जय माँ हाटेश्वरी...
मेरी इस पहली चर्चा में समस्त पाठकों का तहे दिल से स्वागत है मेरा परिचय इस मंच के लिये नया नहीं है, क्योंकि इस मंच ने मुझे बहुत स्नेह दिया है। मेरी अधिकांश रचनाएं इस मंच पर स्थान पाती रही हैं। उम्मीद है इस मंच के चर्चाकार के रूप में भी मुझे आप सब का स्नेह मिलेगा और गुज़ारिश है कि अपने अनुभवों से और अपनी टिप्पणियों से
मुझे प्रोत्साहन देकर मेरा मार्गदर्शन करते रहें।
मैं धन्यवादी हूँ आदरणीय रूपचन्द्र शास्त्री मयंक जी का जिन्होंने मुझे इस मंच का चर्चाकार बनाकर ये सम्मान दिया।
श्रीगणेश करता हूं आज की अपनी पहली चर्चा का राही मासूम रज़ा जी की कुछ पंखतियों से...
--
अजनबी शहर के अजनबी रास्ते, मेरी तन्हाई पर मुस्कुराते रहे
मैं बहुत देर तक यूं ही चलता रहा, तुम बहुत देर तक याद आते रहे
ज़हर मिलता रहा ज़हर पीते रहे, रोज़ मरते रहे रोज़ जीते रहे
ज़िंदगी भी हमें आज़माती रही, और हम भी उसे आज़माते रहे
ज़ख़्म जब भी कोई ज़ेह्न-ओ-दिल पे लगा, ज़िंदगी की तरफ़ एक दरीचा खुला
हम भी गोया किसी साज़ के तार हैं, चोट खाते रहे गुनगुनाते रहे
ऐसा हुआ मैं बहुत थक गया, इसलिये सुन के भी अनसुनी कर गया
इतनी यादों के भटके हुए कारवाँ, दिल के ज़ख़्मों के दर खटखटाते रहे
सख़्त हालात के तेज़ तूफानों में , घिर गया था हमारा जुनूने-वफ़ा
हम चिराग़े-तमन्ना जलाते रहे, वो चिराग़े-तमन्ना बुझाते रहे
--
पर... yashoda agrawal
कोई शब्द जब कभी
अपनेपन की स्याही लिए
तेरा नाम लिखता
हथेली पे
तुमने चुराकर नज़रें
वो नाम
पुकारा तो ज़रूर होगा!!!
--
पर प्रवीण पाण्डेय ,
सिमटकर बाहों में छिप जा,
तुम्हारे हर दुख का उपचार करूँ मैं ।
आ जा तेरे मुग्ध, सुवासित उपवन को तैयार करूँ मैं ।
तेरा सुख-श्रृंगार करूँ मैं, सकल अलंकृत प्यार करूँ मैं ।
--
पर...Priti Surana
मुझे नहीं चाहिए
दामन को सजाने के लिए
चांद और सितारे
क्योंकि
यूं ही बहुत सुन्दर है
मेरे हिस्से का थोड़ा सा आसमान,...
--
पर...सुशील कुमार जोशी
उम्र के हर पड़ाव
के रंग उनके
इंद्रधनुष में
सात ही नहीं
हमेशा किसी के
कम किसी के
ज्यादा भी होते हैं
--
पर...Tushar Rastogi
टिंग...टिंग...अभी राज मन ही मन यह सब आराधना से कहने की सोच ही रहा था और अपने ख्यालों में मग्न खोया हुआ था कि लिफ्ट रुक गई और घंटी बजने के साथ ही लिफ्ट
का दरवाज़ा खुल गया। एक बार फिर, उसके मन की बात मन में ही रह गई। आराधना उसकी शक्ल देखकर हँस पड़ी और बोली, "कहाँ गुम हो हुज़ूर, किधर खोये हुए हो, घर जाने का
दिल नहीं है क्या? मेट्रो स्टेशन आ गया चलो एंट्री भी करनी है।"
--
पर...Reena Maurya
हाँ वो परित्यक्ता है
क्यूंकि नहीं सह पाई वो
प्रताड़ना, उलाहना
उस बेशरम शराबी की
जिसे लोगो ने उसका
पति परमेश्वर बना दिया था
--
देतीं पल पल दर्द
तेरे न होने पर भी अहसास होने का,
ढोना ही होगा ताउम्र
यह बोझ तेरी यादों का।
--
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
होता है जनतन्त्र में, जब जनता का राज।
जनता के मन के नहीं, लोकतन्त्र में काज
शिक्षा का तो हो गया, बिल्कुल बण्टाधार।
पढ़े-लिखो को हाँकते, अनपढ़ ढोल-गँवार।
--
चलते चलते विमल गांधी जी की ये प्रेरणादायक कविता...
जीवन में आगे बढ़ना सीखें॥
हर हाल में मुस्कुरायें हम।
दिल से खुश रहना सीखें॥
चट्टान के जैसे बनाये अपना हाैसला।
डर काे निकाले बाहर, ना डरे किसी से॥
चाहे आये आँधी और तेज तूफ़ान।
खुद की अंदर की शक्ति काे पहचाने॥
खुद पर यक़ीन करना सीखें।
पहचान लिया अगर शक्ति काे विश्वास किया खुद पर॥
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
"चर्चामंच - हिंदी चिट्ठों का सूत्रधार" पर
केवल संयत और शालीन टिप्पणी ही प्रकाशित की जा सकेंगी! यदि आपकी टिप्पणी प्रकाशित न हो तो निराश न हों। कुछ टिप्पणियाँ स्पैम भी हो जाती है, जिन्हें यथा सम्भव प्रकाशित कर दिया जाता है।