मित्रों!
बुधवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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समीक्षा
"सकारात्मक एवं अर्थपूर्ण सूक्तियाँ
(समीक्षक डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
मुझे आज डाक से हीरो वाधवानी कृत “सकारात्मक अर्थपूर्णसूक्तियों” की कृति मिली। जिसे पढ़कर मुझे अलौकिक अनुभूति हुई। मैंने अब तक गद्य-पद्य की सैकड़ों कृतियों पर अपने विचार व्यक्त किये हैं। सूक्तियों के किसी संग्रह पर कुछ लिखने का यह मेरा प्रथम प्रयास है। मेरा मानना है कि मौलिक सूक्तियों की रचना कोई सन्त या महात्मा ही कर सकता है। आज तक इस प्रकार के जितने भी संग्रह मैंने देखे हैं वह किसी न किसी महापुरुष द्वारा ही रचे गये हैं। हीरो वाधवानी मेरी दृष्टि में कोई सन्त या महात्मा नहीं हैं अपितु एक सामान्य गृहस्थ ही ही होंगे। लेकिन यदि एक सामान्य व्यक्ति इस प्रकार के ग्रन्थ की रचना करता है तो मैं यह कह सकता हूँ कि वह सन्त-महात्मा से ऊपर कोई महामानव ही हो सकता है...
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नलों में बहते पानी को
बोतलों में बंद करने का कुचक्र
तभी प्रादुर्भाव हुआ बाल्टी में बर्फ के बीच रखी बोतलों में भूरे, नारंगी, सफ़ेद ''कोल्ड ड्रिंक्स'' को कोला,ऑरेन्ज, लिम्का के नाम से बेचने की साजिश का ! बिक्री बढ़ाने की साजिश में सार्वजनिक जगहों पर लगे जल प्रदायों को बंद या ख़त्म कर दिया गया। हैंडपंपों के पानी को दूषित बताने का कुचक्र रचा गया...
कुछ अलग सा पर गगन शर्मा,
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एक ग़ज़ल :
झूठ का जो है फैला---
झूठ का है जो फैला धुआँ
साँस लेना भी मुश्किल यहाँ
सच की उड़ती रहीं धज्जियाँ
झूठ का दबदबा था जहाँ...
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सुप्रभात आदरणीय
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा प्रस्तुति
आभार
सादर
सुन्दर चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंअच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंShandar prastuti
जवाब देंहटाएंसराहनीय चर्चा अंक सभी रचनाकारों को बधाई।
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को शामिल करने के लिए धन्यवाद |