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शुक्रवार, जुलाई 17, 2015

"एक पोस्ट का विश्लेशण और कुछ नियमित लिंक" {चर्चा अंक - 2039}

मित्रों।
शुक्रवार की चर्चा में आपका स्वागत है
आज की चर्चा में 
सबसे पहले 
ब्लॉग की एक पोस्ट का विश्लेषण 
और उसके बाद कुछ नियमित लिंक-
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ब्लॉग
  • सुन लो भैया, कान खोल कर 
  • इस रचना में कवि ने मानव-मन के माध्यम से 
  • धरातल पर होने वाले क्रिया-कलापों पर 
  • सकारात्मक प्रहार किया है।
  • रचना के अन्त में कवि ने आशा का संचार करते हुए,
  • जन-साधारण को प्रेरणा भी दी है। 
  • अब तक के अपने अध्ययन में मैंने यह पाया है
  • कि आजकल छन्दबद्ध कविता और प्रेरक रचनाओं के 
  • सर्जक बहुत कम ही हैं।
  • मगर जो हैं वो हमेशा कालजयी रचनाओं को 
  • निरन्तर जन्म दे रहे हैं।
  • मानव - मन चंचल होता  हैये मानव की लाचारी, 
    सुन  लो  भैया,  कान खोल कर,  हम हैं भ्रष्टाचारी।

    जिसको जितना मिलाजहाँ परवहीं उसी ने खाया,
    तुम  भी   ढूँढो  ठौर-ठिकाना,  क्यों  रोते हो भाया।
    मैंने पाया तुम्हें मिला ना,  इसमें  मेरा दोष नहीं है, 
    क्यों  जलते  होबड़े भाग्य सेमिलती ऐसी  माया।

    स्वीपर लेता 'चाय - पानी', बाबू लेता 'खर्चा-पानी',
    और कहीं पर  'हफ्ता'  चलताऔरकहीं 'मनमानी'
    कोई  तो  'ताबूतमें खुश है,  कोई  'खान- खननमें,
    कोई 'चारा',कोई 'टू-जी', कोई खाता 'खेल-खेलमें।

    सबके सब अपनी जुगाड़ में,बजा रहे हैंअपनी ढ़परी, 
    जिसमें  कुछ मिल जाये  भैय्याकोई ऐसा खेल करो। 
    या  फिर  घूमो  झंडे लेकरऔर पुलिस के खाओ डंडे,
    या फिर अनशन करने बैठो,और पुलिस की जेल भरो।

    आती माया किसे न भाती,जीवन में सुख-सुविधा लाती,
    भ्रष्टाचार बसा नस-नस मेंइसे मिटाना क्या है बस में।
    मन पागल  ठगनी-माया मेंचकाचौंध चंचल छाया में,
    कंचन-मृग सीता मन डोला,मानव-मन  कैसे हो वश में।           

    भ्रष्टाचार मिटाने   वालो,  काले  धन  को लाने  वालो,
    अनशन  कोई मार्ग नहीं हैमन को हमें बदलना होगा।
    भ्रष्ट आचरण  मन से होता,मन से तन संचालित होता,
    नैतिकता  का पाठ पढ़ा करनिर्मल इसे बनाना होगा।

    ऐसी  अलख  जगाओ  भैय्या,  नैतिकता का  मूल्य बढे,
    मन निर्मल हो गया अगर,तो तन भी अच्छे काम करेगा।
    नैतिकता,  निष्ठा  होगी  तो,  बुरा  कोई काम करेगा,
    विश्व-जयी तब देश बनेगा और विश्व  में  नाम करेगा।
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  • अब देखिए कुछ नियमित अद्यतन लिंक-
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सृजन 

आपका ब्लॉग पर Shiv Raj Sharma 
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प्रेम 

प्रभु जीsss हमसे प्रेम करो। 
माँ की ममता पाई हमने पिता का प्यार मिला 
बहन-भाइयों ने भी जमकर प्यार दुलार किया 
जिस मटके में प्यार धरा था मटका फूट गया 
जीवन की आपाधापी में दिल ही टूट गया 
अवगुन चित न धरो... 
बेचैन आत्मा पर देवेन्द्र पाण्डेय 
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टोकरी भर खिलौने 

tokari bhar khilaune 

सतीश का संसारपरsatish jayaswal 
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