रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
मित्रों!
आज से मैं अपनी चर्चा में
किसी एक ब्लॉग की
एक उत्कृष्ट पोस्ट का पोस्टमार्टम
प्रस्तुत किया करूँगा।
--
सुशील कुमार जोशी अपने बारे में लिखते हैं-
यद्यपि मैं अतुकान्त रचनाओं का समर्थक नहीं हूँ।
इसके दो कारण हो सकते हैं। पहला तो यह कि
मैं अतुकान्त रचनाओं को गद्य की श्रेणी में मानता हूँ
और दूसरा यह कि मैं या तो अतुकान्त कविताएँ
लिखना नहीं जानता हूँ या मेरे शब्दों में पैनापन नहीं है।
लेकिन मैं "अज्ञेय" जी की कविताओं का प्रशंसक रहा हूँ।
मुझे थोड़ी सी झलक आदरणीय सुशील कुमार जोशी जी की
इस रचना में भी मुझे देखने को मिली।
आप भी देखिए उनकी यह रचना।
आज के लिए बस इतना ही।
कल फिर किसी नये ब्लॉग की
एक पोस्ट का पोस्टमार्टम करूँगा।
आज से मैं अपनी चर्चा में
किसी एक ब्लॉग की
एक उत्कृष्ट पोस्ट का पोस्टमार्टम
प्रस्तुत किया करूँगा।
--
सुशील कुमार जोशी अपने बारे में लिखते हैं-
परिचय
ना कविता लिखता हूँ ना कोई छंद लिखता हूँ अपने आसपास पड़े हुऎ कुछ टाट पै पैबंद लिखता हूँ ना कवि हूँ ना लेखक हूँ ना अखबार हूँ ना ही कोई समाचार हूँ जो हो घट रहा होता है मेरे आस पास हर समय उस खबर की बक बक यहाँ पर देने को तैयार हूँ ।
व्यवसाय
Professor
रोज़गार
Kumaun University
आज की कड़ी में -
मैं सुशील कुमार जोशी के ब्ल़ॉग
उलूक टाइम्स की एक रचना को ले रहा हूँ-
कविता को टेढ़ा मेढ़ा नहीं
सीधे सीधे सीधा लिखा जाता है
आज की कड़ी में -
मैं सुशील कुमार जोशी के ब्ल़ॉग
उलूक टाइम्स की एक रचना को ले रहा हूँ-
कविता को टेढ़ा मेढ़ा नहीं
सीधे सीधे सीधा लिखा जाता है
यद्यपि मैं अतुकान्त रचनाओं का समर्थक नहीं हूँ।
इसके दो कारण हो सकते हैं। पहला तो यह कि
मैं अतुकान्त रचनाओं को गद्य की श्रेणी में मानता हूँ
और दूसरा यह कि मैं या तो अतुकान्त कविताएँ
लिखना नहीं जानता हूँ या मेरे शब्दों में पैनापन नहीं है।
लेकिन मैं "अज्ञेय" जी की कविताओं का प्रशंसक रहा हूँ।
मुझे थोड़ी सी झलक आदरणीय सुशील कुमार जोशी जी की
इस रचना में भी मुझे देखने को मिली।
आप भी देखिए उनकी यह रचना।
मन करता है
किसी समय
एक सादे सफेद
पन्ने पर खींच
दी जायें कुछ
आड़ी तिरछी रेखायें
फिर बनाये जायें
कुछ नियम
उन आड़ी तिरछी
रेखाओं के आड़े पन
और तिरछे पन के लिये
जिससे आसान हो जाये
समझना किसी भी
आड़े और तिरछे को
कहीं से भी कभी भी
सीधे खड़े होकर
बहुत कुछ बहुत
सीधा सीधा
दिखता है
मगर बहुत ही
टेढ़ा होता है
बहुत कुछ टेढ़ा
दिखता है
टेढ़ा दिखाता है
जिसको सीधा
करने के चक्कर
में सीधा करने वाला
खुद ही टेढ़ा हो जाता है
टेढ़े होने ना होने
का कहीं कोई
नियम कानून भी
नजर नहीं आता है
ऐसा भी नहीं होता है
टेढ़ा हो जाने के
कारण कोई टेढ़ी
सजा भी पाता है
नियम कानून
व्यवस्था के सवाल
अपनी जगह
पर होते हैं
लेकिन सीधा
सीधा है का
पता टेढ़ों के साथ
रहने उठने बैठने
के साथ ही पता
चल पाता है
‘उलूक’ लिखने दे
सब को उन के
अपने अपने नियमों
के हिसाब से
सीधा होने की
कतई जरूरत नहीं है
कुछ चीजें टेढ़ी ही
अच्छी लगती हैं
उन्हें टेढा ही
रहने दिया जाता है
क्यों झल्लाता है
अगर तेरे लिखे को
किसी से भूल वश
कविता है कह
दिया जाता है ।
--किसी समय
एक सादे सफेद
पन्ने पर खींच
दी जायें कुछ
आड़ी तिरछी रेखायें
फिर बनाये जायें
कुछ नियम
उन आड़ी तिरछी
रेखाओं के आड़े पन
और तिरछे पन के लिये
जिससे आसान हो जाये
समझना किसी भी
आड़े और तिरछे को
कहीं से भी कभी भी
सीधे खड़े होकर
बहुत कुछ बहुत
सीधा सीधा
दिखता है
मगर बहुत ही
टेढ़ा होता है
बहुत कुछ टेढ़ा
दिखता है
टेढ़ा दिखाता है
जिसको सीधा
करने के चक्कर
में सीधा करने वाला
खुद ही टेढ़ा हो जाता है
टेढ़े होने ना होने
का कहीं कोई
नियम कानून भी
नजर नहीं आता है
ऐसा भी नहीं होता है
टेढ़ा हो जाने के
कारण कोई टेढ़ी
सजा भी पाता है
नियम कानून
व्यवस्था के सवाल
अपनी जगह
पर होते हैं
लेकिन सीधा
सीधा है का
पता टेढ़ों के साथ
रहने उठने बैठने
के साथ ही पता
चल पाता है
‘उलूक’ लिखने दे
सब को उन के
अपने अपने नियमों
के हिसाब से
सीधा होने की
कतई जरूरत नहीं है
कुछ चीजें टेढ़ी ही
अच्छी लगती हैं
उन्हें टेढा ही
रहने दिया जाता है
क्यों झल्लाता है
अगर तेरे लिखे को
किसी से भूल वश
कविता है कह
दिया जाता है ।
आज के लिए बस इतना ही।
कल फिर किसी नये ब्लॉग की
एक पोस्ट का पोस्टमार्टम करूँगा।
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