मित्रों।
शनिवार की चर्चा में आपका स्वागत है
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आज अनोखा संयोग बना है-
योगिराज कृष्ण और सर्वपल्ली राधाकृष्णन का
आज जन्म दिन है।
श्री कृष्ण जन्माष्टमी और शिक्षकदिवस की
सभी पाठकों को हार्दिक शुभकामनाएँ।
रधाकृष्णन-कृष्ण का, है अद्भुत संयोग।
दोनों का है जन्मदिन, बना अनोखा योग।।
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अध्यापकदिन पर सभी, गुरुवर करें विचार।
बन्द करें अपने यहाँ, ट्यूशन का व्यापार।।
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वैभव का साया
कान्हां तुमने कहाँ छिपाया
अदभुद वैभव का साया
मैंने पीछा करना चाहा
पर साया हाथ न आया...
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हमारे तुम्हारे बीच
...नागफ़नी को कई बार
उखाड़ फेंकने की कोशिश की
लेकिन सफल नहीं हो पाया
उसका क्षेत्रफ़ल बढ़ता ही जा रहा है,
और अब तो
नदी के पास की समतल जमीं पर
कुछ अवैध निर्माण भी होने लगे हैं....
दुबे का बेबाक-अंदाज
...नागफ़नी को कई बार
उखाड़ फेंकने की कोशिश की
लेकिन सफल नहीं हो पाया
उसका क्षेत्रफ़ल बढ़ता ही जा रहा है,
और अब तो
नदी के पास की समतल जमीं पर
कुछ अवैध निर्माण भी होने लगे हैं....
दुबे का बेबाक-अंदाज
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है विश्वास तुम्हें खुद पर
है होता दुःख
देख तुम्हे कैद दीवारों में
जो बना रखी खुद तुमने
क्यों दे रहे हो पीड़ा
खुद को
अपने ही हाथों
क्यों कैद कर लिया
खुद को...
देख तुम्हे कैद दीवारों में
जो बना रखी खुद तुमने
क्यों दे रहे हो पीड़ा
खुद को
अपने ही हाथों
क्यों कैद कर लिया
खुद को...
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कितनी टूटन है
अंदर भी बाहर भी
नींद के दरवाजे पर एक भयावह ख्वाब की दस्तक होती है। मैं डर जाती हूं। वो ख्वाब इन दिनों मुसलसल दिक किये है. उसके डर से नींद से छुप जाना चाहती हूं। चादर को और कसकर लपेट लेती हूं। आंखें बंद कर लेती हूं लेकिन सोती नहीं। उस ख्वाब की दस्तक बढ़ती जाती है। मैं सोचती हूं कि चादर के भीतर मैं सुरक्षित हूं...
Pratibha Katiyar
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कुछ अफ़साने : लाज़िमी हैं
कुछ नया ढंग था। सर ढका हुआ था , और चेहरा भी। ऐसा ही हुलिया तो इसके दोस्त का था , और ऐसा ही भाई का । पर वो दोनों तो नहीं आने वाले थे आज। सर से मुआइना करते - करते नज़र ज्यों ही पैरों पर पड़ी , उसने राहत की सांस ली … तो आ गए जनाब .... और बस , उसे खुराफात सूझने लगी...
Vandana KL Grover
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कब मिलोगे मीत
कब मिलोगे मीत, इस बाबत लिखा है।
प्यार से मैंने, तुम्हें यह ख़त लिखा है।
मन तुम्हारा क्या मुझे अब भूल बैठा?
या कि तुमको अब नहीं फुर्सत, लिखा है...
गज़ल संध्या पर कल्पना रामानी
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चंद साँसे ....
आज फिर से
निखरती हवाओं ने
साँसे भरी हैं
कुछ नामालूम सी
बिखरी पत्तियों ने
यादों का द्वार
फिर से खटखटाया है...
निखरती हवाओं ने
साँसे भरी हैं
कुछ नामालूम सी
बिखरी पत्तियों ने
यादों का द्वार
फिर से खटखटाया है...
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नारी तू घर आँगन की बहार है ,
या सावन कि ठंडी सी फुहार है।
बहती हवा कि वही बयार है
, प्रेम-समर्पण कि पुकार है ,
विश्वास है,जीवन पर
फिर भी
इस समाज से बाहर है।
पुरुष की संगनी मात्र बने रहकर
हर स्वप्न करती साकार है...
"अली मोरे अँगना '' पर आराधना राय
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