मित्रों।
शुक्रवार की चर्चा में आपका स्वागत है
आज की चर्चा में
ब्लॉग की एक पोस्ट का विश्लेषण
और उसके बाद कुछ नियमित लिंक-
ब्लॉग
- सुन लो भैया, कान खोल कर
- इस रचना में कवि ने मानव-मन के माध्यम से
- धरातल पर होने वाले क्रिया-कलापों पर
- सकारात्मक प्रहार किया है।
- रचना के अन्त में कवि ने आशा का संचार करते हुए,
- जन-साधारण को प्रेरणा भी दी है।
- अब तक के अपने अध्ययन में मैंने यह पाया है
- कि आजकल छन्दबद्ध कविता और प्रेरक रचनाओं के
- सर्जक बहुत कम ही हैं।
- मगर जो हैं वो हमेशा कालजयी रचनाओं को
- निरन्तर जन्म दे रहे हैं।
- मानव - मन चंचल होता है, ये मानव की लाचारी,सुन लो भैया, कान खोल कर, हम हैं भ्रष्टाचारी।जिसको जितना मिला, जहाँ पर, वहीं उसी ने खाया,तुम भी ढूँढो ठौर-ठिकाना, क्यों रोते हो भाया।मैंने पाया , तुम्हें मिला ना, इसमें मेरा दोष नहीं है,क्यों जलते हो, बड़े भाग्य से, मिलती ऐसी माया।स्वीपर लेता 'चाय - पानी', बाबू लेता 'खर्चा-पानी',और कहीं पर 'हफ्ता' चलता, औरकहीं 'मनमानी'।कोई तो 'ताबूत' में खुश है, कोई 'खान- खनन' में,कोई 'चारा',कोई 'टू-जी', कोई खाता 'खेल-खेल' में।सबके सब अपनी जुगाड़ में,बजा रहे हैं, अपनी ढ़परी,जिसमें कुछ मिल जाये भैय्या, कोई ऐसा खेल करो।या फिर घूमो झंडे लेकर, और पुलिस के खाओ डंडे,या फिर अनशन करने बैठो,और पुलिस की जेल भरो।आती माया किसे न भाती,जीवन में सुख-सुविधा लाती,भ्रष्टाचार बसा नस-नस में, इसे मिटाना क्या है बस में।मन पागल ठगनी-माया में, चकाचौंध चंचल छाया में,कंचन-मृग सीता मन डोला,मानव-मन कैसे हो वश में।भ्रष्टाचार मिटाने वालो, काले धन को लाने वालो,अनशन कोई मार्ग नहीं है, मन को हमें बदलना होगा।भ्रष्ट आचरण मन से होता,मन से तन संचालित होता,नैतिकता का पाठ पढ़ा कर, निर्मल इसे बनाना होगा।ऐसी अलख जगाओ भैय्या, नैतिकता का मूल्य बढे,मन निर्मल हो गया अगर,तो तन भी अच्छे काम करेगा।नैतिकता, निष्ठा होगी तो, बुरा न कोई काम करेगा,विश्व-जयी तब देश बनेगा और विश्व में नाम करेगा।
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- अब देखिए कुछ नियमित अद्यतन लिंक-
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प्रेम
प्रभु जीsss हमसे प्रेम करो।
माँ की ममता पाई हमने पिता का प्यार मिला
बहन-भाइयों ने भी जमकर प्यार दुलार किया
जिस मटके में प्यार धरा था मटका फूट गया
जीवन की आपाधापी में दिल ही टूट गया
अवगुन चित न धरो...
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