मित्रों।
सोमवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
--
--
ग़ज़ल
"जाने कैसे लोग"
( राधा तिवारी "राधेगोपाल " )
जाने कैसे लोग यहाँ पर पत्थर दिल हो जाते हैं l
जाने कैसे वह अपनी हर मंजिल को पा जाते हैं...
--
सिक बिल्डिंग सिंड्रोम
(Sick Building Syndrome )
को बढ़ाने में अब
अगरबत्ती (Incence stics ) की भूमिका
Virendra Kumar Sharma
--
सुकूँ की तलाश में
इस पिजरे में कितना सुकूँ हैबाहर तो मुरझाए फूल बिक रहे हैकोई ले रहा गंध बनावटीभागमभाग है व्यर्थ हीएक जाल है;मायाजाल हैघर से बंधन तकबंधन से घर तकस्वतंत्रता का अहसास मात्र लिएकभी कह ना हुआ गुलाम हैं...
--
--
अमर शहीद के नाम --
कविता
जब तक सूरज चाँद रहेगा --
अटल नाम तुम्हारा है ,
ओ ! माँ भारत के लाल !
अमर बलिदान तुम्हारा है....
--
इश्क़ का नशा
शाकी का सुरूर चढ़ ना पाया
मोहब्बत का रंग उतर ना पाया
जाम जो पिला दिया नयनों ने
होश ग़ुम हो गए
मदहोशी के आँचल में...
RAAGDEVRAN पर
MANOJ KAYAL
--
विभाजन के वक्त देखा
क्रूर साम्प्रदायिक यथार्थ,
"तमस"
और भीष्म साहनी
* और *
अपने वक्त की तमस रचने का समय...
शेखर मल्लिक
--
--
--
चन्द माहिया
[सावन पे] :
क़िस्त 52
:1:
जब प्यार भरे बादल
सावन में बरसे
भींगे तन-मन आँचल
:2:
प्यासी आँखें तरसी
उमड़ी तो बदली
जाने न कहाँ बरसी ...
आपका ब्लॉग पर आनन्द पाठक
--
--
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
शब्द प्रधान दोहावली में अर्थच्छटा भी देखते ही बनती है सावन के झूले और तीज संस्कृति के आँचल को संवारती सी शस्त्रीजी की दोहावली आप भी बांचिये :
जवाब देंहटाएंसावन आया झूम के, रिमझिम पड़ें फुहार।
धानी धरती ने किया, हरा-भरा सिंगार।।
आते सावन मास में, कई बड़े त्यौहार।
उत्सव प्राणीमात्र के, जीवन के आधार।।
साजन सजनी के लिए, होते बहुत अजीज।
गिरिजा-शंकर का मिलन, याद दिलाती तीज।।
घर-आँगन झूले पड़े, सावन की है तीज।
बनते हैं इस वर्व पर, व्यंजन बहुत लजीज।।
मेंहदी हाथों में रचा, कितनी खुश हैं नार।
बिन्दी माथे पर लगा, रिझा रही भरतार।।
धान खेत में झूमते, चलता मस्त समीर।
झील-सरोवर, ताल में, भरा हुआ है नीर।।
चौमासे में गाँव की, चहक रही चौपाल।
काम-धाम कुछ भी नहीं, ठन-ठन है गोपाल।।
तन के शोधन के लिए, आवश्यक उपवास।
श्रवण-मनन के ही लिए, होता है चौमास।।
veerusa.blogspot.com
जवाब देंहटाएंसुंदर नाम रस की हाला
छोड़ काम -रस,मधु प्याला ,पियो राम रस नाम रस -हाला ,
छोडो छोडो छोडो भाई अब मधुशाला ,बहुत हो गई हाला।
सुंदर नाम रस की हाला
veerubhai1947.blogspot.com
आदरणीय शास्त्री जी, सावन की बहुत ही सुंदर दोहावली प्रस्तुत की हैं आपने। मेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसदा की तरह सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआदरणीय सर -- एक बार फिर से इस मंच पर आपकर बहुत गर्व की अनुभूति हो रही है | सादर आभार और नमन | सभी लिंक काबिले तारीफ और पठनीय हैं | सभी रचनाकार साथियों को सस्नेह शुभकामनायें |
जवाब देंहटाएंकाफी दिनों बाद आना हुआ आज चर्चा मंच पर
जवाब देंहटाएंवो मेरी कविता छपी है ना इसलिए
क्योंकि रिमाइंडर में चर्चा मंच का लिंक था।
बड़ा अच्छा लगता है यहां आकर
हर दिन बड़े सलेक्टेड लिंक्स शेयर करने की आदत से मजबूर है हमारे शास्त्री साब।
आभार
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएं