मित्रों!
शुक्रवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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गीत
"अपनी हिन्दी"
अंग्रेजी भाषा के हम तो, खाने लगे निवाले हैं
खान-पान-परिधान विदेशी, फिर भी हिन्दी वाले हैं
खान-पान-परिधान विदेशी, फिर भी हिन्दी वाले हैं
अपनी गठरी कभी न खोली, उनके थाल खँगाल रहे
अपनी माता को दुत्कारा, उनकी माता पाल रहे
कुछ काले अंग्रेज, देश के बने हुए रखवाले हैं...
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ये कैसा हादसा हो गया
पहले ही छोटा था मैं, और छोटा हो गया
इसीलिए मेरा ग़म मुझसे बड़ा हो गया...
Dilbag Virk
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परिंदे
दिन के शोर में गुम हो गए
भोर के प्रश्न
अपने-अपने घोसलों से निकल
फुदकते रहे परिंदे...
बेचैन आत्मा पर
देवेन्द्र पाण्डेय
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भारत: धनाढ्यों द्वारा नियन्त्रित
धार्मिक गरीबों का देश
पाटीदार समुदाय की कुलदेवी है उमिया देवी। ‘विश्व उमिया धाम मन्दिर’ निर्माण हेतु गत दिनों अहमदाबाद में सम्पन्न हुई बैठक में पाटीदार समाज ने केवल तीन घण्टों में 150 करोड़ रुपये जुटा लिए। याने प्रति मिनिट 84 लाख रुपये। मुम्बई के दो पटेल भाइयों ने इक्यावन करोड़ रुपये देने की घोषणा की...
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जंगल मे मारीच
कुछ शोर और क्रंदन है,
शहर के कोलाहल में
ऊंची-ऊंची अट्टालिकाओं में
जंगलो की सरसराहट है।
वो चिंतित और बैचैन है
अपनी "ड्राइंग रूम" में
कि अब पलाश के ताप से
शहर क्यो जल रहा है...
कौशल लाल
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शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंउम्दा चर्चा। मेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, आदरणीय शास्त्री जी।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद