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रविवार, जुलाई 26, 2015

"व्यापम और डीमेट घोटाले का डरावना सच" {चर्चा अंक-2048}

मित्रों।
रविवार की चर्चा में आप सबका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक
आज नेट सही नहीं चल रहा है 
इसलिए पोस्ट विशेष की समीक्षा 
नहीं कर पाऊँगा।

( डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

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सिहरन इश्क की 

इश्क के सुलगते चूल्हे 
बुझाने को कम है 
सारे संसार का पानी 
और तुम 
डुबाना चाहते हो 
खारे समंदर में ... 
vandana gupta 
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सबसे सस्ता साधन है। 

हर आपदा के बाद 
कुछ लोगों के शव गुम हो जाते हैं 
हमेशा के लिये। 
उनके प्रियजन नहीं कर पाते 
उनके अंतिम दर्शन भी ... 
मन का मंथन  पर kuldeep thakur 
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हमारा आस पास 

*यादवेन्‍द्र* शाम से गहरे सदमे में हूँ, 
समझ नहीं आ रहा इस से कैसे निकलूँ 
=देर तक सिर खुजलाने के बाद लगा  
उसके बारे में लिख देना शायद कुछ राहत दे... 
लिखो यहां वहां पर विजय गौड़ 
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आह ये जुदाई…….. 

आह ये दर्द। 

कट गए वो दौर 
जिनकी शाख़ों पर हमने रखे थे तिनके 
ख़्वाबों के बुझ गए वक़्त के रोशन दिए 
जो किसी के नाम पर जल उठे थे 
कभी प्यास होठों तक आई 
मगर ये सहरा मुक़द्दर... 
Lekhika 'Pari M Shlok' 
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नयी चेतना 

आवेग हूँ मैं ऐसी 
बाँध सके ना जिसे कोय 
मझधार से मेरी जो मिले 
जुदा ना फ़िर मुझ से होय... 
RAAGDEVRAN पर MANOJ KAYAL
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अरे हुस्न वालों ये क्या माज़रा है 

न कोई है शिक़्वा न कोई सिला है 
अरे हुस्न वालों ये क्या माज़रा है... 
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ 
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कैसा न्याय 

है यह कैसा न्याय प्रभू 
धनिक  फलता फूलता 
गरीब और गरीब हो जाता
 अपनी बेबसी पर रोता |
भोजन का अभाव सदा 
भूखा उठाता भूखा सुलाता 
अन्न के अभाव में 
वह जर्जर होता जाता... 
Akanksha पर Asha Saxena 
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भ्रम 

Sunehra Ehsaas पर 
Nivedita Dinkar 
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आषाढ़ी संध्या घिर आई 

श्याम रंग घन नभ में छाया 
आषाढ़ का मास सघन हो आया 
वर्षा का परिचित स्वर सुनकर 
नाच रहा मन झूम-झूम कर... 
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