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सोमवार, जुलाई 06, 2015

"दुश्मनी को भूल कर रिश्ते बनाना सीखिए" (चर्चा अंक- 2028)

मित्रों।
सोमवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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ग़ज़ल "बरसता सावन सुहाना" 

savan ke jhoole
गन्दुमी सी पर्त ने ढक ही दिया आकाश नीला 
देखकर घनश्याम को होने लगा आकाश पीला.. 
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इत्मिनान है की वो खुश हैं 

चलती हूँ जब भी, 
उतरती चढ़ती हूँ सीढ़ियाँ, 
आती हैं अजब सी आवाज़े, 
घुटनों में हड्डियों से, क
भी कड़कड़ाती, खड़खड़ाती, 
कभी कंपकपाती. 
गुस्से में लाल पीला होते तो सुना था, 
यहाँ तो नीली हो जाती हैं नसें. 
दबोचती हैं हड्डियां उन्हें... 
रचना रवीन्द्र पर रचना दीक्षित 
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Roshi: 

दिल 

दिल जैसी बड़ी अजीब शै 
है खुदा ने खूब बनाई 
जिस्म ,रूह सभी पर है 
इसका बखूबी कब्ज़ा भाई 
यह खुश तो सभी अंगों पर 
रहती है बहार खूब छाई... 
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Kitchen Tips - 

bhag 4 

1) 
*छोले में *ढाबे वाला ब्राउनिश कलर लाने के लिए, थोड़ी सी चाय पत्ती मलमल (सूती) के कपड़े में रख कर उसकी पोटली बना ले। छोले उबालते वक्त यह पोटली छोले में डाल लें। बाद में यह पोटली अलग कर लें। छोले का ब्राउनिश कलर आएगा। 
2) 
*यदि आप रात को* *छोला या राजमा भिगोना भूल गए हो,* तो एक casserole (hot pot) में उबलता पानी डाल कर छोला या राजमा को भिगोए। इसे आप एक घंटे बाद पका सकती है। 
3)... 
आपकी सहेली पर Jyoti Dehliwal 
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वर्षा 

हरे रंग के शुभ्र वस्त्र से 
बना हुआ धरती का आँचल, 
सकल मेघ हैं दिखा रहे 
आनन्द रूप निज बदल बदल । 
खड़े हुये सब वृक्ष शान से, 
देख रहे यह रूप निरन्तर, 
छोटे छोटे पंख हिला खग, 
भ्रमण कर रहे शाख शाख पर... 
न दैन्यं न पलायनम् पर प्रवीण पाण्डेय 
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मिरे वास्ते आखि़री रात होगी 

न जिस रात तुझसे मुलाक़ात होगी। 
मिरे वास्ते आखि़री रात होगी।। 
बहुत हो चुकी गुफ़्तगू होश में अब, 
चलो मैक़दे में वहीं बात होगी... 
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ 
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अक्सर हवाईजहाज़ की खिड़की से,
कोशिश करती हूँ,
नीचे ज़मीन पे ढून्ढ सकूँ,
कहाँ एक देश की सीमा ख़त्म हुई,
कहाँ दुसरे की शुरू... 
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एक ग़ज़ल : 

और कुछ कर या न कर.... 

इतना तो कर आदमी को 
आदमी समझा तो कर 
उँगलियाँ जब भी उठा ,जिस पे उठा 
सामने इक आईना रख्खा तो कर... 
आपका ब्लॉग पर आनन्द पाठक 
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देहरादून 

Sunehra Ehsaas पर 
Nivedita Dinkar 
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ऐसी भूल क्यूं ? 

सैलाब भावनाओं का के लिए चित्र परिणाम
भावनाओं के बहाव में
की पैठ गहरे में
अमूल्य रत्न संचित किये
समेटे अपने आँचल में |
थे अथाह नहीं चाहते
समाना फैले आँचल में
उथल पुथल हुई
बाहर आने की होड़ में ... 
Akanksha पर Asha Saxena 
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दुश्मनी को भूल कर रिश्ते बनाना सीखिए ... 

बाज़ुओं को तोल कर बोझा उठाना सीखिए 
रुख हवा का देख कर कश्ती चलाना सीखिए... 
स्वप्न मेरे ...पर Digamber Naswa 
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मेरी बातों पर....।। 

के.सी.वर्मा ''कमलेश'' पर 

कमलेश भगवती प्रसाद वर्मा 

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...तो दुश्वार क्या है ? 

तुम्हें दिलफ़रोशी की दरकार क्या है 
ज़रा जान तो लो कि बाज़ार क्या है 
नज़र से मुहब्बत का इज़्हार करना 
ये आसान है गर तो दुश्वार क्या है... 
साझा आसमान पर Suresh Swapnil 
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ग़ज़ल 

(दूर रह कर हमेशा हुए फासले) 

दूर रह कर हमेशा हुए फासले , 
चाहें रिश्तें कितने क़रीबी  क्यों ना हों कर लिए बहुत काम लेन देन  के , 
बिन  मतलब कभी तो जाया करो... 
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