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शनिवार, दिसंबर 23, 2017

"सुख का सूरज उगे गगन में" (चर्चा अंक-2826)

मित्रों!
शनिवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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बसंत आया (ताँका)..... 

डॉ. सरस्वती माथुर 

1. बसंत राग धरा गगन छाया 
सुमन खिलाने को ऋतुराज भी 
कोकिल सा कूकता 
मधुबन में आया... 
मेरी धरोहर पर yashoda Agrawal  
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ख़ुशी 
आज यूँ ही याद आई,वो दोपहर गर्मी की,स्कूल से थक कर,पसीने-पसीने घर लौटना,पँखे की हलकी-हलकी हवा में,ढंडा -ढंडा पानी पीना,आह, क्या ख़ुशी मिलती थी... 

anjana dayal 
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तरीका गलत था 

लघुकथा  
तरीका गलत था पवित्रा अग्रवाल 
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आज मैं माँ हूँ.... 

निधि सिंघल 

अक्सर माँ डिब्बे में 
भरती रहती थी कंभी मठरियां , 
मैदे के नमकीन तले हुए काजू .. 
और कंभी मूंगफली तो 
कभी कंभी बेसन के लड्डू... 
कविता मंच पर yashoda Agrawal  
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देह के जाने के बाद 

देह के पञ्च तत्वों में 
विलीन हो जाने पर भी 
खोजती है उसे , 
उस घर का आँगन 
उस घर की दीवारें 
उस घर का छोटा सा आसमान, 
सुनना चाहती है 
उसके कदमों की आहट भी... 
नयी उड़ान + पर Upasna Siag 
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ग़ज़ल - वादे तमाम कर के उजाले गुजर गए 

यूँ तीरगी के साथ ज़माने गुज़र गए ।  
वादे तमाम करके उजाले मुकर गए ।।  
शायद अलग था हुस्न किसी कोहिनूर का ।  
जन्नत की चाहतों में हजारों नफ़र गए... 
Naveen Mani Tripathi 
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सुबह दूर है बहुत कि अभी तो रात है 

गहन अँधेरे में

तारों भरा आसमान
देख रहे थे 
उन्हें गिन-गिन
विस्मित हुए जाते थे
आसमान की समृद्धि पर... 
अनुशील पर अनुपमा पाठक 
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9 टिप्‍पणियां:

  1. उम्दा चर्चा। मेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद शास्त्री जी।

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