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सोमवार, अक्तूबर 31, 2016

"स्नेह की लौ से जगमग हो दीवाली" {चर्चा अंक- 2512}

मित्रों 
सोमवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
आप सभी को 
दीपावली, गोवर्धनपूजा 
और भइयादूज की हार्दिक शुभकामनाएँ!

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

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डॉ.योगेन्द्र नाथ शर्मा ‘अरुण  
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दोहे  

"सबको दो उपहार"  

(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

जो तम हरने के लिए, खुद को रहा जलाय। 
दीपक काली रात को,  आलोकित कर जाय।। 
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लक्ष्मी और गणेश के, साथ शारदे मात। 
बिना मात के जगत में, बने न कोई बात।५। 
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दीवाली का पर्व है, सबको दो उपहार। 
आतिशबाजी का नहीं, दीपों का त्यौहार।६। 
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दौलत के मद में नहीं, बनना कभी उलूक। 
शिक्षा लेकर पेड़ से, करना सही सुलूक।७। 
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*॥ श्री सूक्तम् ॥* 

(अर्थ सहित) 

*_मंत्र -१_* 
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ॐ हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्रजाम्।_*
*_
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह॥ (१)_*
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भावार्थः  हे जातवेदा अग्निदेव आप मुझे सुवर्ण के समान पीतवर्ण वाली तथा किंचित हरितवर्ण वाली तथा हरिणी रूपधारिणी सुवर्नमिश्रित रजत की माला धारण करने वाली चाँदी के समान धवल पुष्पों की माला धारण करने वाली ,चंद्रमा के सद्रश प्रकाशमान तथा चंद्रमा की तरह संसार को प्रसन्न करने वाली या चंचला के सामान रूपवाली ये हिरण्मय ही जिसका सरीर है 
ऐसे गुणों से युक्त लक्ष्मी को मेरे लिए बुलाओ।
गिरीश बिल्लोरे मुकुल 
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लक्ष्मीजी कहाँ रहती हैं ? 

एक बूढे सेठ थे । वे खानदानी रईस थे, धन-ऐश्वर्य प्रचुर मात्रा में था परंतु लक्ष्मीजी का तो है चंचल स्वभाव । आज यहाँ तो कल वहाँ!! * *सेठ ने एक रात को स्वप्न में देखा कि एक स्त्री उनके घर के दरवाजे से निकलकर बाहर जा रही है। * *उन्होंने पूछा : ‘‘हे देवी आप कौन हैं ? मेरे घर में आप कब आयीं और मेरा घर छोडकर आप क्यों और कहाँ जा रही हैं?* *वह स्त्री बोली : ‘‘मैं तुम्हारे घर की वैभव लक्ष्मी हूँ । कई पीढयों से मैं यहाँ निवास कर रही हूँ किन्तु अब मेरा समय यहाँ पर समाप्त हो गया है इसलिए मैं यह घर छोडकर जा रही हूँ... 
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पाण्डे के प्रश्न, तिवारी के उत्तर... 

 वेतन मिली त हो जाई खर्चा नाहीं त लागी मिर्ची के मर्चा कपारे पे आयल हौ फिन से दिवारी देश कइसे चली अब बतावा तिवारी ? लक्ष्मी के पाले लक्ष्मी जी गइलिन उल्लू के पीठी पे बोझा धरउलिन कपारे पे आयल हौ फिन से दिवारी देश कइसे चली अब बतावा तिवारी... 

बेचैन आत्मा पर देवेन्द्र पाण्डेय  

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२३४. 

दिवाली में दृष्टि परिवर्तन 

दियों की रोशनी कुछ कम है इस बार, 
तेल तो उतना ही है, 
बाती भी वैसी ही है, 
हवाएं भी नहीं हैं उपद्रवी, 
फिर भी कम है रोशनी... 
कविताएँ पर Onkar
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हौसले की लौ 

सु-मन (Suman Kapoor) 
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तुम्हारे नाम 

*द्वार-देहरी जलता जो ,* 
*हर दीप तुम्हारे नाम है .* 
*अन्तर्मन से निकला जो ,* 
*हर गीत तुम्हारे नाम है .* 
Yeh Mera Jahaan पर 
गिरिजा कुलश्रेष्ठ 
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आत्मज्योति से मने दिवाली 

अंधकार का ह्रदय चीरकर दीये जले हैं प्रेम से 
भरकर सघन निशा को तार-तार कर 
फैला प्रकाश पंख को पसारकर. 
प्रचंड प्रखर संकल्प की शोभा नष्ट न हो 
ये प्रदीप्त सी आभा नीति-धर्म-सेवा-मर्यादा 
ज्योतिर्मय बन संवरें आशा. 
स्नेह की लौ से जले दीवाली 
खुशियों से भर उठे दीवाली 
अभिव्यक्ति बन हँसे दीवाली 
आत्मज्योति से मने दीवाली. 
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दीपावली की कविताएँ 

आओ मिलकर
दीप जलाएँ,
ऐसा दीप कि जिसमें डूबे
अंधकार मानव के मन का।
अपनी सुकर रश्मियों से जो
स्नात करे संपूर्ण विश्व को
आलोकित जग के आँगन में
शापग्रस्त पीढ़ी मुस्काए... 
Ravishankar Shrivastava  
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धान के बालियों से बने झालर का छत्तीसगढ़ी नाम क्या है? 

प्रत्येक दीपावली में धान की बालियों से बना झालर छत्तीसगढ़ के बाजारों में नजर आता है। इसे छत्तीसगढ़ी में क्या कहा जाता है या इसके लिए छत्तीसगढ़ी में कोई शब्द है कि नहीं? यह प्रश्न हर साल *तमंचा रायपुरी* के सामने खड़ा होता है। राहुल सिंह जी और डॉ. निर्मल साहू जी भी इस प्रश्न का जवाब मुझसे पूछते रहे हैं और मैं भकुवाया हुआ इसका उत्तर ढ़ुढ़ते रहा हूँ। सिवाय एक शब्द 'सेला' मेरे दिमाग में आता है जो हल्बी शब्द है। सन्दर्भ यह कि, श्रद्धेय लाला जगदलपुरी की एक हल्‍बी गीत है ‘उडी गला चेडे’ – 
(संजीव तिवारी) 
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सौ सवाल करता हूँ.. 

रोता हूँ..बिलखता हूँ..  
बवाल करता हूँ..  
हाँ मैं..........  
सौ सवाल करता हूँ..  
SB's Blog पर 
Sonit Bopche 
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मेरे घर का उजाला था, 

*मेरे घर का उजाला था, * 
*सितारों का हो गया * 
*दामन का मेरे फूल था ,*
 *हजारों का हो गया -* 
udaya veer singh  

2 टिप्‍पणियां:

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