मित्रों।
शनिवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
सूरज निकला हुआ सवेरा
पंछी निकले अपने घरों से,
आसमान में लालिमा छायी
मौसम की निराली छटा छायी
सिमट गया रात का पहरा
रात गयी तो फूल खिले
सबके लिए नया पैगाम आया
सूरज निकला हुआ सवेरा
लोगो के जीवन में आएगा कब सवेरा
भूख और बईमानी का अँधेरा
कब जाएगा
जागो प्यारे तुम भी जागो
सरपट से दूर भगाओ अँधेरा
जब जागे तब ही सवेरा
पंछी निकले अपने घरों से,
आसमान में लालिमा छायी
मौसम की निराली छटा छायी
सिमट गया रात का पहरा
रात गयी तो फूल खिले
सबके लिए नया पैगाम आया
सूरज निकला हुआ सवेरा
लोगो के जीवन में आएगा कब सवेरा
भूख और बईमानी का अँधेरा
कब जाएगा
जागो प्यारे तुम भी जागो
सरपट से दूर भगाओ अँधेरा
जब जागे तब ही सवेरा
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गीत
"जो नंगापन ढके बदन का हमको वो परिधान चाहिए"
जो नंगापन ढके बदन का हमको वो परिधान चाहिए।
साध्य और साधन में हमको समरसता संधान चाहिए।।
उपवन के पौधे आपस में, लड़ते और झगड़ते क्यों?
जो कोमल और सरल सुमन हैं उनमें काँटे गड़ते क्यों?
मतभेदों को कौन बढ़ाता, इसका अनुसंधान चाहिए।
साध्य और साधन में हमको समरसता संधान चाहिए...
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रावण रजो गुण (एक्शन ) का प्रतीक है
कुम्भकरण तमोगुण
(अज्ञान,घोर -प्रमाद, आलस्य निद्रा)का प्रतीक है
और विभीषण सतो गुण का।
यही सत्व उसे भगवान राम की शरण में ले आता है।
कंस रजो और तमो दोनों का मिश्र है।
आपका ब्लॉग पर
Virendra Kumar Sharma
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जीवन का मतलब
धीरे -धीरे जिंदगी से शिकायतों की गठरी भर ली
उस गठरी से बहुत कुछ अच्छा
पीछे छूटकार बिख़रता गया
जिसे न बटोर पाए न वक्त से देख़ा गया
अब जिंदगी बेतरतीबि से रख़े सामान की तरह हो गई है
मन करता है की काश...
Madhulika Patel
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लिंगदोह कौन है ?
पता करवाओ
...सब कुछ चैन
से है बताओ
बैचेनी की खबरों को
घास के नीचे दबवाओ
‘उलूक’ की मानो और
कोशिश करो
लिंगदोह के लिये
दो गज जमीन का
इंतजाम करवाओ
पर पहले पता
तो करवाओ
लिंगदोह कौन है ?
से है बताओ
बैचेनी की खबरों को
घास के नीचे दबवाओ
‘उलूक’ की मानो और
कोशिश करो
लिंगदोह के लिये
दो गज जमीन का
इंतजाम करवाओ
पर पहले पता
तो करवाओ
लिंगदोह कौन है ?
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हम नही सुधरेंगे
आज बहुत दिनों के बाद तेज हवा वह भी हल्की सी ठंडक लिए हुए चल रही है। पर हम इस हवा का ज़रा सा भी आनंद नही ले पा रहे है। घर में सफाई-पुताई का काम जो चल रहा है। इस वक्त दीवारों पर से पुराने पेंट को हटाने के लिए रेगमाल से खुरचा जा रहा है, सो जैसे ही कोई खिड़की या दरवाजा खोलो ,ढेर सी पेंट की खुरचन से सर से पाँव तक भर जाते है। . बाहर से लाउडस्पीकर पर कोई आवाज़ सुनाई दी। आदतानुसार मैं बाहार को भागी , सड़क पर बहुत सारे लोग एक जुलुस की शक्ल में शहर को साफ-सुथरा रखने की नसीहत देते हुए जा रहे थे...
प्रियदर्शिनी तिवारी
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जिन्दगी --- एक दिन
रात के दस बजे हैं सब अपने -अपने कमरों में जा चुके हैं। आरुषि ही है जो अपने काम को फिनिशिंग टच दे रही है कि कल सुबह कोई कमी ना रह जाये और फिर स्कूल को देर हो जाये। अपने स्कूल की वही प्रिंसिपल है और टीचर भी, हां चपड़ासी भी तो वही है ! सोच कर मुस्कुरा दी। मुस्कान और ठंडी हवा पसीने से भरे बदन को सुकून सा दे गई...
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अधजल गगरी छलकत जाये
है मौन बहती
सरिता गहरी
उदण्ड बहते निर्झर
झर झर झर झर
करते भंग मौन
पर्वत पर
उछल उछल कर
शोर मचाये
अधजल गगरी छलकत जाये...
सरिता गहरी
उदण्ड बहते निर्झर
झर झर झर झर
करते भंग मौन
पर्वत पर
उछल उछल कर
शोर मचाये
अधजल गगरी छलकत जाये...
Ocean of Bliss पर Rekha Joshi
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माँ ...
फर्क करना मुश्किल होता है कि
तू यादों में या असल में साथ होती है
(सच कहूं तो फर्क करना भी नहीं चाहता) ...
हाँ जब कभी भी तेरी जरूरत महसूस होती है
तू आस-पास ही होती है ...
माँ है मेरी कहाँ जा सकती है मुझसे दूर ...
यकीनन तू मेरी यादों में अम्मा मुस्कुराती है
तभी तो खुद ब खुद चेहरे पे ये मुस्कान आती है
तो क्या है सब दिगंबर नाम से हैं जानते मुझको
मुझे भाता है जब तू प्यार से छोटू बुलाती है...
यकीनन तू मेरी यादों में अम्मा मुस्कुराती है
तभी तो खुद ब खुद चेहरे पे ये मुस्कान आती है
तो क्या है सब दिगंबर नाम से हैं जानते मुझको
मुझे भाता है जब तू प्यार से छोटू बुलाती है...
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महादेवी वर्मा
और एक कोशिश सी मैं
महादेवी वर्मा हिंदी साहित्य के छायावादी कवियों में एक महत्वपूर्ण स्तंभ मानी जाती हैं ... शिक्षा और साहित्य प्रेम महादेवी जी को एक तरह से विरासत में मिला था। महादेवी जी में काव्य रचना के बीज बचपन से ही विद्यमान थे। छ: सात वर्ष की अवस्था में भगवान की पूजा करती हुयी माँ पर उनकी तुकबंदी कुछ यूँ थी -
ठंडे पानी से नहलाती
ठंडा चन्दन उन्हें लगाती
उनका भोग हमें दे जाती
तब भी कभी न बोले हैं
मां के ठाकुर जी भोले हैं...
मेरी भावनायें...पर रश्मि प्रभा...
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१८४. प्रेम
लोगों को मेरी प्रेम कविताएँ पसंद नहीं, पर मुझे हमेशा लगता है कि मैं प्रेम कविताओं का कवि हूँ. मुझे अपनी कविताएँ अच्छी लगती हैं, जब वे प्रेम के बारे में होती हैं, पर मैं यह नहीं समझ पाता कि जो चीज़ मुझमें है ही नहीं, वह मेरी कविताओं में कैसे आ जाती है...
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वृद्धों का सन्मान करो तुम
वृद्धों का सन्मान करो तुम
भूखे को भोजन करवाना,
और प्यासे की प्यास बुझाना...
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