ये सुबह जो आके ठहर गई है बे रौशनी सी अजाब जैसी ! (अली सैयद)अपनी जैविक घड़ी पे भरोसा टूट सा चला है...भोर पांच पंद्रह का अलार्म लगा कर सोया था हालांकि कुदरत की घड़ियां सुबह दो बजे से ही बजने लगी हैं...पास ही कहीं बिजली गिरी होगी! उठकर देखता हूं, बारिश तेजतर होती हुई,दूर स्ट्रीट लाईट सिमट सी गई है गोया तूफ़ान के आसार से सहमी हुई हो !यक़ीनन कोई और वक्त होता होगा जबकि बूंदे गिनना रोमांटिक एहसासों में शामिल होता हो पर अभी तो उन्हें बूंदे मानने की हिमाकत नहीं कर सकता, आंगन के पक्के फर्श पर हथौड़ों सी बजती हुई, भय पैदा करती हुई, वापस अपने बिस्तर पर दुबक गया हूं पर नींद जा चुकी है कोसों दूर! |
जूता है महान...बड़े बडों को इसने (antony joseph)जूते का आविष्कार जिस महान ने भी किया उसने कभी कल्पना भी नहीं की होगी कि लोगों के पैरों के लिये बनाया गया जूता किसी दिन इतना महान हो जायेगा कि वह बड़े से बड़े नेताओं के ऊपर बरसेगा। चाहे वह पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी हो या भारत के गृह मंत्री पी चिदंबरम अथवा अमरीका के पूर्व शक्तिशाली राष्ट्रपति जार्ज डब्ल्यू बुश यह अब उन महान नेताओं में शुमार हो गये हैं,जिन्हें जूते खाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ,और भी कितने नेता जूता खा चुके होंगे इसका रिकार्ड नहीं लेकिन कई ऐसे भी हैं जिन्होंने कभी न कभी किसी से चप्पल या जूता जरूर खाया होगा। |
व्यंग्य - प्रेरणा की प्रेरणा (वीरेन्द्र जैन)वो तो अच्छा है कि लोग बाग आज के सत्तारूढ़ नेताओं की सलाहों पर ध्यान नही देते हैं बरना बेचारे बारहों महीने प्रेरणा लेते लेते परेशान हो जाते। सुबह से चाहे टीवी ख़ोलो या अखबार पढ़ो,उसमें कोई राष्ट्रपति,उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या जम्बो जैट मंत्रिमण्डल के दीगर मंत्री कहीं न कहीं कहते मिल जायेंगे कि देश की जनता को फलां फलां के जीवन से प्रेरणा लेना चाहिए। |
अरब न दरब झूठ का गौरब(करण समस्तीपुरी)एंह... गाँव-घर के रमन-चमन का एगो अलगे मजा है। ई रंग-रहस, उ अलमस्ती, हे उ अपनापन... गालियो दे तो लगे फूले बरसता है। ससुर डांट-डपट में भी छुर-छुरा के हंसी का फुहार फूट पड़ता है। लेकिन धीरे-धीरे अब उहाँ भी नया जमाना का गरम हवा बहने लगा है। उ कहते हैं न.... गीत-प्रीत सबै बिसरी जब रीती के बोझ पड़ीं सर पे....!" ई दुटकियारी नौकरी के चक्कर में लाखो का गवई मौज गंवाना पड़ता है। बड़ी दिन पर ई बार मौका लगा था। केतना बदल गया है गाँव भी... ! |
संस्कार विज्ञान------(प्रथम भाग) (धर्म यात्रा) किसी भी मनुष्य में अपने पूर्वजन्म के कर्मों के संस्कार तो रहते ही हैं. गर्भ के,माता-पिता के,उनकी वंशानुगत क्रमधारा के भी संस्कार रहते हैं.अब संस्कार हैं तो उनमें से कुछ अच्छे होंगें तो कुछ बुरे भी.बुरे संस्कारों को विकार कहा जाता है.जो जडता की ओर ले जाए सो विकार.जो भीतर के विकारों को मिटा दे वो संस्कार.संस्कार माने सँवारना,सुधारना.जैसे….दर्पण को स्वच्छ करना,चमकाना.जैसे रत्न जब खान से निकाला जाता है तो उसमें मिट्टी लगी होती है,बेडौल होता है.उसको साफ करते हैं,चमकाते हैं;छंटाई-घिसाई भी करते हैं और पालिश भी.उसकी चमक,स्निग्धता प्रकट हो जाने पर भी,उसे पिरोने के लिए जो छिद्राभाव होता है.उसकी भी छिद्र करके पूर्ती की जाती है.हमारे संस्कार भी कुछ इसी प्रकार के हैं.बीजगत और गर्भगत दोषों को मिटाना और जीवन को चेतनोन्मुख करके पुरूषार्थ की प्राप्ति के योग्य बनाना संस्कारों का प्रयोजन है.इसी को हमारे शास्त्रों में दोषापनयन,गुणाधान एवं हीनांगपूर्ती के नाम से कहा गया है.
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अब बन्द करो तुम,मन्दिर-मस्जिद निर्माण!(निरंजन मिश्र “अनाम”)चीख उठेमन्दिर-मस्जिद की कारा से, बन्दी अल्लाह-ओ-भगवान! पूजित होने दो पत्थरों-मीनारों की जगह, नया इन्सान! जगत का होने दो कल्याण!!! मुक्त करो! इन काली दीवारों से और न अब गुमराह करो तुम श्रद्धा से, प्यारों से! ओ मन्दिर-मस्जिद के तक्षक, ठेकेदार धर्म के करो आज इस पुण्य भूमी पर मिट्टी का आहवान जगत का होने दो कल्याण!!! | अतीत-एक शाश्वत सत्य (महेन्द्र आर्य)घडी रुक जाती है समय नहीं रुकता भागता रहता है निरंतर क्षण भर को नहीं मध्यांतर कितनी तेजी से बदलता है भविष्य वर्तमान में वर्तमान अतीत में भविष्य! एक भ्रम है जो अज्ञात है वो भ्रम है वर्तमान एक प्रक्रिया है एक नए अतीत के निर्माण की जो बीत रहा है जो व्यतीत हो रहा है हाँ, वही तो अतीत हो रहा है |
जल रहा कश्मीर!!!(मेरे भाव)बर्फीली घाटियाँफूलों की वादियाँ शोखी की रहनुमाई यौवन लेता अंगड़ाई। फिरती है एक लड़की कुछ भूली बिसराई ढूंढ़ती है यादें है बहुत घबराई। लाज पर पहरा नहीं रक्षित नहीं है आबरू सब तरफ शमशीर है जल रहा कश्मीर है । | हे स्वप्न!तुम्हारा ऋणी हूँ मैं(डा.जे.पी.तिवारी)हे मेरे स्वप्न!तुम्ही तो मेरे मीत हो जीवन के गीत हो लक्ष्य के संगीत हो. तुम्ही ने तो दिखाया है मुझे उन्नति का मार्ग प्रशस्त किया है - जीवन की राह. मै भी भटकता रहता औरों की तरह... परन्तु तुमने बोध कराया है |
नेपल्स का सौंदर्य(श्रीमति आशा जोगलेकर)नेपल्स एक अद्भुत और खूबसूरत जो कि अपनी एक बांह से समंदर को अपने आगोश में बांधने की कोशिश करता सा प्रतीत होता है।यहीं से आप देख सकते हैं विसूवियस पर्वत के नजारे। यह भी अपनी खूबसूरती तथा अपने इतिहास की वजह से जग प्रसिध्द है । इसका ऐतिहासिक उद्गम कोई 7 वी शताब्दी में हुआ जब ग्रीक लोगों ने एट्रुस्कन लोगों के साथ युद्ध करने के हेतु इसे अपनी कॉलोनी के रूप में विकसित किया। नाम दिया नापोलीस आर्थात न्यू सिट |
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नया चिट्ठा, नई शुरूआत
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बहुत सुन्दर चर्चा!
जवाब देंहटाएंकाफी अच्छे लिंक मिल गये!
काफ़ी अच्छी चर्चा लगाई है………………आभार्।
जवाब देंहटाएंनमस्कार जी
जवाब देंहटाएंरोचक व बढ़िया चर्चा
बहुत सुन्दर चर्चा!
जवाब देंहटाएंअच्छी और सार्थक चर्चा |बधाई
जवाब देंहटाएंआशा
बेहतरीन चर्चा।
जवाब देंहटाएंहमारे ब्लॉग को शामिल करने के लिए आभार।
बहुत जोरदार चर्चा पंडितजी. शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
कई दिन बाद महसूस किया कि चर्चाएँ तो और भी बेहतरीन हो गई हैं.. आभार सर..
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया चर्चा वत्स साहब !
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया चर्चा...
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंकितने श्रम से आप ब्लॉग जगत के मोती चुन-चुन कर लाते हैं। आपकी जितनी प्रशंसा की जाए कम है।
जवाब देंहटाएं………….
अभी कब्ज़ा नहीं है उसके तन पर...
साहित्यिक चोरी का निर्ललज्ज कारनामा.....
पंडित जी,
जवाब देंहटाएंये ज़ाकिर भाई भी कमाल हैं आप चुन चुन के लाये ये तो कबूल किया पर... इनमें से एक मोती अब तक उनकी राह तक रहा है ! उसका क्या ? :)