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शुक्रवार, जनवरी 04, 2019

"वक़्त पर वार" (चर्चा अंक-3206)

मित्रों! 
शुक्रवार की चर्चा में आपका स्वागत है।  
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।  
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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मिले ग़म से अपने फ़ुर्सत तो सुनाऊँ वो फ़साना  

मुईन अहसन जज़्बी 

yashoda Agrawal  
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वक़्त    बेवक़्त ,  वक़्त  ने  किया  वक़्त  पर  वार   ,
ज़ख्म  गहरें ,  ख़ामोशी  से  करता  रहा  प्रहार |
  ख़ंजर   कर्मों   का,   वक़्त  का  रहा   प्रहार ,
 बेखबर   मन  मेरा   न   कर   सका   तक़रार ... 

Anita Saini 
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साल ये भी कुछ तो नया होगा ..... 

इस जीवन में यूं तो हर पल नया होता है और ये इस मायने में भी होता है कि हमारे आसपास कुछ कुछ न भी हो तो भी जो बीत जाता है वो स्वयमेव पुराना हो जाता है और स्वतः ही सब कुछ नवीन यानि नया हो जाता है | और ये उसी तरह से जरूरी भी है जिस तरह से कुछ नया याद रखने के लिए पुराना भूलना बहुत जरूरी होता है... 
अजय कुमार झा  
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पाथेय 

पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
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6 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर सूत्र संयोजन सुन्दर चर्चा।

    जवाब देंहटाएं
  2. उम्दा चर्चा। मेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यबाद,आदरणीय शास्त्री जी।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुन्दर चर्चा संकलन 👌
    मेरी रचना को स्थान देने के लिए सह्रदय आभार आदरणीय,
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  4. सर्वप्रथम नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं
    बेहद खूबसूरत और मनभावन संकलन
    सभी रचनाकारों के बधाई
    मुझे सम्मलित करने के आभार
    आपको साधुवाद

    जवाब देंहटाएं
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