मित्रों!
मंगलवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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यार यस यस को समझ
और यस यस करने की आदत डाल
कुछ बनना है अगर तो
बाकी सब पर मिट्टी डाल
उलूक टाइम्स पर
सुशील कुमार जोशी
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राजनीति और सेवा
चुनाव का मौसम है नेताजी हर चौक-चौराहे पर मिल जाते है।तो आज एक नेताजी से मुलाकात हो गई। नेता जी काफी आश्वस्त लग रहे थे। मुस्कुराते हुए एक नुक्कड़ पर बैठे थे..अब चर्चा चाय पर थी या न्याय पर कह नही सकते ..लेकिन थोड़ी बहुत चर्चा शुरू हो गई।अब चुनाव है तो चर्चा राजनीति की ही होगी...लेकिन मेरे द्वारा एक दो बार राजनीति शब्द का प्रयोग करते ही थोड़ा गंभीर हो गए और छूटते ही कहने लगे- आप व्यर्थ में राजनीति ...राजनोति शब्द को दुहराए जा रहे है। देखिये सारी बात "राज" से शुरू होती है और "राज" पर ही खत्म होती है। बाकी रही नीति की बाते तो वो तो बनती और बिगड़ती रहती है। जनता के काम आई तो नीति और नही आई तो अनीति, बहुत सीधी बात है। इसलिए चुनाव में हम राजनीति करने के लिए खड़े नही होते बल्कि सिर्फ राज करने के लिए...
अंतर्नाद की थाप पर कौशल
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भूल जाओ वामन -
नीलम सिंह
नहीं काट सकते
अतल में धँसी
मेरी जड़ों को
तुम्हारी नैतिकता के
जंग लगे भोथरे हथियार...
अतल में धँसी
मेरी जड़ों को
तुम्हारी नैतिकता के
जंग लगे भोथरे हथियार...
काव्य-धरा पर
रवीन्द्र भारद्वाज
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सदैव की भांति ही पठनीय सामग्रियों से भरा सुंदर मंच।
जवाब देंहटाएंमेरे लेख को स्थान देने के लिये धन्यवाद, प्रणाम शास्त्री सर।
सुप्रभात आदरणीय
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा प्रस्तुति, बहुत ही सुन्दर रचनाएँ |
सादर
उम्दा चर्चा। मेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, आदरणीय शास्त्री जी।
जवाब देंहटाएंसुन्दर मंगलवारीय अंक। आभार आदरणीय 'उलूक' की बकबक को जगह देने के लिये।
जवाब देंहटाएं------ || आम का अचार || ------
जवाब देंहटाएंले लो ले लो बाबुजी काचे काचे आम |
भरी बाँस की टोकरी दोइ टका हसि दाम ||
साक पात फल कंद लिए बैसे बाट किनार |
हाट लगाए तुला धरे हाँक देइ हटबार ||
कोउ सरौता कर गहे ऊँचे रहैं पुकार |
कटे आम त अचार है न तरु होत बेकार ||
हरदि लौन लगाई के फाँका दियो सुखाए |
सत कुसुमा तिछनक संग मेथी दएँ मेलाएँ ||
बहुरि तिछ्नक तैल संग मेलत सबहीं फाँक |
काँचक केरे भाँड में भरिके राखौ ढाँक ||
शतकुसुमा = सौंफ
तीक्ष्णक = पीली सरसौं
काँचक केरे भाँड = काँच का भाजन