मित्रों।
रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
--
प्रकाश स्तम्भ
प्रकाश स्तम्भ नहीं एक मंज़िल,
सिर्फ़ एक संबल
दिग्भ्रमित नौका को,
दिखाता केवल राह
लेना होता निर्णय
चलाना होता चप्पू
स्वयं अपने हाथों से...
Kailash Sharma
--
--
--
बिना आशिक़ हुए आवारगी अच्छी नहीं लगती
न दर्दे हिज़्र हो तो आशिक़ी अच्छी नहीं लगती
बिना आशिक़ हुए आवारगी अच्छी नहीं लगती
गुज़र जाता है हर इक सह्न से टेढ़ा किए मुँह जूँ
रक़ीबों को कभी मेरी ख़ुशी अच्छी नहीं लगती...
अंदाज़े ग़ाफ़िल पर चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’
--
--
कंदर्प का संहार होना है...
एक कम्पन हो रहा मेरे ह्रदय में
मेरे विखण्डन को कोई आतुर हुआ है,
इस तरह उद्विग्न है स्वासों का प्रक्रम,
जैसे यम ने आज ही सहसा छुआ है...
--
पुराने वक़्त की जागीर है ये....
पुराने वक़्त की जागीर है ये।
सफ़े पर ख़्वाब की ताबीर है ये।
इसे रक्खा बड़ी हिकमत से मैंने,
जवानी की मेरी तस्वीर है ये।
--
बेटी बिना
बेटी बिना घर सूना सूना
कोई विकल्प न होता उसका
हैं वे ही भाग्यशाली जो
बेटी पा पुलकित होते
उसे घर का सम्मान समझते...
--
--
--
एक लोकभाषा कविता
-ई सरहद के तोड़ी बनी विश्व भाषा
ई सरहद के तोड़ी बनी विश्व भाषा
इ हिंदी हौ भारत के जन -जन कै भाषा |
एकर होंठ गुड़हल हौ बोली बताशा....
जयकृष्ण राय तुषार
--
जुबां पर आए तो सही
दिल की बात जुबां पर आए तो सही
बंद होठों के कोरों से मुस्कुराए तो सही
खामोशी से जो बात न बन पाए
थोड़ा कह कर बहुत कुछ कह जाए तो सही...
यूं ही कभी पर राजीव कुमार झा
--
जहां भारतीयों का प्रवेश निषेद्ध है,
एक कड़वी सच्चाई
बड़ों से सुनने में आता रहा है कि अंग्रेजों के समय के कलकत्ते में एस्प्लेनेड (धर्मत्तल्ला ) के चौरंगी रोड, जिसे ग्रैंड होटल आज जवाहर लाल नेहरू मार्ग के नाम से जाना जाता है, उसके फुटपाथ पर हिंदुस्तानियो का चलना मना था, खासकर "ग्रैंड होटल" वाले हिस्से पर। अंग्रेजों का राज था इसलिए डर के मारे विरोध नहीं हुआ होगा उस वक्त। पर आज के समय जब हम आजाद हैं तब भी हमारे देश में विदेशियों द्वारा बनाई या उपयोग में लाई जाने वाली कुछ जगहें ऐसी हैं जहां भारतीयों का ..
कुछ अलग सा पर गगन शर्मा
--
तेरे जिस्म में रुह कितना आजाद है हमसे पूछ
तेरे जिस्म में रुह कितना आजाद है हमसे पूछ
किसी मसले का क्या निजाद है हमसे पूछ
तुझे क्यों लगा कि उसका एहसान है तेरा होना
तेरा होकर जीना उसका मफाद है हमसे पूछ...
--
अक्षर ,शब्द और हमारे मायने....
शब्द जैसे मात्र अक्षरो का समूह
अपने अर्थ की तलाश में ,
एक दूसरे से टकराते और लिपटते।
वाक्य बस शब्दों का मेल,
आगे और पीछे खोजते अपने लिए
इक उपयुक्त स्थान ,
अपने होने का निहतार्थ
और पूर्णता के लिए...
--
--
पुतलों के पीछे
पुतलों के पीछे दिल्ली के रामलीला मैदान में रावण दहन के अवसर पर प्रतिवर्ष आयोजित रामलीला में हर बरस प्रधानमन्त्री को शोभाप्रद निमंत्रण भेजा जाता है। इस बरस स्वाभाविक तौर पर दिल्ली रामलीला कमिटी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को शोभाप्रद पद हेतु निमंत्रण भेजना स्वीकार किया है...
आपका ब्लॉग पर
Virendra Kumar Sharma
--
--
क्या अब भी असहाय है राजकुमारियाँ ..
...राजकुमार,
राजकुमार रहे ही कहाँ
लगता है झुक गए हैं वह
राक्षसों के आगे
लगे हैं भेड़ियों के सुर में सुर मिलाने।
तो क्या अब भी असहाय है
राजकुमारियाँ !
क्या इंतजार है अब भी उनको
किसी राजकुमार का ?...
राजकुमार रहे ही कहाँ
लगता है झुक गए हैं वह
राक्षसों के आगे
लगे हैं भेड़ियों के सुर में सुर मिलाने।
तो क्या अब भी असहाय है
राजकुमारियाँ !
क्या इंतजार है अब भी उनको
किसी राजकुमार का ?...
--
मतलब पड़ा तो सारे, अनुबन्ध हो गये हैं।
नागों के नेवलों से, सम्बन्ध हो गये हैं।।
बादल ने सूर्य को जब, चारों तरफ से घेरा,
महलों में दिन-दहाड़े, होने लगा अँधेरा,
फिर से घिसे-पिटे तब, गठबन्ध हो गये हैं।
नागों के नेवलों से, सम्बन्ध हो गये हैं।।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
"चर्चामंच - हिंदी चिट्ठों का सूत्रधार" पर
केवल संयत और शालीन टिप्पणी ही प्रकाशित की जा सकेंगी! यदि आपकी टिप्पणी प्रकाशित न हो तो निराश न हों। कुछ टिप्पणियाँ स्पैम भी हो जाती है, जिन्हें यथा सम्भव प्रकाशित कर दिया जाता है।