आज की चर्चा में आपका हार्दिक अभिनन्दन है।
सत्य वचन के प्रभाव से पुरूषों के मुख में विश्वसनीय वाणी निवास करती है। सत्य से ही पुरूषों की बुद्धि समस्त तत्वों की परीक्षा करने के लिए कसौटी के पत्थर की तरह होती है, जिन सत्य वचनों से स्थिर वैराग्य उत्पन्न होता है, सद् गुण बढते हैं, रागादि नष्ट होते हैं, काम क्रोध आदि विकार शांत होते है, दुध्र्यान नष्ट होते हैं, साधु को धर्म और तत्व के दर्शक मिष्ट वचन बोलना चाहिए इन वचनों के द्वारा मेरा अथवा दूसरों का शुीा होगा कि अशुभ होगा, हित होगा या अहित, कल्याण होगा कि अकल्याण। इस प्रकार पहले मन में विचार कर बाद में धर्म और तत्व का ज्ञान कराने के लिए आगम के अनुकूल प्रशंसनीय वचन बोलना चाहिए।
दोहे "जय-जय गणपतिदेव"
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
विघ्नविनाशक आप हो, सभी गणों के ईश।
पूजा करते आपकी, सुर-नर और मुनीश।।
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सबसे पहले आपकी, पूजा होती देव।
सबकी रक्षा कीजिए, जय-जय गणपतिदेव।।
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कालीपद प्रसाद
* ॐ गं गणपतये नम:*
* जय जय जय गणपति, जय निधिपति *
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राजेंद्र शर्मा
बजता डमरू महाकाल का
नाच रहे नंदी भैरव
नर से होते नारायण है
अर्जुन के केशव माधव
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वन्दना गुप्ता
क्या फर्क पड़ता है
मैं स्त्री हूँ या पुरुष
मानव सुलभ इर्ष्याओं से तो ग्रस्त रहता ही हूँ
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हिमकर श्याम
गणपति, गणनायक हरें, सभी के दुःख क्लेश।
शिव-गौरी के लाड़ले, प्रथम पूज्य गणेश।।
ऋद्धि-सिद्धि सुख सम्पदा, करते जो प्रदान।
विघ्न विनाशक आ गए, करे जग कल्याण।।
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प्रतिभा सक्सेना
कई वर्ष मुज़फ़्फ़रनगर में रही थी. जब वहाँ से चलना पड़ा तो चिट्ठी-पत्री के लिये अपनी मित्र से उनके घर का डाक का पता पूछा . घर तो कई बार गई थी , बाहर के ...
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वीरेन्द्र कुमार शर्मा
एक बार की बात है बादशाह अकबर के दरबार में एक फ़कीर आया। अकबर बादशाह के बारे में विख्यात है वह संत महात्माओं फ़कीर औलाओं का बड़ा सम्मान करता था। फ़कीर ने बादशाह को तीन बार सलाम किया बादशाह ने उसे सम्मान पूर्वक बिठलाया।
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रेखा श्रीवास्तव
अपनी इस कविता को मैंने जानबूझ कर हिंदी दिवस पर नहीं डाला क्योंकि हिंदी हमारे लिए सिर्फ एक दिन अलख जगा कर चिल्लाने की चीज नहीं है। उसके लिए प्रयागत्नशील हमारे साथियों के प्रयासों में एक निवेदन ये भी समझा जाय।
क्या हम गुनहगार नहीं ?
मुख से
जो फूटा था
शब्द प्रथम - वो 'माँ' ही था ,
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राजीव कुमार झा
कई भारतीय पौराणिक कथाओं एवं ग्रीक कथाओं में काफी समानता है,लेकिन यह समानता कथाओं के प्रारंभ में ही है,इनका अंत बिल्कुल भिन्न
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प्रवीण चोपड़ा
मुझे इस किस्से को लिखने की प्रेरणा मिली आज शाम लखनऊ के चारबाग रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म पर बैठी एक अधेड़ उम्र की महिला से...वह अपने पति और परिवार के साथ पालीथीन की शीट पर बैठ कर लईया-चना का लुत्फ उठा रही थी कि अचानक ……
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रीना मौर्या
बाबुल की सोन चिरैया
अब बिदा हो चली
महकाएगी किसी और का आँगन
वो नाजुक सी कली
माँ की दुलारी
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शालिनी कौशिक
इस वर्ष १७ सितम्बर का दिन हर भारतीय के लिए विशेष महत्व रखता है धार्मिक रूप से भी और राजनीतिक रूप से भी.१७ सितम्बर को इस वर्ष गणेश चतुर्थी और देश की राजनीति को एक नया आयाम देने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी का जन्मदिन है .जिस तरह हर शुभ कार्य के पूर्व सभी के लिए हिन्दू धर्म में गणेश जी को मनाना अनिवार्य है
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रमा द्विवेदी
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भारती दास
हे गौरी-सुत हे गजबदन
एक निवेदन करते हम
झुककर भी मैं पहुँच ना पाती
जहाँ तुम्हारे दोनों चरण
हे गौरी सुत हे गज बदन .......
प्रीति स्नेह
मन की वीणा सोई हुई है
कहीं दर्द ओढ़ याद खोई है
'प्रीति' दूर कोई गीत गुनगुना रही
सोई हुई हंसी दर्द को गले लगा रही
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फ़िरदौस खान
होंठों पे मुहब्बत के तराने नहीं आते
जो बीत गए फिर वो ज़माने नहीं आते
हल कोई जुदाई का निकालो मेरे हमदम
अब ख़्वाब भी नींदों में सताने नहीं आते
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रमाजय शर्मा
पधारो मेरे घर
मेरे बप्पा
अंखियों ने तका राह
पूरा एक साल
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रेखा जोशी
नहीं तुम मिले मै गमन कर रहा हूँ
यहाँ रात में अब शयन कर रहा हूँ
…
न तस्वीर से ही मुलाकात होती
मिलो सामने यह जतन कर रहा हूँ
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विशेष: व्यस्त कार्यक्रम के चलते अगले शुक्रवार की चर्चा नही कर पाउँगा, क्षमाप्रार्थी हैं-धन्यवाद,
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