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सोमवार, सितंबर 28, 2015

"बढ़ते पंडाल घटती श्रद्धा" (चर्चा अंक-2112)

मित्रों।
सोमवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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हे गणनायक 

Akanksha पर Asha Saxena 
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दोहे 

"पागल की पहचान" 

पागलपन में हो गयीवाणी भी स्वच्छन्द।
लेकिन इसमें भी कहींहोगा कुछ आनन्द।।
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पागलपन में सभी कुछहोता बिल्कुल माफ।
पागल का होता नहींकहीं कभी इंसाफ... 
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वाक्य गूँजता 

हर रात के बाद,
बरसात के बाद,
दिन उभरेगा,
तिमिर छटेगा,
फूल रंग में इठलायेंगे,
कर्षण पूरा, मन भायेंगे,
पैर बँधे ढेरों झंझावत,
पग टूटेंगे, रहे रुद्ध पथ,
बरसायेंगे शब्द क्रूरतम,
बहुविधि उखड़ेगा जीवनक्रम... 
न दैन्यं न पलायनम् पर प्रवीण पाण्डेय 
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तुम निवाला क्या करोगे .... 

गहन अँधेरों के वासी हो तुम उजाला क्या करोगे -  
भूखा रहने की पड़ी है आदत तुम निवाला क्या करोगे... 
उन्नयन  पर udaya veer singh 
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बिखरी हुयी माटी से खिलौना बना देते है  

बिखरी हुयी माटी से खिलौना बना देते है 
बच्चे बुजुर्गो को भी जीना सिखा देते है। 
सूखे हुये पत्तो से फिरकी बनाते है 
मौसम के मिजाजो को हँस के सजा देते है... 
यथार्थ  Vikram Pratap singh 
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शीर्षकहीन 

इस छोर से उस छोर तक , 
कवच ध्वंस को सिर पटकती 
सागर मध्य तृषित सीपी , 
गर्भ में मोती लिए 
इस खोह से उस खोह तक... 
daideeptya पर Anil kumar Singh 
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जो तुम कह देते एक बार जाओगे सत्य की खोज में करने विश्व का त्राण भर बाँहों का आलंगन ललाट पर टीका और चुम्बन विदा कर देती नाथ पर तुम पलायन कर गए छोड़ सोता ,रात के अँधेरे में तुम्हे डर था कि मेरे आंसुओं का सैलाब तुम्हे कमज़ोर न कर दे अपनेआप पर भरोसा न करने वाले युग - प्रणेता ,शांति - दूत और विश्व के अधिष्ठाता मेरे लिए तो तुम केवल सिद्धार्थ हो... 
दिल से पर Kavita Vikas 
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एक कड़वी याद 

गर्मियों का मौसम था (सन १९९४ या ९५), रात को करीब डेढ़ बजे फैक्ट्री के जनरल मैनेजर श्री पी.के काकू का मेरे आवास पर फोन आया कि “टाप क्रसर पर एक आदमी कंपनी के डम्फर के टायर के नीचे दब गया है, वहां हंगामा हो रहा है; आप प्लीज मदद कीजिये मॉब को समझाइये, लाश को वहां से पोस्टमोरटम के लिए अस्पताल शिफ्ट करना होगा.” उन्होंने ये बात सहज में कह दी पर उनकी आवाज में घबराहट जरूर थी... 
जाले पर पुरुषोत्तम पाण्डेय 
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प्यारे फूल गुलाब के 

स्वप्न गुलाबी हमें दिखाते, 
प्यारे फूल गुलाब के 
बागों के राजा कहलाते, 
प्यारे फूल गुलाब के 
रस-सुगंध, सौन्दर्य-स्वामी ये, 
हर लेते हर जन का मन 
जब डालों पर खिल लहराते... 
गज़ल संध्या पर कल्पना रामानी 
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सब चारण तैयार हैं...... 

इधर भी खड़े कुछ उधर भी खड़े 
चरणों में लिपटे पड़े 
सब चारण तैयार हैं.... । 
हाथों में स्मृति चिह्न लिए 
मुद्रा-प्रशस्ति गिन लिए 
गुण, गुड़ शक्कर हो लिए 
अंग वस्त्र धारण सरकार हैं .... 
जो मेरा मन कहे पर Yashwant Yash 
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रख धरा पै ये कदम 

रख धरा पै ये कदम, और नभ पै रख अपनी निगाहें 
तुम यक़ीनन छू ही लोगे एक दिन तारों की बाहें ।। 
बनके जुगनू आस तेरी हर कदम रोशन करेगी 
हो भले काटों भरी राही तेरे जीवन की राहें... 
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मेरी परलोक-चर्चाएँ... (५) 

['यह रूहों की सैरगाह है...!'] दो वर्षों के कानपुर प्रवास के वे दिन मौज-मस्ती से भरे दिन थे। दिन-भर दफ्तर और शाम की मटरगश्तियां, यारबाशियाँ। कुछ दिनों बाद मैंने भी एक साइकिल का प्रबंध कर लिया था। ध्रुवेंद्र के साथ मैं शहर-भर के चक्कर लगा आता। आर्य नगर हमारा मुख्य अड्डा बन गया था, जहां शाही के कई पुराने मित्र भी थे। उनसे मेरे भी मैत्री-सम्बन्ध बन गए थे। कभी-कभी गंगा-किनारे भैरों (भैरव)) घाट तक मैं अकेला चला जाता, जो तिलक नगर के आगे पड़ता था। जाने क्यों, उन दिनों श्मशान में जलती चिताएं मुझे आकर्षित करती थीं और गंगा के तट पर घूमना अच्छा लगता था... 
मुक्ताकाश....पर आनन्द वर्धन ओझा 
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किसी मंदिर सा था...  

हमारा प्रेम... 

अखंड था... 
मंदिर में स्थापित... 
मूरत सा था.. 
हमारा प्रेम... 
'आहुति' पर Sushma Verma 
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Reflection of thoughts . . .
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या........इलाहा इल्लाह !!! 

कातिल भी ‪#‎मुसलमान‬, 

और मकतूल भी #मुसलमान.!!! 

PITAMBER DUTT SHARMA 
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प्रेम में ईश्‍वर !!! 

प्रेम के रिश्‍ते निभते जाते हैं 
इन्‍हें निभाना नहीं पड़ता 
कोई रहस्‍य कोई पर्दा 
नहीं ढक पाता है 
इसके होने के वज़ूद को ! ... 
SADA 
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कविता : 

खूनी दरवाजा 

SUMIT PRATAP SINGH 
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रिश्तों में जीवन 

रचना रवीन्द्र पर रचना दीक्षित 
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कार्टून:-  

व्‍हाट्सएप्‍प आया व्‍हाट्सएप्‍प आया 

1 टिप्पणी:

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