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सोमवार, अक्तूबर 10, 2016

"गंगा पुरखों की है थाती" (चर्चा अंक-2491)

मित्रों 
सोमवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

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गीत 

"गंगा पुरखों की है थाती" 

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

नद-नालों, सरिताओँ को भी,
जो खुश होकर अंग लगाती।
धरती की जो प्यास बुझाती,
वो पावन गंगा कहलाती।।

आड़े-तिरछे और नुकीले,
पाषाणों को तराशती है।
पर्वत से मैदानों तक जो,
अपना पथ खुद तलाशती है।
गोमुख से सागर तक जाती।
वो पावन गंगा कहलाती... 
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काश, ऐसी सास भगवान सबको दें...!! 

अब गीताबाई बहू को आगे पढ़ाने के लिए ज्यादा घरों में झाडू-पोछा करती है। इतना ही नहीं तो बहू के लिए टिफिन भी तैयार कर के देती है। वे चाहती है कि बहू एक दिन पढ़ लिखकर अपने पैरों पर खड़ी हो।
अपने बेटे एवं बेटी को पढ़ाने के लिए तो हर माँ-बाप प्रयत्नशील रहते है लेकिन एक बहू को पढ़ाने के लिए...! सच में, एक अनपढ़ गीताबाई की उच्च सोच और मानवतावादी कार्य को मैं व्यक्तिश: सलाम करती हूं। और ईश्वर से प्रार्थना करती हूं कि “काश, ऐसी सास भगवान सबको दें...!!”
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अभिषेक के जन्मदिवस पर 

गुज़ारिश पर सरिता भाटिया 
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ग्रहों की चाल ढालती है जिंदगी की चाल को 

-प्रेक्टिकल उदाहरण (2 ) ------ 

विजयराजबली माथुर 

आगरा मे 09 अक्तूबर 1954 की प्रातः 04 बजे X का जन्म हुआ है उस आधार पर जन्म कुंडली बनी है। जन्म लग्न सिंह है,राशि कुम्भ है जो सुश्री रेखा की भी है। समस्त ग्रह रेखा और X की कुंडलियों मे एक ही राशियों मे  हैं। जन्म समय मे अंतर होने के कारण सिर्फ लग्न अलग-अलग हैं। अतः ग्रह जिन भावों मे रेखा के हैं उससे भिन्न भावों मे X के हैं।  X की जन्मपत्री के जिस भाव मे जिस राशि मे ग्रह हैं उनके अनुसार फल लिखा है और प्रेक्टिकल (वास्तविक ) जीवन मे वैसा ही चरितार्थ होता दिखा है अतएव 'रेखा'की कुंडली मे उन्हीं ग्रहों के उन्हीं राशियों मे दूसरे भावों मे होने के कारण जो फल लिखा है वह भी प्रेक्टिकल (वास्तविक )जीवन मे वैसा ही चरितार्थ होना चाहिए । यही वजह X की जन्म कुंडली उदाहरणार्थ लेने का कारण बनी हैं... 
विजय राज बली माथुर 
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तुम ही तो मेरे हो.....! 

तुमने मुझे हँसना सिखाया, उड़ना सिखाया... 
तुमने ही बेरंग तस्वीरो में, रंग भरना सिखाया.... 
सब जब मैं तुम जैसी हो गयी हूँ, 
तुममे ही...तुम तक...दुनिया मेरी है...  
Sushma Verma 
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सच कह न पायेंगे लबआँखों की जुबां पढ़ना
पढ़ पाओ खुद को जब तुमऔरों की जुबां पढ़ना...
जो तुम में बस गया है किरदार अजनबी सा
उसे जानने की खातिरगैरों की जुबां पढ़ना..
किस प्यार से चमन को सींचा है बागबां ने...                
जब  गंध कुछ न बोलेभौरों की जुबां पढ़ना..
है सिलसिला-ए-ख्यवाहिश ये जिन्दगी मुसलसल 
इक दौर क्या मुनासिबदौरों की जुबां पढ़ना..
जाना समीर ने कब गम है किसी को कितना
मुस्काते गुल मिलेंगेखारों की जुबां पढ़ना.. 
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अधूरी तस्वीर 

तस्वीर मेरी अधूरी थी रंगों की तेरी 
उसमें कमी थी दर्पण भी नजरें चुरा लेता था 
आज़माता उसके सामने खुद को... 
RAAGDEVRAN पर MANOJ KAYAL  
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दंड भी दोषी को ही मिलना चाहिए 

सरहद पार से आने वाले और उनको लाने वालों का मुख्य उद्देश्य सिर्फ पैसा कमाना है। नाही वहाँ से आने वालों का स्तर संजीव कुमार, दिलीप कुमार या बलराज साहनी जैसा है, नाही उनको लेकर फिल्म घड़ने वाले राज कपूर या ऋषिकेश मुखर्जी हैं। ये लोग सिर्फ मौकापरस्त हैं... 
कुछ अलग सा पर गगन शर्मा 
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भजन 

लगा कर माँ चरणों में प्रीत। 
गाओ रे मन माँ भदुली के गीत।। 
काम क्रोध को दूर भगाकर 
रूठे भाग्य जगाती माँ। 
दुर्दिन से छुटकारा मिलता 
दुखियों को गले लगाती माँ... 
Lovely life पर Sriram Roy 
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लोहे का घर-21 

बेचैन आत्मा पर देवेन्द्र पाण्डेय 
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चीनी समान का बहिष्कार 

भारतियों पहले कामचोरी छोड़ो, काम करना सीखो और घर में अपने समान के लिये इतनी जगह बनाओ, सस्ती चीजों को उपलब्ध करवाओ, ये चीनी समान का बहिष्कार करने से कुछ नहीं होगा, चीन नहीं तो कोरिया या फिर कहीं और का समान खरीदोगे... 
कल्पतरु पर Vivek 
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4 टिप्‍पणियां:

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