मित्रों!
शनिवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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क्षणिकाएँ....
श्वेता सिन्हा
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ख्वाहिशें
रक्तबीज सी
पनपती रहती है
जीवनभर,
मन अतृप्ति में कराहता
बिसूरता रहता है
अंतिम श्वास तक।
मेरी धरोहर पर
yashoda Agrawal
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आंखों में मछलियां
आँखों में बसी मछालियां
चाहती हैं तैरना बहती नदी में
आँखों के पीछे के अंधेरापन का संगीत
उन्हें फांस सा लगता है...
सरोकार पर
Arun Roy
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पी एम के साक्षात्कार की समीक्षा :
अभिसार शर्मा / बाबी नक़वी द्वारा
क्रांति स्वर पर
विजय राज बली माथुर
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टुकड़ों की जिंदगी कभी ,
मुकम्मल न हो सकी,
*मैं भीड़ में भी हूँ, और तन्हाइयाँ भी है ।
आसान नहीं जिंदगी, कठिनाइयाँ भी है...
मनीष प्रताप
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शेखर जोशी की लम्बी कविता
‘विश्वकर्मा पूजा :
एक काव्य रिपोर्ताज’,
टिप्पणी -विजय गौड़
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पहली बार पर
Santosh Chaturvedi
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खाता-बही यहाँ जिन्दा है
सुरेश भाई को इस तरह देख कर झटका लगा। विश्वास ही नहीं हुआ कि मैं इक्कीसवीं सदी में यह देख रहा हूँ। याद नहीं आता कि ऐसा दृष्य इससे पहले कब देखा था। मेरी दशा देख कर सुरेश भाई मुस्कुरा कर बोले - ‘विश्वास नहीं हो रहा न? मुझसे तो कम्प्यूटर पर काम हो नहीं पाता। मैं अब भी इसी तरह काम करता हूँ।’ सुरेश भाई याने रतलाम के चाँदनी चौक स्थित ‘चौधरी ब्रदर्स’ वाले सुरेश चौधरी...
शुभ प्रभात..
जवाब देंहटाएंआभार...
सादर.....
सुन्दर शनिवारीय चर्चा।
जवाब देंहटाएंब्लॉग जगत मे गुलाब का फूल है चर्चा मंच
जवाब देंहटाएंमेरी पोस्ट को स्थान देने के लिए धन्यवाद आदरणीय श्री
बहुत सुन्दर चर्चा संकलन 👌
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचनाएँ 👌
सादर