मित्रों!
रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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ज़िन्दगी
ज़िन्दगी!
तेरी ज़िन्दगी मेरी ज़िन्दगी
इसकी ज़िन्दगी उसकी ज़िन्दगी
हम सबकी ज़िन्दगी।
रोती है ज़िन्दगी
रुलाती है ज़िन्दगी
हँसती है ज़िन्दगी
हँसाती है ज़िन्दगी...
मन के वातायन पर
Jayanti Prasad Sharma
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मैं अश्त्थामा बोल रहा हूँ (2)
वही पुरातन परिवेश लपेटे ,
लोगों से अपनी पहचान छिपाता
इस गतिशील संसार में
एकाकी भटक रहा हूँ .
चिरजीवी हूँ न मैं ,
हाँ मैं अश्वत्थामा...
लालित्यम् पर
प्रतिभा सक्सेना
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हीन भावना से ग्रस्त हैं हम
कल मैंने एक आलेख लिखा था - पाई-पाई बचाते हैं और रत्ती-रत्ती मन को मारते हैं । हम भारतीयों का पैसे के प्रति ऐसा ही अनुराग है। लेकिन इसके मूल में हमारी हीन भावना है। दुनिया जब विज्ञान के माध्यम से नयी दुनिया में प्रवेश कर रही थी, तब हम पुरातन में ही उलझे थे। किसी भी परिवार का बच्चा अपने माता-पिता पर विश्वास नहीं करता, वह उन्हें पुरातन पंथी ही मानता है और हमेशा असंतुष्ट रहता है...
शुभ प्रभात आदरणीय
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर चर्चा प्रस्तुति 👌
बेहतरीन रचनाएँ, सभी रचनाकारों को बधाई ,मेरी रचना को स्थान देने हेतु सह्रदय आभार आदरणीय
सादर
शुभ प्रभात आदरणीय
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर चर्चा प्रस्तुति 👌
बेहतरीन रचनाएँ, सभी रचनाकारों को बधाई ,मेरी रचना को स्थान देने हेतु सह्रदय आभार आदरणीय
सादर
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंउम्दा संकलन लिनक्स का
मेरी रचना शामिल करने के लिये धन्यवाद |
सुन्दर रविवारीय संकलन।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंमेरी रचना शामिल करने के लिये बहुत बहुत धन्यवाद।
बहुत सुन्दर कथन व सामयिक विवेचना------"हमें मांसाहार, खुला यौनाचार, घर-परिवार को छोड़कर दुनिया नापने का शौक, भारतीय होने पर सम्भव नहीं होगा। बस हमें भ्रष्टाचार की भाषा समझ आने लगती है, दबंगई की भाषा समझ आने लगती है, पैसे की भाषा समझ आने लगती है। हम जनता को समझाने में सफल हो जाते हैं कि कौवा चला हंस की चाल, याने की हैं तो भारतीय और होड़ कर रहे हैं विदेश की। लोग कहने लगते हैं कि विकास-विकास सब फिजूल की बात हैं, हम भला उनका मुकाबला कर सकते हैं? हमें तो केवल पैसा चाहिये जिससे हम भी हमारे बच्चों को विदेश भेज सकें। हमारा बच्चा भी अंग्रेजी स्कूल में पढ़ सके, हमारा बच्चा भी जन्मदिन पर केक काट सके, हमारा बच्चा भी क्लब में जा सके। "-------कितने लोग होंगे हमारे यहाँ इस पर सोचने वाले-----बधाई अजित गुप्ता जी
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