मित्रों।
शनिवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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गीत "मौसम हमें बुलाए"
ठण्डी-ठण्डी हवा चल रही,
सिहरन बढ़ती जाए!
आओ साथी प्यार करें हम,
मौसम हमें बुलाए!!
त्यौहारों की धूम मची है,
पंछी कलरव गान सुनाते।
बया-युगल तिनके ला करके,
अपना विमल-वितान बनाते।
झूम-झूमकर रसिक भ्रमर भी,
गुन-गुन गीत सुनाए...
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'दो रुपए का नोट'
...आज भी जब कोई व्यक्ति ट्रेन में पर्स चोरी हो जाने, सामान चोरी हो जाने या जेब कट जाने की बात कहता है तो लोगों के रोकने पर भी कुछ तो सहायता कर ही देती हूँ ताकि वह घर तक तो पहुँच जाए या घर से किसी को सहायता के लिए बुला सके। क्या पता मेरी तरह वह सच ही बोल रहा हो।
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आओ करें स्वागत
आशा और निराशा का
भोर होते ही छुप जायेगा
वह चमकीला सितारा आसमान का
लीन हो जायेगा सूरज की सुनहरी किरणों में
किस जीत का मना रहे जश्न
और रो रहे किस हार पर...
Ocean of Bliss पर Rekha Joshi
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मीडिया की तो राम ही भली करें
मीडिया आजकल क्या कर रहा है किसी की भी समझ में नहीं आ रहा है किन्तु इतना साफ है कि मीडिया अपनी भूमिका का सही निर्वहन नहीं कर रहा है .सच्चाई को निष्पक्ष रूप से सबके सामने लाना मीडिया का सर्वप्रमुख कार्य है किन्तु मीडिया सच्चाई को सामने लाता है घुमा-फिरा कर .परिणाम यह होता है कि अर्थ का अनर्थ हो जाता है और समाचार जनता में भ्रम की स्थिति पैदा करता है .अभी २ दिन पहले की ही बात है लालू यादव ने राहुल गांधी की रैली में शामिल होने से इंकार किया तो समाचार प्रकाशित किया गया अमर उजाला दैनिक के मुख्य पृष्ठ ३ पर जो कि १ व् २ पेज पर विज्ञापन के कारण नंबर ३ ही था...
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श्री गणेश जन्मोत्सव
उत्सव, त्यौहार, पर्वादि हमारी भारतीय संस्कृति की अनेकता में एकता की अनूठी पहचान कराते हैं। रक्षाबन्धन के साथ ही त्यौहारों का सिलसिला शुरू हो जाता है। वर्ष के 365 दिन में से 111 दिन भारतीय समाज त्यौहारों और पर्वों को अलग-अलग रूपों में मनाता है। सदियों से चलती आयी हमारी यह उत्सवधर्मी परम्परा जीवन की एकरसता को दूर करने के साथ ही परिवार और समाज को एकसूत्र में बांधने का काम भी करती है। यह मात्र परम्परा नहीं है, यदि सूक्ष्मता से चिन्तन करें तो प्रत्येक पर्व के पीछे मानव कल्याण का भाव निहित है...
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फिर माँ बाप बुढापे में
बोझ क्यों लगने लगते है?
माँ बाप भगवान का रूप होते है
उनकी सेवा कीजिये और प्यार दीजिये…..
क्योंकि एक दिन आप भी बूढे होंगे
फिर अपने बच्चों से सेवा की उम्मीद मत करना।
KMSRAJ51-Always Positive Thinker
बोझ क्यों लगने लगते है?
माँ बाप भगवान का रूप होते है
उनकी सेवा कीजिये और प्यार दीजिये…..
क्योंकि एक दिन आप भी बूढे होंगे
फिर अपने बच्चों से सेवा की उम्मीद मत करना।
KMSRAJ51-Always Positive Thinker
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पाँव तेरे बढ़ रहे थे धड़कनें मेरी बढ़ीं
भोर की वेला में जब कल
हम अजनवी दो मिले
दूरियां सिमटी नहीं पर
नैन भर प्याले पिए...
BHRAMAR KA DARD AUR DARPAN
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खर्राटे हैं कई बीमारियों का संकेत
विशेषज्ञ कहते हैं कि खर्राटों की वजह से नींद पूरी न हो पाने से कई स्वास्थ्य समस्याओं को न्यौता मिलता है। आइए जानते हैं कुछ ऐसी ही बीमारियों के बारे में..
रोग निवारक घरेलू चिकित्सा
विशेषज्ञ कहते हैं कि खर्राटों की वजह से नींद पूरी न हो पाने से कई स्वास्थ्य समस्याओं को न्यौता मिलता है। आइए जानते हैं कुछ ऐसी ही बीमारियों के बारे में..
रोग निवारक घरेलू चिकित्सा
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"हिन्दी साहित्य के 'सुदामा' थे 'श्रीश' जी"
(अमन चाँदपुरी)
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तू किनारे से हाथ देगा मुझे लगता नहीं
तू किनारे से हाथ देगा मुझे लगता नहीं
तू मेरा साथ देगा मुझे लगता नहीं
ऐ मौत कभी तो आएगा इतना मुकर्रर है
मगर मुझे मात देगा मुझे लगता नहीं ...
आपका ब्लॉग पर Sanjay kumar maurya
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प्यार - 4
जैसे फूल के इर्द-गिर्द
बुन जाता है कोई जाला
वैसे ही प्रेम के इर्द गिर्द
जमा हो जाती है
थोड़ी सी उदासी...
Pratibha Katiyar
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भाव
भाव का अविर्भाव ऐसे ही नहीं होता
बहुत जतन करने होते हैं
तभी निखार आता
सर्वप्रथम उसका शोधन
फिर प्रक्षालन परिवर्धन
और अंत में परिमार्जन...
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"तलाक-तलाक-तलाक बोलिए-
और काम पे चलिए" !!
- पीताम्बर दत्त शर्मा (लेखक-विश्लेषक)
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बिखरे हुए अक्षर चुन कर...
बिखरे हुए अक्षर चुन कर
बना दिए जाते हैं मनचाहे शब्द ...
मनचाहे शब्दों की कड़ी
बुन देती है वाक्य की जंजीर...
इस जंजीर में भरे जाते हैं
भावों के रंग...
और बन जाती है
विभिन्न रंगों के भाव भरी
एक रचना...
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देख के कितना है रंज रिश्ते में
तू न देख के कितना है रन्ज रिश्ते में अपने,
तू ये देख के क्या क्या है निभाया मैंने
सारी दुनिया मिलती है किसे ,
टुकड़ों में मिली धूप को कैसे गले लगाया मैंने...
तू ये देख के क्या क्या है निभाया मैंने
सारी दुनिया मिलती है किसे ,
टुकड़ों में मिली धूप को कैसे गले लगाया मैंने...
गीत-ग़ज़ल पर शारदा अरोरा
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"डोर तुम्हारे हाथों में-देवदत्त 'प्रसून' "
(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
मित्रों।
कवि देवदत्त "प्रसून" आज हमारे बीच नहीं हैं।
लेकिन उनका साहित्य अमर रहेगा।
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गत वर्ष 25 नवम्बर, 2014 को मेेरे अभिन्न मित्र
देवदत्त प्रसून का अचानक देहान्त हो गया था।
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कल 19 सितम्बर, 2015 को सायं 4 बजे से मेरे एम.ए. के साथी
और अभिन्न मित्र स्व. देवदत्त प्रसून की पुस्तक "झरी नीम की पत्तियाँ"
का विमोचन पीलीभीत में टनकपुररोड पर स्थित पीलीभीत वेकटहाल में किया जायेगा।
गत वर्ष आदरणीय प्रसून जी का नवम्बर में देहान्त हो गया था।
उनकी पत्नी श्रीमती मीना गंगवार ने
उनकी पुस्तक को प्रकाशित कराया है।
सभी साहित्य प्रेमियों से निवेदन है कि
वह इस कार्यक्रम में भाग लेने का प्रयत्न करें।
-- उनकी स्मृति में उनकी यह अन्तिम रचना (गीत) प्रस्तुत कर रहा हूँ
-- उनकी स्मृति में उनकी यह अन्तिम रचना (गीत) प्रस्तुत कर रहा हूँ
डोर तुम्हारे हाथों में (देवदत्त प्रसून)
मेरी साँस की डोर तुम्हारे हाथों में ।
है दामन का छोर तुम्हारे हाथों में
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