मित्रों।
शुक्रवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
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ग्रहण
उन्नति को ग्रहण लगा
तम और गहराया
जिससे उभर न पाया
रात दिन भयभीत रहता
कौन बैरी हो गया...
Akanksha पर Asha Saxena
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चाह तेरी खींच लाई है हमें
ज़िन्दगी जीना यहाँ नाकाम है
पीजिए तो ज़िन्दगी इक जाम है …
राह में देती बहुत गम ज़िन्दगी
दीजिये सुन्दर इसे अंजाम है...
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कविता नहीं यह - राकेश रोहित
मेरे पास नहीं हैं उतनी कविताएँ
जितने धरती पर अनदेखे अनजाने फूल हैं
आकाश में न गिने गये तारे हैं
और हैं जीवन में अनगिन दुख!...
आधुनिक हिंदी साहित्य
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कभी इस करके ,
कभी उस करके,
कभी किस करके,
कभी विश करके,
तेरी नजर में रहता हूँ.
कभी घिस करके,
कभी पिस करके,
कभी रिस करके,
कभी मिस करके,
तेरी बाट जोहता रहता हूँ.
Laxmirangam
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श्री लोकेन्द्र का यह काव्य संग्रह उनकी अपनी मातृभूमि, अपनी मां, अपने समाज और अपने परिवेश के प्रति उठती श्रद्धा, समादर, प्रेम एवं दायित्व चेता भावनाओं की अभिव्यक्ति है। उनकी यह भावाभिव्यक्ति अत्यन्त सहज, सरल एवं तरल है। कवि श्री लोकेन्द्र अपनी रचनात्मकता में प्राय: अकृत्रिम और कहीं-कहीं सपाट दिख पड़ते हैं। यह उनके काव्य लेखन का वैशिष्ट्य है और यही उनकी, कम से कम उनके साम्प्रतिक कवि व्यक्तित्व की पहचान है।...
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सुबह सबेरे त्राटक योगा
सुबह सबेरे त्राटक योगा,
सुन्दर तन-मन, भागें रोगा।
हल्की जौगिंग जो हो जाए,
सारा दिन मंगल-मय होगा...
Anand Vishvas
सुबह सबेरे त्राटक योगा,
सुन्दर तन-मन, भागें रोगा।
हल्की जौगिंग जो हो जाए,
सारा दिन मंगल-मय होगा...
Anand Vishvas
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166 : मुक्त ग़ज़ल
मैं मसखरा लिखूँ ?
हल्दी से पीले तुमको कैसे मैं हरा लिखूँ ?
हो रिक्त तुम तो क्यों तुम्हें भरा-भरा लिखूँ...
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उत्सव प्रीत का चलने दो -
एक दीप बहुत काफी है
संदेश प्रेम का पढ़ने को
हर जाए दृष्टि नयनो की
आलोक विषम को रहने दो...
संदेश प्रेम का पढ़ने को
हर जाए दृष्टि नयनो की
आलोक विषम को रहने दो...
उन्नयन udaya veer singh
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