मित्रों!
शुक्रवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
--
--
--
"मैं" का मोह
जिस तरह किसी ब्याहता के हृदय में "मैका-मोह" समाया होता है, उसी तरह इस नश्वर संसार के हर क्षेत्र में "मैं-का" मोह चिरन्तन काल से व्याप्त है। जिसने इस मोह पर विजय प्राप्त कर ली, समझो कि उसने मोक्ष को प्राप्त कर लिया। एक अति बुजुर्ग साहित्यकार की रुग्णता का समाचार मिला तो उनकी खैरियत पूछने उनके घर चला गया। अस्वस्थ होने की हल्की सी छौंक देने के बाद वे दो घण्टे तक अविराम अपनी उपलब्धियाँ ही गिनाते रहे। शायद स्वस्थ व्यक्ति भी इस्टेमिना के मामले में इनसे हार जाए। मैंने ऐसा किया, मैंने वैसा किया। मैंने इसको बनाया, मैंने उसको बनाया। सुनकर ऐसा लगने लगा कि इनसे पहले साहित्य का संसार मरुस्थल रहा होगा। श्रीमान जी के प्रयासों से ही वह मरुस्थल, कानन कुंज में परिवर्तित हो पाया और इनके निपट जाने के बाद फिर से यह संसार, मरुभूमि में तब्दील हो जाएगा...
--
--
लिख रहे कैसी कहानी मुल्क में
लिख रहे कैसी कहानी मुल्क में
कर रहे जो हुक्मरानी मुल्क में
क़द्र खोती ये सियासत देखिए
आम होती बदजुबानी मुल्क में ...
Himkar Shyam
--
पपीता हुआ हूँ
बिना शायरी के ही जीता हुआ हूँ।
अभी शेर था, अब से चीता हुआ हूँ...
मेरी दुनिया पर
विमल कुमार शुक्ल 'विमल'
--
--
--
--
--
--
--
--
प्यासी आँखें -
अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध
कहें क्या बातें आँखों की ।
चाल चलती हैं मनमानी ।
सदा पानी में डूबी रह ।
नहीं रख सकती हैं पानी...
काव्य-धरा पर
रवीन्द्र भारद्वाज
--
--
वो खनक लौट आएगी
उन दिनों मिलावट नहीं थी
खनक वह सहज थी
आज खोटा सिक्का हो चला है जीवन
कुछ और नहीं ये
परिवर्तन की मार महज थी ...
अनुशील पर
अनुपमा पाठक
--
बेहतरीन चर्चा प्रस्तुति, शानदार रचनाएँ,
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान देने के लिए तहे दिल से आभार आदरणीय
सादर
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंमेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद सर |
बेहतरीन संकलन सुन्दर रचनाएं
जवाब देंहटाएंउम्दा लिंक्स।
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को "चर्चा मंच" में शामिल करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद,आदरणीय शास्त्री जी।
बेहतरीन चर्चा प्रस्तुति शामिल करने के लिए धन्यवाद
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद। सुंदर चर्चा।
जवाब देंहटाएंसादर धन्यवाद सर। सुन्दर प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएं