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शनिवार, सितंबर 12, 2015

"हिन्दी को राष्ट्रभाषा घोषित करने से परहेज क्यों?" (चर्चा अंक-2096)

मित्रों।
शनिवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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ताकत है हिन्दी 

 हि न्दी प्रेमी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश के हृदयप्रदेश की राजधानी भोपाल में आयोजित दसवें विश्व हिन्दी सम्मेलन के उद्घाटन भाषण में हिन्दी की महत्ता को स्थापित करने का काम किया है। इस बात से शायद मोदी विरोधी भी इनकार नहीं करेंगे कि हिन्दी को पुन: प्रतिष्ठा दिलाने और उसका सम्मान बढ़ाने में नरेन्द्र मोदी का बहुत योगदान है। यह फिर से हिन्दी के अच्छे दिनों की शुरुआत है कि प्रधानमंत्री अहिन्दी भाषी होकर भी हिन्दी में बात करता है, हिन्दी को प्रेम करता है। प्रधानमंत्री भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया के जिस कोने में भी जा रहे हैं, वहां हिन्दी में ही बात कर रहे हैं। यानी दुनिया को भी बता रहे हैं कि भारत की अपनी समृद्ध भाषा है... 
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लेकिन बहुमत की सरकार होने के बावजूद 
हिन्दी को राष्ट्रभाषा घोषित करने से परहेज क्यों?
अपना पंचू
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घोर संघर्ष काल है 

नहीं पता हिन्दी का या हिन्दी के साहित्यकारों का या फिर दोनों का क्योंकि मौज तो राजनीतिज्ञों की है या चाटुकारों की हिंदी की बाँह कौन पकड़ता है सबको बस अपना मकसद ही दिखता है वो तो कल भी अवांछित थी आज भी है और कल भी रहेगी क्योंकि जो राजभाषा से राष्ट्रभाषा तक का सफ़र तय न कर पायी या कहिये जिसे ये सफ़र तय नहीं करने दिया गया उस हिन्दी का भी भला कोई उज्जवल भविष्य हुआ आओ शंख ध्वनि करो आओ उद्घोष करो आओ अपना परचम फहराओ कि हमने तय कर ली है एक और दूरी तो क्या हुआ जो चार दिन में चार कोस ही चले हों बस.... 
vandana gupta 
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तुम 

...हर रोज़ मुझमे माँ नई जगाते हो।
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मैंने मौत को देखा है 

अनुभव बाँटना चाहती हूँ। सामान्यतः सीनियर डॉ ही चेकउप करते हैं पर इस बार पता नहीं क्यों जूनियर डॉ ही सभी को देख रहे थे। मेरा चेकउप करते ही वो घबरा से गए और बोले --ये root nodule कब से हो गया आपको ? जहाँ तक मेरा सवाल है मै हमेशा खुद ही चेक करती हूँ , मुझे कभी मेरे breast में असामन्यता महसूस नहीं हुआ था पर मुझे भी घबराहट हो गई। हालाँकि * *डॉ साहब ने मुझे सामान्य करने की कोशिश की और मैमोग्राफी के लिए भेजा ये कहते हुए की आप बिलकुल ठीक हैं पर... 
My Expression पर 
Dr.NISHA MAHARANA 
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हिन्दी   

हिन्दी है हिन्द की बिंदी , 
मस्तक पर सुहाती | 
भारत माँ के माथे पर , 
वह बेमिसाल लगती ... 
Akanksha पर Asha Saxena 
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"चौकस कुत्ते" 

'कुत्ता' सो रहा था कुत्ते की नींद, 
हर आहट पर सचेत और चौकन्ना षड्यंत्र, 
आसानी से मुकम्मल हो रहा था 
क्योंकि "चौकस कुत्ते" पहरेदारी पर थे ! .  
उधर इंसान सोये जा रहा था गहरी नींद, 
चीखें और विस्फोट उसी नींद नहीं तोड़ पा रहे थे 
षड्यंत्र मुकम्मल हो रहा था  
क्योंकिं , 
इंसान सो रहा था 
और "कुत्ते" घूम रहे थे चौकस !! . 
[ यमक अलंकार का आनंद लीजिये 
और कविता का अर्थ समझिए ] 
ZEAL 
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आपके पर्श में रखे नोट 

आपको कर सकते हैं बीमार ! 

क्या हम कल्पना कर सकते हैं कि हमारी जेब में रखे पर्श में रखे नोट हमको बीमार भी कर सकते हैं ? शायद नही ! पर ऐसा हो सकता है क्यों कि हमारे पर्श में जो नोट रखे होते हैं उन पर रोग उतपन्न करने वाले सूक्ष्म जीवाणु लगे हो सकते हैं। जिनके कारण त्वचा रोग, पेट की बीमारियों और यहां तक कि तपेदिक जैसी बीमारी भी हो सकती है.... 
डायनामिक  पर Manoj Kumar 
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पर लगे, है ज़ुदा नहीं कोई 

आज तक तो मिला नहीं कोई 
पर लगे, है ज़ुदा नहीं कोई 
तुझको पाऊँ या जान से जाऊँ 
और अब रास्ता नहीं कोई... 
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ 
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THE MOMENT 

WHEN I WAS REALLY FRIGHTENED 

आइये आज आपको मिलवाती हूँ 
एक नवोदित उभरती हुई रचनाकार से ! य
ह है वाणी, मेरी पोती, 
जो कक्षा ९ की विद्यार्थी है ! 
आज पढ़िए उसका लिखा हुआ यह अनुभव 
जो उसने कुछ दिन पहले 
अपने क्लास टेस्ट के लिये लिखा था.... 
Unmanaa पर sadhana vaid 
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इंसान की जीने की लालसा, अद्मय इच्छा, मोह-माया, मन की कामनाएं, लिप्साएं, वृत्तियां भले ही खत्म ना हों पर बढती उम्र काफी पहले से उसे आईना दिखाना शुरू कर देती है। इसमें कोई भेद-भाव नहीं होता चाहे आदमी संपन्न हो या विपन्न। जर्जर होती काया, कमजोर होती इन्द्रियां, अवसाद ग्रस्त दिलो-दिमाग, पारिवारिक सदस्यों की अपनी व्यवस्तता के कारण बढ़ता अकेलापन, अपनी निष्क्रियता के कारण उपजाति हीं भावना, सब मिला कर आदमी अपने-आप को परिवार में अनचाहा सा समझने लगता है... 

कुछ अलग सापर गगन शर्मा 
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ये खुशबुएं गज़ब की होती हैं!!! 

खुशबुओं की बात चली है—चलते हैं एक और गली में—खाने की थाली की महक—उनमें रखी हुईं विभिन्न पकवानों की कटोरियां—.—हरएक के पास एक धरोहर इन खुश्बुओं की अवश्य होती है—कि मां के हाथ की पकाई हुई कोई दाल.कोई सब्जी या कि खीर—या कि एक महक कि, दाल का छौक.
करीब साठ दसक बाद भी मैं आज भी सूंघ पाती हूं उस छौंक की महक को जो हमारी मामी लगाया करती थीं—मूंग की छिलके वाली दाल में... 
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गज़ल  

( सेक्युलर कम्युनल ) 

जब से बेटे जबान हो गए
मुश्किल में क्यों प्राण हो गए

किस्से सुन सुन के संतों के
भगवन भी हैरान हो गए... 
कविता मंच पर kuldeep thakur 
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व्यंग्य –ऐतिहासिक पुल  
देखो पुल बन रहा है। 
बच्चों का ख्याल रखना... 
पुल बनाने वाले बच्चों की 
बलि दे देते हैं...
sochtaa hoon......!
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शराब, साहित्य और शौर्य 
इस शीर्षक में केवल समास ही नहीं एक सामासिक संस्कृति भी झलकती है | शराब विभिन्न विचारधाराओं, जातियों, समाजों,धर्मों आदि के भेद को समाप्त कर देती है |भले ही दो देश या पड़ोसी या चार भले आदमी साथ मिल बैठ नहीं सकते लेकिन चार शराबी सारे भेदों के बावजूद शाम को मिल बैठ ही लेते हैं |और जब थोड़ा शुरूर आ जाता है तो, न तो अपने गिलास का ध्यान रहता है और न ही अपने पराए का ख्याल |
जीवित तो जीवित, निर्जीवों तक के साथ अन्तरंग रिश्ते स्थापित कर लेते हैं ... 

झूठा सच - Jhootha Sach
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fulgobhi ka paratha
आपकी सहेली
ज्योति देहलीवाल 

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