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सोमवार, अगस्त 31, 2015

श्रीकृष्ण भगवान अब, लेंगे फिर अवतार--चर्चा अंक 2084

जय मां हाटेश्वरी...
आज की चर्चा का आरंभ...
अक्सर लोग पूछते हैं कृष्ण ने पर स्त्रियों का स्पर्श किया है। दरसल कृष्ण भाव गोपियों को एक दिव्य शरीर प्रदान कर देता है पांच तत्वों का बना गोपियों का शरीर
तो उनके घर पर ही रहता है कृष्ण की वंशी के टेर (तान )सुनके उनका दिव्य शरीर ही कृष्ण की ओर दौड़ता है और रास में भाग लेता है।

पूछा जाता है जब गोपियों के अभी कर्मबंध ही नहीं कटे हैं तो उन्हें दिव्य शरीर की प्राप्ति कैसे हुई ?

इसे सरल भाषा में इस प्रकार समझिए कि जो कर्म हम कर चुकें हैं वह जमा हो जाता है.संचित कर्म बन जाता है।
जो कर्म हम वर्तमान में कर रहें हैं वह क्रियमाण कर्म कहलाता है जिसका फल आगे मिलता है इसीलिए इसे आगामी कर्म भी कहा गया है। संचित कर्म का एक भाग हम लेकर पैदा
होतें हैं इसे ही प्रारब्ध कहा जाता है जो सुख दुःख के रूप में हमें भोगना ही पड़ता है।

अब क्योंकि गोपियाँ रास भावित  होकर भगवान से मिलने के लिए दौड़तीं हैं तो उनका क्रियमाण  कर्म श्रेष्कर्म हो जाता है जो उन्हें कर्म बंधन  से नहीं बांधता है।
(अकर्म बन जाता है ये कर्म जिसका आगे फल नहीं भोगना पड़ा गोपियों को) .
जो गोपियाँ कृष्ण से मिलने में कामयाब हो जातीं हैं उन्हें इतना सुख मिलता है कि उनके सारे शुभ कर्म ,सारे पुण्य नष्ट हो जाते हैं क्योंकि सुख भोगने से पुण्य
चुकता है तथा जिन्हें कृष्ण से मिलने से उनके पति या माँ बाप रोक देते हैं उन्हें इतना दुःख मिलता  कि  उनके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। पाप और पुण्य दोनों नष्ट
हो जाने पर गोपियों को दिव्य शरीर मिल जाता है। इसलिए शंका मत लाइए। यहां लीला पुरुष स्वयं भगवान हैं। जो स्वयं छोटे बन जाते हैं। छोटे बनके गोपियों के चरण
दबातें हैं जब वे नाँचते नाँचते थक जातीं हैं। यही कृष्ण राधा रानी के बाल संवारते हैं। यशोदा के डंडे से डरते हैं।

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उच्चारण...पर।
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के फोटो खींचों और खुद रहो  नदारद ,
           फोटोग्राफर बनने में नुक्सान   यही है  
फॅमिली निग्लेक्ट करो और समय खपाओ ,
         सोशल सर्विस करना कुछ आसान नहीं है... 
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चोर ज़ोर-ज़ोर से क्यों रोया और फिर हँसा? - बेताल पच्चीसी - चौदहवीं कहानी।।
हिंदी साहित्य मार्गदर्शन...पर।
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विश्व हिंदी सम्मेलन 2015 भोपाल प्रगति रिपोर्ट vishva hindi sammelan 2015 progress report
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 मेरे विचार मेरी अनुभूति 
मेरे विचार मेरी अनुभूति...पर। 
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 हार्दिक पटेल...

लोगों का हुजूम

टूट पड़ा है

हर कोई बनना चाहता है

हार्दिक पटेल


क्यों नहीं है ख्वाहिश


बनने की
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धन्यवाद... 

रविवार, अगस्त 30, 2015

"ये राखी के धागे" (चर्चा अंक-2083)

मित्रों।
भाई बहन के निश्छल प्यार के प्रतीक
रक्षाबन्धन की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ-
आज के चर्चा के अंक-2083 में
आपका स्वागत है।

गीत 

"भाई के ही कन्धों पर, होता रक्षा का भार" 

हरियाला सावन ले आया, नेह भरा उपहार।
कितना पावन, कितना निश्छल राखी का त्यौहार।।

यही कामना करती मन में, गूँजे घर में शहनाई,
खुद चलकर बहना के द्वारे, आये उसका भाई,
कच्चे धागों में उमड़ा है भाई-बहन का प्यार।
कितना पावन, कितना निश्छल राखी का त्यौहार।।

तिलक लगाती और खिलाती, उसको स्वयं मिठाई,
आज किसी के भइया की, ना सूनी रहे कलाई,
भाई के ही कन्धों पर, होता रक्षा का भार।
कितना पावन, कितना निश्छल राखी का त्यौहार।।

पौध धान के जैसी बिटिया, बढ़ी कहीं पर-कहीं पली,
बाबुल के अँगने को तजकर, अन्जाने के संग चली,
रस्म-रिवाज़ों ने खोला है, नूतन घर का द्वार।
कितना पावन, कितना निश्छल राखी का त्यौहार।।

रखती दोनों घर की लज्जा, सदा निभाती नाता,
राखी-भइयादूज, बहन-बेटी की याद दिलाता,
भइया मुझको भूल न जाना, विनती बारम्बार।
कितना पावन, कितना निश्छल राखी का त्यौहार।।

राखी का धागा 

Sudhinama पर sadhana vaid 


भाई से सन्देश ये कहना 

अम्बर के चंदा जरा सुनना
भाई से सन्देश ये कहना
जब से गये हैं हमसे बिछड़कर
एक नजर ना देखी पलभर
उन सा कोई और कही ना.... 

राखी का दिन----। 

राखी का दिन जब आयेगा 
बहुत सबेरे उठ जाऊंगी 
छोटे भैया को भी जगा के 
अपने संग मैं नहलाऊंगी। 
राखी का दिन... 
Fulbagiya पर डा0 हेमंत कुमार 

...बहनें अब जाग रही हैं... 

सदियों से अटूट समझा जाता था भाई-भहन का पावन रिश्ता शायद इस लिये क्योंकि विवाह के बाद बहन का सब कुछ भाई का ही हो जाता था... जब से बहन भी मांगने लगी अधिकार अपना अपने घर से तब से राखी का महत्व भी घटने लगा ये बंधन भी अटूट नहीं रहा ...बहनें अब जाग रही हैं... ये पहाड़ जो खड़े हैं आज गर्व से छाती ताने इन से पूछो इन्हे ये मजबूति किसने दी है सब देखते हैं इनको उन्हें कोई नहीं देखता वो तो कहीं दबे पड़े हैं.. 
मन का मंथ पर kuldeep thakur

लघुव्यंग्य – 
विधायक जी के भाई लोग 
वे विधायक प्रतिनिधि बन गए , 
बड़े जलवे खीच रहे हैं | 
उनके ठाठ देखते बनते हैं | 
धमकाते रहते हैं 
अधिकारियों और कर्मचारियों को... 
sochtaa hoon......!


मेरा कोई भाई नहीं ... 

नहीं जानती 
कैसे उठती है उमंग 
इस रिश्ते के लिए 
नहीं जानती कैसे 
इस रिश्ते की 
ऊष्मा से लबरेज 
बाँध लेते हैं सारा प्यार 
मोली के एक तार से... 
vandana gupta 




सारे मेरे तन के छाले हैं साहिब 

जो भी दिखते काले काले हैं साहिब 
सारे मेरे तन के छाले हैं साहिब 
किसको है मालूम कि हम इन हाथों से 
चावल भूसी साथ उबाले हैं साहिब... 
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ 


संथारा -- कायरतापूर्ण आत्महत्या है  

---ड़ा श्याम गुप्त 

बात अन्न जल त्यागने की संथारा की है तो आत्मा के रूप में शरीर में ब्रह्म के उपस्थिति मानी जाती है , शरीर को स्वयं पिंड अर्थात ब्रह्माण्ड का ही रूप माना जाता है | कोई भी ज्ञानी से ज्ञानी नहीं जानता कि मृत्यु कब निश्चित है , अतः अन्न जल छोड़कर तिल तिल कर शरीर को मारना एवं आत्मा को कष्ट देना एवं शरीर को जान बूझकर अक्षम बनाते जाना , अकर्मण्यता, कायरता, कर्म से दूर भागने का चिन्ह है , वीरों का कृत्य नहीं... 

जाते जाते - - 

कुछ लम्हात यूँ ही और नज़दीक रहते, 
कुछ और ज़रा जीने की चाहत बढ़ा जाते। 
ताउम्र जिस से न मिले पल भर की राहत, 
काश, कोई लाइलाज मर्ज़ लगा जाते... 
अग्निशिखा : पर Shantanu Sanyal 

राखी का त्यौहार.... 

ड़ा श्याम गुप्त..... 

भाई औ बहन का प्यार दुनिया में बेमिसाल,

यही प्यार बैरी को भी राखी भिजवाता है |

दूर देश  बसे  परदेश या  विदेश में हों ,

भाइयों को यही प्यार खींच खींच लाता है |

एक एक धागे में बसा असीम प्रेम बंधन,

राखी का त्यौहार रक्षाबंधन बताता है |

निश्छल अमिट बंधनश्याम'धरा-चाँद जैसा ,

चाँद  इसीलिये  चन्दामामा  कहलाता है ... 

बन्धन होकर भी जोस्वतंत्रता काअहसास करा देबहना कीएक मुस्कुराहट परभाईअपना सर्वस्व लुटा देवही राखी कहलाती है।
Chitransh soul पर 
durga prasad Mathur 

शनिवार, अगस्त 29, 2015

"आया राखी का त्यौहार" (चर्चा अंक-2082)

चर्चा मंच के सभी पाठकों को
भाई-बहन के प्रेम के प्रतीक 
रक्षाबन्धन के पावन पर्व पर
हार्दिक शुभकामनाएँ। 
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"आया राखी का त्यौहार" 

आया राखी का त्यौहार!!
हरियाला सावन ले आयाये पावन उपहार।
अमर रहा हैअमर रहेगाराखी का त्यौहार।।
आया राखी का त्यौहार!!

जितनी ममता होती है, माता की मृदु लोरी में,
उससे भी ज्यादा ममता है, राखी की डोरी में,
भरा हुआ कच्चे धागों में, भाई-बहन का प्यार।
अमर रहा हैअमर रहेगाराखी का त्यौहार।।
आया राखी का त्यौहार... 
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मुझसे जो इंतक़ाम है तेरा 

आजकल ख़ूब नाम है तेरा 
मुझसे जो इंतक़ाम है तेरा 
इश्क़ रुस्वा न मेरा हो जाए 
शह्र में चर्चा आम है तेरा... 
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ 
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स्यापा 

छाती पीट पीट स्यापा करने के इस दौर में 
आओ , छाती पीट करें 
स्यापा हम भी... 
vandana gupta 
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गज़ल: 

लोगों को इतना समझदार रखना 

मेरे दुश्मनों का घर भी गुलज़ार रखना 
पर रुतबा मेरा भी असरदार रखना । 
मेरे शहर में हो खुशबू चैनो-अमन की 
लोगों को इतना समझदार रखना... 
Vikram Pratap singh 
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चाँद 

पूर्णिमा का चाँद है 
या दूध का कटोरा है 
उबलता दूध ज्यों चाँदनी का उफान है , 
धरती और अम्बर में 
फ़ैल गयी है चाँदनी... 
कालीपद "प्रसाद" 
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रिश्ता भी व्यापार 

रोटी पाने के लिए, जो मरता था रोज। 
मरने पर चंदा हुआ, दही, मिठाई भोज।। 
बेच दिया घर गांव का, किया लोग मजबूर। 
सामाजिक था जीव जो, उस समाज से दूर... 
मनोरमा पर श्यामल सुमन 
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सुनो न 

यार सुनो न 
एक बात कहनी है 
वो जो अपने होठों पे 
तुमने मुस्कान पहनी है 
वो यूँ ही सजाये रखना 
मैंने, तेरे हिस्से के 
सारे आंसू मांग लिए हैं 
रब से... 
ज़िन्दगीनामा पर Nidhi Tandon 
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कैसे कह दूं 

 मैंने देखा है आज तुझे 
नज़रे चुराते 
और फिर बड़ी अदा के साथ 
नजरें मिलाते । 
मेरे प्यार का असर 
तुझे खीच लाया था 
तेरी दहलीज तक... 
तीखी कलम सेपरNaveen Mani Tripathi 
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भाई से सन्देश ये कहना 

अम्बर के चंदा जरा सुनना 
भाई से सन्देश ये कहना 
जब से गये हैं हमसे बिछड़कर 
एक नजर ना देखी पलभर 
उन सा कोई और कही ना. 
भाई से सन्देश ये कहना... 
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