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रविवार, जनवरी 31, 2016

"माँ का हृदय उदार" (चर्चा अंक-2238)

मित्रों!
रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

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हर किसी की आँखों में। 
कुछ-कुछ ख्वाब होते है। 
हर किसी के दिल में। 
कुछ राज होते है।... 
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एक हैं पी0 सी0 तिवारी 

वैसे तो कई हैं
जिन्होने
विद्रोही होने के
दावे खुद ही लिख
खुद ही के सीने
पर टाँके हुऐ हैं
दिखते भी हैं
पैसे भी मिलते हैं
या नहीं मिलते हैं
कभी वो नहीं बाँचे है
उन्हीं के बीच के हैं
पी0 सी0 तिवारी ...
उलूक टाइम्स
उलूक टाइम्स पर सुशील कुमार जोशी 
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रंगे-ख़ुद्दारी न हो ... 

हिज्र हम पर इस तरह भारी न हो 
जिस्म में हर वक़्त बेजारी न 
हो दीद का दिन है मुक़र्रर आज फिर 
ये: ख़बर तो काश ! सरकारी न हो... 
Suresh Swapnil 
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सुख का पेड़ 

कभी-कभी सोचता हूँ 
एक पेड़ लगाऊं सुख का 
और ईश्वर से वरदान मागूँ कि 
जैसे -जैसे समय बढ़ता जाये 
वैसे -वैसे सुख का पेड़ और सघन हो जाये 
और एक दिन वह पेड़ इतना सघन हो जाये कि 
समूचा आकाश भी उसे ढकने के लिए 
छोटा पड़ जाये.... 
वंदे मातरम् पर abhishek shukla 
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Laddakh-Pangong Lake 

Sunil Kr. Singh 
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तलाश 

man kaa saundary के लिए चित्र परिणाम
दो काकुल मुख मंडल पर
झूमते लहराते 
कजरे की धार पैनी कटार से
 वार कई बार किया करते 
 स्मित मुस्कान टिक न पाती ... 
Akanksha पर Asha Saxena 
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Roopali. 

पानी का सबसे शुद्ध रूप, शायद ओस की बूँद में दिखता होगा। वह मैंने एक सुन्दर लड़की की आँखों में देखा। यह कल की बात है। इंडियन कॉफी हाउस में बगल वाली टेबल पर वह अपने माता-पिता के साथ आइसक्रीम खा रही थी। उसने भरपूर दृष्टि से मुझे देखा। उस दृष्टि में आत्मा उतरती हुयी सी दिख रही थी। इसने मुझे परेशान करके रख दिया। रहा नहीं गया तो उनकी टेबल पर गया। यह हद दर्ज़े की बदतमीज़ी होनी चाहिए थी। लेकिन उस परिवार के पास शिष्टाचार था। मैंने उनसे उनकी सुन्दर बेटी की तस्वीर लेने की इजाज़त माँगी। और उसका नाम पूछा। वह रूपाली है। सचमुच रूपाली... 
satish jayaswal 
बेरहम मरहम..  
काश सहेज सकता..  
ये दमख़म..  
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ग़ज़ल 

मैं इबादत हसरतों के नाम ही करता रहा । 
वक्त से पहले कोई सूरज यहां ढलता रहा... 
Naveen Mani Tripathi 
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दार्जीलिंग नगर की सैर -  

नये स्थलों के साथ 

Some Picture from Darjeeling Zoo (चिड़ियाघर में प्रवेश करते ही प्रथम झलकी  )
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मैं बनी बेबी मगरमच्छ 

आज याने ३० जनवरी को मेरी नतिनी तन्वी तीन साल की हो जाएगी।
और २९ की मेरी शाम कुछ ऐसे बीती उसकी नतिनी बनकर।
जब से प्ले स्कूल जाना शुरु किया है उसे जुकाम पकड़े रहता है। बीच बीच में बुखार भी हो जाता है। शायद यह उसकी वायरसों से पहली मुठभेड़ है इसलिए। आज भी जुकाम अधिक था इसलिए निश्चय किया गया कि शाम को उसे पार्क खेलने नहीं ले जाया जाएगा, (पार्क भी मैं ही ले जाती हूँ) और घर में ही उसका मनोरंजन किया जाएगा। ... 
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जलाया खून है अपना, पसीना भी बहाया है।
कृषक ने अन्न खेतों में, परिश्रम से कमाया है।।

सुलगते जिसके दम से हैं, घरों में शान से चूल्हे,
उसी पालक को, साहूकार ने भिक्षुक बनाया है... 
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शनिवार, जनवरी 30, 2016

"प्रेम-प्रीत का हो संसार" (चर्चा अंक-2237)

मित्रों!
शनिवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

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"गांधी जी कहते हे राम!" 
राम नाम है सुख का धाम। 
राम सँवारे बिगड़े काम।।... 
जब भी अन्त समय आता है, 
मुख पर राम नाम आता है, 
गांधी जी कहते हे राम!
राम सँवारे बिगड़े काम।। 
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घुलनशील पदार्थ 

अपने आने जाने के क्रम में 
कितनी ही उठापटक कर लें 
मगर हश्र अंततः मिटना ही है 
फिर वो कोई भी हो चिंताएं ,  
ज़िन्दगी या इन्सान 
तिल तिल कर जलने से नहीं मिटा करतीं... 
vandana gupta 
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शब्द से ख़ामोशी तक –  

अनकहा मन का (६) 

खाली को भरने की कवायद में 
भरते गए सब कुछ अंदर । 
कुछ चाहा कुछ अनचाहा । 
भर गया सब..बिल्कुल भरा प्रतीत हुआ, 
लेश मात्र भी जगह बाकी ना रही । 
फिर भी उस भरे में कुछ हल्कापन था... 
सु-मन (Suman Kapoor) 
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एक व्यंग्य :  

अवसाद में हूँ... 

जी हाँ, आजकल मैं अवसाद में हूँ । अवसाद में हूँ इसलिए नहीं कि कल बड़े बास ने डाँट पिला दी। इस ठलुए निठलुए पर जब वह डाँट पिलाने का कोई असर नहीं देखते हैं तो खुद ही अवसाद में चले जाते हैं... 
आपका ब्लॉग पर आनन्द पाठक 
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अन्धेरी निशा में नदी के किनारे  

सरयू सिंह 'सुन्दर' 

धधक कर किसी की चिता जल रही है । 
धरा रो रही है, बिलखती दिशाएँ, 
असह वेदना ले गगन रो रहा है, 
किसी की अधूरी कहानी सिसकती, 
कि उजड़ा किसी का चमन रो रहा है, 
घनेरी नशा में न जलते सितारे, 
बिलखकर किसी की चिता जल रही है... 
कविता मंच पर kuldeep thakur 
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हो हल्ला हरगिज नहीं, हरगिज नहीं प्रलाप-  

गलती होने पर करो, दिल से पश्चाताप |
हो हल्ला हरगिज नहीं, हरगिज नहीं प्रलाप |
हरगिज नहीं प्रलाप, हवाला किसका दोगे |
जौ-जौ आगर विश्व, हँसी का पात्र बनोगे |
ऊर्जा-शक्ति सँभाल, नहीं दुनिया यूँ चलती |
तू-तड़ाक बढ़ जाय, जीभ फिर जहर उगलती ||

"लिंक-लिक्खाड़" पर रविकर 

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कभी डाल मत हाथ, अगर रविकर जल खौले 

हौले हौले हादसे, मित्र जाइये भूल। 
ईश्वर की मर्जी चले, करिये इसे कुबूल। 
करिये इसे कुबूल, सावधानी भी रखिये। 
दुर्घटना की मूल, चूक होने पे चखिए। 
कभी डाल मत हाथ, अगर रविकर जल खौले। 
हर गलती से सीख, सीख ले हौले हौले।।
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रुसवा होता गया 

तू होती गई जब दूर मुझसे, 
मैं तुझमे ही और खोता गया, 
भीड़ बढ़ती गई महफिल में, 
मैं तन्हा और तन्हा होता गया । 
तू खुद की ही करती रही जब, 
मैं तेरे ही सपने पिरोता गया... 
ई. प्रदीप कुमार साहनी 
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मेरी ज़िम्मेदारी 

वो माँ का झूठ मूठ में पतीला खनकाना 
सब भरपेट खाओ बहुत है खाना 
फटी हुइ साड़ी को शाला से ढक लिया 
मेरी फीस का सारा जिम्मा अपने सिर कर लिया 
रात में ठंड से काँपती रहे 
और मुझे दो-दो दुशालें से ढांपती रहे... 
Madhulika Patel 
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जिंदगी-ट्रेन-लड़की-चाय 

ट्रेन डब्बा मुसाफिर जिंदगी 
तेज धीमी रफ़्तार समय 
भागते हांफते आराम 
बैठे तो रेत जैसे जिंदगी 
हथेली किसी के हाथ में 
फिसल जाता है... 
पथ का राही पर musafir 
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बदलाव (परिवर्तन) 

कहते है परिवर्तन ही जीवन का आधार है। 
जो समय के साथ बदल जाये 
वही व्यक्ति सफल कहलाता है। 
लेकिन मेरी सोच और समझ यह कहती है कि 
“परिस्थिति के आधार पर 
समग्ररूप से मानवता का 
जो कल्याण करने में सक्षम हो 
या फिर जिसमें मानवता के 
कल्याण की भावना निहित हो, 
सही मायने में वही सच्चा बदलाव है”... 
मेरे अनुभव पर Pallavi saxena 
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कुछ जतन कीजिए उस घड़ी के लिए 

मौत भी आए तो ज़िन्दगी के लिए  
पर किया आपने क्या किसी के लिए... 
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ 
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लाभों से दूर .....  

ज़रूरतमंद 

साल दर साल न जाने कितनी सरकारी योजनाएं आतीं है। 
लागू भी होतीं है , लेकिन जिन जरूरतमंद लोगों के भले के लिए ये बनाई जातीं है उन को कोई जानकारी ही नही होती। क्यूंकि ये लोग अख़बार , पत्र -पत्रिकाएं और इंटरनेट से कोसों दूर रहते है। न तो ज़रूरतमंद इसका लाभ उठा पाते है , योजनाएं भी धरी की धरी रह जातीँ है... 
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इछुड़े - बिछुड़े से मेरे शब्द हैं सारे 
अटक -भटक कर फिरे मारे -मारे 
ना कोई ठौर है , रहे किसके सहारे ... 
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मरने के बाद रोहित का पहला इंटरव्यू 
नमस्कार,  
मैं ऋषिराज आज आपको 
एक ऐसा इन्टरव्यू पढाने जा रहा हूं 
जो अपने आपमें नये किस्म का हैं। 
मैने मर चुके दलित छात्र रोहित का 
इन्टरव्यू किया है ... 
नई क़लम - उभरते हस्ताक्षर 

शुक्रवार, जनवरी 29, 2016

"धूप अब खिलने लगी है" (चर्चा अंक-2236)

 आज की चर्चा में आपका हार्दिक अभिनन्दन है। 
हम देखते हैं हमारे चारों ओर ऐसे कई लोग हैं, जो सफलता के लिए कठोर श्रम करते हैं पर सफलता कुछ गिने-चुने लोगों को ही मिलती है। हम इसे तकदीर का खेल कहते हैं। पर यदि विश्लेषणात्मक नजरिए से हम देखें तो पाएंगे कि सफल एवं असफल व्यक्तियों में एक मूलभूत अंतर है। यद्यपि कठोर श्रम दोनों करते हैं, पर सफल व्यक्तियों के पास एक स्पष्ट दृष्टिकोण होता है। वे अंधेरे में तीर नहीं चलाते। उन्हें प्रस्तुत समस्या की समझ होती है और उसके निदान की एक तर्कपरक, व्यावहारिक योजना होती है।
आनन्द पाठक 
उन्हें हाल अपना सुनाते भी क्या
 भला सुन के वो मान जाते भी क्या
 अँधेरे उन्हें रास आने लगे
 चिराग़-ए-ख़ुदी वो जलाते भी क्या 
अभी ख़ुद परस्ती में है मुब्तिला
 उसे हक़ शनासी बताते भी क्या
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(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
कायदे से धूप अब खिलने लगी है।
लेखनी को ऊर्जा मिलने लगी है।।

दे रहा मधुमास दस्तक, शीत भी जाने लगा,
भ्रमर उपवन में मधुर संगीत भी गाने लगा,
चटककर कलियाँ सभी खिलने लगी हैं।
लेखनी को ऊर्जा मिलने लगी है।।
शशि पुरवार 
एक छोटा सा समाचार साझा करना चाहतें है , जो अनुभव वहां हुआ उसे जल्दी ही एक रूप देंगे , यह समाचार प्रकाशित हुआ है वही यहाँ साझा कर रहें है
शशि पुरवार भारत में से १०० महिला अचीवर्स में से एक है , शशि पुरवार का चयन लिटरेचर कैटेगरी अंतर्गत हुआ था केंद्रीय महिला और बाल कल्याण विभाग, भारत सरकार द्वारा यह पुरस्कार भारत देश की १०० महिलाओं को 20 कैटेगरी में विशेष योगदान हेतु दिया गया है।
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  साधना वैद     
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वह एक किताब थी , 
किताब में एक पन्ना था , 
पन्ने में हृदय को छू लेने वाले 
भीगे भीगे से, बहुत कोमल, 
बहुत अंतरंग, बहुत खूबसूरत से अहसास थे ।
नीतीश तिवारी 
आज कुछ ख़याल नहीं आ रहे हैं ,
चलो तुम्हे लिख देता हूँ। 
तुम्हारी हँसी लिख देता हूँ ,
तुम्हारी ख़ुशी लिख देता हूँ।
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अजित वडनेरकर
‘ख़ातून’ भी हिन्दी क्षेत्र का जाना-पहचाना लफ़्ज़ है। इसमें भी बेग़म या खानुम की तरह कुलीन,प्रभावशाली स्त्री, साम्राज्ञी, भद्र महिला का भाव है जैसे मध्यकाल की ख्यात कश्मीरी कवयित्री हब्बा ख़ातून। बेग से बेगम और खान से ख़ानुम की तरह ख़ातून का रिश्ता 'क्षत्रप' से है।
अनामी शरण 
सोलह दिसम्बर की घटना और उसमें एक किशोर की भूमिका ने भारत के बाल न्याय कानून पर गंभीर प्रश्न खड़े किये हैं। अगर बच्चे अपराध करते हैं और अगर ये अपराध गंभीर हैं तो उन्हें वयस्क अपराधियों की तरह ही दंडित किया जाए।
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विकेश कुमार वडोला 
अनारक्षित आदमी
आज लोकतंत्र में गुम है
उसे तंत्र की तरफ से
इतनी भी
सुविधा नहीं
कि वह अपना दुख प्रकट करे
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आराधना राय 
My Photo
मौन रहूँ या सब तुमसे कह दूँ
प्रीत की अनबुझी पहेलियाँ
अपने ह्दय पर हाथ रखूं
कैसे धुप मारी किलकारियाँ
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अतुल कुमार अक्स 
"ज्यों शमा करती है इंतज़ार किसी परवाने का,
तू भी आकर देख ले हाल अपने दीवाने का,
दीवानावार भटकता रहता है वो दर बदर,
होश कहाँ रहा उसे अब इस ज़माने का"
रविकर जी
 चाटुकारिता से चतुर, करें स्वयं को सिद्ध |
इसी पुरानी रीति से, माँस नोचते गिद्ध ||

अपने पे इतरा रहे, तीन ढाक के पात |
तुल जाए तुलसी अगर, दिखला दे औकात ||
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सुरेन्द्र शुक्ल 
SURENDRA SHUKLA BHRAMAR5
मृग नयनी
दो नैन तिहारे
प्यारे प्यारे
प्यार लुटाते
भरे कुलांचे
इस दिल उस दिल
घूम रहे हैं
मोहित करते
वीरेन्द्र कुमार शर्मा 
भारत के दलित सावधान रहें रक्तरंगी लेफ्टीयों (फासिस्ट्स-वादी मार्क्स-वादी )और जेहादी मानसिकता के उन लोगों से जिन्होनें एक हिंदू दलित चेहरे को आगे करके अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकी और लगातार सेंक रहे हैं। गरमाए हुए हैं रोहिथ वेमुला की आत्मग्लानि जन्य आत्म हत्या को।
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वो जगह
राजीव उपाध्याय
ढूँढ रहा हूँ जाने कब से
धुँध में प्रकाश में
कि सिरा कोई थाम लूँ
जो लेकर मुझे उस ओर चले
जाकर जिधर
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