सुधि पाठकों!
बुधवार की चर्चा में
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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राधा तिवारी "राधेगोपाल " का
काव्य पाठ
(वन्दना)
ज्ञान के इन चक्षुओं में
छा रहा अँधियार भारी।
वन्दना स्वीकार कर लो
शारदे माता हमारी।।
छा रहा अँधियार भारी।
वन्दना स्वीकार कर लो
शारदे माता हमारी।।
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ग़ज़ल
"वो कैसा शूल है"
(राधा तिवारी" राधेगोपाल ")
जो किसी को चुभ गया वह फूल कैसा फूल है l
फूल के संग जो उगे न तो वो कैसा शूल है...
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मितान-मितानिन
फ्रेन्डशिप डे वाली दोस्तियां
बहुधा एक दिन का मामला होती हैं
और फेसबुक का तो ढांचा ही फ्रेन्डबुक जैसा है,
जिसने हर रिश्ते को दोस्ती में बदलकर,
इसके बनने-बिगड़ने को
एक क्लिक पर ला दिया है...
Rahul Singh at
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मित्र
Prabhat Singh Rana at
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३२०.
बंदी से
बंदी,
ये पहरेदार जो सो रहे हैं,
दरअसल सो नहीं रहे हैं,
सोने का नाटक कर रहे हैं।
तुम चुपके से निकलोगे,
तो ये उठ जाएंगे,
तुम्हें यातनाएं देंगे,
फिर से बंदी बना लेंगे...
कविताएँ पर Onkar
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धीरे धीरे
तारों पर
खामोशी तैरती
और चाँद अपनी तन्हाई में
जलता
धीरे धीरे
तम के आगोश में
बेपनाह गहरापन
फ़िर भी
रात जवाँ होता
धीरे धीरे...
हमसफ़र शब्द पर संध्या आर्य
क ग़ज़ल : ये आँधी,ये तूफ़ाँ--
ये आँधी ,ये तूफ़ाँ ,मुख़ालिफ़ हवाएँ
भरोसा रखें, ख़ुद में हिम्मत जगायें
कहाँ तक चलेंगे लकीरों पे कब तक
अलग राह ख़ुद की चलो हम बनाएँ...
आपका ब्लॉग पर आनन्द पाठक
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कर्म प्रधान विश्व करि राखा ,
जो जस करहि सो तस ही फल चाखा
कर्म का संस्कृत में शाब्दिक अर्थ है
हमारे द्वारा किये गए काम
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शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
सुन्दर चर्चा । शुरुआत में काफी स्थान खाली छूटने से लग रहा है चर्चा नहीं छपी है। ठीक कर लें।
जवाब देंहटाएंआभार।
जवाब देंहटाएंज्ञान के इन चक्षुओं में
जवाब देंहटाएंछा रहा अँधियार भारी।
वन्दना स्वीकार कर लो
शारदे माता हमारी।।
वंदना के स्वरों से ग़ज़ल के काफिये और रदीफ़ तक सूफियाना मोहब्बत का पैगाम देती आई है राधे तिवारी जी की ग़ज़ल से आनंद पाठक की ग़ज़ल
ये आँधी ,ये तूफ़ाँ ,मुख़ालिफ़ हवाएँ
भरोसा रखें, ख़ुद में हिम्मत जगायें
कहाँ तक चलेंगे लकीरों पे कब तक
अलग राह ख़ुद की चलो हम बनाएँ...
आपका ब्लॉग पर आनन्द पाठक
तक एक विश्वास एक आस जागातीं हैं अभी भी हौसला और मोहब्बतें बाकी हैं अभी सब कुछ मरा नहीं हैं।
veeruji005.blogspot.com
veerubhai1947.blogspot.com
शास्त्री जी की सदा नीरा सलिल धारा गंगा के अपने प्रवाह में बहा ले जाती है :
जवाब देंहटाएंगीत
"वो पावन गंगा कहलाती"
बहुत सुन्दर चर्चा प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएंआज की चर्चा वंदना है.
जवाब देंहटाएंगंगा का निर्मल जल है.
और बीच में अंतर्द्वंद है.
शरारती बचपन का छंद है.
मानो जीवन का प्रतिबिम्ब है.
रचना करने का आनंद है.
शास्त्रीजी हार्दिक आभार.
क्षमा करें.
जवाब देंहटाएंराधा जी बहुत-बहुत धन्यवाद .
खूबसूरत चर्चा
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