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रविवार, जुलाई 19, 2015

"कुछ नियमित लिंक और एक पोस्ट की समीक्षा" {चर्चा अंक - 2041}

बालगीत रच देते हैं।
मित्रों।
रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
आज की चर्चा में  देखिए-कुछ अद्यतन लिंक 
और एक की पोस्ट की समीक्षा 
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आये मेघ 

Lovely life पर Sriram Roy 
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स्वागत वर्षा का 

Akanksha पर Asha Saxena 
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बदलाव 

बदल दिए जायेंगे 
सड़कों के नाम 
किताबो में ठूंस दिए जायेंगे 
नए अध्याय 
नदियों को खोद निकाला जायेगा 
अतीत से... 
सरोकार पर अरुण चन्द्र रॉय 
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गीत "आया है त्यौहार ईद का" 

चाँद दिखाई दिया दूज का,
फिर से रात हुई उजियाली।
हरी घास का बिछा गलीचा,
चारों ओर सजी हरियाली।।

भर सोलह सिंगार धरा ने,
फिर से अपना रूप निखारा।
सजनी ने साजन की खातिर,
सावन में तन-बदन सँवारा।
वन-कानन में आज मयूरी,
नाच रही होकर मतवाली।... 
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इन कोड को डायल कर 

पता करें खुद का मोबाइल नंबर 

हिन्दी - इन्टरनेट पर kheteshwar borawat 
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मित्रों।
आज मैं आपका परिचय बच्चों के ब्लॉग
बच्चों का कोना से करा रहा हूँ।
इस ब्लॉग के लेखक हैं-  
आदरणीय कैलाश शर्मा 
मेरा फोटो
 अपने बारे में लिखते हैं-
आदरणीय कैलाश शर्मा जी मेरे पसन्दीदा कवियों में से हैं। इनकी लेखनी न केवल काव्य बल्कि गद्य में में भी समानरूप से चलती है। यद्यपि बालसाहित्य पढ़ने में आसान जैसा लगता है मगर बालसाहित्य रचना वास्तव में बहुत कठिन होता है। लेकिन कैलाश शर्मा चुटकियों में बालकविताएँ और बालगीत रच देते हैं। इनके बालसाहित्य की विशेषता है कि ये अपनी कृति में एक सन्देश साज को अवश्य देते हैं।
आज देखिए इनकी रची हुई यह बालकविता-
आओ बच्चो  तुम्हें सुनायें, सुन्दर  एक कहानी,
जिसे सुनाया करती थीं बचपन में हमको नानी.

था खरगोश और एक कछुआ
रहते थे मिल कर जंगल में.
गहरे दोस्त  बहुत  दोनों थे,
पर खरगोश घमंडी दिल में.
कछुआ चलता सरक सरक कर,

पर खरगोश  दौड़ कर जाता.
अपनी तेज  चाल के कारण,
कछुए को वह रोज चिढाता.

कछुए को दिखलाने नीचा,
उसने एक दिन शर्त लगाईं.
दौड़ लगाते हम पोखर तक,
पहले  कौन  पहुंचता  भाई.

सभी जानवर हुए इकट्ठे
उन दोनों की रेस देखने.
कोयल की सीटी बजने पर
लगे देख कछुए को हंसने.

निकल गया खरगोश था आगे,
उसने पीछे मुड़ कर देखा.
कहीं दूर तक न कछुआ था,
घना पेड़  एक  आगे देखा.

थोडा  आराम अभी  मैं  कर लूँ,
कछुआ  यहाँ  नहीं  पहुंचेगा.
मैं पलभर में पोखर जा सकता,
कछुआ  वहां  नहीं  पहुंचेगा.

कछुआ चलते धीरे धीरे आया,
था  खरगोश नींद में गहरी.
चौंक गया  खरगोश उठा जब,
शाम हो गयी थी अब गहरी.

लगा छलांग दौड़ जब पहुंचा,
पोखर पर कछुए  को पाया.
सभी जानवर हंस कर बोले,
कछुआ प्रथम दौड़ में आया.

नज़र रखो मंजिल पर हरदम,
कभी न आलस को अपनाओ.
नहीं किसी को छोटा समझो,
कभी घमंड न  मन में लाओ.

1 टिप्पणी:

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