मित्रों!
मंगलवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
--
मित्रों!
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
दोहे
"आया भादौ मास"
--
दिल से नफरत साफ करो
राधा तिवारी "राधेगोपाल " )
मंदिर मस्जिद में जाने को
दिल से नफरत साफ करो
रिश्ते नाते समझो प्यारे
गलती सबकी माफ करो..
मंदिर मस्जिद में जाने को
दिल से नफरत साफ करो
रिश्ते नाते समझो प्यारे
गलती सबकी माफ करो..
--
एक वसीयत मेरी भी .......
निवेदिता
--
मधुकर मत कर अंधेर
अभी कली है नहीं खिली है,
नहीं कर उनसे छेड़।
वे अबोध हैं तू निर्बोध है,
प्रीत की रीत का नहीं प्रबोध है।
समझेंगी वे चलन प्रेम का,
रे भ्रमर देर सवेर.....
मन के वातायन पर
Jayanti Prasad Sharma
--
अभी कली है नहीं खिली है,
नहीं कर उनसे छेड़।
वे अबोध हैं तू निर्बोध है,
प्रीत की रीत का नहीं प्रबोध है।
समझेंगी वे चलन प्रेम का,
रे भ्रमर देर सवेर.....
मन के वातायन पर
Jayanti Prasad Sharma
...उसकी आंखों से देख रहा हूं......
मेरे पास नहीं थी आंखे,
पर उन दोनों के पास ही आंखे थी......
एक की आंखों ने मेरी बुझी हुई आंखे देखी ...
छोड़ दिया मझधार में मुझे....
kuldeep thakur
--
मेरे पास नहीं थी आंखे,
पर उन दोनों के पास ही आंखे थी......
एक की आंखों ने मेरी बुझी हुई आंखे देखी ...
छोड़ दिया मझधार में मुझे....
kuldeep thakur
‘दुश्मन’ इमरान से
क्या हम ये सीखेंगे...
खुशदीप
--
वही मनुष्य है जो
मनुष्य के लिए मरे!
--
राखी के दिन सूनी कलाई
--
अनकिया सभी पूरा हो :
श्री अशोक चक्रधर
--
बैरी उर...
दीपा जोशी
--
निज घर :
अभी मेरे लिए एक कविता लिखो :
फराज बेरकदर :
यादवेन्द्र
समालोचन पर arun dev
--
समालोचन पर arun dev
नीलगिरी की गोद मे ...
--
ख़ुदगर्ज़ आवारा इश्क ...
क्या सच में
बिगाड़ देता हूँ ज़ुल्फ़ तेरी
नहीं चाहता हवा के सर कोई इलज़ाम
रखना चाहता हूँ तुझपे
बस अपना ही इख़्तियार
क़बूल है क़बूल है
आवारा-पन का जुर्म सो सो बार मुझे...
Digamber Naswa
--
बिगाड़ देता हूँ ज़ुल्फ़ तेरी
नहीं चाहता हवा के सर कोई इलज़ाम
रखना चाहता हूँ तुझपे
बस अपना ही इख़्तियार
क़बूल है क़बूल है
आवारा-पन का जुर्म सो सो बार मुझे...
Digamber Naswa
किताबों की दुनिया -
192
--
प्रेयसी-पी!
मौत बन ठन के मीत मेरे मन के सौगात मेरे तन के!
जनमते ही चला मिलने को तुमसे।
'प्रेय' पथ की मेरी प्रेयसी हो तुम।
आकुल आतुर मिलने को तुमसे
पथिक हूँ तुम्हारा...
--
मौत बन ठन के मीत मेरे मन के सौगात मेरे तन के!
जनमते ही चला मिलने को तुमसे।
'प्रेय' पथ की मेरी प्रेयसी हो तुम।
आकुल आतुर मिलने को तुमसे
पथिक हूँ तुम्हारा...
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
चर्चा मंच पे विस्तृत चर्चा ...
जवाब देंहटाएंबहुत से नए सूत्र ... आभार मेरी रचना को जगह देने के लिए ...
हिंदी की सेवा ही हिंद की सेवा है ! मंगलकामनाएं
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर चर्चा।
जवाब देंहटाएंधन्यबाद।
बहुरंगी रचनाओं का सुंदर संकलन!!! आभार एवं बधाई!!!
जवाब देंहटाएंshamil karne hetu hardik dhnyavad
जवाब देंहटाएं