल से
कि एक दिन
पल्लवित-पुष्पित हो
घना तरूवर बनूंगी...
रूप-अरूप
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नालंदा –
ज्ञानपीठ नालंदा मैं था
गुरुजनों का प्रसाद
किसी जमाने में बच्चों
मैं रहा बहुत आबाद
राजा कुमार गुप्त ने
मुझे स्थापित करवाया
पाली भाषा में विद्यार्थी
करते पठन संवाद...
श्रीमती सपना निगम (हिंदी )
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पहाड़ी वादियों में
" पी जाओ म्यॉर पहाड़ को ठंडो पाणी खै जाओ जंगलू हवा ठंडो ठंडो पाणी
घाम की यो काली मुखड़ी है जाली गुलाबी
देखो रे देखो फुल बुरुसी फूली रै छो
ठंडो पाणी --ठंडो पाणी --ठंडो पाणी
रसीला काफल खाओ, रसीला किलमोड़ी
सेब,अनारा, आड़ू, मेहला, दाणिमा
खुबानी देखो रे बैणा माठ मादिरा चम चमकिनी
रंगीलो मुलुक देखो कुमु गढ़्वाला
देबों की जनमभुमि बैकुंठी हिमाला
आओ रे आओ म्यॉर पहाड़ा धात लगूनी
ठंडो पाणी --ठंडो पाणी --ठंडो पाणी "
इस बीच जब कभी आकाश में कोई उमड़ता-घुमड़ता बादल का टुकड़ा पहाड़ की चोटी को छूता और कभी उससे बचकर हवा में स्वच्छंद भाव से तैरता-फिरता नजर आता है तो मन आवारा होकर उसके साथ उडान भरने को आतुर हो उठता है...
KAVITA RAWAT
" पी जाओ म्यॉर पहाड़ को ठंडो पाणी खै जाओ जंगलू हवा ठंडो ठंडो पाणी
घाम की यो काली मुखड़ी है जाली गुलाबी
देखो रे देखो फुल बुरुसी फूली रै छो
ठंडो पाणी --ठंडो पाणी --ठंडो पाणी
रसीला काफल खाओ, रसीला किलमोड़ी
सेब,अनारा, आड़ू, मेहला, दाणिमा
खुबानी देखो रे बैणा माठ मादिरा चम चमकिनी
रंगीलो मुलुक देखो कुमु गढ़्वाला
देबों की जनमभुमि बैकुंठी हिमाला
आओ रे आओ म्यॉर पहाड़ा धात लगूनी
ठंडो पाणी --ठंडो पाणी --ठंडो पाणी "
इस बीच जब कभी आकाश में कोई उमड़ता-घुमड़ता बादल का टुकड़ा पहाड़ की चोटी को छूता और कभी उससे बचकर हवा में स्वच्छंद भाव से तैरता-फिरता नजर आता है तो मन आवारा होकर उसके साथ उडान भरने को आतुर हो उठता है...
KAVITA RAWAT
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चौवालीस निकम्मे और भ्रांत नेतृत्व
कुल चौवालीस सांसद हैं इनमें से कोई १५ -२० तो हाईकमान के चापलूस हैं। शेष उच्चक्के गलियों में काम ढूंढ रहें हैं ,इन्हें कहीं मिट्टी पड़ी नज़र आ जाती है तो ये फ़ौरन कहतें हैं देखो यहां कित्ती मिट्टी पड़ी हुई है और प्रधानमन्त्री स्वच्छता अभियान की बात करते हैं...
आपका ब्लॉग पर
Virendra Kumar Sharma
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कितना एहसान यार करता है
मुझपे वह जाँ निसार करता है।
यूँ मुझे शर्मसार करता है।।
खेँच लेता है ख़ून रग रग से,
वक़्त जब भी शिकार करता है...
अंदाज़े ग़ाफ़िल पर
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’
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कहीं बच्चे भी कभी बड़े होते हैं ?
भाग-4
अनगिनत चिंताओं की लेके थाती 'बाट जोहेगी तुम्हारी माँ' कह नहीं विदा किया तुझे फिर भी जाने कहाँ से चिंताओं के बादल घुमड़ रहे हैं क्योंकि जानती हूँ समय के ...
vandana gupta
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खेल खेल में
बाल कहानी * खेल खेल में*
अंकुश स्कूल से लौटा तो मम्मी ने कहा --
"बेटा अंकुश तीन दिन के लिए मुझे और तेरे पापा को मुंबई जाना है बुआ के यहाँ ,उनकी बेटी की सगाई है...तू चलेगा ?' "नहीं मम्मी परीक्षाए निकट आ रही हैं तो आजकल पढ़ाई का विशेष प्रेशर है...एक्सट्रा क्लासेज भी हो रही हैं।पर आप तीन दिन के लिए क्यों जा रही हैं।सफर एक रात का ही तो है...
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अन्धविश्वास और किवदंतियाँ !
वर्षों पहले जब हमारी माँ ने अपने बच्चों को जन्म दिया था , तब की काल , परिस्थितियाँ और शिक्षा का परिदृश्य कुछ और था। लेकिन रोज रोज सामने आने वाली स्थितियाँ और घटनाएँ हमें फिर सोचने पर मजबूर कर रही हैं कि क्या हम वाकई एक तरफ चाँद से बातें कर रहे हैं और दूसरी तरफ अन्धविश्वास के दलदल से अभी तक बाहर नहीं आ पा रहे हैं...
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दोहराव
यह मुमकिन है कि
कुछ बातें रह जाती हैं कहने से
यह मुमकिन है कि
कुछ बातें रह जाती हैं सुनने से...
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अपने अकेलेपन में ऐसे पाये सफलता !
अक्सर हमारी जिंदगी में ऐसे पड़ाव भी आते हैं, जब हम खुद को खुद को बहुत अकेला महसूस करते हैं। ऐसे हालात के आने का कोई समय या कोई उम्र नही होती। ये उम्र के किसी भी पड़ाव पर आ सकते हैं। अब हम इन हालातो से कैसे निपटे...
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"दस दोहे"
(अमन 'चाँदपुरी')
आपका ब्लॉग पर Aman Chandpuri
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सूर्य के शब्द।
हे दानवीर पुत्र मेरे,
कर चुके हो दान
तुम अपना सब कुछ।
जो लिया था तुमने
उसके बदले
मृत पड़े हो आज यहां...
मन का मंथन पर kuldeep thakur
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