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रविवार, जनवरी 06, 2019

"कांग्रेस के इम्तिहान का साल" (चर्चा अंक-3208)

मित्रों! 
रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है।  
 देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।   
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तर्क कुतर्क के बीच 

पक्ष और विपक्ष 
तर्क, वितर्क और कू मिथ्या, 
सत्य और अर्धसत्य 
इन सबके बीच भी 
होता है बहुत कुछ 
जो चर्चाओं में नहीं आता... 
सरोकार पर Arun Roy 
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लग रहे दोज़ख़ में सारे चेहरे पहचाने हुए 

आइए देखें के कैसे कैसे अफ़साने हुए  
किस तरह कितने बशर अपनो से बेगाने हुए... 
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ 
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बड़े घर की बेटी 

सरकारी नोकरी लगते ही बड़े बड़े घरों की बेटियों के रिश्ते आने लगे. और एक दिन एक बड़े घर की बेटी इस सरकारी बाबू की बहू बनकर आ भी गयी. आते ही बहू ने अपनी सतरंगी आभा का विस्तार किया. नौकर, चाकर, मुवक्किल, मुलाजिम, ठेकेदार, देनदार, अमले, फैले, भूमि, जनसंख्या, सरकार, सब साहब के, लेकिन संप्रभुता बहू की और सबकी आज्ञाकारिता का भाव बहू के प्रति समर्पित. अरमान और फरमान दोनों बहू के. साहब तो इस व्यवस्था के 'श्री कंठ' मात्र थे जिससे मेमसाहब के स्वर निःसृत होते थे. सारा कंट्रोल बड़े घर की इस बेटी के हाथ में ही था... 
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जब तुम गए 

पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
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हम वाकई में असहिष्णु हैं ! 

यह सब लिखने-बोलने की तनिक भी इच्छा नहीं करती, क्योंकि ऐसा करना बर्रे के छत्ते पर पत्थर फेंकने के समान है !पर जब कुछ लोग रोज-रोज सोशल मिडिया पर आ बकवास कर दूसरों पर सही-गलत इल्जाम मढ़ने से बाज नहीं आते तो ना चाहते हुए भी रोष प्रकट हो जाता है ! कई दिनों से घुमड़ता आक्रोश आज ना चाहते हुए भी सहिष्णुता का बाना त्याग असहिष्णुता का आकार पा ही गया ! पर यह भी सच है कि जिस दिन देश के अवाम के सामने सारी असलियत आ जाएगी, उस दिन ऐसे लोगों की तक़रीबन बंद हो चुकी दुकानें, ढहा भी दी जाएंगी... 
कुछ अलग सा पर गगन शर्मा  


11 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात आदरणीय 🙏
    बहुत सुन्दर रविवारीय चर्चा प्रस्तुति 👌
    मेरी रचना को स्थान देने के लिए सह्रदय आभार आदरणीय
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. सुन्दर चर्चा। मेरी रचना शामिल की. आभार

    जवाब देंहटाएं

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