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रविवार, अक्तूबर 23, 2016

"अर्जुन बिना धनुष तीर, राम नाम की शक्ति" {चर्चा अंक- 2504}

मित्रों 
रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

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दोहे 

"पुत्रों के लिए, होते हैं उपवास" 

(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

आज अहोई-अष्टमी, दिन है कितना खास।
जिसमें पुत्रों के लिए, होते हैं उपवास।।

दुनिया में दम तोड़ता, मानवता का वेद।
बेटा-बेटी में बहुत, जननी करती भेद... 
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सरहद 

हम हैं जवान रक्षक देश के**,  
अडिग जानो हमारा अहद, 
प्रबल चेतावनी समझो इसे, 
भूलकर पार करना न सरहद... 
कालीपद "प्रसाद"
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रेडिफ डॉट कॉम की शरारत 

आपको भ्रमित करने वालों को यह नहीं मालूम की अधिकाँश वोटर वही होंगे जिसे गीता का एक मात्र श्लोक एक हिस्सा मात्र याद है... ''‘​​कर्मण्येवाधिकारस्ते मां फलेषु कदाचन’ . शेष गीता से उसके मांस का दूर दूर तक कोई लेना देना नहीं ... 
गिरीश बिल्लोरे मुकुल 
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अलविदा... 

विजय कुमार सप्पत्ति 

सोचता हूँ जिन लम्हों को, हमने एक दूसरे के नाम किया है शायद वही ज़िंदगी थी ! भले ही वो ख़्यालों में हो , या फिर अनजान ख़्वाबों में .. या यूँ ही कभी बातें करते हुए .. या फिर अपने अपने अक़्स को, एक दूजे में देखते हुए हो .... पर कुछ पल जो तुने मेरे नाम किये थे... उनके लिए मैं तेरा शुक्रगुजार हूँ... 
yashoda Agrawal 
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 एक युवती बगीचे में बहुत गुस्से में बैठी थी , पास ही एक बुजुर्ग बैठे थे उन्होने उस परेशान युवती से पूछा क्या हुआ बेटी ? क्यूं इतना परेशान हो ? युवती ने गुस्से में अपने पति की गल्तीयों के बारे में बताया बुजुर्ग ने मंद मंद मुस्कराते हुए युवती से पूछा बेटी क्या तुम बता सकती हो तुम्हारे घर का नौकर कौन है ? युवती ने हैरानी से पूछा क्या मतलब... 
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चलो कुछ दिए जलाएं.... 

इस दिवाली चलो कुछ दिए जलाएं 
कुछ उदास चेहरों की मुस्कुराहट लेके आएं... 
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आरजू जिसकी कभी की नहीं 
हसरतें जिंदगी वो कब बन गयी... 
RAAGDEVRAN पर 
MANOJ KAYAL 
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नो इंट्री 

पी.सी.गोदियाल "परचेत" 
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गया जो देखकर इक बार चारागर, नहीं लौटा 

किसी दिल के दरीचे से कोई जाकर नहीं लौटा 
जूँ निकला अश्क राहे चश्म से बाहर, नहीं लौटा... 
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ 
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ये इश्क का चौथापन है 

एक गुनगुनाहट सी हर पल थिरकती है साँसों संग एक मुस्कराहट फिजाँ में करती है नर्तन उधर से आती उमड़ती - घुमड़ती आवाज़ दीदार है मेरे महबूब का अब और कौन सी इबादत करूँ या रब किसे मानूँ खुदा और किससे करूँ शिकवा वो है मैं हूँ मैं हूँ वो है मन के इकतारे पर बिखरी इक धुन है 'यार मेरा मैं यार की अब कौन करे परवाह दरबार की' कि आओ ऊंची तान में पढो नमाज़ या बजाओ घंटे घड़ियाल यार को चाहना और यार को पाना हैं दो सूरतें अलग और मैंने यार रिझा लिया बिना पाए बिना चाहे कमली हो गयी बिना मोल की कोई कमी नहीं कोई चाहत नहीं इश्क मुकम्मल हो गया मेरा जानते हो क्यों क्योंकि ये इश्क का चौथापन है... 
vandana gupta 
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आस्तिक एवं नास्तिक 

मांसाहारीको यह सुविधा रहती है कि मांसाहार न उपलब्ध होने की दशा में वो शाकाहार से अपना पेट भर ले. उसे भूखा नहीं रहना पडता. जबकि इसके विपरीत एक शाकाहारी को, शाकाहार न उपलब्ध होने की दशा में कोई विकल्प नहीं बचता. वो भूखा पड़ा मांसाहारियों को जश्न मनाता देख कुढ़ता है. उन्हें मन ही मन गरियाता है. वह खुद को कुछ इस तरह समझाता है कि देख लेना भगवान इनको इनके किए की सजा जरुर देगा. ये जीव हत्या के दोषी हैं और फिर चुपचाप भूखा सो जाता है. 
नास्तिकओर आस्तिक में भी कुछ कुछ ऐसा ही समीकरण है... 

4 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर रविवारीय चर्चा । आभारी है 'उलूक' सूत्र 'कैसे नहीं हुआ जा सकता है अर्जुन बिना
    धनुष तीर और निशाने के' को आज की चर्चा में स्थान देने के लिये ।

    जवाब देंहटाएं

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