मित्रों!
बुधवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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603.
वक़्त
(चोका - 10)
वक्त की गति
करती निर्धारित
मन की दशा
हो मन प्रफुल्लित
वक़्त भागता
सूर्य की किरणों-सा...
करती निर्धारित
मन की दशा
हो मन प्रफुल्लित
वक़्त भागता
सूर्य की किरणों-सा...
डॉ. जेन्नी शबनम
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वायदे तो कर दिये कैसे निभायेंगे
कुर्सी की चाह ईस कदर बिलबीलाई थी
आपने उसके बदले कुछ वायदे कर डाले थे
हर शय वायदो को अपने से जोड़ मसीहा समझ
खातादार बन खाता पुस्तिका पकड़ बाट जोहती है
15 लाख के ईनृतजार मे सही भी सही से करपायेगे
आप बतायै हमसे वायदे तो कर दिये कैसे नीभायेगे...
आपने उसके बदले कुछ वायदे कर डाले थे
हर शय वायदो को अपने से जोड़ मसीहा समझ
खातादार बन खाता पुस्तिका पकड़ बाट जोहती है
15 लाख के ईनृतजार मे सही भी सही से करपायेगे
आप बतायै हमसे वायदे तो कर दिये कैसे नीभायेगे...
कलम कवि की पर
Rajeev Sharma
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जवाब देंहटाएंसुंदर अंक, चर्चा मंच के सभी रचनाकारों को सुबह का प्रणाम।
इस युग में वायदे जो करते हैं,उसमें जाहिर है कि कोई स्वार्थ तो उनका निहित है, परंतु भेड़ बन यदि हम उनका अनुसरण कर ले,तो कसूर किसका है।
कुछ वर्षों पूर्व मेरे ठिकाने के सामने एक सर्वे कम्पनी ने अपनी दुकान लगाई। ढ़ाई साल में धन दूना करने का वायदे के साथ व्यापार को पांच सौ करोड़ तक पहुंचने के बाद अनाड़ी धन जमाकर्ताओं को छोड़ खिलाड़ी ( संचालक) गोल।
अब आप बताएं कि ढाई साल में भ्रष्टाचार, चोरी और डकैती के अतिरिक्त किस तरह से धन दूना होगा, क्यों झांसे में आयी जनता।
वहाँ 15 लाख बिल्कुल मुफ्त में कहा गया था।
मेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद,आदरणीय शास्त्री जी।
जवाब देंहटाएंशुभ प्रभात आदरणीय
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर चर्चा प्रस्तुति 👌
शानदार रचनाएँ, सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनायें
चर्चा में मुझे स्थान देने के लिए सह्रदय आभार आप का
सादर
सुन्दर चर्चा।
जवाब देंहटाएंबेहद सुन्दर
जवाब देंहटाएंआभार
सादर