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शुक्रवार, जुलाई 24, 2015

"मगर आँखें बोलती हैं" चर्चा अंक-2046

नमस्कार मित्रों, आज की चर्चा में आप सब का हार्दिक अभिनन्दन है।आँख के आपरेशन के चलते  बहुत दिनों के बाद चर्चा लगा रहा हूँ। ईश्वर की कृपा से बहुत अच्छा रहा आपरेशन।  इतने दिनों  आप सब से दूर रहा इसका हमें खेद है। किसी ने ठीक ही कहा है--
 हजारों अश्क़ मेरी आँखों की हिरासत में थे
फिर तेरी याद आई और इन्हें जमानत मिल गई...!
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चर्चा का आरम्भ पंकज कुमार शादाब की एक बेहतरीन ग़ज़ल से करते हैं
कंठ बिक चुके मगर आँखें बोलती हैं
राज़दाँ नहीं ये परिन्दे शाख़ें बोलती हैं

ये आज़ाद ख़यालातों का घर है लेकिन
हाल-ए-बेबसी दरीचे की सलाख़ें बोलती है

ज़माना बदले लेकिन दाग़ नहीं मिटता
वक़्त की ताख पे रखी तारीख़ें बोलती हैं

तारीफें मिलती हैं हर एक महफ़िल में
जाने क्या आईने की कालिखें बोलती हैं

पहनो हज़ारों नक़ाब या चेहरा बदल डालो
‘शादाब’ भीतर मजलूमों की चीख़ें बोलती हैं
स्नेहा गुप्ता 
हवाओं में तैरो, आसमां से उतर आओ,
ऐ चाँद, कभी कभी ज़मीन पर भी नज़र आओ...

पलों में रूमानियत थोड़ी और बढ़ी है,
घड़ी दो घड़ी तो और ठहर जाओ...
उदय वीर सिंह 
साल गिरह पर कृतज्ञ हूँ ,वाहेगुर की दया व आपके स्नेह का मित्रों ! ..
हृदय से आभार !
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भुला देना मेरे ऐब ,हौसला देकर
मुंतजिर हूँ नवाजों मुझे,वफा देकर -
शिल्पा मेहता 
घृणा आवेश से , खौल रही मंथरा ,
चित्त में द्वेष , अरु विषाद है भरा। 
राम भरत के , स्वामी हो जावें ,
संतप्त मन नहीं , स्वीकार कर रहा।
फ़िरदौस ख़ान
प्रसिद्ध सूफ़ी संत फ़ुज़ैल-बिन-अयाज़ पहले डाकू थे. वे राहगीरों को लूटते थे. बाद में लूट का माल अपने साथियों में बांट देते और जो चीज़ पसंद आती, उसे अपने पास रख लेते. रिवायत यह भी है कि वे बड़े रहम दिल और बहादुर थे.

कल्पना रामानी

जिनके मन में सच की सरिता बहती है
उनकी कुदरत भी होती हमजोली है

जब-जब बढ़ते लोभ, पाप, संत्रास, तमस
तब-तब कविता मुखरित होकर बोली है
मदन मोहन सक्सेना
बोलेंगे जो भी हमसे बह ,हम ऐतवार कर लेगें
जो कुछ भी उनको प्यारा है ,हम उनसे प्यार कर लेगें 

वह मेरे पास आयेंगे ये सुनकर के ही सपनो में
क़यामत से क़यामत तक हम इंतजार कर लेगें
वीरेन्द्र कुमार शर्मा 
आयु ,बुद्धि ,बल ,स्वास्थ्य, सुख और प्रसन्नता बढ़ाने वाले ; रसयुक्त चिकने और स्थिर रहने वाले तथा शरीर को शक्ति देने वाले आहार सात्त्विक व्यक्ति को प्रिय होते हैं।
काजल कुमार 
उसे अपनी ज़िंदगी से यूं तो कोई शि‍कायत नहीं थी पर फि‍र भी बहुत से ऐसे सवाल थे जि‍नके जवाब उसके पास नहीं थे; कि‍ताबें थीं कि‍ उनमें अलग-अलग तरह की बातें
सुशील कुमार जोशी 
पंजीकृत पागल 
होने के लिये 
क्या करना चाहिये 
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ज्योति कलश 
क्या कहें क्या कमाल करती है,
वक़्त से भी सवाल करती है ।१ 

बेफिकर ख़ुद से ,जहाँ के ग़म पे,
आँख रो-रो के लाल करती है ।२
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( डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
रंग-रंगीली इस दुनिया में, झंझावात बहुत गहरे हैं।
कीचड़ वाले तालाबों में, खिलते हुए कमल पसरे हैं।।
पल-दो पल का होता यौवन,
नहीं पता कितना है जीवन,
जीवन की आपाधापी में, झंझावात बहुत उभरे हैं।
कीचड़ वाले तालाबों में, खिलते हुए कमल पसरे हैं।।
अब सि‍द्ध न रहे
तुमको
वो त्राटक, वो सम्‍मोहन।
भूल चुके तुम
मारण मोहन उच्‍चाटन।।
सरिता भाटिया 
बंद करो अपनी पलकें 
रखो अपना दायाँ हाथ 
बायें तरफ सीने पर 
महसूस करो मुझे
प्रवीण चोपड़ा 
अभी खाना खाने के बाद टीवी के सामने बैठा ही था कि अपने एक मित्र प्यारे का व्हाट्सएप पर एक स्टेट्स दिखा...आप से शेयर कर रहा हूं...
वृद्ध आश्रम के दरवाजे पर मां को छोड़ कर बेटा जब वापिस जाने लगा तो मैं ने पीछे से आवाज़ लगा कर उसे रोक लिया..
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डा0हेमन्त कुमार
पहले था इक नहां पौधा
अब मैं हूं एक बड़ा सा पेड़
हरे भरे जंगल में भैया
मुझसे भी कुछ बड़े हैं पेड़
बड़े पेड़ कुछ मोटे पेड़।
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रजनी मल्होत्रा नैय्यर की ग़ज़लें 
तुम सितम करो, हम करम करें
तुम ज़ुल्म करो, हम रहम करें|

ये बुज़दिली नहीं तो और क्या है ?
जाम में डूबकर ग़लत ग़म करें.

इंसानियत का उठ रहा है जनाज़ा
इंसानियत के नाते सही मातम करें.
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