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शुक्रवार, सितंबर 25, 2015

"अगर ईश्वर /अल्लाह /ईसा क़त्ल से खुश होता है तो...." (चर्चा अंक-2109)

मित्रों।
कल ईदुलजुहा का त्यौहार है।
सभी मुसलमान भाइयों को मुबारकबाद के साथ 
निवेदन है कि किसी बेगुनाह जानवर की कुर्बानी के बजाय 
अपनी किसी बुराई को कुर्बान करें। 
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आज देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक
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"निर्दोषों की गर्दन पे, क्यों छुरा चलाया जाता है?" 

बकरे की माँ कब तक, अपनी खैर मना पाएगी।
बेटों के संग-संग, उसकी भी कुर्बानी हो जाएगी।।

बकरों का बलिदान चढ़ाकर, ईद मनाई जाती है।
इन्सानों की करतूतों पर, लाज सभी को आती है..
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अगर ईश्वर /अल्लाह /ईसा 

क़त्ल से खुश होता है 

तो उसके मुंह पर थू 

"मानव के अतिरिक्त अन्य प्राणी भी ईश्वरीय कृति हैं ... बल्कि अवधारणा तो यही है कि मानव ईश्वरीय कृतियों में अंतिम कृति है ... यह सनातन अवधारणा है , इस्लाम की भी है, ईसाइयों की भी ,बौद्धों की भी ,यहूदियों की भी ,पारसीयों की भी (मार्क्सवादी मजहब को मानने वाले ही इस अवधारणा से असहमत हैं ) ... फिर ईश्वर की एक कृति को दूसरी कृति नष्ट करे यह अधिकार कहाँ से मिल गया ? 
...ईश्वर /ईसा /अल्लाह तो नहीं दे सकते ? ... 
भला कौन पिता अपनी कमजोर संतति को मारने का हक़ अपनी ताकतवर संतति को देगा ? ... 
Shabd Setu पर RAJIV CHATURVEDI 
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ईद है जी ! 

अंधड़ ! पर पी.सी.गोदियाल "परचेत" 
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फ़रियाद 

अंधड़ ! पर पी.सी.गोदियाल "परचेत" 
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कच्ची सड़क 

सूरज की तपिश से दूर रखती 
छन छन कर आती धूप 
बहुत सुकून देती 
मार्ग सुरम्य कर देती | 
आच्छादित वृक्षों से 
मार्ग पर चलने की चाहत 
दौड़ने भागने की मंशा बलवती कर देती... 
Akanksha पर Asha Saxena 
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इक ज़ुरूरी काम शायद कर गये 

शम्‌अ की जानिब पतिंगे गर गये 
लौटकर वापिस न आए मर गये 
कुछ तो है पोशीदगी में बरहना 
जो उसी के सिम्त पर्दादर गये... 
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ 
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शुकराना 

तुम क्या गये 
भावनाओं की रेशमी नमी 
जीवन की कड़ी धूप में 
भाप बन कर उड़ गयी ! 
स्नेह के खाद पानी के अभाव में 
कल्पना के कुसुमों ने 
खिलना बंद कर दिया... 
Sudhinama पर sadhana vaid 
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टूटा सितारा 

हायकु गुलशन.. पर sunita agarwal
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दोहे छंद में –आध्यात्म 

 मेरे विचार मेरी अनुभूति
लेकिन ये दोहे नहीं हैं... और सही शब्द  

आध्यात्म  नहीं 

अध्यात्म होता है...
कालीपद "प्रसाद" 
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मेरी परलोक-चर्चाएँ... (४) 

पूज्य पिताजी ने अपने एक लेख 'मरणोत्तर जीवन' में लिखा है--"मनुष्य-शरीर में आत्मा की सत्ता सभी स्वीकार करते हैं। शरीर मरणशील है, आत्मा अमर। मृत्यु के बाद शरीर को नष्ट होता हुआ--जलाकर, गाड़कर या अपचय के द्वारा--सभी देखते हैं, लेकिन आत्मा का क्या होता है? वह कहाँ जाती है? क्या करती है? शरीर के नष्ट होने के बाद उसका अधिवास कहाँ होता है? क्या इस जगत से उसका सम्बन्ध बना रहता है? क्या वह व्यक्ति-विशेष का ही प्रतिनिधित्व करती है?.... 
मुक्ताकाश....पर आनन्द वर्धन ओझा 
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जो नहीं दे रही मुझे मेरा आहार... 

1 माह का बच्चा
दूध की बौटल को
मुंह से दूर करते हुए
 जैसे मानो कह रहा हो
भ्रष्टाचार, भ्रष्टाचार
रोते हुए अपनी मां  को
तुम भी भ्रष्टाचारी हो
जो नहीं दे रही मुझे मेरा आहार... 
मन का मंथन  पर kuldeep thakur 
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कहने के लिए 

नहीं होती केवल उपलब्धियां 
कई बार अनकहा भी कहा जा सकता है किसी से 

कई बार अँधेरे को अँधेरे से निकालने के लिए भी 
दिखानी होती है उन्हें शब्दों की रौशनी 
उपलब्धि के लिए दुनिया कम है ... 
सरोकार पर Arun Roy 
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देशभक्ति जूनून है कानून नहीं . 

मदरसों में तिरंगा जरूर फहराया जाये... 
! कौशल ! पर Shalini Kaushik 

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